|
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट का सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया गया था। आज भारत दूसरे देशों के उपग्रहों को बेहद कम खर्च में प्रक्षेपित कर रहा है
शशांक द्विवेदी
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सत्रह विदेशी उपग्रहों सहित कुल 20 सेटेलाइट एक साथ प्रक्षेपित कर बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी सी 34 ) को अंतरिक्ष में भेजा। 26 मिनट 30 सेकंड में सभी सेटेलाइट प्रक्षेपित कर दिए गए । प्रक्षेपित उपग्रहों में कॉर्टोसैट-दो शृंखला का पृथ्वी संबंधी सूचनाएं एकत्र करने वाला भारत का नया उपग्रह भी शामिल है।
इसरो ने इससे पहले वर्ष 2008 में 10 उपग्रहों को पृथ्वी की विभिन्न कक्षाओं में एक साथ प्रक्षेपित किया था। इस बार 20 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित करके उसने नया रिकॉर्ड भी बनाया है। इन उपग्रहों में अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और इंडोनेशिया के अलावा भारतीय विश्वविद्यालयों के दो उपग्रह भी शामिल हैं। कॉर्टोसैट-2 शृंखला का उपग्रह पूर्ववर्ती कॉर्टोसैट-2, 2 ए और 2 बी के समान है । कॉर्टोसैट-2 शृंखला के उपग्रह को छोड़कर 19 अन्य उपग्रहों का कुल वजन 560 किलोग्राम है । कॉर्टोसैट-2 उपग्रह और 19 अन्य उपग्रहों को 505 किलोमीटर की उंचाई पर सन सिनक्रोनस ऑर्बिट में स्थापित किया गया। इसरो के अनुसार सभी 20 उपग्रहों का वजन करीब 1,288 किलोग्राम है। इस अभियान में जिन उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया है, उनमें इंडोनेशिया का लापान ए 3, जर्मनी का बिरोस, अमेरिका का स्काईसैट जेन 2-1 और जर्मनी का एमवीवी शामिल है।
देश को होंगे ये बड़े फायदे
कॉर्टोसैट-2 शृंखला के उपग्रह के सफल प्रक्षेपण से भारत को कई फायदे होंगे जिसमें अब देश में किसी भी जगह को अंतरिक्ष से देखने की क्षमता भी हासिल होगी। इस सैटेलाइट के जरिए भारत यह सही-सही जान पाएगा कि यहां पर किस तरह के और कितने जंगल हैं।
इसके साथ ही अंतरिक्ष से ‘हाई रिजोल्यूशन’ की तस्वीर लेना मुमकिन होगा। मसलन किसी भी इलाके की .65 मीटर तक की तस्वीर लेने की क्षमता विकसित होगी। खींची गई तस्वीर से तापमान का पता चलेगा। भूकंप, तूफान और दूसरी आपदा में इससे मदद मिलेगी। जंगल में लगी आग को बुझाना आसान होगा। सुरक्षा एजेंसियों को भी उपग्रह से मदद मिलेगी। सीमा पर होने वाली घुसपैठ पर भी पैनी नजर होगी। वीवीआईपी सुरक्षा, आतंकियों और अपराधियों की निगरानी, टाउन योजना और रचना में मदद मिलेगी
सधे कदमों से लम्बी यात्रा
वर्ष 1969 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के निर्देशन में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन हुआ था। तब से अब तक चांद पर अंतरिक्षयान भेजने की परिकल्पना तो साकार हुई। अब हम चांद पर ही नहीं, बल्कि मंगल पर भी सफलतापूर्वक पहुंच गए हैं। 19 अप्रैल,1975 को स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरुआत करने वाले इसरो की यह सफलता भारत के अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है। भारत की पहली बड़ी सफलता थी 1975 में उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में भेजा जाना। इसके बाद 1984 में स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने। जब अंतरिक्ष विज्ञान की शुरुआत हुई तो सोवियत संघ और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष दौड़ की होड़ शुरु हुई। सोवियत संघ ने पहले उपग्रह स्पुतनिक का प्रक्षेपण करने में सफलता हासिल की तो अमेरिका ने चांद पर सबसे पहला आदमी भेजकर उसका जवाब दिया लेकिन भारत का मामला दूसरा था। लंदन स्थित अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉक्टर