''हम आस्था और विकास का मेल करा रहे हैं''
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पिछले दिनों शुरू हुए 'नमामि गंगे'अभियान को गंगा पर ठोस काम की शुरुआत माना जा रहा है। राजग सरकार के सत्ता संभालने के 2 साल बाद पहली बार गंगा से जुडे़ मंत्रालय में अलग तेजी दिखी। गंगा और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर और सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी ने केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्री उमा भारती से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है इस वार्ता के प्रमुख अंश
भाजपानीत राजग सरकार ने कार्यकाल की शुरुआत गंगा आरती से की थी। इस सरकार को 'नमामि गंगे' शुरू करने में दो साल का वक्त कैसे लगा?
इस बीच योजना पर काम हुआ। बिना योजना के काम करते तो वही होता जो 29 साल से होता आया था यानी कोई काम नहीं होता। हमने तय किया था कि हम किसी दबाव में नहीं आएंगे, न प्रेस के और न लोगों के। बिना दबाव में आए हम एक ठोस योजना बनाएंगे जो सैकड़ों साल तक कारगर रहे। इसलिए मैंने गंगा की निर्मलता और अविरलता पर विशेष प्रयास किए। पूर्ण संतुष्टि के बाद ही योजना क्रियान्वित की गई है।
इस योजना के मुख्य पहलू क्या हैं, ठोस आधार क्या है?
विचार के केंद्र में है गंगा। विचार यह हुआ कि इस नदी में सतत पानी कैसे रहे। क्योंकि निर्मलता तो 15-20 हजार करोड़ रु. खर्च करके काफी हद तक ठीक हो जाएगी। जल शोधक संयंत्र लग जाएंगे, लेकिन बड़ा काम है इसमें निरंतर पानी बनाए रखना। गंगा में मौजूदा पानी की मात्रा अविरलता के लिए पर्याप्त नहीं है। लेकिन इसके लिए हम गंगा पर टिहरी या अलकनंदा पावर प्रोजेक्ट के बांध और यमुना पर हथिनीकुण्ड और नरौरा बांध तो तोड़ नहीं सकते। ऐसे में तय किया है कि नए बांधों का ऐसा डिजाइन हो कि नदी का प्रवाह न रुके। अधिकतम जरूरत के वक्त जितना पानी विद्युत परियोजना के लिए चाहिए, उतना जमा रहे। उसे छोड़कर नदी में जल का जितना प्रवाह होना चाहिए उतना रहना चाहिए।
गंगाजल की गुणवत्ता बनी रहे, क्या इस पर भी विचार हुआ?
हमने पहली बार 2 हजार करोड़ लगाकर पेड़ों की डीपीआर बनवाई है। वन अनुसंधान केन्द्र, देहरादून के पास हिमालय क्षेत्र में अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी के किनारे पिछले हजार साल से रहे पेड़ों के रिकार्ड हैं। इसी वनस्पति से गंगा के उस विशेष तत्व का निर्माण होता था जिस हम ब्रह्मद्रव्य कहते हैं, जो गंगा के पानी को औषधीय गुण देता है। मानसून में उनसे टकराकर नदियों में गिरने वाले पानी में ब्रह्मद्रव्य की ताकत होती थी। कहीं और के पानी को भी शुद्ध कर देने वाला ब्रह्मद्रव्य मिला गंगा का पानी बंगाल तक यह गुण समेटे रहता है। इसका वैज्ञानिक आधार है। बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में जांच कर देहरादून की संस्था ने इसका भी पता लगाया कि भराव क्षेत्र में कौन-कौन से पेड़ हुआ करते थे। मैं आज कह सकती हूं कि भारत में नदी के लिए ऐतिहासिक दस्तावेज तैयार हुआ है। यह काम गंगा, यमुना, रामगंगा, काली जैसी नदियों पर हुआ है।।
राष्ट्रीय नदी की स्थिति कहां और किस कारण सबसे ज्यादा बिगड़ी है?
