मस्जिद- ए- नबवी का इतिहास
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मस्जिद- ए- नबवी का इतिहास

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Jul 11, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jul 2016 16:00:07

 

सऊदी अरब के मदीना शहर में पैगंबर मोहम्मद की मस्जिद- मस्जिद- ए- नबवी सल्लल्लाहो अलेह वसल्लम को इस्लाम में सबसे पवित्र मस्जिदों में से एक माना जाता है। मदीना इस्लाम में मक्का के बाद सबसे पवित्र मानी जाने वाली जगह है। जबकि मक्का में मस्जिद- अल-हरम मुसलमानों के लिए पवित्र स्थान है। वहीं बैतुल मुकद्दस में मस्जिद-अल-अक्सा इस्लाम का तीसरा पवित्र स्थान है।

मस्जिद-ए-नबवी का निर्माण पैगंबर मोहम्मद ने सन् 622-23 में करवाया था। मूल मस्जिद आयाताकार थी। पूर्व से पश्चिम इसकी चौड़ाई 30.05 मीटर थ् ाी और उत्तर से दक्षिण इसकी लंबाई 35.62 मीटर थी।

यह मस्जिद कच्ची ईंटों से बनाई गई थी और इसकी छत ताड़ के पत्तों और मिट्टी की थी। ताड़ के तनों से बने खंभों से इस छत को सहारा दिया गया था। छत 3.60 मीटर ऊंची थी। इसका खुला हुआ बरामदा था। सन् 628 में खैबर की जंग में विजय के बाद उत्तर, पूर्व और पश्चिम की ओर विस्तार किया गया और यह लगभग 45 मीटर की बनाई गई।

कब-कब हुआ निर्माण कार्य

प्रथम खलीफा अबु बकर के समय मस्जिद में कोई खास बदलाव नहीं किया गया। सन् 639 में दूसरे खलीफा उमर इब्न अल खत्ताब ने मस्जिद में पुन: विस्तार किया और मस्जिद पूर्व से पश्चिम 55 मीटर चौड़ी और उत्तर से दक्षिण 70 मीटर लंबी कर दी गई। साथ ही इसकी छत को भी 5.6 मीटर ऊंंचा कर दिया गया। उसके बाद तीसरे खलीफा उसमान बिन अफ्फान ने सन् 649 में पुरानी इमारत को तुड़वाकर मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया। पुनर्निर्माण में दस महीने लगे। उत्तर से दक्षिण मस्जिद 85 मीटर थी और पूर्व से पश्चिम 60 मीटर।

इस निर्माण में दीवार पत्थर और चिनाई के मसाले की बनाई गई थी और पुराने खंभों की जगह लोहे के खंभों का प्रयोग किया गया था। छत का निर्माण टीक की लकड़ी से किया गया। इसके बाद से अब तक कई बार मस्जिद की सरंचना में फेरबदल किया जा चुका है।

पैगंबर की है कब्रगाह

ल्ल परिसर में ही पैगंबर की कब्र मौजूद है क्योंकि उन्हें यही ं पर दफनाया गया था। इसलिए मुसलमान इस जगह को पाक मानते हैं।

रमजान के आखिरी अशरे में पूरे विश्व से लोग मस्जिद-ए- नबवी सल्लल्लाहो अलेह वसल्लम मे रौजा-ए-रसूल की जियारत करने आते हैं। पैगंबर मोहम्मद के कब्र वाले स्थान के बाहर हुए हमले ने पूरी इस्लामिक दुनिया को हिलाकर रख दिया।

 

ल्ल इस्लाम के आगमन से पहले, मदीना शहर 'यसरिब' नाम से जाना जाता था। लेकिन व्यक्तिगत रूप से पैगंबर मोहम्मद ने इसे यह नाम दिया।

यह कैसा पाक महीना ?

रमजान के महीने को पवित्र महीना माना जाता है, लेकिन जिहादियों ने इस महीने में भी अपनी हरकतें नहीं छोड़ीं। रमजान छह जून को शुरू हुआ था। इसके एक दिन बाद ही 7 जून को अफगानिस्तान में एक अमेरिकी पत्रकार और उसके साथ रहने वाले अनुवादक को आतंकवादियों ने मार दिया। पाकिस्तान में एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी गई। बंगलादेश में बलात्कार का विरोध करने पर एक महिला की हत्या हुई। 8 जून को इस्तांबुल में 11 लोग एक बम विस्फोट में मारे गए। इसी दिन जॉर्डन में पांच बेकसूर लोगो ं का े आतंकी हमले में मार दिया गया। 8 जून को ही बंगलादेश में एक मंदिर के पुजारी की बिना कारण हत्या कर दी गई। इन्हीं दिनों अफगानिस्तान से यह भी खबर आई कि वहां के हिन्दू और सिख पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं। अमेरिका में 14 जून को एक मुस्लिम ने कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया। 17 जून को बंगलादेश में एक ऐसे व्यक्ति की हत्या कर दी गई , जो सेकुलर विषयों पर किताबें छापता था। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में 21 जून को एक आतंकवादी ने सुरक्षाकर्मियों को ले जा रही एक बस पर हमला किया, जिसमें दो भारतीय सहित लगभग 20 लोग मारे गए। 22 जून को पाकिस्तान के कराची में मशहूर सूफी गायक अमजद साबरी की हत्या कर दी गई। साबरी की हत्या के कुछ दिन पूर्व बंगलादेश में भी 65 व्वर्षीय सूफी की हत्या कर दी गई। उसके कुछ दिन पहले बंगलादेश में ही उदार विचारों के एक प्रोफेसर की हत्या की गई थी।

पाकिस्तान के क्वेटा के अल्मो चौक के पास 24 जून को एक मोटरसाइकिल में लगे बम में विस्फोट हुआ। इसमें ईद की खरीदारी कर रहे तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और अनेक लोग घायल हो गए। 25 जून को जम्मू-कश्मीर के पंपोर में सी.आर.पी.एफ. के जवानों को ले जा रहीं बसों पर आतंकवादियों ने गोलीबारी की। इसमें 8 जवान शहीद हो गए और 25 घायल। 29 जून को तुर्की का सबसे खूबसूरत शहर माने जाने वाले इस्तांबुल के अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हुए आतंकी हमले में 41 लोगों की मौत हो गई, जबकि 230 लोग घायल हुए। जनवरी, 2016 से लेकर 29 जून, 2016 तक तुर्की 6 बड़े आतंकी हमले झेल चुका है।

एक जुलाई को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आतंकवादियों ने 20 लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी।

बंगलादेश की राजधानी ढाका का खूनी मंजर लोगों की आंखों से ओझल भी नहीं हुआ था कि तीन जुलाई को एक बार फिर ईराक की राजधानी बगदाद की जमीन आतंकियों के नापाक मंसूबों से लाल हो गई। यहां हुए बम विस्फोट में 147 लोग मारे गए।

आतंकियों ने 4 जुलाई को सऊदी अरब के कातिफ और मदीना में दो बड़े धमाके किए। मदीना में पैगंबर की मस्जिद के पास एक कार में हमलावर ने खुद को बम से उड़ा लिया। धमाका इतना भीषण हुआ था कि आसपास मौजूद लोगों के चिथड़े उड़ गए। हमले में कई लोग मारे गए।

 

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