एंड्रयू कोएट्स के अनुसार ”भारत ने आजादी के 15 साल के अंदर ही अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के बाद लगातार प्रगति की और वह एकमात्र ऐसा प्रगतिशील देश बना जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विकसित देशों के बीच जा खड़ा हुआ।” उनका कहना है ”भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम परिपक्व लगता है और साथ ही उसका खास ध्यान देश की प्रगति पर है, बात चाहे संचार उपग्रहों की हो या रिमोट सेंसिंग की, भारत ने इन संचार उपग्रहों का उपयोग लोगों की भलाई के लिए किया है।”
साधनों के बजाय प्रतिभाओं की बहुलता
मंगलयान और चंद्रयान -1 की बड़ी सफलता के साथ-साथ अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगाने के बाद इसरो का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है। चंद्रयान-1 को ही चांद पर पानी की खोज का श्रेय भी मिला। भविष्य में इसरो उन सभी ताकतों को और भी टक्कर देने जा रहा है, जो साधनों की बहुलता के चलते प्रगति कर रही हैं, लेकिन भारत के पास प्रतिभाओं की बहुलता है। भारत द्वारा प्रक्षेपित उपग्रहों से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर हम अब संचार, मौसम संबंधित जानकारी, शिक्षा, चिकित्सा में टेली मेडिसिन, आपदा प्रबंधन एवं कृषि के क्षेत्र में फसल अनुमान, भूमिगत जल के स्रोतों की खोज, संभावित मत्स्य क्षेत्र की खोज के साथ पर्यावरण पर भी नजर रख रहे हैं।
कम संसाधनों में ऐतिहासिक सफलता
कम संसाधनों और कम बजट के बावजूद भारत आज अंतरिक्ष में कीर्तिमान स्थापित करने में लगा हुआ है। भारतीय प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास लागत ऐसे ही विदेशी प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास लागत की एक तिहाई भर है। इनसेट प्रणाली की क्षमता को जीसैट द्वारा मजबूत बनाया जा रहा है, जिससे दूरस्थ शिक्षा,दूरस्थ चिकित्सा ही नहीं, बल्कि ग्राम संसाधन केंद्रों को उन्नत बनाया जा सके।
भारत यदि इसी प्रकार अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे। इसरो के हालिया मिशन की सफलताएं देश की अंतरिक्ष क्षमताओं के लिए मील का पत्थर हैं जिससे भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा।
इसरो उपग्रह केंद्र, बेंगलुरू के निदेशक प्रोफेसर यशपाल बताते हैं ”दुनिया का हमारी ”अंतरिक्ष तकनीक पर भरोसा बढ़ा है तभी अमेरिका सहित कई विकसित देश अपने सेटेलाइट का प्रक्षेपण भारत से करा रहे।”
इसरो सटेलाइट नैविगेशन कार्यक्रम के पूर्व निदेशक डॉ. एस पाल बताते हैं, ”हम अंतरिक्ष विज्ञान, संचार तकनीक, परमाणु ऊर्जा और चिकित्सा के मामलों में न सिर्फ विकसित देशों को टक्कर दे रहे हंै बल्कि कई मामलों में उनसे भी आगे निकल गए हैं।”
अंतरिक्ष बाजार में भारत का बढ़ता वर्चस्व
एक साथ 20 उपग्रह प्रक्षेपित करने के बाद और हाल में ही स्वदेशी स्पेस शटल के प्रक्षेपण के बाद दुनिया भर में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की धूम मची है। इस सफलता ने 200 अरब डॉलर के अंतरिक्ष बाजार में भी हलचल पैदा कर दी है, क्योंकि बेहद कम लागत की वजह से अधिकांश देश अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण करने के लिए भारत का रुख करेंगे लेकिन समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफलता के साथ- साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी ज्यादा ध्यान दे। इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी क्योंकि जैसे- जैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्वपूर्ण होता जाएगा। इस काम के लिए सरकार को इसरो का सालाना बजट भी बढ़ाना पड़ेगा जो फिलहाल नासा के मुकाबले काफी कम है। भारी विदेशी उपग्रहों को अधिक संख्या में प्रक्षेपित करने के लिए अब हमें पीएसएलवी के साथ-साथ जीएसएलवी रॉकेट का भी उपयोग करना होगा। पीएसएलवी अपनी सटीकता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है लेकिन ज्यादा
