कहर से कांपा पहाड़
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कहर से कांपा पहाड़

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Jul 11, 2016, 12:00 am IST
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दिंनाक: 11 Jul 2016 17:37:54

 

-सूर्य प्रकाश सेमवाल-

उत्तराखंड में प्रकृति पिछले 4-5 वर्ष से मानो स्थानीय लोगों के लिए दु:ख, पीड़ा व दुश्वारी लगातार लेकर आ रही है, यूं तो लोग मई से सितंबर माह के बीच पहले भी बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं के अभ्यस्त रहे हैं और इसके लिए तैयार भी रहते हैं, लेकिन मई के अंतिम सप्ताह में लोगों ने टिहरी के घनसाली क्षेत्र में जिस आपदा का सामना किया, इसके चलते अब स्थानीय लोग लगातार भय और शंका में जीने को मजबूर हैं।
30 जून से बादल फटने की एक दर्जन से भी अधिक अलग-अलग घटनाओं में चमोली में दो दर्जन से अधिक और पिथौरागढ़ सहित अन्य जिलों में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गई। पिथौरागढ़ के बस्तड़ी, नाचनी और मझगांव के साथ देवलथल तहसील के बिछुलगांव में बादल फटने से अपार
जनहानि हुई। चमोली में इस बार गोपेश्वर में मंदाकिनी नदी के पास बादल फटे और प्रचंड वर्षा के पानी के साथ मलबे के सैलाब ने कई भवनों को क्षति पहुंचातेे हुए मवेशियों को भी दबा दिया। घाट ब्लॉक के जाखणी गांव में भारी नुकसान हुआ।
रुद्रप्रयाग में अलकनंदा का जलस्तर साढ़े छह सौ मीटर तक पहुंच गया था। लगातार भूस्खलन से यमुनोत्री राजमार्ग को क्षति पहुंची। इसी प्रकार गंगोल गांव में केदारनाथ मार्ग भी बंद रहा। भारी वर्षा के चलते बद्रीनाथ से गौचर के बीच तीन हजार से अधिक तीर्थयात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर रोका गया। डीडीहाट में कैलाश-मानसरोवर के यात्रियों को मिर्थी स्थित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के मुख्यालय में ठहराया गया और उसके बाद कुछ समय उपरांत धारचूला की ओर बढ़ाया गया। लेकिन फिर तीन-चार दिन के लिए यात्रा बाधित रही। बस्तड़ी के आपदा प्रभावित क्षेत्र का दौरा करते हुए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष श्री अजय भट्ट ने बस्तड़ी, उडुमा, पत्थरकोट व कुरकोला गांवों के तत्काल विस्थापन की मांग की। चमोली की घाट तहसील में नंदाकिनी नदी द्वारा और दशोली विकासखंड के मेड़ ठेल सहित पूरे जनपद में 80 से अधिक पेयजल योजनाएं नष्ट हुईं।
टिहरी के नरेन्द्रनगर में बसर और मजियाड़ी गांवों में दो घर और कई हेक्टेयर कृषि भूमि मलबे में दब गई। घनसाली के धारगांव में भी मलबा आया, सिंचाई की नहर व पेयजल की लाइन को नुकसान पहुंचा।
उत्तराखंड क्रांतिदल के जिला अध्यक्ष चन्द्रशेखर पुनेठा कहते हैं- बस्तड़ी गांव में 9 लोग लापता और 5 अस्पताल में भर्ती हैं। अपने मकान, खेत और अपने लोगों को गंवा चुके आपदा प्रभावित सदमे में हैं। जब प्रशासन के लोग गांवों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं ऐसे में ग्रामीण कैसे क्षति का आकलन कर सकते हैं।
6 जुलाई को मुख्यमंत्री हरीश रावत आपदा प्रभावित नाचनी क्षेत्र में आपदा पीडि़तों से मिले। मुख्यमंत्री ने सभी आपदा प्रभावितों को तय मदद के अलावा मुख्यमंत्री राहतकोष से 50-50,000 रुपए अतिरिक्त देने की घोषणा की।
मुख्यमंत्री के दौरे को हिन्दू जागरण मंच ने महज नाटक बताते हुए प्रदर्शन किया और उनका पुतला फूंका। मंच के कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री को घडि़याली आंसू बहाने की बजाय धरातल पर ठोस कार्य
करना चाहिए। बस्तड़ी व पत्थरकोट में आपदा के पांच छह दिन बाद मलबे से कुछ गाय व बकरियां सुरक्षित मिलीं। रेडक्रॉस सहित अनेक सामाजिक संस्थाएं राहत कार्यों में भी लगीं।
सरकार की ओर से और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से राहत एवं पुनर्वास के दावे हमेशा से होते रहे हैं, लेकिन कड़वी सच्चाई  यह है कि राज्य के कई प्रभावित जिलों के दर्जनों गांव मुख्य मार्गों से अभी भी कटे हुए हैं। और आपदा प्रभावित दुर्गम क्षेत्रों तक अभी भी सरकारी महकमा नहीं पहुंच पाया है। प्रकृति के आगे मनुष्य बेशक लाचार है और राज्य सरकार रडारों व हेलीकॉप्टर सहित करोड़ों के आपदा राहत कोष की मांग केन्द्र सरकार से करेगी और फिर असहयोग का राग भी अलापेगी।
समय आ गया है कि प्रकृति के कहर से पीडि़त लोगों के दर्द पर समय रहते ईमानदारी से मरहम लगाया जाए और आगे संभावित आपदा से बचाव के लिए ठोस कार्ययोजना बनायी जाए।       –

