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-प्रवीण सिन्हा-
जैसे- जैसे रियो ओलंपिक 2016 के शुरू होने के दिन नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे भारतीय दावेदारी को लेकर खेलप्रेमियों का उत्साह बढ़ता जा रहा है। हर कोई भारतीय दल से रियो डि जनेरियो में इतिहास रचने की उम्मीद कर रहा है। इसके कई जायज कारण हैं। ओलंपिक इतिहास में भारत का अब तक का सबसे बड़ा 121 सदस्यीय दल रियो डि जनेरियो में भाग लेने जा रहा है। भारतीय दल में कई चैंपियन खिलाड़ी हैं, जिनमें से ज्यादातर खिलाडि़यों का सपना ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतना है तो प्रतिभा के धनी युवा खिलाडि़यों का लक्ष्य रियो में इतिहास रचना है। अब भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक में महज भागीदारी के लिए नहीं, बल्कि खेलों के इस महा-आयोजन में ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने का लक्ष्य तय करके जाते हैं। खिलाडि़यों की इसी सकारात्मक सोच का नतीजा है कि उनसे इस बार पिछले 2012 के लंदन ओलंपिक की ऐतिहासिक सफलता (कुल छह पदक) से भी कहीं बेहतर परिणाम की अपेक्षा की जा रही है।
ओलंपिक खेलों में भारत पहली बार सौ से भी ज्यादा खिलाडि़यों का दल भेज रहा है। उनमें से निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग और जीतू राय, बैडमिंटन में सायना नेहवाल, पी. वी. सिंधू और ज्वाला गट्टा व अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी, कुश्ती में योगेश्वर दत्त और नरसिंह यादव, मुक्केबाजी में शिव थापा, टेनिस में लिएंडर पेस व रोहन बोपन्ना की जोड़ी सहित सानिया मिर्जा, तीरंदाजी में दीपिका कुमारी और गोल्फ में अनिर्बान लाहिड़ी और एस. एस. पी. चौरसिया जैसे खिलाड़ी हैं जिनसे रियो में पदक जीतने की उम्मीद है। इसके अलावा एथलेटिक्स और जिम्नास्टिक जैसे खेल हैं जिनमें भारतीय खिलाड़ी आश्चर्यजनक प्रदर्शन कर देश को पदक दिलाने का माद्दा रखते हैं। पिछले कुछ वषार्ें में भारतीय खिलाडि़यों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है और बैडमिंटन व टेनिस जैसे खेलों में तो भारत एक महाशक्ति के रूप में उभरा है। इनके अलावा भारतीय खिलाडि़यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के भी खूब मौके मिले हैं, जबकि सरकार की ओर से उन्हें उम्मीद से कहीं अधिक प्रशिक्षण के मौके, आधुनिकतम सुविधाएं या उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं। अमेरिका या अन्य यूरोपीय देशों की तरह इस बार भारत में भी ओलंपिक के संभावित पदक विजेताओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। राष्ट्रीय ध्वज के तले ओलंपिक में खेलने के क्या मायने होते हैं, यह बात लिएंडर पेस, अभिनव बिंद्रा, सायना नेहवाल और योगेश्वर जैसे खिलाड़ी खूब जानते हैं, लेेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेल मंत्री ने व्यक्तिगत रूप से खिलाडि़यों से मुलाकात कर उनका जो हौसला बढ़ाया है वह युवा खिलाडि़यों के लिए टॉनिक का काम कर सकता है। भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब देश के प्रधानमंत्री ने ओलंपिक जैसे किसी बड़े आयोजन से पहले खुद खिलाडि़यों का उत्साह बढ़ाया हो। इन स्थितियों में भारतीय खिलाडि़यों से ज्यादा पदकों की उम्मीद करना बेमानी नहीं है। हां, भारत के पदकों की संख्या क्या होगी, इसके लिए अभी पूरी तरह से दावा नहीं किया जा सकता।
अभिनव की नजरें स्वर्णिम निशाने पर
ओलंपिक खेलों में जब भी भारत की बात आती है, हॉकी के स्वर्णिम दिनों की यादें ताजा हो जाती हैं, क्योंकि यही एक ऐसा खेल है जिसमें भारत ने आठ बार स्वर्ण पदक जीता है। लेकिन 1980 मास्को ओलंपिक की स्वर्णिम सफलता के बाद हकी धीमे-धीमे हाशिए पर चली गई। भारत को हॉकी की जगह निशानेबाजी में एक कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाने लगा। जहां तक रियो ओलंपिक खेलों की बात है तो एक बार फिर भारत की सबसे तगड़ी दावेदारी निशानेबाजी में ही है। इस बार अभिनव बिंद्रा की अगुआई में नौ पुरुषों सहित कुल 12 निशानेबाज रियो में दावेदारी पेश करेंगे।
ओलंपिक खेलों में भारत के पहले और एकमात्र व्यक्तिगत स्पर्धा के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा के लिए रियो ओलंपिक बेहद खास और यादगार साबित हो सकता है। खास इसलिए कि बिंद्रा रियो में भारतीय दल के ध्वजवाहक होंगे, जबकि यादगार इसलिए कि उनके पास एक बार फिर स्वर्णिम निशाना साधते हुए अपने अंतरराष्ट्रीय करिअर को अलविदा कहने का मौका होगा। भारतीय दल का ध्वजवाहक बनाने की घोषणा के कुछ ही देर बाद अभिनव ने ट्वीट किया कि मेरा 20 साल का खेल करिअर 8 अगस्त को समाप्त हो जाएगा, बेहद खास मौका। अपने करिअर के पांचवें ओलंपिक में भाग ले रहे अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग में ही 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीत लिया था, लेकिन 2012 लंदन ओलंपिक में वे अंतिम चरण में भी पहुंचने में विफल रहे थे। लंदन ओलंपिक में 16वें स्थान पर रहे बिंद्रा के लिए यह एक बड़ा झटका था जिससे पार पाने के लिए वे रियो ओलंपिक की तैयारी में जुट गए। रियो ओलंपिक के लिए म्यूनिख में तैयारी कर रहे बिंद्रा इन दिनों स्नायु प्रणाली में सुधार के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम का सहारा ले रहे हैं। उनका पूरा ध्यान रियो ओलंपिक की तैयारी पर केंद्रित है। बिंद्रा के अलावा अनुभवी गगन नारंग, जीतू राय, हिना सिद्घू और अपूर्वी चंदेला जैसे निशानेबाजों से भी रियो में काफी उम्मीदें होंगी, क्योंकि इन सभी के नाम विश्व कप से लेकर एशियाई चौंपियनशिप की तमाम उपलब्धियां जुड़ी हुई हैं।
मुक्केबाजी में शिव थापा, मनोज कुमार और विकास कृष्णन भारत की दावेदारी पेश करेंगे। लेकिन चमकने और चमत्कार करने की सबसे बड़ी उम्मीद शिव थापा से ही है। कमोबेश यही स्थिति लंदन ओलंपिक में अंतिम स्थान पर रही पुरुष हॉकी टीम की है, जबकि 36 साल बाद ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली महिला हॉकी टीम का कोई भी कमाल वोनस ही होगा। एथलेटिक्स में इस बार भारत का सबसे बड़ा 37 सदस्यीय दल ओलंपिक में भाग ले रहा है, महिला व पुरुषों की लंबी दूरी के धावक सराहना बटोर पाएंगे ऐसा लगता है। हां, इस बीच शिव शंकर प्रसाद चौरसिया और अनिर्बान लाहिड़ी पुरुष गोल्फ में पदक जीतने में सफल हो जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। ये दोनों ही गोल्फर यूरोपीय पीजीए टूर में शानदार प्रदर्शन कर खिताब जीत चुके हैं इसलिए इनकी दावेदारी कमजोर नहीं होगी। कुछ ऐसा ही दमदार प्रदर्शन करने का माद्दा महिला जिम्नास्ट दीपा करमाकर भी रखती हैं। दीपा इस स्पर्धा की सबसे कड़ी शैली प्रोडूनोवा वॉल्ट में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जिम्नास्ट मानी जाती हैं। उन्होंने दावा किया है कि यह शैली भले ही खतरनाक है, लेकिन वे पदक जीतने के लिए इसे अपनाने से चूकेंगी नहीं। क्या पता, दीपा की यही जीत भारत के लिए सुखद आश्चर्य बन जाए।
'शटल क्वीन' ने भरी उड़ान
सायना नेहवाल की अगुआई में इस बार रियो में सात बैडमिंटन खिलाड़ी चुनौती पेश करेंगे। सायना ने पिछले दिनों ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज खिताब जीतने के दौरान जिस तरह से थाईलैंड की विश्व की नंबर चार खिलाड़ी रत्चानोक इंतानोन और लंदन ओलंपिक की रजत पदक विजेता चीनी खिलाड़ी की वांग यी हान और फाइनल में सुन यू को मात दी, वह भारतीय खेमे का हौसला बढ़ाने के लिए काफी है। पिछले साल चोटों से परेशान रहीं सायना अब पूरी तरह से फिट और कहीं ज्यादा आक्रामक नजर आ रही हैं। रियो में अगर सायना को सही ड्रा मिल गया तो वे लंदन ओलंपिक के कांस्य पदक का रंग बदलने में सफल हो सकती हैं। चीनी दीवार को ध्वस्त करने का श्रेय अगर सायना नेहवाल को जाता है तो उस सिलसिले को पी. वी. सिंधू ने बखूबी आगे बढ़ाया है। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सिंधू ने पिछले कुछ समय से चीनी खिलाडि़यों को ही अपना ज्यादा शिकार बनाया है। महिला वर्ग में इन दो स्टार खिलाडि़यों के अलावा ज्वाला गट्टा और अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी से काफी उम्मीदें हैं। विश्व की नंबर एक जोड़ी रह चुकी ज्वाला और पोनप्पा की जोड़ी का आपसी सामंजस्य काफी अच्छा है। नेट पर जहां ज्वाला का जवाब नहीं, वहीं बैक कोर्ट पर पोनप्पा को परास्त करना आसान नहीं है। महिला वर्ग की तगड़ी दावेदारी के बीच पुरुष वर्ग में श्रीकांत की दावेदारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता। लिन डान सहित कई दिग्गजों को हरा चुके श्रीकांत के भी ड्रा पर काफी कुछ निर्भर करता है।
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