संवरेगा नौनिहालों का भविष्य
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संवरेगा नौनिहालों का भविष्य

by
Jul 25, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Jul 2016 14:13:22

 

3 जुलाई, 2016  
आवरण कथा 'सबक सुहाना' से यह बात स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार भावी पीढ़ी की शिक्षा को लेकर संजीदा है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि यह योजना शिक्षा क्षेत्र के लिए वरदान साबित होगी। प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों से हजारों लोग सेवानिवृत्त होते हैं, जिसके कारण राष्ट्र निर्माण में उनकी सहभागिता शून्य हो जाती है। ऐसा नहीं है कि ये लोग राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना नहीं चाहते। हम ही हैं कि उनके ज्ञान का सदुपयोग नहीं कर पाते। केन्द्र सरकार खासकर ऐसे लोगों को जोड़ने के लिए ही विद्यांजलि योजना लाई, जिसकी तारीफ करनी चाहिए। क्योंकि इनके अनुभवों का हमारे बच्चे लाभ उठाएंगे और जीवन में सीख लेंगे।  
—अनुज राठौर, मेल से

ङ्म    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश निरंतर आगे बढ़ रहा है।  विद्यांजलि योजना एक ऐसी योजना है जिसके द्वारा देश की भावी पीढ़ी आगे बढ़ सकेगी।  बच्चे अनुभवी लोगों से सीख लेंगे और अपने जीवन को संवारेंगे।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

ङ्म    इस योजना से बच्चों की प्रतिभा में निखार आएगा। जिस क्षेत्र में बच्चे की रुचि है, उसमें उसे अनुभवी लोगों के तजुर्बों से लाभ लेने का मौका मिलेगा। सरकार ने सभी क्षेत्रों के लोगों को सहभागिता आमंत्रण देकर उन्हें देश सेवा का अवसर दिया है। साथ ही शिक्षा क्षेत्र में और भी बदलाव करने होंगे, क्योंकि हम अभी जो शिक्षा अपनी पीढ़ी को दे रहे हैं वह भारत के अनुकूल नहीं है। भारत के अनुकूल शिक्षा हो, भारतीय संस्कार हों तभी हमारी शिक्षा का महत्व है।
—अंकुर कुमार, अहमदनगर (महा.)

सपा का गुंडा राज
रपट 'अपनों को बचाने की सपा की कोशिश' (3 जुलाई, 2016) से यह बात साफ है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता ही गुंडे बन चुके हैं। आए दिन आने वाले इनके बयान यही बताते हैं। विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुलायम और अखिलेश ने गुंडों को पूरी तरह से शह दे रखी है। मथुरा का जवाहर बाग कांड इसका उदाहरण है। आज सब जानते हैं कि कांड के मुख्य सूत्रधार पर पूरी तरह से अखिलेश सरकार के मंत्री शिवपाल सिंह का वरदहस्त था। उनकी ही शह पर वह इतने दिनों से सरकारी जमीन पर अपनी सत्ता चलाता रहा और शासन-प्रशासन मूक दर्शक बनकर सब देखता रहा। प्रदेश की जनता सपा के कारनामों को जान चुकी है और आने वाले विधानसभा चुनावों की प्रतीक्षा कर रही है।   
—रामधारी कौशिक , भिवानी (हरियाणा)

बढ़ता दवाब
रपट 'जान लेतीं परीक्षाएं' (26 जून, 2016) सच को समाज के सामने लाती है। जब कोई प्रतिस्पर्द्धा जान पर बन जाए तब उस उसका कोई मतलब नहीं रह जाता क्योंकि जान है तो जहान है। ज्ञान का प्रकाश फैलाने व नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षा का योगदान महत्वपूर्ण होना चाहिए। पर आज की अंकों पर जोर देने वाली शिक्षा जानलेवा सिद्ध हो रही है। वह तो हर हाल में संघर्षपूर्ण जीवन जीना सिखाती है। इससे जाहिर होता है कि कहीं न कहीं शिक्षा पद्धति में ही खोट है। क्योंकि यह धर्नाजन करने के लिए है न कि ज्ञान उत्पन्न करने के लिए। शिक्षा का असल मंतव्य कहीं खो सा गया है। भारत में हर दिन 6 बच्चे परीक्षाओं में पास न होने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, क्या ऐसा आंकड़ा हमारी भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य की कामना कर सकता है?
—हरिओम जोशी, मेल से

