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राष्ट्रमण्डल सम्मेलन में विश्व-शांति पर जोर

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Jul 25, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Jul 2016 13:24:01

वर्ष: 9  अंक: 47
16 जुलाई ,1956
पाञ्चजन्य के पन्नों से
नेपाल सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र
पोलैण्ड में रूसी नियंत्रण के विरुद्ध विद्रोह
27 जून से प्रारंभ होने वाला राष्ट्रमण्डलीय प्रधानमंत्री सम्मेलन 7 जुलाई को समाप्त हो गया। इस सम्मेलन में विश्व की सभी समस्याओं पर विचार किया गया और इस बात का विश्वास प्रकट किया गया कि राष्ट्रमंडलीय देश की जनता समान रूप से संसदीय लोकतंत्र में विश्वास करती है। सम्मेलन में स्वतंत्रता और स्वशासन की भावना के प्रति समादर व्यक्त करते हुए उद्जन तथा अणु बमों के विकास द्वारा उत्पन्न गंभीर स्थिति पर गंभीरतापूर्वक विचार किया। सम्मेलन में यह भी अनुभव किया गया कि इन बमों के कारण अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में नए तत्वों का विकास हुआ है।  इसके अतिरिक्त सोवियत रूस में हाल में हुए परिवर्तनों को काफी महत्वपूर्ण अनुभव किया गया। उपर्युक्त आधारों पर सम्मेलन में जो निष्कर्ष निकाले गए हैं, वे राष्ट्रमण्डलीय देशों की राष्ट्रीय नीति के निर्धारण में सहायक सिद्ध होंगे।
सम्मेलन में विश्वशांति पर जोर देते हुए प्रस्ताव किया कि द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् आशा थी कि संसार के राष्ट्र आर्थिक प्रगति की ओर अग्रसर होंगे, किन्तु युद्ध का भूत खड़ा हो जाने के कारण शस्त्रास्त्रों की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा। परिणामत: जनता की सुख प्रमृद्धि की गति अवरुद्ध हो गई। अत: जनता की प्रगति के लिए विश्वशांति की पुन: कामना की गई।
राष्ट्रमण्डलीय देशों के प्रधानमंत्रियों ने वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति में स्पष्ट और व्यापक नि:शस्त्रीकरण समझौते के महत्व और आवश्यकता पर जोर दिया। अपने-अपने देश में जन-जीवन स्तर को उन्नत करने में राष्ट्रमण्डलीय देश प्रयत्नशील रहेंगे तथा इस प्रकार के प्रयत्न संसार में जहां कहीं भी होंगे, उसमें सहायक सिद्ध होंगे। प्रधानमंत्री सम्मेलन ने इस बात पर खेद प्रकट किया कि उनकी अंतिम बैठक के बाद से अब तक जर्मन एकता को चरितार्थ करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। पश्चिमी एशिया की वर्तमान स्थिति पर भी प्रधानमंत्रियों ने विचार किया तथा उक्त क्षेत्र में शांति और सुदृढ़ता कायम रखने के संबंध में अपना दृढ़ विचार पुन: व्यक्त किया। अरब-इस्रायल झगड़े को तत्काल समाप्त करने के लिए सभी संभव उपायों का अवलंबन करने के संबंध में सभी प्रधानमंत्री एकमत थे।  प्रधानमंत्रियों को साइप्रस की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया गया तथा  ब्रिटेन वहां की समस्याओं को हल करने के लिए जो प्रयास कर रहा है , उसका स्वागत किया गया।  पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया की वर्तमान स्थिति पर भी विचार हुआ। हिन्द चीन में शांति बनाए रखने के लिए जो राष्ट्रमंडलीय देश प्रयत्नशील हैं , उनके प्रयत्नों का स्वागत किया गया। …
नेपाल सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र
  नेपाल की अस्थिर राजनीतिक अवस्था का नाजायज फायदा उठाकर विदेशी तत्व समय- समय पर वहां षड्यंत्र रचने का प्रयास किया करते हैं।  ढाई  या 3 वर्ष पूर्व सरकार को उलटने के लिए भीषण षड्यंत्र रचा गया था, जिसका नेतृत्व यहां के निवासी डॉ. के.आई. सिंह ने किया था। षड्यंत्र असफल होने पर श्री सिंह चीन भाग गए और वर्षों तक वहीं रहे। बाद में किसी अज्ञात रहस्य के कारण वह पुन: नेपाल लौट आए।  

सुरक्षामंत्री डॉ. काटजू अपने शब्द वापस ले
''कश्मीर विभाजन''
जनता को कभी स्वीकार नहीं
बख्शी गुलाम मोहम्मद द्वारा
 पाक-प्रधानमंत्री को मुंहतोड़ उत्तर

भारत के रक्षामंत्री श्री कैलाशनाथ काटजू आजकल कश्मीर के दौरे पर आये आए हुए हैं। उन्होंने पूंछ का दौरा किया और वहां के सिपाहियों से मिले और उनकी कुशलता पूछी। एक सार्वजनिक सभा में भाषण करते हुए उन्होंने कहा कि कश्मीर समस्या का एकमात्र हल विभाजन है।  पण्डित नेहरू के कथनानुसार युद्धबंदी सीमा के आधार पर निर्णय हो सकता है। उन्होंने कहा कि कश्मीर की जनता महात्मा गांधी की अनुयायी है।  उसने आगे लड़ाई ठानने की अपेक्षा यही उचित समझा कि पाकिस्तान द्वारा अधिकृत क्षेत्र वापस न लिया जाए।
रक्षामंत्री के भाषण से जहां स्वार्थी तत्वों को प्रसन्नता हुई है, वहां राष्ट्रहित चिंतकों को अत्यन्त वेदना। राष्ट्रीय तत्वों का कहना है कि भारत के रक्षामंत्री द्वारा भारत के वैधानिक तथा नैतिक अधिकार की उपेक्षा करके जनता की भावना के विरुद्ध कश्मीर विभाजन को स्वीकार करना राष्ट्र के हितों पर कुठाराघात है, जिसे किसी भी समझदार तथा राष्ट्र-भक्त द्वारा मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती। ऐसे समय जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चौधरी मोहम्मद अली लगातार कश्मीर को बार-बार पाकिस्तान का अंग घोषित कर रहे हैं, यह घोषणा भारत की कमजोरी का परिचायक मानी जा सकती है। अत: इस घोषणा को और भी अनुचित समझा जा रहा है और आशा की जा रही है कि इस प्रकार के तर्कहीन भाषणों को रोका जाएगा।

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