शरीयत या इंसानियत!
May 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

शरीयत या इंसानियत!

by
Jun 20, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 20 Jun 2016 13:16:16

कड़वी सचाई यह है कि यदि उमर मतीन जिंदा बचता और उस पर शरीयत अदालत में मुकदमा चलता तो उसे दोषी नहीं माना जाता। निरंतर बढ़ते आतंकवाद की असली जड़ यही कमजोरी है

शंकर शरण

ऑरलैंडो में अफगानी मूल के उमर मतीन द्वारा 49 लोगों की हत्या की स्थानीय मुस्लिम नेताओं, मौलानाओं ने भर्त्सना की। मगर शायद ही किसी ने उसे इस्लाम-विरोधी बताया। इसलिए ध्यान देने की बात है कि किन महत्वपूर्ण लोगों ने इस कांड की भर्त्सना नहीं की! यह संयोग नहीं है कि अफगानिस्तान से लेकर सऊदी अरब, ईरान, आदि किसी महत्वपूर्ण मुस्लिम देश के आधिकारिक इस्लामी आलिमों, शासकों ने ऑरलैंडो-कांड पर कुछ नहीं कहा। क्यों? वे अपनी जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं, या क्या संदेश देने से बचना चाहते हैं? इस बात का उत्तर ह्यूमन-राइट्स वॉच के बयान से भी मिल सकता है, जिसमें मध्य-पूर्व के देशों द्वारा ऑरलैंडो-कांड की भर्त्सना को 'पाखंड' बताया गया है। जगजाहिर है कि इन मुस्लिम देशों ने समलैंगिकता को अपराध घोषित किया हुआ है, जिसके लिए मृत्युदंड तक की व्यवस्था है। इस प्रकार, इस्लामी कानून के अनुसार उमर मतीन ने सही काम किया। जहां तक, अमेरिकी कानून के अनुसार उमर के दोषी होने की बात है, तो दुनिया के असंख्य मुस्लिम नेता असंख्य बार कह चुके हैं कि इस्लाम के समक्ष किसी देश के संविधान, कानून आदि की कोई हैसियत नहीं है। यूरोप, अमेरिका से लेकर भारत तक अनेक मामले होते रहते हैं जिसमें मुस्लिम नेता मजहबी हवाला देकर देश के संविधान की उपेक्षा करते हैं।

अत: कड़वी सचाई यह है कि यदि उमर मतीन जिंदा बचता और उस पर शरीयत अदालत में मुकदमा चलता तो उसे दोषी नहीं माना जाता। यही बात मूल समस्या है। इस पर ध्यान न देने से ही दुनिया भर में नए-नए उमर मतीन बनते हैं, और बनते रहेंगे।

अत: अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा और डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन इस मामले में लीपा-पोती कर रही हैं, जब वे कहती हैं कि अमेरिका में बंदूक-नियंत्रण होना चाहिए। मानो, ऑरलैंडो-कांड में असली अपराधी बंदूक थी! इस हिसाब से न्यूयॉर्क में 11 सितंबर कांड का मुख्य दोषी हवाई जहाज हुआ। या, अभी दो दिन पहले फ्रांस में एक जिहादी द्वारा पुलिसवाले के घर में घुस कर दो व्यक्तियों को मार डालने में चाकू दोषी था। ऐसी हास्यास्पद दलीलें मूल रोग छिपाने का प्रपंच हैं।

वैसे ही मूल समस्या शरीयत की कुछ वैसी सीखें हैं, जो मुसलमानों को वह सब करना सिखाती हैं जो आज मानवीयता के विरुद्घ स्पष्ट अपराध है। उस पर उंगली न रखने के कारण मुस्लिम बच्चे, किशोर और युवा अनजाने उस मध्ययुगीन मानसिकता से ग्रस्त हो जाते हैं जो किसी भी बहु-धर्मी, बहु-सांस्कृतिक समाज में अंतहीन हिंसा, आपसी संदेह और विलगाव को ही जन्म देती है। इस बिन्दु पर खुद अनेक सुधारवादी मुसलमान और पहले जिहादी रह चुके मुस्लिम भी जोर देते हैं, जिसे नजरअंदाज किया जाता है। इस से भी समस्या जहां की तहां बनी रहती है।

यह भी विचित्र बात है कि इस्लामी मामलों में खुद जिहादियों, आतंकियों, अपराधियों की कही बातों की उपेक्षा की जाती हैं। उमर ने खुद को 'इस्लामी स्टेट' से जुड़ा बताया, और बाद में 'इस्लामी स्टेट' ने भी कांड की जिम्मेदारी ली। फिर जांच-पड़ताल से सामने आया कि उमर पहले भी आतंकी इस्लामी संगठनों के प्रति गर्वपूर्ण बातें करता रहा था। मगर इन सारी बातों को साफ दरकिनार कर दुनिया भर की ऊल-जुलूल दलीलें दी जा रही हैं। किसलिए?