संघ के प्रति बदलिए सोच
लेख '…और संघ के प्रति बदल गई मेरी धारणा (3 जुलाई, 2016)' अच्छा लगा। यह सच है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जो लोग दूर से देखते हैं, उस समय उनकी भावना इसके प्रति कुछ भी होती हो लेकिन जैसे ही कोई इसके नजदीक आता है, इसका ही होकर रह जाता है। वह एक ऐसा स्वयंसेवक बनकर निकलता है जो आजीवन कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मां भारती की सेवा के लिए प्रतिबद्ध रहता है। यहां के शिक्षा-संस्कार उस में ऐसे रच-बस जाते हैं कि वह इन्हें आजीवन धारण किये रहता है। यह कोई पहला अनुभव नहीं है। संघ की जीवन यात्रा में हजारों ऐसे अनुभव भरे पड़े हैं, जब लोगों ने पहले इसकी आलोचना की, बाद में इसके होकर पूरा जीवन जिया।
—कुशाग्र अस्थाना, सिहोर (म.प्र.)
 
ङ्म    संघ अपने स्वरूप में समय के साथ बहुत ही परिवर्तन कर रहा है, जो भविष्य के लिहाज से बिलकुल उचित है। क्योंकि समय के अनुरूप ही चलना चाहिए। पर शिक्षा-संस्कार हमारे वहीं रहने चाहिए, जो संघ में बने हुए हैं। देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा संघ के दिये संस्कारों से लाभान्वित हुआ है और यहां से जो लोग निकले वे कहीं भी हों, सतत देश सेवा के मार्ग में लगे हुए हैं।
—इन्दु ठाकुर, चंपारण (बिहार)

तुष्टीकरण की विषबेल
रपट 'घर हुआ पराया' (19 जून, 2016) वास्तविक स्थिति की जानकारी देती है। पाञ्चजन्य ने इसके माध्यम से समाज और देश को सचाई से अवगत कराया है। दरअसल समाजवादी पार्टी तुष्टीकरण की राजनीति के लिए मुसलमानों के हर दुख-दर्द को अपना समझकर दूर करती है। उनसे जुड़ी कहीं, कोई छोटी भी घटना घटित हो जाए तो उसका स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री संज्ञान लेते हैं। पर कैराना में सैकड़ों हिन्दू परिवारों ने मुसलमानों के आतंक से पलायन किया, इस बारे में उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला। कार्रवाई करना तो दूर की बात। यह घटना बताती है कि सपा किस हद तक मुसलमानों के वोट पाने के लिए हिन्दुओं का दमन कर सकती है। ऐसी घटनाओं से भी राज्य की जनता नहीं जागी तो कब जागेगी?
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)

ङ्म    एक तरफ तो प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाओं में जन-जन की खुशहाली का डंका पीटती है तो दूसरी तरफ उनके ही लोग सामान्य जनता पर जुल्म ढहाते हैं। अखिलेश सरकार ने गुंडों और माफिया को खुली छूट दे रखी है। बात कैराना में हिन्दुओं के पलायन की हो या फिर मथुरा के जवाहर बाग कांड की, दोनों ही जगह शासन की मिलीभगत दिखाई दी। कैराना में भी सत्ता की धमक के दम पर स्थानीय मुसलमानों ने हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर किया। वहीं मथुरा में तो अराजकता की हद हो गई। यह घटनाक्रम जाहिर करता है कि सपा शासन में क्या गुल खिल रहे हैं।
—उमाकान्त वार्ष्णेय, वलिया (उ.प्र.) 

ङ्म    भारत में 90 से अधिक जिलों में हिन्दू आबादी अल्पसंख्यक हो चुकी है। जहां उसकी आबादी घटी है, वहां-वहां वह प्रताडि़त हो रहा है। इतना सब होने के बाद भी राज्य सरकारें चुप रहती हैं। लगातार कई स्थानों से हिन्दुओं के पलायन की खबर मन को विचलित करती हैं। देश के बहुत से ऐसे अंचल हैं जहां गांव के गांव मंे मुसलमानों का आतंक बढ़ता जा रहा
है और हिन्दू आबादी लगातार घटती जा रही है।
—डॉ. सुशील गुप्ता, सहारनपुर (उ.प्र.)  