भारी उपग्रहों के लिए जीएसएलवी का प्रयोग करना होगा।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा में कहा था, ”भारत इस साल सात देशों के 25 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने वाला है जिसमें सबसे ज्यादा अमेरिका के 12 उपग्रह शामिल हैं।” उल्लेखनीय है कि भारत ने अभी तक पीएसएलवी के जरिए 21 देशों के 57 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया है। अंतरिक्ष बाजार में भारत के लिए संभावनाएं बढ़ रही हैं। भारत ने इस क्षेत्र में अमेरिका सहित कई बड़े देशों को एकाधिकार को तोड़ा है। असल में, इन देशों को हमेशा यह लगता रहा है कि यदि अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसी तरह से सफलता हासिल करता रहा तो उनका न सिर्फ उपग्रह प्रक्षेपण के कारोबार से एकाधिकार छिन जाएगा बल्कि भारत मिसाइलों की दुनिया में भी इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच जाएगा कि बड़ी ताकतों को चुनौती देने लगे। पिछले दिनों दुश्मन मिसाइल को हवा में ही नष्ट करने की क्षमता वाली इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल प्रक्षेपण इस बात का सबूत है कि भारत बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र के विकास में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है। दुश्मन की बैलेस्टिक मिसाइल को हवा में ही ध्वस्त करने के लिए भारत ने सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल बना कर दुनिया के विकसित देशों की नींद उड़ा दी है।
एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने भारत के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने से मना कर दिया था। आज स्थिति यह है कि अमेरिका सहित तमाम देश खुद भारत के साथ व्यावसायिक समझौता करने को इच्छुक हैं। अब पूरी दुनिया में उपग्रहों के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण , मौसम की भविष्यवाणी और दूरसंचार क्षेत्र बहुत तेज गति से बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, इसलिए संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में तेज बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्द्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में व्यावसायिक तौर पर यहां भारत के लिए बहुत संभावनाएं हैं। कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत है जिसकी वजह से अंतरिक्ष के क्षेत्र में आने वाला समय भारत के एकाधिकार का होगा।
अमेरिका 20वां देश है जो कॉमर्शियल लॉन्च के लिए इसरो से जुड़ा है। पिछले दिनों अंतरिक्ष से ब्रह्मांड को समझने और सुदूरवर्ती खगोलीय पिंडों के अध्ययन के साथ पृथ्वी का वैज्ञानिक विश्लेषण करने के उद्देश्य से भारत ने अपने पहले स्पेस ऑब्जर्वेटरी एस्ट्रोसैट पीएसएलवी-सी30 का सफल प्रक्षेपण कर इतिहास रच दिया था। भारत से पहले अमेरिका, रूस और जापान ने ही स्पेस ऑब्जर्वेटरी प्रक्षेपित की है। वास्तव में नियमित रूप से विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण भारत की अंतरिक्ष क्षमता की वैश्विक अभिपुष्टि है। अमेरिका की फ्यूट्रान कॉरपोरेशन की एक शोध रिपोर्ट भी बताती है कि अंतरिक्ष जगत के बड़े देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग रणनीतिक तौर पर भी सराहनीय है। वास्तव में इस क्षेत्र में किसी के साथ सहयोग या भागीदारी सभी पक्षों के लिए लाभदायक स्थिति है। इससे बड़े पैमाने पर लगने वाले संसाधनों का बंटवारा हो जाता है। खासतौर पर इसमें होने वाले भारी खर्च का। यह भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की वाणिज्यिक प्रतिस्पर्द्धा की श्रेष्ठता का गवाह भी है।
भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी क्योंकि यह अरबों डॉलर का बाजार है। भारत के पास कुछ बढ़त पहले से है, इसमें और प्रगति करके इसका बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उपयोग संभव है। भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है। देश में गरीबी दूर करने और विकसित भारत के सपने को पूरा करने में इसरो काफी मददगार साबित हो सकता है। इसरो के मून मिशन ,मंगल अभियान के बाद एक साथ 20 उपग्रहों के सफलतापूर्वक प्रक्षेपण से इसे बहुत व्यावसायिक फायदा होगा, साथ ही स्वदेशी स्पेस शटल की कामयाबी इसरो के लिए संभावनाओं के नये दरवाजे खोल देगी जिससे भारत को बहुत फायदा पहुंचेगा।
इसरो के भावी मिशन
मंगलयान और चंद्रयान-1 की सफलता के साथ-साथ अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगाने के बाद इसरो तीन और महत्वपूर्ण मिशनों पर कार्य तेज करने जा रहा है। इनमें पहला कदम है अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना। दूसरा मिशन चंद्रमा की सतह पर एक रोवर उतारना और तीसरा मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य उपग्रह का प्रक्षेपण करना है। इन सभी महत्वपूर्ण मिशनों को अगले चार साल के भीतर क्रियान्वित किया जाएगा।
चंद्रयान-2 मिशन
जीएसएलवी प्रक्षेपण यान द्वारा प्रस्तावित इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनर ऑर्बिटर (चन्द्रयान) , एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल होंगे। इसरो के अनुसार यह अभियान विभिन्न नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल क्रियान्वित तथा परीक्षण के साथ-साथ नए प्रयोगों को भी करेगा। पहिएदार रोवर चन्द्रमा की सतह पर चलेगा और विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा। आंकड़ों को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जायेगा। इस अभियान को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ‘जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल एमके-2’ द्वारा भेजे जाने की योजना है। उड़ान के समय इसका वजन लगभग 2,650 किलो होगा।
ऑर्बिटर को इसरो द्वारा डिजाइन किया जाएगा और यह 200 किलोमीटर की ऊंचाई पर चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा। इस अभियान में ऑर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजे जाने का निर्णय लिया गया है। तीन पेलोड नए हैं, जबकि दो अन्य चंद्रयान-1 ऑर्बिटर पर भेजे जाने वाले पेलोड के उन्नत संस्करण हैं।
चन्द्रमा की सतह से टकराने वाले चंद्रयान-1 के लूनर प्रोब के विपरीत, लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतरेगा । लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1250 किलो होगा। रोवर सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होगा। रोवर चन्द्रमा की सतह पर पहियों के सहारे चलेगा, मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र करेगा, उनका रासायनिक विश्लेषण करेगा और डाटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा जहां से इसे पृथ्वी के केन्द्र पर भेज दिया जायेगा। पहले यह अभियान इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना था जिसमें तय किया गया था कि ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी तथा रोसकोसमोस लैंडर के लिए जिम्मेदार होगी। लेकिन अब यह पूरा अभियान इसरो ही संभालेगा। जिसमें वह आर्बिटर, रोवर तथा लैंडर तीनों ही तैयार करेगा।
(लेखक चितौड़गढ, राजस्थान में मेवाड़ विश्वविद्यालय में उपनिदेशक, अनुसंधान हैं)
इसरो का मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम
चंद्रयान-1 मंगल यान की कामयाबी के बाद भारत की निगाहें अब आउटर स्पेस पर हैं। इसरो ग्रहों की तलाश के लिए मिशन भेजने की योजना बन रही है। खास बात यह है कि इसमें एक मानव मिशन भी शामिल है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए दो में से एक चालक दल को ले जाने और पृथ्वी पर एक पूर्वनिर्धारित गंतव्य के लिए सुरक्षित रूप से उन्हें वापस जाने के लिए एक मानव अंतरिक्ष मिशन शुरू करने का है।
पृथ्वी की निचली कक्षा तक मनुष्य को ले जाने और उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मानव अंतरिक्ष उड़ान शुरू करने के लिए इसरो द्वारा एक अध्ययन किया गया है। वह देश की क्षमता का निर्माण और प्रदर्शन करने के उद्देश्य के साथ मानव मिशन उपक्रम से संबंधित तकनीकी और प्रबंधकीय मुद्दों का अध्ययन कर रहा है। कार्यक्रम के बारे में 300 किलोमीटर तक पृथ्वी की निचली कक्षा और उनकी सुरक्षित वापसी के लिए 2 या 3 चालक दल के सदस्यों को ले जाने के लिए एक पूर्णत: स्वायत्त कक्षीय वाहन के विकास की परिकल्पना की गई है। इसके लिए वैज्ञानिक अध्ययन का कार्य करीब-करीब पूरा कर लिया गया है। कुछ आवश्यक मंजूरियां मिलने के बाद अंतरिक्षयान के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अंतरिक्ष में जाने वाली इसरो की पहली मानव उड़ान में दो यात्री होंगे। यह उड़ान अंतरिक्ष में 100 से 900 किलोमीटर ऊपर तक जाएगी।
इसरो का ‘आदित्य’
मंगल अभियान और चंद्रयान 1 की सफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिक अब सन मिशन की तैयारी कर रहे हैं। सूर्य कॅरोना (सूर्य के अंदर का भाग) का अध्ययन एवं धरती पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर-लपटों की जानकारी हासिल करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आदित्य-1 उपग्रह छोड़ेगा। इसका प्रक्षेपण वर्ष 2012-13 में होना था मगर अब उसने इसका नया प्रक्षेपण कार्यक्रम तैयार किया है। इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार का कहना है ”अब आदित्य-1 का प्रक्षेपण वर्ष 2017 के बाद (2017-20 के दौरान) किया जाएगा।
आदित्य-1 उपग्रह ‘सोलर कॅरोनोग्राफ’ यन्त्र की मदद से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्ययन करेगा। इससे सूर्य की किरणों,
सौर आंधी, और विकिरण के अध्ययन में मदद मिलेगी।”
अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के कॅरोना का अध्ययन केवल सूर्यग्रहण के समय में ही कर पाते थे। इस मिशन की मदद से सूर्य की सतह में होने वाली हलचल के अध्ययन में जानकारी मिलेगी कि यह किस तरह से धरती पर विद्युत प्रणालियों और संचार नेटवर्क पर असर डालती है। इससे सूर्य के कॅरोना से धरती के भू चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा। इस सोलर मिशन की मदद से तीव्र और मानव निर्मित उपग्रहों और अन्तरिक्षयानों को बचाने के उपायों के बारे में पता लगाया जा सकेगा। इस उपग्रह का वजन 200 किग्रा होगा। यह उपग्रह कृत्रिम ग्रहण द्वारा सूर्य कॅरोना का अध्ययन करेगा। इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा। यह नासा द्वारा सन् 1995 में प्रक्षेपित ‘सोहो’ के बाद सूर्य के अध्ययन में सबसे उन्नत उपग्रह होगा।
पीएसएलवी सी -34 ने अपना काम सफलतापूर्वक कर दिखाया। सब कुछ ऐसा था जैसे पक्षियों को आसमान में उड़ने की अनुमति देना।
— किरन कुमार, चेयरमैन, इसरो
अंतरिक्ष में भारत का सफर
22 जून सुबह करीब 9:15 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन
अंतरिक्ष केन्द्र से पीएसएलवी-सी 34 के जरिए एक साथ 20 उपग्रहों का प्रक्षेपण हैं।
1288 किलोग्राम हैं, इन उपग्रहों का कुल वजन
इससे पहले 2008 में इसरो ने एक साथ 10 उपग्रह का प्रक्षेपण किया था।
पीएसएलवी सी—34 के 20 उपग्रहों में से 17 दूसरे देशों के हैं।