ताकि गैर-मुस्लिमों, आधुनिक लोकतंत्र की स्वतंत्रता, समानता या समलैंगिकों के प्रति शरीयत के निर्देशों का बचाव किया जा सके। अर्थात्, उसे विचार-विमर्श या आलोचना का विषय न बनाया जाए। मतलब जो विचारधारा ऐसी हिंसाओं को प्रेरित करती है, अथवा ठसक से उचित ठहराती है, उसे कुछ न कहा जाए। तब समस्या का समाधान कैसे होगा? दुनिया के लाखों मदरसों में यदि मध्ययुगीन शिक्षा दी जाती रहेगी, और उसे आज के लिए यथावत् उपयुक्त बताया जाएगा, तब अबोध बच्चों या नवयुवाओं को कभी नहीं लगेगा कि मातीन ने कोई गलत काम किया था।

यह विगत दस-पंद्रह वषोंर् का प्रामाणिक तथ्य है कि मुस्लिम देशों, समाजों, मुहल्लों में लाखों किशोर, युवा बिन लादेन, बगदादी, हाफिज सईद, जैसे कुख्यात जिहादियों को अपना हीरो मानते रहे हैं। इस मानसिकता को फलने-फूलने का स्रोत बंद किए बिना उमर मतीनों का बनना नहीं रुक सकता। चाहे अमेरिका में भारत जैसा बंदूक लाइसेंस कानून क्यों न बना दिया जाए।

यह सामान्य दृष्टि से भी समझ में आने वाली बात है कि यदि शरीयत को इतिहास की चीज कहा जाए, और मुसलमानों को वर्तमान से जुड़ना तथा दुनिया का हर तरह का अमूल्य ज्ञान, दर्शन, विज्ञान, कला, आदि सिखाई जाए, तो तमाम जिहादियों की प्रेरणा समाप्त हो जाएगी। ठीक उसी तरह, जैसे चार सदी पहले यूरोप में चर्च-ईसाई राज्यतंत्र के साथ हुआ था।

जब हजार साल के शासन के बाद यूरोप में चर्च की सत्ता खत्म होने लगी, तो ईसाइयत से भटकाव, ईसाइयत पर संदेह, आदि आरोपों में लोगों को जिंदा जलाना, सलीब पर ठोकना, आदि बंद हो गया। जब चर्च और राज्य अलग हो गए, तो यूरोप में स्वतंत्रता, चौतरफा उन्नति और खुशहाली का दौर शुरू हुआ। ठीक यही बात मुस्लिम शासकों, समाजों को समझनी और समझानी होगी कि राजनीतिक, शैक्षिक तंत्र को मजहबी फेथ से अलग करना जरूरी है। किन्तु यह सुझाव देने में यूरोप, अमेरिका, बल्कि संपूर्ण गैर-मुस्लिम विश्व संकोच कर रहा है। जबकि खुद अनेक मुस्लिम इस्लाम में सुधार की मांग खुलेआम कर रहे हैं। कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड से लेकर ईरान, भारत, बंगलादेश, पाकिस्तान तक ऐसे अनेक मुस्लिम लेखक, विचारक, एक्टिविस्ट हैं जो इस्लाम में सुधार को ही समस्या का हल मानते हैं। क्योंकि इस्लामी मतवाद और शरीयत ही सारी दुनिया में मुसलमानों को तरह-तरह की हिंसा के लिए प्रेरित करती है। उस विचारधारा को 'बहावी' या 'देवबंदी' कह देने से बात बदल नहीं जाती।

अत: तथ्यों की उपेक्षा करके, बनावटी बातें कहते रहने से ही जिहादी आतंकवाद को मिटाना नाकाम रहा है। मजहब की तुलना में मानवीय मूल्यों को ऊंचा स्थान देने से बचा जाता है, मानो शरीयत इंसानियत से भी ऊपर हो। लेकिन, ठीक यही तो जिहादी भी कहते हैं! केवल उन के कहने का तरीका दूसरा है। कि यदि इस्लामी निर्देशों, आदेशों के अनुसार नहीं चलोग तोे हम तुम्हें मार डालेंगे। मुसलमानों को भी और गैर-मुसलमानों को भी। क्योंकि शरीयत के आदेश दोनों के लिए हैं।