ङ्म    हिन्दुओं का पलायन सच में दुखदायी है। जब पानी सिर से ऊपर बहने लगता है, तब ही ऐसी स्थिति होती है कि किसी को पलायन करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश का शामली जिला मुस्लिम बहुल है। यहां अपराधी किस्म के लोगों का बोलबाला है और आए दिन अपराध की वारदात होती रहती हैं। इसके कारण ही हिन्दू पलायन करने पर मजबूर हैं। राज्य सरकार को इन गुंडों और अपराधियों पर अंकुश लगाना होगा और उनके खिलाफ कार्रवाई
करनी होगी।
—सीमा परिहार, रामपुर (उ.प्र.)

ङ्म    राज्य की जनता सपा सरकार के कारनामों से ऊब चुकी है। आए दिन समाचार पत्रों में हिन्दुओं के दमन की खबरें आती रहती हैं जो बहुत ही कष्टकारी है। हाल के दिनों में इन सांप्रदायिकों का हौसला और बढ़ा हैं। शासन ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने की जगह उन्हें प्रश्रय देता है। राज्य की जनता सब कुछ देख रही है। क्योंकि किसी की आंखों पर झूठ का परदा ज्यादा समय तक नहीं डाला जा सकता। समय आने पर सपा को इसका जवाब मिल जाएगा।  
—छैल बिहारी शर्मा, छाता (उ.प्र.)

स्थापित हुई भारतीय संस्कृति
रपट 'भारत बना विश्व योग गुरु' (3 जुलाई, 2016) पढ़कर मन को सुखद अनुभव हुआ। योग के द्वारा पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति पहुंची है। आतंकी हिंसा और परमाणु हथियारों की होड़ में मानव विनाश के भय से कौन अछूता रह सकता है। ऐसे में संपूर्ण दानवता
के खिलाफ मानवता के प्रचार-प्रसार में योग
के संयोग का एहसास तन-मन में असीम सकारात्मकता जगाने का काम करता है। कमजोर सेहत व अवसाद ग्रस्त मनोदशा ने मानव के बुद्धि-विवेक को हर लिया है।
ऐसे में योग किसी संजीवनी बूटी से कम
नहीं है।
         —संतोष कुमार उनियाल, गढ़वाल (उत्तराखंड)

क्या से है असली चेहरा
इस्लामी आतंक का, कैसा गंदा काम
मारकाट संहार सब, है मजहब के नाम।
है मजहब के नाम, फ्रांस में रूप दिखाया
खुशी मनाते लोगों को ट्रक से कुचलाया।
कह 'प्रशांत' वे जाने किस दुनिया में रहते
जो अब भी हैं इसे शांति का मजहब कहते॥
—प्रशांत

निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं है यह
कुछ दिन पहले कैराना से हुआ हिन्दुओं का पलायन भय को सच करता है। कोई भी व्यक्ति मजबूरी में ही अपने स्थान से पलायन करता है। अपने घर, व्यापार, खेती को छोड़ने का दर्द वही जानता है, जिसने पलायन किया हो। रपट 'घर हुआ पराया' इस सच को उजागर करती है। पर सेकुलर मीडिया ने इस पलायन को भी झूठा साबित करने की पुरजोर कोशिश की, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। कुछ सेकुलर लोगों का आरोप है कि कैराना के सांसद ने जो 346 परिवारों की सूची दी, वह गलत है। ऐसे लोगों को पूरे क्षेत्र की छानबीन करनी चाहिए जिसके बाद दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। यह सच है कि कैराना एवं उसके आस-पास के समूचे पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुसलमानों से आतंकित होकर सैकड़ों हिन्दू परिवारों ने पलायन किया है। पर पलायन की खबर आने पर तो सेकुलर मीडिया का रवैया बेहद निराशाजनक रहा। उसने इस घटना को पूरी तरह दबाने की भरसक कोशिश की। पर कुछ समाचार पत्रों और इलेक्ट्रानिक चैनलों में यह समाचार व सच आने के बाद सेकुलर मीडिया जागी। पर सच दिखाने के बजाए उसने ही दिखाया कि यह घटना पूरी तरह से झूठी है। राजनीतिक दल वोट के लालच के लिए इसका प्रयोग करना चाहते हैं। यही मीडिया मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद कुछ विस्थापित पीडि़त परिवारों से मिलती है। शिविरों में जा-जाकर माहौल को सनसनीखेज बनाती है लेकिन कैराना के मामले में पीडि़तों से उनका बयान तक नहीं लेती। क्या यही निष्पक्ष पत्रकारिता है?
       —बलवीर सिंह बरवाला
सिंघल ट्रेडिंग कंपनी,3483, सदर पुलिस स्टेशन के पास, अंबाला छावनी (हरियाणा)

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