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योग के ध्वजवाहक

by
Jun 20, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Jun 2016 11:45:17

 

 

 

योग का अर्थ है जोड़ना। भारतीय संस्कृति की इस अनुपम आरोग्य निधि ने आज पूरी दुनिया को साझा स्वास्थ्य सूत्रों से जोड़ दिया है। योग के ध्वजवाहक इसे उस संपूर्ण प्रणाली के तौर पर देखते हैं जो पूरी मानवता के लिए हितकारी है

 प्रशांत बाजपेई   
भारत के ऋषि एक बार फिर मानवता का दरवाजा खटखटा रहे हैं। संचार के साधनों और तकनीक से लैस इक्कीसवीं सदी उजले मन और सक्षम तन के लिए प्राचीन भाारत की ओर निहार रही है। सितारों से लेकर उनके प्रशंसकों तक योग की लहर है। असर व्यापक है। सफलता की कहानियां कही-सुनी जा रही हैं। योग दिवस के अवसर पर ऐसे ही कुछ किस्से, कुछ बातें जो क्षितिज के पार उठते एक महापरिवर्तन की ओर इशारा कर रही हैं।
  1999  की बात है। सचिन तेंदुलकर पीठ दर्द से परेशान थे। मांसपेशियों की चुभन बल्ले की धार को चुनौती दे रही थी। कोई उपाय काम नहीं आ रहा था। तब टीम के वरिष्ठ खिलाड़ी विकेटकीपर किरण मोरे सचिन को योग गुरु बी.के.एस. आयंगर के पास ले गए। सचिन कहते हैं, ''गुरु जी ने मुझे एक सप्ताह तक अपने पास रखा और अनेक योगासनों का अभ्यास कराया। इन योगासनों से मेरा दर्द ठीक हो गया। मेरे अंतरराष्ट्रीय करियर को बनाने में योग गुरु आयंगर की बड़ी भूमिका रही।'' सचिन कहते हैं, ''इसके करीब एक दशक बाद बहुत दर्द और तकलीफ के कारण मेरे पैर में अजीब समस्या हो गई। डॉक्टर ने सर्जरी की सलाह दी, लेकिन पूरी तरह ठीक होने की बात उन्होंने नहीं की। जैक (जहीर खान) ने कहा कि एक बार फिर से गुरु जी से सलाह लो। मैं उनके पास गया। उन्होंने जैसा बताया, मैंने वैसा किया और वह समस्या भी दूर हो गई। सर्जरी की नौबत भी नहीं आई और मैं अभी तक ठीक हूं। '' आज सचिन की विरासत को आगे बढ़ा रहे विराट कोहली भी नियमित योगासनों का अभ्यास करते हैं।  जहीर खान, राहुल द्रविड़, अनिल कुबंले, मुरलीधर जैसे क्रिकेटर भी गुरु आयंगर से योग सीख चुके हैं।
यह बात तो हुई योगासन की। अब प्राणायाम का कमाल देखिए। अमेरिका की प्रसिद्ध फुटबॉल फ्रेंचाइजी जैक्सनविल जैगुआर्स के आक्रामक खिलाड़ी और दर्शकों के चहेते कीथ मिशेल की जिंदगी 14 सितंबर, 2003 को हुए मैच में बेहद दर्दनाक मोड़ पर आकर ठहर गई। प्रतिद्वंद्वी टीम बफलो बिल्स के खिलाफ खेलते हुए कीथ को रीढ़ की हड्डी में ऐसी चोट लगी कि वह उठ न सके। कीथ बताते हैं, ''मैं उस पैंतरे को लाखों बार आजमा चुका था, पर उस दिन मैं गिर गया और ऐसा गिरा कि हिल भी नहीं पा रहा था।'' उसे उठाकर स्ट्रेचर पर ले जाया गया। छह महीने तक वह लकवाग्रस्त रहा। शरीर बस में नहीं था लेकिन कीथ के शिक्षक ने उसे एक अभ्यास बताया जो वह कर सकता था, सांसों से जुड़ा अभ्यास। प्राणायाम। लगन रंग लाई और दुर्घटना के एक वर्ष बाद उसने चलना शुरू कर दिया। परंतु खिलाड़ी के रूप में उसका भविष्य समाप्त हो चुका था। उसने अपने शरीर को पुनर्जीवित करने की ठानी। वह योग की तरफ मुड़ा। कीथ के अनुसार, ''योग ने मुझे आंतरिक जख्मों से तो उबारा ही, स्वस्थ बनाया, साथ ही मुझे अपने शरीर को गहरे से समझने का मौका भी मिला। ऐसी समझ मैं फुटबॉल खेलते हुए कभी विकसित नहीं कर सका था।'' आज वे अमेरिका के लॉस एंजेलिस में योग सिखाते हैं। पूरे देश में उनका नाम है। गूगल पर तलाशिए, आपको योग शिक्षक कीथ मिशेल की प्रसिद्धि का अंदाज हो जाएगा। मिशेल का अनुभव व्यापक है, सुनिए, ''मेरी पीढ़ी के खिलाडि़यों को योग के