हमने 'नीरी' यानी नेशनल एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च संस्था से यह बताने को कहा है कि नदी के पानी की गुणवत्ता में कहां-कहां, कब और क्यों बदलाव हुआ है। ये अध्ययन तीन मौसमों में और गंगा के 11 व यमुना के 3-4 क्षेत्रों में होने थे। अब एक-डेढ़ महीने में 'नीरी' की रपट आ जाएगी। इस रिपोर्ट के बाद हम पेड़ों के लिए ईटीपी/एसटीपी की योजना बना पाएंगे।
इसके आगे क्या योजना है?
आगे योजना है-निर्मलता। यह सबसे ज्यादा 3 वर्ष का समय लेगी। अक्तूबर 2014 से अक्तूबर 2017 तक हम निर्मलता के काम का जलशोधन का 90 प्रतिशत नतीजा दिखा देंगे। पहले चरण का नतीजा तो हम अक्तूबर 2016 में ही दिखा देंगे।
गंगा व यमुना के संदर्भ में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
सबसे बड़ी चुनौती है इन दोनों नदियों में और पानी लाना। इससे निकलती नहरों से हम पानी कम नहीं कर सकते, क्योंकि हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान इनसे सिंचाई करते हैं। हम उन किसानों को ड्रिप और स्प्रक्लिंर के लिए तैयार करने की परियोजना बना रहे हैं। हम गंगा और यमुना के किनारों पर प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना या पीएमकेएसवाइ का फंड ले जाएंगे। भारत में गंगा और यमुना के किनारों पर सबसे पहले अत्याधुनिक प्रेशर टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की जाएगी। इससे 60 प्रतिशत पानी बचने की संभावना है। इस बचे हुए 60 प्रतिशत पानी पर जल बंटवारे की दिक्कत आएगी ही, इसलिए मैंने हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से पहले ही इस बारे में बात कर ली है कि उनको उस बचे पानी में से 30 प्रतिशत लेना होगा और 30 प्रतिशत नदी में रहने देना होगा। इससे नदी जिंदा हो जाएगी।
आस्था का अपना अडिग स्थान है, परंतु निर्मलता का पैमाना क्या होगा?
हां, हमारे सामने सवाल था कि हम घोषणा कैसे करेंगे कि गंगा निर्मल हो गई है। किसी मिनरल वाटर बोतल को भी प्रयोगशाला में भेजेंगे तो वे उसमें भी कोई कमी निकाल देंगे। इसलिए हमने कोलकाता के संस्थान सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिफरी) को यह पता लगाने को कहा है कि गंगा में कहां कौन सी मछली पाई जाती थी। वहां वह मछली खत्म हुई होगी तो उसके पीछे रसायन और सीवेज प्रदूषण ही कारण होंगे। गंगा की निर्मलता तब सिद्ध हो जाएगी जब वह मछली उस जगह फिर से पाई जाने लगेगी।
पहली बार, गंगा किनारे के रोजगार की परियोजना बनाई जा रही थी। हम पता लगाएंगे कि गंगा किनारे लोग क्या-क्या रोजगार करते थे और वे प्रदूषण के कारण कैसे खत्म हो गए। इसमें बुनकर, जुलाहे, मछुआरे आदि हैं। हम सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को साथ जोड़कर गंगा की पूरी लंबाई में 196 करोड़ के उपकरण लगा रहे हैं। इससे हमें गंगा को पूरी तरह निर्मल करने के बाद कहीं भी गुणवत्ता के स्तर में कमी आने पर फौरन पता चल जाएगा।
अभियान के लिए जनचेतना और संवाद जरूरी होगा। क्या योजना है?
हमने पूरी तैयारी कर ली है। हम गंगा नॉलेज सेंटर बनाने जा रहे हैं, जहां गंगा से जुड़ी यह सब जानकारी मिल सकेगी। यह बनारस-सारनाथ के बीच बनेगा और शोध करने वालों के काम आएगा।
हम जन संवाद पर एक पैसा नहीं खर्चेंगे। हमारे साथ संत समाज है, पूरा मीडिया है। गंगा के नाम पर सब एकमत हैं, हर मत-पंथ के लोग चाहते हैं गंगा साफ हो। मैंने हर तीज-त्योहार और पावन दिनों में गंगा नहाने वालों का प्रतिदिन का औसत निकलवाया तो पता चला औसतन 20 लाख लोग रोज गंगा स्नान करते हैं। जिस गंगा में साल में 60 करोड़ लोग स्नान करते हैं उसके लिए ल्ल नमामि गंगे योजना के अंतर्गत आपने करीब 250 परियोजनाओं पर काम शुरू किया, उनके बारे में बताएं।
हमने 100 जगह 231 परियोजनाओं के शिलान्यास किए हैं। अभी जो परियोजनाएं हमने शुरू की हैं उनमें कुछ एसटीपी हैं, कुछ रिवरफ्रंट हैं, कुछ घाटों की हैं, कुछ पौधारोपण की हैं और कुछ अंत्येष्टिस्थलों की हैं। इसमें करीब 40 श्मशान स्थल हैं और इस संदर्भ में प्रधानमंत्री का स्पष्ट कहना था कि किसी की आस्था से छेड़छाड़ न की जाए। इसमें हम दो विकल्प रखेंगे, एक लकड़ी का और एक ऐसा जिसमें बहुत कम लकड़ी लगती है। विद्युत शवदाह गृह का भी विकल्प रखा है।
इसके अतिरिक्त हम सेना के 700-700 जवानों की 4 बटालियन गंगा किनारे तैनात करेंगे जो गंगा किनारे चल रहीं परियोजनाओं की सुरक्षा करेंगी। कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर निगरानी के लिए 3 टीमें बनाई हैं, जो कैबिनेट सचिव, मुख्य सचिव और जिलाधिकारी की अध्यक्षता में तीन स्तर पर काम करेंगी। क्षेत्रीय सेना इन्हें सहयोग करेगी।
इससे सरकार और जन आस्था के बीच कोई दीवार तो नहीं खड़ी होगी?
हमारे शुरू किए कार्यक्रम आगे तक चलते रहें, इसके लिए एक एक्ट बनाने पर विचार हो रहा है। एक्ट का मुख्य जोर कल-कारखानों पर, सीवेज योजना पर नियंत्रण रखने पर रहेगा। होता यह है कि कोई छोटी गलती करने वाला तो बेचारा जेल भेज दिया जाता है पर बड़े अपराधी खुले घूमते हैं। गंगा में फूल प्रवाहित करने वाले को थाने में बैठाए जाने की बजाय हम उस उद्योगपति को जेल भिजवाएंगे जो गंगा में जहर घोल रहा है। हम उस अधिकारी को जेल भिजवाएंगे जो सीवेज की योजना में गड़बड़ करेगा। अस्थि विसर्जन करने वालों से हम कहेंगे कि धारा के बीच अस्थियां प्रवाहित करें, किनारों पर नहीं। हम किसी की आस्था से खिलवाड़ नहीं करेंगे। हम आस्था और विकास दोनों का सम्मान करेंगे। हम एक अथॉरिटी भी बना रहे हैं जो भविष्य में नदी की देखभाल करेगी।
यमुना को लेकर हमारी चिंताएं कितनी गहरी हैं? मथुरा में यमुना इतनी प्रदूषित है कि आचमन तक करना मुश्किल है। इसके लिए क्या योजना है?
जैसा काम गंगा पर हो रहा है वैसा ही यमुना पर होगा। कोई अंतर नहीं होगा, समय-सीमाएं भी वही हैं। दिल्ली हो या मथुरा-वृन्दावन, यमुना में एक बड़ा परिवर्तन देखने में आएगा। हम लोकप्रियता नहीं, पूर्णता पर ध्यान देते हैं।
ल्ल इस विस्तृत अभियान की कमान थामने में सबसे बड़ा अनुभव?