प्राकृतिक आपदाएं हिमालयी क्षेत्रों के लिए  नई नहीं हैं। बादल फटने की संभावना हमेशा बनी रहती है। पुनर्वास की ऐसी व्यवस्था हो ताकि प्रकृति की मार झेल रहे लोगों को मानवीय सहायता के लिए तरसना न पड़े। दुर्भाग्य से केदार आपदा जैसी बड़ी घटना के बाद भी सरकारी तंत्र आंख मूंदे हुए है। मृतकों को और घायलों को तत्काल उचित मुआवजा देने के साथ, जिनके मकान नष्ट हुए हैं, अथवा क्षतिग्रस्त हुए हैं उनका उचित मूल्य तय कर सही क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए। जहां सड़कें और मुख्य मार्ग नष्ट हुए हैं, उनको गुणवत्ता और सही मानक के साथ एक निर्दिष्ट समय तक पूरा करने का लक्ष्य होना चाहिए। राज्य सरकार को पिथौरागढ़, चमोली और चंपावत सहित राज्य के सभी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत और पुनर्वास का ठोस कार्य करना चाहिए, सीधे तौर पर यह दायित्व स्थानीय शासन व राज्य सरकार का है। केन्द्र ने तो एनडीआरएफ, सेना और आईटीबीपी को ठीक समय पर राहत व बचाव के लिए भेज दिया था। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को दूरभाष से इस आपदा में मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए स्थिति से निपटने के लिए हरसंभव सहायता उपलब्ध करने का आश्वासन भी दिया।
-भगत सिंह कोश्यारी
सांसद नैनीताल एवं पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

स्थानीय लोगों के लिए रा.इं.का. सिंगाली में हमने राहत शिविर लगाया है। डीडीहाट के बस्तड़ी, ओगला व मुनस्यारी के कौलड़ा क्षेत्र में नुकसान के आकलन के लिए तुरंत टीम बना ली थी। सभी प्रभावितों के लिए खाने, पीने और दवा के छिड़काव आदि की व्यवस्था की गयी है। लगभग एक दर्जन लोगों के नुकसान के साथ बस्तड़ी में 8 तो पत्थरकोट में दो मकान नष्ट हुए। उडमा गांव के 60-65 लोग सिंगाली के विद्यालय में रह रहे हैं। प्रशासन लोगों को ऐसी स्थिति में जागरूक रहने के लिए प्रशिक्षण भी दे रहा है।    
-हरीशचन्द्र सेमवाल
जिलाधिकारी, पिथौरागढ़

आपदा से प्रभावित गरीब परिवारों के बच्चों को सरकार आश्रम पद्धति के स्कूलों में नि:शुल्क शिक्षा देगी और बीमार लोगों का हल्द्वानी सुशीला तिवारी अस्पताल में उपचार कराया जाएगा। आपदा में अनाथ हुए बच्चों की परवरिश का पूरा खर्च सरकार उठाएगी।
-हरीश रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

प्रशासन ने चमोली जिले में आपदा से प्रभावित सभी क्षेत्रों में बिजली, पानी और संचार व्यवस्था को दुरुस्त कर दिया है, सड़कें व पैदल मार्ग भी लगातार ठीक किए जा रहे हैं। यहां अब जनजीवन पूरी तरह से सामान्य स्थिति में है।  
-विनोद कुमार सुमन, जिलाधिकारी, चमोली 

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