बिना तैयार किया गया। मुझे लगता है कि योग उन्हें और बेहतर बना सकता है। उनके खेल जीवन को लंबा कर सकता है। यह लचीलेपन को बढ़ाकर चोटों से रक्षा करता है। शक्ति और एकाग्रता को बढ़ाता है। सांस को गहरा करता है और आपको तनाव से दूर रखता है।'' उनकी सलाह सुनी और मानी जा रही है। एथलीट योग को अपना रहे हैं। बाल्टीमोर रैवेंस के रे लुइस, न्यूयॉर्क जायंट्स के विक्टर क्रूज, अमेरिका की राष्ट्रीय बास्केटबॉल टीम के कोच माइक क्रायजेंस्की , न्यूजीलैंड की पूरी की पूरी रग्बी टीम, गिनते जाइये, हजारों नाम हैं।
वैसे योग के चमत्कारों की बात हो तो भारत के पास सितारों की अटूट शृंखला है।  योगियों के शारीरिक दमखम मात्र तक केंद्रित रहें तो भी न जाने कितने उदाहरण मिलते हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन की प्रसिद्ध घटना है कि जब जालंधर के सरदार विक्रम सिंह उनसे मिलने के बाद विदा ले रहे थे, तब उन्होंने स्वामी जी से योग की शक्ति का प्रदर्शन करने को कहा। स्वामी जी ने अनसुना कर दिया। लेकिन जब सरदार विक्रम सिंह तांगे पर बैठकर जाने लगे तो अपने एक हाथ से तांगे का पहिया पकडे़ स्वामी जी ने उसे इंच भर भी सरकने न दिया। गाड़ीवान चाबुक फटकारता रहा और तांगे में जुते दो बलिष्ठ घोड़े जोर लगाते रहे। ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव के योग गुरु हैं योगी राघवेंद्र राव उपाख्य मलादिहल्ली स्वामी। वासुदेव बताते हैं कि राघवेंद्र राव समर्पित योग शिक्षक, आयुर्वेद चिकित्सक और नाड़ी वैद्य थे। शारीरिक क्षमता इतनी कि 81 बरस की उम्र में 60 फुट गहरे कुंए  में छलांग लगा देते और देखते ही देखते आश्चर्यजनक गति से चढ़कर ऊपर आ जाते। सद्गुरु के अनुसार वे और उनके दो अन्य मजबूत युवा मित्र एक साथ उनसे कुश्ती लड़ते और कभी भी कुछ सेकंड से ज्यादा टिक नहीं पाते थे। वे 3,500 गरीब बच्चों का पालन-पोषण भी कर रहे थे। एक दिन आवश्यकता पड़ने पर रात में 70 किलोमीटर दौड़कर सुबह चार बजे रोगियों का इलाज करने पहुंच गए।  तब उनकी उम्र 83 साल थी। कुछ  पाठकों को ये बातें अविश्वसनीय लग सकती हैं, परन्तु मलादिहल्ली स्वामी दक्षिण भारत में, विशेष रूप से कर्नाटक में जाना-पहचाना नाम है। जग्गी वासुदेव जोर देते हैं कि योग की ऐसी शक्ति योग के उचित अनुशासन और परंपरा में शिक्षित योग मार्गदर्शक की देखरेख में ही विकसित हो सकती है। चलिए, अब योगियों की दुनिया से जनसाधारण की ओर लौटें।
मेरे अनुज समान, एक  सॉफ्टवेयर इंजीनियर दमनजीत को बचपन से सर्दी, सिरदर्द बना रहता था। अपने विद्यार्थी जीवन में भी वह इससे बहुत परेशान रहा। तमाम तरह की दवाइयां चलती रहीं। कुछ समय पहले एक होम्योपैथी चिकित्सक ने उसे बताया कि उसकी इस तकलीफ का संबंध पाचनतंत्र की कमजोरी से है और उसे इसके लिए योग का सहारा लेना चाहिए। उसने पेट के लिए कुछ आसनों का नियमित अभ्यास शुरू किया, और देखते ही देखते उसकी स्थायी समस्या ठीक हो गई। मैंने बचपन से चले आ रहे अस्थमा को ठीक होते देखा है। थोड़ा संयम, नियमित अभ्यास और  उचित आहार आपके जीवन में क्रांति ला सकता है। इस राह पर थोड़ा सा भी चलने वाले के जीवन में बड़ा परिवर्तन आता है, ऐसा प्रमाण देने वाले अनेक लोग प्राय: मिल जाते हैं। उच्च रक्तचाप, मोटापा, ह्दय रोग, तनाव आदि से उबरने वाले जाने कितने ही लोग टकरा जाते हैं। पहले से ज्यादा एकाग्रता महसूस करने वाले छात्र, पहले से ज्यादा शांति और दिशा पाने वाले युवा और पहले की तुलना में ज्यादा स्वास्थ्य का अनुभव करने वाले बुजुर्ग योग की पैरवी करते देखे जा सकते हैं।

योग युवाओं को हथियार और हिंसा  से दूर रखेगा। इसे सिर्फ आसन समझना गलत है।  रोग-मुक्त शरीर, हिचक से मुक्त आवाज, चिन्ता-मुक्त दिमाग, आत्मविश्वास भरा व्यक्तित्व, आसक्ति-मुक्त यादें, गर्व की अनुपस्थिति और दु:खों से मुक्त आत्मा ही एक श्रेष्ठ योगी के लक्षण हैं।
-श्री श्री रविशंकर, प्रणेता, आर्ट ऑफ लिविंग

महर्षि पतंजलि और गुरु गोरखनाथ द्वारा समृद्ध हुई योग पद्धति मानव मात्र को दासता से मुक्त करती है और शरीर को हर प्रकार के रोगों से छुटकारा दिलाती है। आशा है, सरकार योग को शिक्षण संस्थाओं में अनिवार्य विषय बनाएगी और अस्पतालों में इसे एक चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता देगी।
-स्वामी रामदेव, योग गुरु

योग सिर्फ आसन नहीं बल्कि पूरी प्रणाली है। इस प्रणाली को इसलिए विकसित किया गया ताकि सभी अंग स्वस्थ रहें। योग कोई व्यायाम नहीं है। इसके दूसरे आयाम भी हैं। योग को एक व्यायाम प्रक्रिया तक सीमित कर देना एक गंभीर अपराध है।
-सद्गुरु जग्गी वासुदेव, योग गुरु

डॉक्टर कहते हैं कि मुझे कम से कम पांच घंटे सोना चाहिए, लेकिन मैं तीन-चार घंटे तक ही सोता हंू। मुझे बड़ी गहरी नींद आती है। मेरी स्फूर्ति सुबह से शाम तक एक जैसी रहती है। इसके पीछे योग और प्राणायाम है। मैं प्रतिदिन इन्हें करता हूं। जब भी मैं थकावट महसूस करता हूं लंबी गहरी सांस लेता और छोड़ता हूं। इससे मैं फिर से तरोताजा हो जाता हूं।
-नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री (कतर में रहने वाले मनोज केसरवानी के प्रश्न के उत्तर में)