मगर, जिहादियों द्वारा मुसलमानों को भी मारने की सही के बदले उलटी व्याख्या दी जाती है। चूंकि जिहादी मुसलमानों को भी मारते रहे हैं, इसलिए मूल समस्या इस्लामी मतवाद नहीं है। यह विचित्र तर्क घोर अज्ञान से भरा है। जिहादियों मुसलमानों को इसीलिए मार देते हैं क्योंकि वे शरीयत के अनुसार नहीं चल रहे, या शरीयत का शासन फैलाने में बाधक बन रहे हैं। आखिर बंगलादेश में क्या हो रहा है? वहां होने वाली घटनाएं दोनों बातों का प्रमाणहैं। दर्जनों लेखकों, शिक्षकों, कलाकारों, आदि को मार डाला गया क्योंकि उन्हें सुधारवादी, यानी इस्लाम-विरोधी समझा गया। यह बुद्घि-विरोधी, हिंसक समझ कहां से

बनती है? कुछ लोग कट्टरपंथी और उदारवादी इस्लाम में भेद करते हैं। मगर ऐसा कोई आधिकारिक दस्तावेज या घोषणापत्र कहां है जिस में इस्लामी नेताओं, आलिमों या उलेमा ने यह कहा हो? सभी आधिकारिक घोषणाएं यही कहती हैं कि इस्लाम एक है, उस का कोई उदारवादी या कट्टरवादी भेद नहीं है। तब भ्रामक बातें कहने से किसी का भला नहीं होता। अत: हिंसा के संदर्भ में 'झूठे' और 'सच्चे' मुसलमान को अलग-अलग पहचानने की कोई संहिता ही नहीं है। इसके बिना जिहादियों, आतंकवादियों को 'भटके' हुए कहना दरअसल दुनिया के बाकी लोगों को ही भटकाना है!    ल्ल

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Tihri Dam King Kirti shah

टिहरी बांध की झील में उभरा राजा कीर्ति शाह का खंडहर महल: एक ऐतिहासिक धरोहर की कहानी

Balochistan blast

बलूचिस्तान में तगड़ा ब्लास्ट, दो की मौत 11 घायल, आतंक को पालने वाला पाकिस्तान, खुद को पीड़ित कह रहा

आतंकियों के जनाजे में शामिल हुए पाकिस्तानी फौज के अफसर

नए भारत की दमदार धमक

Noman Elahi Pakistan Spy Operation Sindoor

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पकड़े गए पाकिस्तानी जासूसों का क्या है आपसी लिंक? नोमान इलाही को मिला भारतीय अकाउंट से पैसा

Elain Dixon Adopted Sanatan Dharma did Ghar wapsi Rajasthan

घर वापसी: ईसाई मत त्याग अपनाया सनातन धर्म, इलैन डिक्सन बनीं वैष्णवी पंत

प्रो. आलोक राय, कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय

पत्रकारिता में जवाबदेही का होना बहुत आवश्‍यक : प्रो. आलोक राय

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Tihri Dam King Kirti shah

टिहरी बांध की झील में उभरा राजा कीर्ति शाह का खंडहर महल: एक ऐतिहासिक धरोहर की कहानी

Balochistan blast

बलूचिस्तान में तगड़ा ब्लास्ट, दो की मौत 11 घायल, आतंक को पालने वाला पाकिस्तान, खुद को पीड़ित कह रहा

आतंकियों के जनाजे में शामिल हुए पाकिस्तानी फौज के अफसर

नए भारत की दमदार धमक

Noman Elahi Pakistan Spy Operation Sindoor

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पकड़े गए पाकिस्तानी जासूसों का क्या है आपसी लिंक? नोमान इलाही को मिला भारतीय अकाउंट से पैसा

Elain Dixon Adopted Sanatan Dharma did Ghar wapsi Rajasthan

घर वापसी: ईसाई मत त्याग अपनाया सनातन धर्म, इलैन डिक्सन बनीं वैष्णवी पंत

प्रो. आलोक राय, कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय

पत्रकारिता में जवाबदेही का होना बहुत आवश्‍यक : प्रो. आलोक राय

राष्ट्र प्रेम सर्वोपरि, हर परिस्थिति में राष्ट्र के साथ खड़े रहें : डॉ. सुलेखा डंगवाल

अंतरराष्ट्रीय नशा तस्कर गिरोह का भंडाफोड़, पांच साल में मंगाई 200 किलो की हेरोइन, पाकिस्तान कनेक्शन आया सामने

प्रतीकात्मक चित्र

हरियाणा: झज्जर में दाे दिन में 174 बांग्लादेशी घुसपैठिये पकड़े

सोशल मीडिया पर शेयर की गई फोटो

‘गिरफ्तार प्रोफेसर का जिन्ना कनेक्शन’, यूजर्स बोले-विभाजन के बाद भी जिहादी खतरे से मुक्त नहीं हो पाया भारत

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies