टूटते रिश्ते-अपनों से नाता तोड़ते बुजुर्ग
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आदित्य भारद्वाज
पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत ने एक बुजुर्ग महिला के मामले में पुलिस को आदेश दिया कि वह उसके बेटे-बहू से एक महीने में मकान खाली करवाकर अदालत को सूचना दे। दरअसल बुजुर्ग महिला के पति की सालों पहले मौत हो चुकी थी। मकान उसके ही नाम था लेकिन बेटा और बहू दोनों उन्हें प्रताडि़त करते थे। मकान में तीन किराएदार थे, उनसे मिलने वाला किराया भी दोनों अपने पास रख लेते थे। जब बुजुर्ग महिला ने बेटे और बहू से मकान खाली करने को कहा तो उनके साथ मारपीट की गई। महिला ने अदालत की शरण ली और अदालत ने उसके पक्ष में फैसला दिया। देश भर की अदालतों में तमाम ऐसे मामले मिल जाएंगे जिनमें बुजुर्ग अपने ही बच्चों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। ज्यादातर मामले संपत्ति विवाद से ही जुड़े हुए होते हैं।
आजकल अखबारों में भी बड़े पैमाने पर ऐसे विज्ञापन देखने को मिलते हैं जिनमें मां बाप ने अपने बच्चों से संबंध विच्छेद किया हुआ होता है। एक बड़े दैनिक अखबार के विज्ञापन विभाग में 17 वर्षों से काम कर रहे मोहित बताते हैं '' पिछले कुछ वर्षों के दौरान अखबारों में विज्ञापन देकर अपने बच्चों से संबंध विच्छेद करने के मामलों में खासी बढ़ोतरी हुई है। कई बार जब बुजुर्ग ऐसा विज्ञापन देने आते हैं और हम उनसे पूछते हैं तो उनकी बातों में गुस्सा और पीड़ा दोनों झलकते हैं। ज्यादातर मामले संपत्ति से जुड़े होते हैं। बुजुर्ग कहते हैं कि यदि बेदखल नहीं किया तो बच्चे उनकी संपत्ति हड़पकर उन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर देंगे। इसके अलावा कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि बच्चों के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के कारण मां -बाप उनसे संबंध विच्छेद कर लेते हैं। नोएडा सेक्टर-56 में ऐसे ही बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम चलाने वाली नीलिमा मिश्र कहती हैं, ''आजकल का सामाजिक तानाबाना इस तरह का हो गया है कि जहां बुजुर्गों को बोझ समझा जाता है। पति और पत्नी दोनों ही नौकरीपेशा होते हैं। क्योंकि बुजुगार्ें का ध्यान बच्चों की तरह रखना होता है, ऐसे में कोई उनकी जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहता। उदाहरण के तौर पर आप अमेरिका को ले लें। यहां पर 70 प्रतिशत बुजुर्ग एकाकी जीवन जीते हैं। ऐसी ही संस्कृति हमारे यहां भी पनप रही है। विशेषकर बड़े शहरों में। छोटे शहरों में और कस्बों में भी ऐसा है लेकिन बड़े शहरों में स्थिति ज्यादा खराब है। हमारे आश्रम में भी कई बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्होंने अपने बच्चों से संबंध विच्छेद किया हुआ है। वे आर्थिक तौर पर मजबूत हैं लेकिन फिर भी वे यहां आकर रहते हैं। ''
दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में पिछले 15 वर्षों से वकालत कर रहे प्रवीण गोस्वामी बताते हैं, ''अकेले कड़कड़डूमा अदालत में एक हजार से ज्यादा मामले ऐसे हैं जिनमें बुजुर्ग अपने बच्चों के खिलाफ न्यायालय में आए हैं। इनमें अस्सी प्रतिशत मामले संपत्ति विवाद से जुड़े हैं। अपनी लगातार होती उपेक्षा व प्रताड़ना के कारण वे अपने बच्चों के साथ नहीं रहना चाहते और उनके बच्चे करोड़ों रुपए के उनके मकान को खाली नहीं करना चाहते।''
फरीदाबाद में बुजुर्गों के लिए आनंदी सेवा प्रकल्प नाम से वृद्धाश्रम चलाने वाले प्रणव शुक्ला एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में भारत के प्रमुख हैं। वह बताते हैं '' हमारे आश्रम में इस समय 23 लोग हैं। सभी लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों के साथ नहीं रहना चाहते। उनके पास पैसे हैं। संपत्ति भी उनके नाम है लेकिन बच्चे उनकी जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं हैं या फिर वे उनकी संपत्ति पर कब्जा करना चाहते हैं। यहां तक कि आश्रम में एक 94 वर्षीया बुजुर्ग महिला ऐसी भी हैं जिनका बेटा आईएएस अधिकारी है और वर्तमान में कैबिनेट सचिव है। वह भी अपनी मां की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है।'' इटावा के एक सेवानिवृत्त मेजर साहब ओमप्रकाश पचौरी भी हमारे आश्रम में रहते हैं। उनके तीन बेटे हैं, अपना मकान है, पेंशन भी मिलती है लेकिन वे अपने बेटों के साथ नहीं रहना चाहते। उन्होंने तीनों बेटों को कानूनी तौर पर अपनी संपत्ति से बेदखल किया हुआ है।''
जगतपुरी में रहने वाले राकेश कुमार सोती एमटीएनएल से बतौर इंजीनियर सेवानिवृत्त हुए हैं। वह बताते हैं ''वर्ष 2005 में उन्होंने अपने भविष्य निधि खाते से 10 लाख रुपए निकालकर अपने इकलौते बेटे को हार्डवेयर का काम शुरू कराया था लेकिन उसने अपनी खराब आदतों के चलते सारा व्यवसाय डुबा दिया। बाजार में लोगों से लाखों रुपए का कर्ज ले लिया। लेनदारों ने तकाजा करना शुरू किया तो कई बार उसका कर्ज भी चुकाया। उसे कई बार समझाने की कोशिश की पर वह नहीं माना। 2011 में जब मैं सेवानिवृत्त हुआ तो उसने सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले पैसे पर नजरें गड़ा दीं। मैंने पैसे नहीं दिए तो बेटे और बहू दोनों ने मुझ पर मकान बेचकर हिस्सा देने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो मैंने बेटे से कानूनी तौर पर संबंध तोड़ लिया। '' पटपड़गंज में रहने वाले सुधीर त्यागी वर्ष 2000 में प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वह बताते हैं ''मेरे दो बेटे हैं और तीन बेटियां हैं। सेवानिवृत्त होने से पहले ही दो बेटियों और दोनों बेटों की शादी कर दी थी। बड़ा बेटा इंजीनियर है और छोटे का अपना व्यवसाय है। जब तक मैं नौकरी पर था सबकुछ ठीक चल रहा था। सेवानिवृत्त होने के बाद घर में झगड़े शुरू हो गए। मैंने सूरजमल विहार वाला घर बेचकर दोनों बेटों के लिए अलग-अलग फ्लैट खरीदकर दे दिए, छोटी बेटी की शादी कर दी और बाकी पैसों से अपने लिए पटपड़गंज में फ्लैट ले लिया। अपनी पत्नी के साथ मैं यहां यह सोचकर रहने लगा कि चलो, अब तो घर में शांति रहेगी कुछ साल तक सब ठीक रहा लेकिन बाद में जैसे ही प्रॅापर्टी की कीमतें बढ़ीं, तो उनकी नजर मेरे इस फ्लैट पर भी टिक गई। वे दोनों इसे भी बिकवाना चाहते थे। इसलिए मैंने दोनों को बेदखल कर दिया।'' नीलिमा मिश्र कहती हैं ''कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि बुजुर्गों की अपेक्षाएं बच्चों से ज्यादा होती हैं। वे पूरी नहीं होतीं तो वे उन पर झल्लाते हैं। इस कारण घर में क्लेश होता है लेकिन ऐसे मामले कम ही होते हैं। ज्यादातर मामलों में बच्चे माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते या फिरे उनकी संपत्ति हड़पना चाहते हैं। इसलिए बुजुर्ग उनके साथ नहीं रहना चाहते और वे उन्हें संपतित बेदखल कर देते हैं। ''
लोकसभा से सेवानिवृत्त हुईं महिला विधि भारती पत्रिका की संपादक वरिष्ठ समाजसेवी व विधिक मामलों की विशेषज्ञ श्रीमती संतोष खन्ना कहती हैं, ''आज परिवारों में भी बाजारवाद घर कर गया है। पैसे की बढ़ती लालसा, जरूरत से ज्यादा आत्मकेंद्रिता। ऐसे कई कारण हैं जिनके चलते परिवारों में टूटन बढ़ रही है। नई पीढ़ी में संवेदनाएं नहीं रह गई हैं। जो बुजुर्ग थोड़े जागरूक हैं वे बच्चों को बेदखल कर देते हैं नहीं तो ज्यादातर मामलों में तो बच्चे उनकी संपत्ति को पूरी तरह हड़प लेते हैं। यदि हमें समाज में बदलाव लाना है तो बुजुर्गों को बोझ समझने की बजाय उनका सम्मान करना सीखना होगा। वैसे भी बुजुर्ग सिर्फ सम्मान ही चाहते हैं और कुछ नहीं। '' बहरहाल हमें बुजुर्गों की उपेक्षा करने की बजाय उनके अनुभवों ने सीखना चाहिए यही हमारी संस्कृति है और यही भारतीय दर्शन।
बुजुर्गों को समझने की जरूरत है। वे सिर्फ सम्मान चाहते हैं । इसके अलावा उन्हें और कुछ नहीं चाहिए। बच्चों से संबंध विच्छेद करने पर जितना दुख उन्हें होता है, उसे कोई नहीं समझ सकता।
–निलिमा मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता
नई पीढ़ी को समझना चाहिए कि बुजुर्ग उनके लिए बोझ नहीं हैं बल्कि ज्ञान और अनुभव की थाती हैं। उन्हें बुजुर्गों से सीखने की, उनसे संस्कार लेने की कोशिश करनी चाहिए न कि उन्हें दुत्कारना चाहिए।
–संतोष खन्ना , सामाजिक कार्यकर्ता
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