मैं अपने बेटे को कहता हूं कि जिम की जगह खेल के मैदान में पसीना बहाओ और आधा घंटे योग का अभ्यास करो। अच्छा है कि वह मेरी बात समझ रहा है।
-सुखबीर सिंह, योग अभ्यासकर्ता

योग एक ऐसी परंपरा है जिससे दुनिया को शक्ति और विकास में योगदान मिलेगा।  
-बान की मून, महासचिव, संयुक्त राष्ट्र

गुरु आयंगर जी ने मुझे एक सप्ताह तक अपने पास रखा और अनेक योगासनों का अभ्यास कराया। इन योगासनों से मेरा दर्द ठीक हो गया। आपरेशन की नौबत नहीं आई।
-सचिन तेंदुलकर, प्रसिद्ध क्रिकेटर  

योग ने मुझे आंतरिक जख्मों से तो उबारा ही, मुझे स्वस्थ बनाया, साथ ही मुझे अपने शरीर को गहरे से समझने का मौका भी मिला। ऐसी समझ मैं फुटबॉल खेलते हुए कभी विकसित नहीं कर सका था।
-कीथ मिशेल
प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी और योग शिक्षक

योग अभ्यास से मुझे रोगियों की हृदयगति को संतुलित रखने में सहायता मिली है। फेफड़ों की पूरी क्षमता का उपयोग होने लगता है। सबसे बड़ी बात है मन का स्वास्थ्य। इससे सोच में सकारात्मकता आती है। कम दवा में ज्यादा सुधार मिलता है।
– डॉ. सचिन कुचया
प्रोफेसर, मेडिकल कॉलेज, जबलपुर

मैंने योग शुरू कर दिया। योग सीखा। धीरे-धीरे मेरी मानसिक समस्या पूरी तरह ठीक हो गई। अब योगाभ्यास मेरे जीवन का अभिन्न अंग है। मैं पहले से ज्यादा स्वस्थ और आनंदित हूं। हर एक से कहती हूं योग को अपनाने के लिए।
-माजा सिमिक, निवासी, बोस्निया हर्जिगोविना

लेकिन सितारों के आगे जहां और भी हैं। चर्चा करते हैं आज के युग की सबसे बड़ी महामारी तनाव की। बोस्निया हर्जिगोविना की एक किशोरी माजा सिमिक की कहानी सुनिए। तीन वर्ष पहले उसके भाई की उसकी आंखों के सामने मृत्यु हो गई। गहरा मानसिक आघात लगा। वह अवसाद में चली गई। भय के दौरे पड़ते और वह आतंकित हो जाती। सांस अस्त-व्यस्त हो जाती। हर चीज डरावनी लगती। असर मिनटों से लेकर घंटों तक रहता। आस-पास के लोग उसकी दशा को समझने में असमर्थ थे। कोई पागल समझता तो कोई कहता कि वह लोगों का ध्यान खींचने के लिए ऐसा करती है। मनोचिकित्सक के साथ दर्जनों बार बैठी, दवाइयां लीं, पर कुछ भी नहीं हुआ। अब आगे की बात माजा के मुंह से, ''किसी ने मुझे योग की सलाह नहीं दी। एक दिन जब मुझे आभास हो रहा था कि मुझे दौरा पड़ने वाला है, मैं हमेशा की तरह बिस्तर की ओर भागी और कुछ इस तरह से लड़खड़ाई कि एक योगासन की मुद्रा में झुक गई। दौरा पड़ा, लेकिन ज्यादा देर टिका नहीं। आश्चर्य हुआ और मैंने योग शुरू कर दिया। योग सीखा। धीरे-धीरे मेरी मानसिक समस्या पूरी तरह ठीक हो गई। अब योगाभ्यास मेरे जीवन का अभिन्न अंग है। मैं पहले से ज्यादा स्वस्थ और आनंदित हूं। आज हर एक से कहती हूं योग को अपनाने के लिए।''
आईटी कंपनी में मार्केटिंग का काम देखते हुए  42 वर्षीय साकेत को अपने काम से चिढ़ होने लगी थी। वे थकने लगे थे। साकेत के शब्दों में, ''आईटी के सेल्स में वर्षों काम करने के बाद मैं अपने काम से नफरत करने लगा था। मेहनत करके यहां पहुंचा था।  कई कंपनियों में काम किया था। मुझे लगने लगा कि मैं कोई नकली जीवन जी रहा हूं। रात-दिन सफर करना और सैकड़ों लोगों से व्यावसायिक संबंधों को निभाना जिसके कारण व्यक्तिगत संबंध और पारिवारिक जीवन प्रभावित हो रहा था। मुझे लगता था कि मैं सिर्फ उत्पाद ही नहीं बेच रहा, बल्कि उनके साथ अपने जीवन-मूल्य भी बेच रहा हूं। मैंने पीना शुरू कर दिया। जानता था कि यह सब ठीक नहीं था लेकिन नहीं जानता था कि करना क्या चाहिए। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं क्या करना चाहता हूं। फिर अचानक सब छोड़कर अपना छोटा सा काम शुरू किया। मन का काम था लेकिन अब दूसरी तरह के दबाव आ गए। फिर मैंने योग सीखना शुरू किया। शुरुआत धीमी रही। पहले वर्षों पुराना गर्दन का दर्द रफू चक्कर हुआ। शरीर में स्फूर्ति आई। फिर धीरे-धीरे तनाव मुक्त होना सीखा। मैं ज्यादा सहनशील हो गया। तब लगा कि जिंदगी में इसी की कमी थी। वृक्षासन का संतुलन बनाते-बनाते कब जीवन में संतुलन आ गया, पता नहीं चला। आज व्यवसाय, परिवार, मित्र, संबंधी सबसे निभा रहा हूं। संतुष्ट हूं।''  वे अब अपने संपर्क में आने वालों को उसी तरह 'घसीटकर' योग कक्षा तक ले जाते हैं जैसे कभी उन्हें ले जाया गया था।
जिम से विरक्त होने वाले कई युवा और प्रौढ़ परंपरागत मार्शल आर्ट जैसे कुंगफू, कलारिपायट्टु और योग की तरफ मुड़ रहे हैं। पंद्रह वर्ष तक लगातार जिम जा चुके सुखबीर सिंह अपने बेटे को योग की तरफ मोड़ रहे हैं। वे अपना अनुभव बांटते हुए कहते हैं, ''जिम में आपका जोर ऐसा शरीर बनाने पर होता है जो देखने में प्रभावशाली लगे लेकिन इसमें अक्सर आंतरिक शक्ति और दम-खम की उपेक्षा हो जाती है। एक उम्र के बाद यह दिनचर्या भारी पड़ने लगती है। तब आप स्फूर्ति और लोच का महत्व समझते हैं। मैं अपने बेटे को कहता हूं कि जिम की जगह खेल के मैदान में पसीना बहाओ और आधा घंटे योग का अभ्यास करो। अच्छा है कि वह मेरी बात समझ रहा है।''
मधुमेह और ह्दय रोग विशेषज्ञ और मेडिकल कॉलेज, जबलपुर में प्रोफेसर डॉ. सचिन कुचया अपने रोगियों को योग की सलाह देते हैं। उन्होंने बताया, ''योग अभ्यास से मुझे रोगियों की हृदयगति को संतुलित रखने में सहायता मिली है। इससे फेफड़ों की पूरी क्षमता का उपयोग होने लगता है। सबसे बड़ी बात है मन का स्वास्थ्य। सोच में सकारात्मकता आती है। इन सब से मधुमेह, उच्च रक्तचाप एवं ह्दय रोगों का इलाज आसान हो जाता है। कम दवा में ज्यादा सुधार मिलता है।''
कहानियां असंख्य हैं। निश्चित रूप से इस लेख को पढ़ रहे पाठकों के मन में भी ऐसे एक-दो किस्से तो मचल ही रहे होंगे। यही कारण है कि भारत के प्रधानमंत्री से लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री तक और हॉलीवुड से लेकर भारतीय फिल्म जगत तक स्वयं को योग का शिष्य कहने वालों की कमी नहीं है। इसीलिए आज मुस्लिम बहुल तुर्की में भी योग शिक्षक और शिष्य बहुतायत में मिलते हैं। आस्ट्रेलिया, यूरोप  और रूस में हजारों योग कक्षाएं चल रही हैं। न्यूयॉर्क के विश्वप्रसिद्ध टाइम्स स्क्वायर पर 10,000 अमेरिकी सामूहिक योगाभ्यास के लिए जुटते हैं। अमेरिका में हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार तीन करोड़ साठ लाख अमेरिकी योगाभ्यास करते हैं। 8 प्रतिशत रोजाना ध्यान करते हैं। इससे भी बड़ी संख्या में अमेरिकी योग सीखना चाहते हैं। ऋषियों का संदेश देशों-महाद्वीपों और नस्ल-पंथ को लांघकर धरती के कोने-कोने में पहुंच रहा है।
विश्व में एक नयी पीढ़ी पैदा हुई है, जो मजहब से अधिक आध्यात्मिकता के लिए प्रतिबद्ध है। जो परंपरा से अधिक ज्ञान को महत्व देती है। जो काल्पनिक भय के कारण ठिठकती नहीं है, परिणामों के लिए दौड़ना और दांव लगाना पसंद करती है। यह पीढ़ी मानवता की आशा है। यह पीढ़ी योग की ध्वजवाहक है। स्वास्थ्य पहला चरण है। आने वाले समय में योग के उच्चतर आयामों का पुन: अनुसंधान अटल है।

मैं नियमित योग करती हूं और संतुलित भोजन लेती हूं।
-कंगना रनौत
बॉलीवुड अभिनेत्री

योग की उत्पत्ति
योग की उत्पत्ति संस्कृत के 'युज' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है जोड़ना। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है जोड़ और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा।

बॉलीवुड
को भाया योग
बॉलीवुड की अनेक अभिनेत्रियां नियमित योग करती हैं। इनमें से कई ने तो यह भी कहा है कि उनकी खूबसूरती का राज योग है। कंगना रनौत कहती हैं, ''मैं नियमित योग करती हूं और संतुलित भोजन लेती हूं।'' शिल्पा शेट्टी योग से बेहद प्यार करती हैं और उन्होंने योग पर डी.वी.डी. बनवाई हैं। मलाइका अरोड़ा खान कहती हैं, बॉलीवुड में हर चुस्त-दुरुस्त व्यक्ति योग का प्रशंसक है। लारा दत्ता भी योग के प्रति काफी रुचि रखती हैं और योग करते उनके अनेक वीडियो यू ट्यूब पर मौजूद हैं। करीना कपूर अपनी सुन्दर देहयष्टि का श्रेय योग को देती हैं। खुद को फुर्तीली रखने और स्वस्थ शरीर के लिए बिपाशा बसु रोजाना योग करती हैं। आलिया भट्ट अपनी आंतरिक शक्ति को बनाए रखने के लिए योग का सहारा लेती हैं। नरगिस फाकरी के स्वस्थ शरीर के पीछे योग है। योग सोनम कपूर की जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है। दीपिका पादुकोण भी नियमित योग करती हैं। अक्षय कुमार, विवेक ओबराय जैसे अभिनेता भी योग के जरिए खुद को चुस्त-दुरुस्त रखते हैं।

60 फुट कुएं में कूदने वाले योगी
राघवेंद्र राव एक समर्पित योग शिक्षक,  आयुर्वेद चिकित्सक और नाड़ी वैद्य थे। शारीरिक क्षमता इतनी कि 81 बरस की उम्र में 60 फुट गहरे कुंए  में छलांग लगा देते और देखते ही देखते आश्चर्यजनक गति से चढ़कर ऊपर आ जाते। जग्गी वासुदेव और उनके दो अन्य मजबूत युवा मित्र एक साथ उनसे कुश्ती लड़ते और कभी भी कुछ सेकंड से ज्यादा टिक नहीं पाते थे। वे 3,500 गरीब बच्चों का पालन-पोषण भी कर रहे थे। एक दिन आवश्यकता पड़ने पर रात में 70 किलोमीटर दौड़कर सुबह चार बजे रोगियों का इलाज करने पहुंच गए। तब उनकी उम्र 83 साल थी।

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