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वहाबीवाद के विनाशवादी प्रभाव से अभी तक मुस्लिम समाज का बड़ा वर्ग अछूता रहा है और वही शेष समाज के साथ जुड़ाव और एकता का पुल बन सकता है
तरुण विजय
कश्मीर से कैराना तक की कथा में एक सूत्र साझा है और वह है—हिंदू। दुनिया में एकमात्र हिंदू जाति ही ऐसी है जिसकी न केवल वैश्विक जनसंख्या में कमी आ रही है बल्कि अनेक देशों में उसे केवल हिंदू होने के कारण प्रताडि़त किया जा रहा है और उसके सामान्य नागरिक अधिकारों में भी कमी की जा रही है। बंगलादेश में एक करोड़ के लगभग हिंदू जनसंख्या है पर एक भी हिंदू कैबिनेट मंत्री नहीं है। वहां हर दिन हिंदुओं पर हमले होते हैं और उन्हें मारा जाता है। रमजान और ईद को मुस्लिम खुशी का त्योहार मानते हैं, पर इन्हीं दिनों मुस्लिम जिहादी हिंदुओं पर कायरों की तरह हमले करते हैं।
इस कड़ी में कैराना से हिंदुओं के पलायन की खबरों ने नई त्रासदी को जोड़ा है। स्वतंत्र देश में अपने ही धर्मबंधुओं की सरकार में केवल वोट बैंक राजनीति के कारण हिंदुओं को यदि अपने प्राण और संपदा बचाने के लिए पलायन करना पड़े तो इससे बढ़कर यातना और क्या होगी। सवाल संख्या के जंगल में न भटके, इसलिए यदि एक भी हिंदू को असुरक्षा में पलायन करना पड़े तो वह भी बहुत है। अस्वीकार्य है और संविधान के लिए चुनौती है। लेकिन कहीं शोर नहीं मचा बल्कि ऐसे संत सामने आए जो उ.प्र. के राज्यपाल श्री रामनाईक जी के पास यह विवरण लेकर पहुंचे कि हिंदुओं का पलायन हुआ ही नहीं। राज्यपाल जी ने उन्हें ठीक कहा जब सरकारी जांच चल रही है तो आपको किसने अधिकार दिया जांच का?
हिंदू स्मृति भ्रंश का शिकार है और सड़क, पानी, बिजली को सभ्यता का विकास तथा इतिहास मान बैठा है। उसे याद ही नहीं है कि सिर्फ दिल्ली में हिंदू अठारह बार नरसंहार के शिकार हुए। वह सोमनाथ मंदिर के बार-बार ध्वंस किए जाने की कथा नहीं जानता। वह नहीं जानता कि आइएसआइएस हिंदुओं के लिए रूप बदल-बदल कर हमेशा ही रहा है-जो कभी कश्मीर से हिंदुओं को निकालता है, प्रताडि़त करता है, तो कभी मिजोरम से रियांग जनजातियों को निष्कासित करता है।
लगभग सत्तर साल बीतने पर आई मोदी सरकार के जिम्मे यह कार्य आया कि पाकिस्तान और बंगलादेश से प्रताडि़त कर निष्कासित हो रहे हिंदुओं को भारत न केवल ऊष्मा भरी आत्मीयता से अपनाए बल्कि नागरिकता और काम का अधिकार भी दे। वरना यह हिंदू
बहुल देश हिंदुओं के प्रति सऊदी सेकुलर वैमनस्य का ही भाव अपनाए रहता।
यह भी आश्चर्य की बात है कि मुस्लिमों को भड़काने, जहर फैलाने का जो लोग काम करते हैं, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती। क्या अब यह बंगलादेश जैसे इस्लामिक गणतंत्र के लिए काम होगा कि वह भारत सरकार से आग्रह करे कि जाकिर नाइक जैसे नफरत के अमानुषिक कारिन्दे पर बड़ी कार्रवाई करें? क्या जाकिर नाइक जैसे अनेक लोग आज भी भारत में सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने तथा मुस्लिम नौजवानों को गुमराह कर आईएस की राह भेजने का अमानवीय कार्य नहीं कर रहे हैं? क्या हमारे यहां ऐसे कानूनों या ऐसी एजेंसियों की कमी है जो इन जहरीले शब्द-गुरिल्लों पर कठोरतम कार्रवाई कर सकें?
इस विषाक्त होते वातावरण में उन मुस्लिमों की सक्रियता और नेतृत्व का कोई समय जो भारतीय हिंदू बहुसंख्यक समाज, भारतीय संविधान और लोकंतत्र की उदारवादी, बहुलतानिष्ठ एवं सर्वपंथ सम्भाव की परम्परा के कारण विश्व में उपलब्ध सर्वाधिक मुक्त आकाश का उपयोग कर रहे हैं? पश्चिम के विपरीत भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां इस्लाम का सूफी रूप, दरगाहें, मनौतियां, चादर, इलायचीदानों, लाल झंडे और कव्वालियों यानी रब की प्रशंसा में आध्यात्मिक गीतों का चलन है। वहाबीवाद के विनाशवादी प्रभाव से अभी तक मुस्लिम समाज का बड़ा वर्ग अछूता रहा है और वही शेष समाज के साथ जुड़ाव और एकता का पुल बन सकता है।
इस मुस्लिम समाज को खड़ा होना होगा और इस्लाम का अमानुषिक रूप प्रदर्शित करने वाले बर्बर, असभ्य जिहादियों और आईएस वालों को नेस्तनाबूद करना होगा। यह लड़ाई सिर्फ भारत ही जीत सकता है और उसके सामने विजयी होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। तभी हिंदू पलायन और आईएस के कायरों का विस्फोटक पथ खत्म होगा।
(लेखक राज्यसभा सांसद हैं)
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