रक्षा और समृद्धि का नेहबंधन
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रक्षा और समृद्धि का नेहबंधन

by
Aug 16, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 Aug 2016 12:27:42

भारत त्योहारों का देश है। हर त्योहार के अपने विशेष महत्व के साथ उसके पीछे कुछ विशेष बातें छिपी हुई होती हैं। रक्षाबंधन भी उन्हीं में से एक है। भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित यह त्योहार सदियों से बंधन चला आ रहा है। भारतीय समाज में यह पर्व इतनी व्यापकता से समाविष्ट है कि इसका समाजिक महत्व तो है ही, धार्मिक और ऐतिहासिक साहित्यिक महत्व भी है

अजय विद्युत
श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वह भी
तब जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी। रक्षाबंधन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर चली जाती हंै। इस बहानें प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बांधती हैं और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती हैं। दो परिवारों का और कुलों का पारस्परिक मिलन होता है। समाज के विभिन्न वर्गांे के बीच इस पर्व को  एकसूत्रता के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है, उसे फिर से जागृत किया जाता है।
इस अवसर पर न केवल बहन का भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बांधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बांधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब कोई छात्र अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उन्हें रक्षासूत्र बांधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधते थे कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि-विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बांधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बांधते हैं।
कृष्ण व द्रौपदी
महाभारत में उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं तब भगवान ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को राखी बांधने के कई उल्लेख मिलते हैं। महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबन्धित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत भी है।
कहते हैं कि पहली राखी युद्ध में विजय के लिए इंद्राणी ने देवराज इंद्र को बांधी थी। इतिहास का एक उदाहरण कृष्ण व द्रौपदी का माना जाता है। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की अंगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रौपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अंगुली में बांधा जिससे खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए और भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने उनकी लाज बचाई थी। कहते हैं, परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।
एक मत यह भी
रक्षाबंधन पर बहनों को भाइयों की कलाई में रक्षा का सूत्र बांधने का बेसब्री से इंतजार रहता है। पर असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं। उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों में जाएं तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग छह हजार साल पहले बताई    गई है। इसके कई साक्ष्य इतिहास के पन्नों       में दर्ज हैं।
इतिहास में रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूं हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरु के बीच का माना जाता है। बताया गया है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरु की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गई थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। इसी कारण उसने भारतीय राजा पुरु को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी क्योंकि भारतीय राजा पुरु ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था। 

भारतीय सनातन परंपरा
वेदों में इस पर्व को लेकर ऋषियों के गुरुकुलों व आमजनों के लिए स्वाध्याय पर जोर दिया गया है। लेकिन काल के प्रभाव से इस पर्व पर वेद स्वाध्यायात्मक ऋषि तर्पण का लोप-सा हो गया। होमयज्ञ का प्रचार भी उठ गया। आजकल श्रावणी कर्म का स्वरूप यह है कि धार्मिक आस्थावान यज्ञोपवीतधारी द्विज श्रावण पूर्णिमा को गंगा आदि नदी अथवा किसी पवित्र सरोवर, तालाब या जलाशय पर जाकर सामूहिक रूप से पंचगव्य से प्रायश्चित संकल्प करके मंत्रों द्वारा दशविध स्नान कर शुद्ध हो जाते हैं।
इसके बाद वे समीप के किसी देवालय आदि पवित्र स्थल पर आकर अरुन्धीसहित सप्तर्षियों का पूजन, सूर्योपस्थान, ऋषितर्पण आदि पूजन संपन्न करते हैं। तदोपरांत नवीन यज्ञोपवीत का पूजन, पितरों तथा गुरुजनों को यज्ञोपवीत दान कर स्वयं नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
इतना विविध है यह त्योहार
राजस्थान में प्रयुक्त की जाने वाली राखी को चूड़ाराखी, उत्तराखंड में यजुर्वेदी श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुवेर्दी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्योहार माना जाता है। वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।
अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबंधन के दिन संपूर्ण होती है। कहते हैं, इसी दिन यहां का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है। इस उपलक्ष्य में इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है। महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परंपरा भी है। यही कारण है कि इस एक दिन के लिये मुंबई के समुद्र तट नारियल के फलों से भर जाते हैं।