अनुभव की दृष्टि से सबसे बड़ी बात यह कि मुझे प्रधानमंत्री जी की तरफ से पूरी छूट मिली काम करने की। हालांकि, शुरू में अधिकारियों को समग्रता से योजना समझाने में समय लगा किन्तु सहयोग सबका मिला। लोग कहते हैं, सारा काम प्रधानमंत्री ने अपने हाथ में ले रखा है। ऐसा वे लोग कहते हैं जो प्रधानमंत्री को काम करते नहीं देखना चाहते। पिछले प्रधानमंत्री में समझ थी पर उनको काम नहीं करने दिया जाता था। पिछले 10-12 साल में लोगों को पीएमओ को काम करता देखने की आदत नहीं रही थी, इसलिए अब काम करने वाला पीएमओ देखकर उन्हें हैरानी होती है।
शुरू में आपने कहा, अधिकारियों को अपनी बात समझाने में दिक्कत आई। क्या आपका समझाने का तरीका ज्यादा आध्यात्मिक था?
गंगा के संबंध में आस्था के बारे में समझाने की जरूरत नहीं है। जैसे शक्कर में मिठास अंतर्निहित है उसी तरह गंगा मेें आस्था अंतर्निहित है। गंगा इस देश की एक विशेष जलधारा है जिस पर 50 करोड़ लोगों की आजीविका टिकी है, जिसका जल पूरी दुनिया में अनोखा है और जो एक बहुत लंबे हिस्से को पार करती है। इसलिए लौकिक दृष्टि से उसकी अविरलता और निर्मलता बहुत जरूरी है। इस काम में हम वैज्ञानिकता की राह ही चले हैं।
विज्ञान और विकास के साथ आस्था और संस्कृति प्रेमी राजनीति चलेगी?
भारत में एक राजनीतिक सोच विकसित हुई कि जो गरीब की सोचेंगे वे हिन्दू विरोधी ही होंगे। यह सोच साम्यवादियों ने बनाई, जिसके हिसाब से, गरीब की बात करना यानी वामपंथी सोच होना यानी धर्म विरोधी होना है। उनको यह समझ ही नहीं आया कि कोई व्यक्ति गरीब के हित की सोचने वाला हिन्दुत्वनिष्ठ हो सकता है। अब उनको वह समझ आया है, इसलिए उनकी दुकान ही उठ गई। अब विकास ने सबको जोड़ दिया है। हमने अपनी आस्था से कभी समझौता नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 9 दिन का नवरात्र उपवास कर रहे थे और यूएन को संबोधित भी कर रहे थे। उन्हें किसी तरह की शर्म नहीं थी कि उनका उपवास है। हम राजनीति विकास की कर रहे हैं, शासन विकास का कर रहे हैं। आस्था को लेकर हमें कोई शर्म, संकोच नहीं है।
क्या दुनिया के सामने विकास का नया मानवतावादी मॉडल तैयार हो रहा है?
मुझे ऐसा लग रहा है, क्योंकि दुनिया में गरीबी मिटाने के जो प्रयोग हुए हैं उनमें हमने तीन चीजों का ध्यान नहीं रखा। एक, मानवीय संवेदनशीलता। इसके कारण पूंजीवादी देशों का कितनी तेजी से पतन हुआ है। दूसरा, पर्यावरण। प्रकृति की पूजा की जाती थी, पर उसे भुला दिया गया। और तीसरा, योग-अध्यात्म। पं. दीनदयाल उपाध्याय कहते थे, मनुष्य सिर्फ शरीर नहीं है। वह मन, आत्मा और बुद्धि भी है। चारों की भूख अलग है। शरीर को रोटी, पानी और घर की भूख है। मन प्यार का भूखा है, बुद्धि को सोचने की आजादी की भूख है और आत्मा की भूख है ईश्वर की ओर जाना। इन चारों को संतुष्ट करके ही पूर्ण मानव बना जा सकता है। इस दृष्टि से मुझे लग रहा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के साथ का हमारे विकास का सिद्धांत भारत को विश्वगुरु बनाएगा।
गंगा के निर्मल होने पर जनता की क्या भूमिका देखती हैं?
मैं योजना बना रही हूं कि अक्तूबर में सारी रपटें आने और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के बाद वस्तुस्थिति सामने आने के बाद मैं सप्ताह में 3 दिन दिल्ली में और 4 दिन गंगा किनारे रहूं। मेरे निर्वाचन क्षेत्र के लोगों ने मुझे इसकी छूट दे दी है। इस जल प्रवाह को गंगोत्री से गंगासागर तक निर्मल करने का काम बिना तपस्या के नहीं हो पाएगा। यह सिर्फ पैसे से नहीं होगा। 20,000 करोड़ रु. तो मूंगफली के दाने समान हैं गंगा के चरणों में। बड़ी बात है कि लोग आगे बढ़ें और गंगा को साफ रखने का संकल्प करें। लोगों में संस्कार तो हैं बस उन्हें उनकी याद दिलानी है।
जल का विपणन और जल की शुद्धता आजकल परस्पर जुड़े विषय हैं, आप इसे कैसे देखती हैं?
पानी का विपणन एक नया विचार है। हम शोधित जल का एक बाजार बनाएंगे। पहला उदाहरण बनेगी मथुरा रिफाइनरी, जहां हम शोधित पानी देंगे, यमुना का ताजा जल नहीं निकलने देंगे। हम उनको एसटीपी का पानी देंगे और वह भी 'जीरो लिक्विड डिस्चार्ज' पर, यानी उसे गंदा पानी बाहर नहीं भेजना होगा बल्कि 'रीसाइकिल' करके वहीं उपयोग करना होगा। अब गंगा किनारे के सारे रेलवे स्टेशन गंगा का शोधित पानी लेंगे, गंगा से ताजा पानी नहीं निकलने दिया जाएगा। इसी तरह कोयले और विद्युत की जितनी भी इकाइयां लगेंगी उनमें किसी भी नदी के ताजे पानी की बजाय शोधित पानी ही जाएगा
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क्या गंगा के साथ गाय और जैविक खेती के लिए भी कुछ प्रयास किए जाएंगे?
हमने गंगा किनारे देसी उन्नत नस्ल की गायों के संवर्धन और जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसमें हम देसी गायों की नस्ल में सुधार करेंगे। इसमें हमारा मॉडल क्षेत्र है झारखण्ड। क्योंकि 80 ग्राम पंचायतों के करीब 200 गांवों में यह काम शुरू हो गया है। इससे पैदा होने वाले रोजगार पर भी जोर दिया जाएगा। मेरा ख्याल है एक साल के अंदर इस योजना के अच्छे परिणाम सामने आने लगेंगे।
नदी किनारे के बूचड़खाने जानवरों का रक्त और मज्जा आदि नदी के पास जमीन में दबा देते हैं जिससे नदी प्रदूषित होती है। इस पर कैसे लगाम लगेगी?
मुझे रपट मिली हैं ऐसी। संयोग से भारत का भूजल विभाग मेरे मंत्रालय के तहत है। मेरे पास भूजल बोर्ड की सभी रिपोर्ट आ चुकी हैं और प्रदूषण बोर्ड के जरिए ऐसे सभी उद्योगों को नोटिस जाने वाला है कि आप भूजल को खराब कर रहे हैं। मैंने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कहा है कि उन्हें कुछ लोगों को तो जेल भेजना पड़ेगा। हैरानी की बात है कि गंगा सालों से प्रदूषित हो रही है, पर एक आदमी भी जेल नहीं गया है। मेरी सबसे पहली कार्रवाई ऐसे ही लोगों पर होने वाली है जिन्होंने इन नदियों के किनारे गड्ढे खोदकर जहर भर दिया है। इस काम में मुझे राज्यों के प्रदूषण बोर्ड को सहयोग चाहिए जो मुझे उम्मीद है मिलेगा।
ऐसे बूचड़खानों को हटाने में तुष्टीकरण की राजनीति तो आड़े नहीं आएगी?
नहीं, मुझे नहीं लगता। कारण यह कि अगर नदी सूख गई या और दूषित हुई तो किसी का काम नहीं चल पाएगा। इस बात को सब समझते हैं कि नदी का पानी खराब किया तो वह उनके काम का भी नहीं बचेगा।
ल्ल नमामि गंगे योजना के अंतर्गत आपने करीब 250 परियोजनाओं पर काम शुरू किया, उनके बारे में बताएं।
हमने 100 जगह 231 परियोजनाओं के शिलान्यास किए हैं। अभी जो परियोजनाएं हमने शुरू की हैं उनमें कुछ एसटीपी हैं, कुछ रिवरफ्रंट हैं, कुछ घाटों की हैं, कुछ पौधारोपण की हैं और कुछ अंत्येष्टिस्थलों की हैं। इसमें करीब 40 श्मशान स्थल हैं और इस संदर्भ में प्रधानमंत्री का स्पष्ट कहना था कि किसी की आस्था से छेड़छाड़ न की जाए। इसमें हम दो विकल्प रखेंगे, एक लकड़ी का और एक ऐसा जिसमें बहुत कम लकड़ी लगती है। विद्युत शवदाह गृह का भी विकल्प रखा है।
इसके अतिरिक्त हम सेना के 700-700 जवानों की 4 बटालियन गंगा किनारे तैनात करेंगे जो गंगा किनारे चल रहीं परियोजनाओं की सुरक्षा करेंगी। कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर निगरानी के लिए 3 टीमें बनाई हैं, जो कैबिनेट सचिव, मुख्य सचिव और जिलाधिकारी की अध्यक्षता में तीन स्तर पर काम करेंगी। क्षेत्रीय सेना इन्हें सहयोग करेगी।
इससे सरकार और जन आस्था के बीच कोई दीवार तो नहीं खड़ी होगी?
हमारे शुरू किए कार्यक्रम आगे तक चलते रहें, इसके लिए एक एक्ट बनाने पर विचार हो रहा है। एक्ट का मुख्य जोर कल-कारखानों पर, सीवेज योजना पर नियंत्रण रखने पर रहेगा। होता यह है कि कोई छोटी गलती करने वाला तो बेचारा जेल भेज दिया जाता है पर बड़े अपराधी खुले घूमते हैं। गंगा में फूल प्रवाहित करने वाले को थाने में बैठाए जाने की बजाय हम उस उद्योगपति को जेल भिजवाएंगे जो गंगा में जहर घोल रहा है। हम उस अधिकारी को जेल भिजवाएंगे जो सीवेज की योजना में गड़बड़ करेगा। अस्थि विसर्जन करने वालों से हम कहेंगे कि धारा के बीच अस्थियां प्रवाहित करें, किनारों पर नहीं। हम किसी की आस्था से खिलवाड़ नहीं करेंगे। हम आस्था और विकास दोनों का सम्मान करेंगे। हम एक अथॉरिटी भी बना रहे हैं जो भविष्य में नदी की देखभाल करेगी।
यमुना को लेकर हमारी चिंताएं कितनी गहरी हैं? मथुरा में यमुना इतनी प्रदूषित है कि आचमन तक करना मुश्किल है। इसके लिए क्या योजना है?
जैसा काम गंगा पर हो रहा है वैसा ही यमुना पर होगा। कोई अंतर नहीं होगा, समय-सीमाएं भी वही हैं। दिल्ली हो या मथुरा-वृन्दावन, यमुना में एक बड़ा परिवर्तन देखने में आएगा। हम लोकप्रियता नहीं, पूर्णता पर ध्यान देते हैं।
ल्ल इस विस्तृत अभियान की कमान थामने में सबसे बड़ा अनुभव?
अनुभव की दृष्टि से सबसे बड़ी बात यह कि मुझे प्रधानमंत्री जी की तरफ से पूरी छूट मिली काम करने की। हालांकि, शुरू में अधिकारियों को समग्रता से योजना समझाने में समय लगा किन्तु सहयोग सबका मिला। लोग कहते हैं, सारा काम प्रधानमंत्री ने अपने हाथ में ले रखा है। ऐसा वे लोग कहते हैं जो प्रधानमंत्री को काम करते नहीं देखना चाहते। पिछले प्रधानमंत्री में समझ थी पर उनको काम नहीं करने दिया जाता था। पिछले 10-12 साल में लोगों को पीएमओ को काम करता देखने की आदत नहीं रही थी, इसलिए अब काम करने वाला पीएमओ देखकर उन्हें हैरानी होती है।
शुरू में आपने कहा, अधिकारियों को अपनी बात समझाने में दिक्कत आई। क्या आपका समझाने का तरीका ज्यादा आध्यात्मिक था?
गंगा के संबंध में आस्था के बारे में समझाने की जरूरत नहीं है। जैसे शक्कर में मिठास अंतर्निहित है उसी तरह गंगा मेें आस्था अंतर्निहित है। गंगा इस देश की एक विशेष जलधारा है जिस पर 50 करोड़ लोगों की आजीविका टिकी है, जिसका जल पूरी दुनिया में अनोखा है और जो एक बहुत लंबे हिस्से को पार करती है। इसलिए लौकिक दृष्टि से उसकी अविरलता और निर्मलता बहुत जरूरी है। इस काम में हम वैज्ञानिकता की राह ही चले हैं।
विज्ञान और विकास के साथ आस्था और संस्कृति प्रेमी राजनीति चलेगी?
भारत में एक राजनीतिक सोच विकसित हुई कि जो गरीब की सोचेंगे वे हिन्दू विरोधी ही होंगे। यह सोच साम्यवादियों ने बनाई, जिसके हिसाब से, गरीब की बात करना यानी वामपंथी सोच होना यानी धर्म विरोधी होना है। उनको यह समझ ही नहीं आया कि कोई व्यक्ति गरीब के हित की सोचने वाला हिन्दुत्वनिष्ठ हो सकता है। अब उनको वह समझ आया है, इसलिए उनकी दुकान ही उठ गई। अब विकास ने सबको जोड़ दिया है। हमने अपनी आस्था से कभी समझौता नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 9 दिन का नवरात्र उपवास कर रहे थे और यूएन को संबोधित भी कर रहे थे। उन्हें किसी तरह की शर्म नहीं थी कि उनका उपवास है। हम राजनीति विकास की कर रहे हैं, शासन विकास का कर रहे हैं। आस्था को लेकर हमें कोई शर्म, संकोच नहीं है।
क्या दुनिया के सामने विकास का नया मानवतावादी मॉडल तैयार हो रहा है?
मुझे ऐसा लग रहा है, क्योंकि दुनिया में गरीबी मिटाने के जो प्रयोग हुए हैं उनमें हमने तीन चीजों का ध्यान नहीं रखा। एक, मानवीय संवेदनशीलता। इसके कारण पूंजीवादी देशों का कितनी तेजी से पतन हुआ है। दूसरा, पर्यावरण। प्रकृति की पूजा की जाती थी, पर उसे भुला दिया गया। और तीसरा, योग-अध्यात्म। पं. दीनदयाल उपाध्याय कहते थे, मनुष्य सिर्फ शरीर नहीं है। वह मन, आत्मा और बुद्धि भी है। चारों की भूख अलग है। शरीर को रोटी, पानी और घर की भूख है। मन प्यार का भूखा है, बुद्धि को सोचने की आजादी की भूख है और आत्मा की भूख है ईश्वर की ओर जाना। इन चारों को संतुष्ट करके ही पूर्ण मानव बना जा सकता है। इस दृष्टि से मुझे लग रहा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के साथ का हमारे विकास का सिद्धांत भारत को विश्वगुरु बनाएगा।
गंगा के निर्मल होने पर जनता की क्या भूमिका देखती हैं?
मैं योजना बना रही हूं कि अक्तूबर में सारी रपटें आने और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के बाद वस्तुस्थिति सामने आने के बाद मैं सप्ताह में 3 दिन दिल्ली में और 4 दिन गंगा किनारे रहूं। मेरे निर्वाचन क्षेत्र के लोगों ने मुझे इसकी छूट दे दी है। इस जल प्रवाह को गंगोत्री से गंगासागर तक निर्मल करने का काम बिना तपस्या के नहीं हो पाएगा। यह सिर्फ पैसे से नहीं होगा। 20,000 करोड़ रु. तो मूंगफली के दाने समान हैं गंगा के चरणों में। बड़ी बात है कि लोग आगे बढ़ें और गंगा को साफ रखने का संकल्प करें। लोगों में संस्कार तो हैं बस उन्हें उनकी याद दिलानी है।
जल का विपणन और जल की शुद्धता आजकल परस्पर जुड़े विषय हैं, आप इसे कैसे देखती हैं?
पानी का विपणन एक नया विचार है। हम शोधित जल का एक बाजार बनाएंगे। पहला उदाहरण बनेगी मथुरा रिफाइनरी, जहां हम शोधित पानी देंगे, यमुना का ताजा जल नहीं निकलने देंगे। हम उनको एसटीपी का पानी देंगे और वह भी 'जीरो लिक्विड डिस्चार्ज' पर, यानी उसे गंदा पानी बाहर नहीं भेजना होगा बल्कि 'रीसाइकिल' करके वहीं उपयोग करना होगा। अब गंगा किनारे के सारे रेलवे स्टेशन गंगा का शोधित पानी लेंगे, गंगा से ताजा पानी नहीं निकलने दिया जाएगा। इसी तरह कोयले और विद्युत की जितनी भी इकाइयां लगेंगी उनमें किसी भी नदी के ताजे पानी की बजाय शोधित पानी ही जाएगा।
क्या गंगा के साथ गाय और जैविक खेती के लिए भी कुछ प्रयास किए जाएंगे?
हमने गंगा किनारे देसी उन्नत नस्ल की गायों के संवर्धन और जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसमें हम देसी गायों की नस्ल में सुधार करेंगे। इसमें हमारा मॉडल क्षेत्र है झारखण्ड। क्योंकि 80 ग्राम पंचायतों के करीब 200 गांवों में यह काम शुरू हो गया है। इससे पैदा होने वाले रोजगार पर भी जोर दिया जाएगा। मेरा ख्याल है एक साल के अंदर इस योजना के अच्छे परिणाम सामने आने लगेंगे।
ल्ल नदी किनारे के बूचड़खाने जानवरों का रक्त और मज्जा आदि नदी के पास जमीन में दबा देते हैं जिससे नदी प्रदूषित होती है। इस पर कैसे लगाम लगेगी?
मुझे रपट मिली हैं ऐसी। संयोग से भारत का भूजल विभाग मेरे मंत्रालय के तहत है। मेरे पास भूजल बोर्ड की सभी रिपोर्ट आ चुकी हैं और प्रदूषण बोर्ड के जरिए ऐसे सभी उद्योगों को नोटिस जाने वाला है कि आप भूजल को खराब कर रहे हैं। मैंने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कहा है कि उन्हें कुछ लोगों को तो जेल भेजना पड़ेगा। हैरानी की बात है कि गंगा सालों से प्रदूषित हो रही है, पर एक आदमी भी जेल नहीं गया है। मेरी सबसे पहली कार्रवाई ऐसे ही लोगों पर होने वाली है जिन्होंने इन नदियों के किनारे गड्ढे खोदकर जहर भर दिया है। इस काम में मुझे राज्यों के प्रदूषण बोर्ड को सहयोग चाहिए जो मुझे उम्मीद है मिलेगा।
ऐसे बूचड़खानों को हटाने में तुष्टीकरण की राजनीति तो आड़े नहीं आएगी?
नहीं, मुझे नहीं लगता। कारण यह कि अगर नदी सूख गई या और दूषित हुई तो किसी का काम नहीं चल पाएगा। इस बात को सब समझते हैं कि नदी का पानी खराब किया तो वह उनके काम का भी नहीं बचेगा।
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