3 उपग्रह भारत के हैं जिनमें काटोर्सैट—2 शृंखला का उपग्रह है जो इसरो का अपना उपग्रह है। इसका वजन 727.5 किलोग्राम है।
इनमें से एक चेन्नै स्थित निजी विश्वविद्यालय का उपग्रह सत्यभामा व दूसरा पुणे स्थित इंजीनियरिंग कॉलेज का उपग्रह स्वयम है।
1.5 किलोग्राम का सत्यभामा ग्रीन हाउस गैसों के आंकड़े एकत्र करेगा
एक किलोग्राम का पुणे इंजीनियरिंग कॉलेज का उपग्रह है। रेडियो कम्युनिटी को संदेश भेजेगा
कॉटोर्सैट में खास तरह के कैमरे लगाए गए हैं जो भारत में जमीन पर होने वाले किसी भी भूगर्भीय परिवर्तन को बारीकी से पहचान लेंगे।
नदियों के कटाव और पहाड़ों के उत्खन्न के बारे में सटीक जानकारी मिल सकेगा ।
भारत एक बार में सबसे ज्यादा उपग्रह भेजने के अमेरिका और रूस के क्लब में शामिल हो गया है।
अमेरिका ने 2013 में 29 और रूस ने 2014 में एक साथ 33 उपग्रह भेजे थे।
इसरो अब तक 20 देशों के 57 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर चुका है।
क्रायोजेनिक तकनीक में आत्मनिर्भरता
27 अगस्त, 2015 जीएसएलवी डी- 6 के जरिये अत्याधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-6 के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत विश्व का ऐसा छठा देश बना, जिसके पास अपना देसी क्रायोजेनिक इंजन है। अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के पास पहले से ही यह तकनीक है। क्रायोजनिक इंजन तकनीक से लैस चुनिंदा राष्ट्रों के क्लब में शामिल होने के बाद भारत को अपने भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
स्वदेशी स्पेस शटल का प्रक्षेपण
अंतरिक्ष के क्षेत्र में इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए इसरो की पूरी टीम को मेरी हार्दिक बधाई। देश गर्व की अनुभूति कर रहा है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की क्षमता बढ़ रही है। — प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति
अंतरिक्ष के क्षेत्र में इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए इसरो की पूरी टीम को मेरी हार्दिक बधाई। देश गर्व की अनुभूति कर रहा है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की क्षमता बढ़ रही है। — प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति
पिछले कुछ वर्षों में हमने दूसरे देशों की उनके अंतरिक्ष संबंधी कार्यक्रमों के लिए मदद करने में विशेषज्ञता और क्षमता विकसित की है। एक साथ 20 उपग्रह। इसरो नए आयाम गढ़ रहा है। इस यादगार कामयाबी पर हमारे वैज्ञानिकों को हार्दिक बधाई।
— नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
मंगलयान अभियान
24 सितंबर, 2014 को भारत ने इतिहास रचा। भारत ने पहली ही बार में अपने यान को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कराके अंतरिक्ष के क्षेत्र में झंडे गाड़ दिए। मंगल के लिए विभिन्न देशों ने जितनी बार भी कोशिश की उनमें से 51 अभियानों में से 21 ही सफल रहे। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि पहले ही प्रयास में किसी देश् को सफलता मिली हो। भारत ने इस मिशन पर महज 450 करोड़ रुपए खर्च किए जो दूसरे देशों द्वारा किए गए खर्च के मुकाबले बेहद कम है। भारत से पहले मंगल अभियानों में केवल अमेरिकी एजेंसी नासा, यूरोपीयन अंतरिक्ष एजेंसी और पूर्व सोवियत संघ ही सफल रहे थे लेकिन भारत ने यह कारनामा कर दिखाया।
स्वदेशी जीपीएस का सपना हुआ साकार
28 अप्रैल, 2016 को इसरो ने सातवे नेविगेशन सेटेलाइट आईआरएनएसएस-1 जी का श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से सफल प्रक्षेपण किया । आईआरएनएसएस अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की तर्ज पर दिशासूचक सेवाएं मुहैया करायेगा। इस श्रृंखला में पहले उपग्रह का प्रक्षेपण जुलाई 2013 में किया गया था। भारतीय क्षेत्रीय दिशासूचक उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) के तहत प्रस्तावित सात उपग्रहों के प्रक्षेपण की शृंखला का यह अंतिम उपग्रह है। आईआरएनएसएस अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस), रूस के ग्लोनास, यूरोप के गैलीलियो जैसा है। इस कामयाबी के साथ ही भारत का अपना न केवल उपग्रहों का जाल तैयार हो जाएगा बल्कि देश के पास अपना जीपीएस शुरू हो जाएगा। अब जीपीएस के लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना नहीं पड़ेगा। इस कामयाबी के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है जिनके पास नेविगेशन प्रणाली है। इस तरह की तकनीक अभी अमेरिका और रूस के पास ही है ।
1962 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की देखरेख में भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन हुआ।
1965 में थुम्बा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान (एसएसटीसी) की स्थापना हुई थी और इससे सबसे पहले प्रक्षेपित किया जाने वाला रॉकेट एक साइकिल पर लाया गया था।
वर्ष 1969 में 15 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन किया गया। 1972 में सरकार ने केंद्रीय स्तर पर एक अंतरिक्ष विभाग का गठन किया।
एक अप्रैल, 1975 को केंद्र सरकार ने इसरो को सरकारी संगठन के तौर पर मान्यता दी।
19 अप्रैल ,1975 में भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा गया। इसका प्रक्षेपण सोवियत संघ द्वारा किया गया।
आर्यभट्ट के बाद यूरोपीय देशों की मदद से 1977 में भारत से सैटेलीइट टेलिकम्युनिकेशन परियोजना की शुरूआत की।
7 जून, 1979 को पृथ्वी के अध्ययन के लिए भारत का उपग्रह भास्कर-1 पृथ्वी की कक्षा में छोड़ा गया।
10 अगस्त, 1979 एसएलवी-3 लॉन्चर का भारत ने परीक्षण किया ।
31 मई, 1981 को आरएस-डी-1 भी पृथ्वी की कक्षा में स्थापित। 19 जून को एप्पल नामक उपग्रह प्रक्षेपित। नवंबर, 1981 में भास्कर-2 को अंतरिक्ष भें भेजा गया।
10 अप्रैल, 1982 को इनसैट-1 ए का प्रक्षेपण । 1983 में एस एल वी-3 और आरएस-डी-2 का प्रक्षेपण किया गया।
इनसैट-1-बी के प्रक्षेपण के साथ ही इनसैट तकनीक को हरी झंडी मिली और 1984 तक इनसैट तकनीक से दूरसंचार, टेलीविजन जैसी सुविधाएं जोड़ी गईं।
24 मार्च, 1987 को रोहिणी उपग्रह शृंखला-1 को अंतरिक्ष में भेजा गया। अगले ही वर्ष 1988 में रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में एक उपलब्धि हासिल की गई।
आईआरएस-1-ए का प्रक्षेपण और भारत रिमोट सेंसिंग सिस्टम को स्थापित करने में सफल हुआ। 22 जुलाई 1988 को इनसैट-1-सी भी अंतरिक्ष में भेजा गया।
जून, 1990 में इनसैट-1-डी का प्रक्षेपण
10 जुलाई, 1992 को इनसैट-2 ए का प्रक्षेपण किया गया।
1993 में इनसैट 2बी, आईआरएस-1ई और फिर 1994 में आईआरएस-पी2 का प्रक्षेपण ।
7 दिसंबर, 1995 को इनसैट-2 सी उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा गया।
वर्ष 1997 में इनसैट 2 डी और 1999 में इनसैट-2 ई का प्रक्षेपण भारत ने दूसरे देशों के उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने का काम शुरू किया।
2001 में भारत ने पीएसएलवी-3 सी विकसित कर प्रक्षेपित किया। 2001 में ही जीएसएलवी प्रक्षेपण का पहली बार प्रयोग किया।
2002 में इनसैट-3 सी, कल्पना-1 उपग्रह का प्रक्षेपण हुआ है। वर्ष 2003 में इनसैट-3ए और 3 ई का प्रक्षेपण किया।
2007 तक एक साथ सर्वाधिक आठ उपग्रह छोड़ने का कीर्तिमान रूस के नाम था। भारत ने 2008 में 28 अप्रैल को एकसाथ 10 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजकर एक नया रिकॉर्ड बनाया ।
22 अक्टूबर, 2008 को भारत ने अन्तरिक्ष मे भेजा मानवरहित चंद्रयान
प्रस्तुति : आदित्य भारद्वाज
टिप्पणियाँ