 

 

राखी बांधें राशि अनुसार
रक्षाबंधन यानी पवित्र रिश्ते का पर्व। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बांध अपना स्नेह लुटाती हैं और आशीर्वाद और रक्षा की कामना करती हैं। ऐसे तो रक्षासूत्र के सभी रंग अच्छे होते हैं, परंतु यदि राशि के अनुसार रंग की राखी बांधी जाए तो वह विशेष लाभदायी होती है।
मेष राशि
यदि आपके भाई की राशि मेष है, तो उन्हें लाल रंग की राखी बांधें, यह सकारात्मक ऊर्जा देगी।
वृषभ राशि
यदि आपके भाई की राशि वृषभ है, तो उन्हें सफेद रंग की राखी बांधें, यह मानसिक शांति देगी।
मिथुन राशि
यदि आपके भाई की राशि मिथुन है, तो उन्हें हरे रंग की राखी बांधें, यह उनकी वैचारिक शक्ति बढ़ाएगी।
कर्क राशि
यदि आपके भाई की राशि कर्क है, तो उन्हें चमकीले सफेद रंग की राखी बांधें, यह भावनात्मक रिश्ते मजबूत बनाएगी।
सिंह राशि
यदि आपके भाई की राशि सिंह है, तो उन्हें सुनहरे पीले रंग या गुलाबी रंग की राखी बांधें, यह नेतृत्व प्रदान करेगी।
कन्या राशि
यदि आपके भाई की राशि कन्या है, तो उन्हें हरे रंग की राखी बांधें, यह शुभ परिणाम लाएगी।
तुला राशि
यदि आपके भाई की राशि तुला है, तो उन्हें सफेद रंग की राखी बांधें, यह न्याय करने की शक्ति प्रदान करेगी।
वृश्चिक राशि
यदि आपके भाई की राशि वृश्चिक है, तो उन्हें चांदी की राखी बांधें, यह शांति व रोग से मुक्ति प्रदान करती है।
धनु राशि
यदि आपके भाई की राशि धनु है, तो उन्हें पीले रंग की राखी बांधें, यह उन्हें मानसिक शांति प्रदान करेगी।
मकर राशि
यदि आपके भाई की राशि मकर है, तो उन्हें नीले रंग की राखी बांधें, यह उन्हें कार्यों में सफलता प्रदान करेगी।
कुंभ राशि
यदि आपके भाई की राशि कुंभ है, तो उन्हें नीले रंग की राखी बांधें, यह मनोबल बढ़ाती है।
मीन राशि
यदि आपके भाई की राशि मीन है, तो उन्हें सुनहरे पीले रंग की राखी बांधें, यह मानसिक शांति प्रदान करती है।
बहन न हो तो
यदि भाइयों की अपनी बहन न हो, तो वे मित्र की बहन या ब्राह्मण से राखी बंधवाएं
भाई न हो तो
यदि किसी बहन को भाई न हो तो वह श्रीकृष्ण भगवान को राखी बांधे। 

 

राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बांधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूडि़यों में बांधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बांधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट (पूजास्थल) बनाकर उनकी मंत्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती है। उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है। वहीं रेशमी डोरे से राखी बनायी जाती है। राखी को कच्चे दूध से अभिमंत्रित करते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का      प्रावधान है।
तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और ओडिशा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। गये वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की भांति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भांति नया जीवन प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण छह महीनों के लिये वेद का अध्ययन प्रारम्भ करते हैं। इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ है- नयी शुरुआत। ब्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर जी झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबन्धन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं। उत्तर प्रदेश में श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। ब्रज में पूरे श्रावण में युवतियां और नववधुएं झूला झूल भाइ-बहन के प्रेम में पगे गीत गाती है। यह समां बस देखते ही बनता है। इसके अवसर पर बहन अपना सम्पूर्ण प्यार रक्षा (राखी ) के रूप में भाई की कलाई पर बांध कर उड़ेल देती है। भाई इस अवसर पर कुछ उपहार देकर भविष्य में संकट के समय सहायता देने का बचन देता है। 

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