जम्मू-कश्मीर/मीडिया - घाटी और सच से मुंह मोड़ता मीडिया
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

जम्मू-कश्मीर/मीडिया – घाटी और सच से मुंह मोड़ता मीडिया

by
Aug 1, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 01 Aug 2016 14:30:48

-विशेष प्रतिनिधि–

कश्मीर में एक आतंकवादी का मारा जाना इस देश के नागरिकों के एक वर्ग के लिए मातम मनाने की बात है, यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति भीतर तक व्यथित कर गई।  पहले भी छिटपुट मामले होते रहे हैं, लेकिन पहली बार एक 'मोस्ट वांटिड' आतंकवादी को हीरो साबित करने की बड़े पैमाने पर कोशिश हुई। हिज्बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी के मारे जाते ही कुछ टीवी चैनलों ने ऐसा जताया मानो सुरक्षाबलों ने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी है जिसके नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। इस खेल में ज्यादातर अंग्रेजी मीडिया ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
एक संपादक ने बुरहान वानी के मारे जाने की तुलना शहीद भगत सिंह से करनी शुरू कर दी, तो दूसरी संपादक ने बताया कि वह एक हेडमास्टर का बेटा था। बदकिस्मती से ये दोनों संपादक देश के दो सबसे बड़े मीडिया समूहों के कर्ता-धर्ता हैं। कई दूसरे पत्रकारों ने भी सुरक्षा बलों की कामयाबी का जिक्र करने के बजाए यह बताना शुरू कर दिया कि बुरहान वानी घाटी के नौजवानों का 'पोस्टर ब्वॉय' था। अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस ने तो फेसबुक और ट्विटर पर बुरहान के जनाजे की तस्वीरें कुछ इस अंदाज में जारी कीं, जिससे यह लगे कि वह आतंकवादी नहीं, बल्कि कोई महान हस्ती था। वहीं हिंदुस्तान टाइम्स ने ऑनलाइन सर्वेक्षण ही शुरू कर दिया जिसका नतीजा यह बताया गया कि बुरहान की मौत से कश्मीर में हालात बिगड़ जाएंगे। बेंगलौर मिरर अखबार ने इस दुर्दांत आतंकवादी को 'यंग लीडर' कहकर संबोधित किया। वेबसाइट कोबरा पोस्ट ने कई साल पुराने वीडियो को सेना के 'अत्याचार' के सबूत के तौर पर पेश किया। क्या दुनिया के किसी और देश में मीडिया को अपने ही देश की सेना के खिलाफ ऐसा दुष्प्रचार करने की छूट मिल सकती है?
कश्मीर या इस्लामी आतंकवाद को लेकर मीडिया का यह रवैया अचानक शुरू नहीं हुआ है। बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि आतंकवादियों की मौत पर कभी मानवाधिकार हनन तो कभी दूसरे बहानों से विरोध दर्ज करावाया जा रहा है। मीडिया इस खेल का शुरू से ही हिस्सा रहा है। जब याकूब मेमन को फांसी दी गई थी तो इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा था-''उन्होंने याकूब को फांसी दे दी।'' कुछ पत्रकारों और बुद्घिजीवियों ने तब उसे 'ज्यूडीशियल मर्डर' कहा था। बुरहान के मामले में इसे 'एक्स्ट्रा ज्यूडीशियल मर्डर' बताया गया। एनडीटीवी और आज तक के दो 'क्रांतिकारी पत्रकारों' ने तो बार-बार यह झूठ बोला कि बुरहान वानी ने आज तक कोई आतंकवादी हमला किया ही नहीं। दुर्भाग्य से कश्मीर में एक तरफ तो अलग इस्लामी देश बनाने की लड़ाई चल रही है, जबकि दूसरी तरफ भारत में पत्रकारों की एक पूरी जमात इसे आर्थिक और राजनीतिक मुद्दा साबित करने में जुटी है।
एक सोची-समझी रणनीति के तहत कश्मीर पर चल रहे मीडिया के विमर्श से कश्मीरी पंडितों का पक्ष हटाने की कोशिश की गई। एक पत्रकार ने अपनी 9 बजे की बहस में यह तक कह डाला कि ''कश्मीरी पंडितों का मुद्दा अलग है, आप बार-बार इसे बीच में क्यों घुसा रहे हैं?'' अधकचरे ज्ञान वाले ऐसे पत्रकारों को आखिर किसने बताया कि कश्मीरी पंडित, कश्मीर के विवाद से अलग हैं? इसी तरह संयुक्त राष्ट्र के दखल और जनमत सर्वेक्षण की बातें तो होती हैं, लेकिन कोई यह जिक्र नहीं होने देना चाहता कि उसके लिए पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले कश्मीर से सेना हटानी होगी। अगर किसी एंकर को कश्मीर समस्या की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में नहीं पता है और इसके बावजूद वह इस मुद्दे पर विशेषज्ञ बनकर बहस कर रहा है तो क्या यह नीम-हकीम के इलाज की तरह नहीं होगा?  
जाहिर है, दिल्ली से लेकर श्रीनगर तक के मीडिया ने जो भूमिका निभाई उसका असर कहीं न कहीं कश्मीर घाटी की प्रतिक्रिया में साफ तौर पर दिखाई दिया। एक आतंकवादी के मारे जाने पर अगर दिल्ली का मीडिया उसे हीरो बनाता है तो वह घाटी के लोगों के लिए और बड़ा हीरो तो बन ही जाएगा। इसके बाद भड़की हिंसा के दौरान भी मीडिया की भूमिका आग में घी डालने वाली ही रही। भीड़ बड़े पैमाने पर पुलिस थानों और सुरक्षा बलों के ठिकानों पर हमले कर रही थी। लेकिन दिल्ली के कुछ चैनल और अखबार इस हमलावर भीड़ को ही पीडि़त के तौर पर पेश कर रहे थे। यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि हजारों लोगों की भीड़ किसी पुलिस थाने को चारों ओर से घेरकर हमला कर दे और पुलिस वाले आत्मरक्षा में भी गोली न चलाएं? सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान बड़ी संख्या में इस हिंसा में घायल हुए। कुछ की मौत भी हो गई। लेकिन ये सारी कहानियां मुख्यधारा मीडिया से करीब-करीब गायब रहीं।
कुछ चैनलों ने हिंसा के 8-10 दिन बाद पहली बार श्रीनगर के 92 आर्मी बेस अस्पताल में भर्ती जवानों की तस्वीरें दिखाईं। जम्मू कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ के इन जवानों को बेहद गंभीर स्थिति में इस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इनमें से ज्यादातर जवानों को ग्रेनेड और बम के छर्रे लगे थे। न जाने किन कारणों से कुछ चैनलों ने इस अस्पताल की रिपोर्ट को सेंसर कर दिया। कुछ ने दिखाया भी तो सिर्फ यह कि यहां पर घायल जवानों को भर्ती कराया गया है। क्या पैलेट गन से घायल पत्थरबाजों के बारे में भावुक कहानियां दिखा रहे चैनलों के लिए देश के इन सिपाहियों की जान की कीमत कुछ भी नहीं है? पैलेेट गन के इस्तेमाल पर भारत-विरोधी दुष्प्रचार में मीडिया के इस तबके ने खुलकर हिस्सा लिया। जिन्हें ये छर्रे लगे हैं वे पथराव कर रही भीड़ का हिस्सा थे। फिर भी इनके बारे में इतनी भावुक कहानियां बढ़ा-चढ़ाकर परोसी गईं जिससे भारतीय सुरक्षा बलों को खलनायक की तरह दिखाया जा सके। कई पत्रकारों ने तो बेशर्मी के साथ फिलिस्तीन और दुनिया के दूसरे देशों की तस्वीरों को कश्मीर का बताकर अफवाहें फैलाने में मदद की। एनडीटीवी ने पैलेट गन के इस्तेमाल पर भारतीय सेना को जिम्मेदार ठहरा दिया, जबकि यह तथ्य है कि सेना पैलेट गन का इस्तेमाल नहीं करती।
इसी क्रम में मीडिया पर सेंसरशिप का शिगूफा भी छोड़ा गया। इसे भारतीय सरकार के दमन की तरह दिखाया गया। लेकिन जो पत्रकार यह सवाल उठा रहे थे क्या वे इस बात का जवाब देंगे कि जब कश्मीरी पंडितों को घाटी से बंदूक के दम पर खदेड़ा जा रहा था उस वक्त कौन—सी सेंसरशिप थी, जिसकी वजह से मीडिया ने वे खबरें नहीं दिखाई थीं। क्या वजह है कि अपने देश में शरणार्थी की जिंदगी जी रहे कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की बात करने को भी मीडिया विवादित मामले की संज्ञा दे देता है।
हां,जी न्यूज और टाइम्स नाऊ  ने अपनी कवरेज में देश के पक्ष को पूरी जगह दी। जी न्यूज ने कश्मीर घाटी के ही उन तमाम इलाकों की कहानियां दिखाईं जहां पर मुस्लिम आबादी भी भारत में ही रहना चाहती है। इससे यह सवाल खड़ा हुआ कि आखिर इन इलाकों में कोई और चैनल क्यों नहीं पहुंचा? क्यों घाटी में अलगाववादियों के कुछ मोहल्लों की आवाज को ही कश्मीर घाटी की आवाज बनाकर पेश किया जा रहा है? इंडिया टुडे चैनल के एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने कार्यक्रम में बार-बार यह बताया कि सारी समस्या की जड़ में बेरोजगारी है। बेरोजगारी की वजह से ही कश्मीरी नौजवान हथियार उठाने को मजबूर हो रहे हैं। यह एक गंभीर समस्या का ऐसा सरलीकरण है, जिसे बार-बार व्यक्त करना और इसे तर्क की तरह पेश करना पूरे देश के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है। अगर बेरोजगारी के कारण ही कश्मीरी नौजवान हथियार उठा रहे हैं तो बाकी देश के लोग ऐसा क्यों नहीं कर रहे?
कश्मीर की तरह ही उत्तराखंड, हिमाचल जैसे दूसरे पहाड़ी राज्यों में भी बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। जाहिर है, यह तर्क खुद सच्चाई से आंख मूंद कर लोगों की आंखों में धूल झोंकने की तरह है। सच्चाई यही है कि कश्मीर एक राजनीतिक या आर्थिक मुद्दा नहीं है। यह अलगाववाद के नाम पर चल रहे आतंकवाद को सम्मानित दर्जा दिलाने का कुत्सित प्रयास है। ठीक वैसे, जैसे माओवादी हिंसा को जनजातीय समाज के अधिकार का मुद्दा बताकर उन्हें पीडि़त साबित किया जाता है। सवाल है कि कश्मीर को लेकर मीडिया का एक तबका आखिर ऐसे कुतर्क क्यों गढ़ रहा है, जिन पर न तो देश को विश्वास होगा और न ही दुनिया को? यह बात भी उठने लगी है कि कश्मीर घाटी के पत्थरबाजों को तो सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने के 500 रुपये मिलते हैं, लेकिन दिल्ली के कुछ 'वरिष्ठ पत्रकारों' को क्या मिलता है कि वे देश, संविधान और उसकी सेना की ओर पत्थर ताने खड़े हैं?    

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies