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असम में राजनीति का नया दौर

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Jun 20, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Jun 2016 11:25:48

29 मई, 2016 

आवरण कथा 'नया दौर' से स्पष्ट है कि जनता ने भाजपा को समर्थन देकर यही संकेत किया है कि वह भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण करने वालों को पसंद नहीं करती। पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में पहली बार भाजपा की सरकार बनने के बाद वहां एक नया राजनीतिक दौर शुरू हुआ है। असम में भाजपा की जीत वास्तव में किसी दल की जीत नहीं बल्कि जनता की जीत है। वहां की जनता ने अवसरवादी दलों को नकारते हुए सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त शासनतंत्र को वरीयता दी। राज्य में भाजपा की जीत ने पूरे देश को एक सकारात्मक संदेश दिया है कि उसका व्याप लगातार बढ़ रहा है और वह जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतर रही है।
—छैल बिहारी शर्मा, छाता (उ.प्र.)

ङ्म    असम में भाजपा की जीत के बाद कांग्रेस और वाम दलों में सन्नाटा पसरा हुआ है। ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें कोई सदमा लग गया हो। अभी तक वे देश में माहौल बना रहे थे कि जनता मोदी सरकार से ऊब चुकी है और विरोध कर रही है। पर जनता ने उनके हथकंडों की हवा निकाल दी। परिणाम ऐसा दिया कि वे हक्के-बक्के रह गए। जहां अब तक कभी भाजपा की सरकार नहीं थी वहां उसकी सरकार बन गई और कांग्रेस का सफाया हो गया। अब वे इसे क्या कहेंगे?
            —रामनरेश कुशवाहा, भुवनेश्वर (ओडिशा)
ङ्म पांच राज्यों के चुनाव भाजपा के लिए शुभ संकेत आए हैं। केरल में जहां कभी उसका एक भी विधायक नहीं रहा वहां पर उसका विधायक चुना जाना बड़ी उपलब्धि है। बंगाल और तमिलनाडु में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है। पूर्वोत्तर में भाजपा ने कांग्रेस को चारों खाने चित करके चिंता में डाल दिया है। असल में आज का मतदाता समझ गया कि कौन देश के साथ है और कौन देश को लूटना चाहता है।
—सुप्रिया रावत, मेल से

ङ्म    मोदी सरकार को सत्ता संभाले दो वर्ष हो गए हैं। इस पूरे समय प्रधानमंत्री रात-दिन एक करके सिर्फ और सिर्फ देश और 125 करोड़ देशवासियों के  लिए काम करते रहे। जनता ने उनके इस मनोभाव को समझा असम चुनाव इसका उदाहरण है। एक बार फिर जनता ने मोदी के हाथों को मजबूत ही नहीं किया बल्कि अन्य दलों को संदेश दिया है कि वह देश के लिए काम करने वालों को ही पसंद करती है। जो लोग कहते हैं कि दो साल में नरेन्द्र मोदी ने क्या बदला वे पहले अपने 10 साल के कार्यकाल का हिसाब दें, उसके बाद भाजपा से पूछें।
—करुणाकर वर्मा, मेल से

ङ्म    राज्यों के चुनावों ने नये संकेत दिये हैं। लेकिन अभी बहुत सफर बाकी है। भाजपा के बढ़ते विजय रथ को रोकने वालों की कमी नहीं है। मोदी सरकार ने जनता के हित में बहुत सारी योजनाएं बनाई हैं लेकिन जब तक वे उसके पास पहुंचेंगी नहीं तब तक उसे इनके लाभ-हानि के बारे में क्या पता होगा। इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि केन्द्र सरकार अपनी सभी योजनाओं को अंतिम स्तर तक के व्यक्ति तक पहुंचाए। जिस दिन ऐसा हो जायेगा कोई भी दल भाजपा के आस-पास नजर नहीं आएगा।
—हरिहर सिंह, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म    हाल ही में संपन्न प.बंगाल के चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है लेकिन हालात चिंताजनक हैं। हिन्दुओं की कमजोरी का परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम तुष्टीकरण  करने वाली ममता एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो गईं। ये सारे तथ्य यही बताते हैं कि सभी बंगाल के हिन्दू एक नहीं हैं। वे अगर ऐसे ही बंटे रहे तो परिणाम अच्छे         नहीं होंगे।
—हरेन्द्र प्रसाद साहा, कटिहार (बिहार)

ङ्म    असम का चुनाव महज दो राजनीतिक दलों का चुनाव नहीं बल्कि राज्य की अस्मिता और सम्मान का चुनाव था और जनता ने अस्मिता को वरीयता दी। आज यह किसी से छिपा नहीं है कि बंगलादेशी घुसपैठियों ने राज्य के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है। यहां की मूल संस्कृति को नष्ट करने का कुचक्र चल रहा था। देशविरोधी घटनाएं हो रही थीं। भाजपा ने इन सभी बातों को प्राथमिकता में रखकर चुनाव लड़ा और परिणाम अच्छा रहा। असम के चुनाव में  मतदाताओं ने एक बार फिर राष्ट्रवाद और संस्कृति के पक्ष में मतदान किया है।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)

ङ्म    असम में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार विजय प्राप्त की है।  किसी को विश्वास नहीं था कि वहां कांग्रेस सत्ता से बाहर हो जाएगी। इस विजय का मुख्य कारण वर्षों से सामान्य कार्यकर्ताओं का सतत् परिश्रम है, जिन्होंने लोगों के अंदर राष्ट्र और अपनी विलुप्त होती संस्कृति के प्रति चेतना जगाने का काम किया और असमिया हितों की रक्षा की खातिर के लिए लगातार संघर्ष किया। अब असम सरकार को बंगलादेशी घुसपैठियों को तत्काल चिह्नित करके उन्हें खदेड़ना होगा क्योंकि इनकी वजह से असम की संस्कृति का दिनोंदिन क्षरण हो रहा है।
—कृष्ण बोहरा, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म    ईश्वर ने नरेन्द्र मोदी के रूप में भारत की जनता को ऐसा पहला प्रधानमंत्री दिया है जिसकी हर सांस भारत के स्वाभिमान और गौरव को समर्पित है। अपने दो साल के कार्यकाल में मोदी ने भारत को अन्तरराष्ट्रीय पटल पर एक ऐसा स्थान दिलाया है कि आज विश्व के अधिकतर नेताओं और देशों का झुकाव भारत की ओर है। लेकिन दुख की बात यह है कि भारत के सेकुलर नेताओं को देश की बढ़ती ख्याति हजम नहीं हो रही। इसलिए वे मोदी की यात्रा की आड़ लेकर अपनी भड़ास निकालते हैं। इन लोगों के पास मोदी को रात-दिन कोसने के सिवाय कोई काम नहीं है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी होना अलग बात है लेकिन देश के प्रधानमंत्री की आलोचना करना किसी भी प्रमुख नेता को शोभा नहीं देता। वहीं कुछ सेकुलर किस्म के पत्रकारों ने भी मोदी की अन्तराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को चौपट करने की जैसे सुपारी ली हुई है।
—डॉ. मनोज दुबलिश, मेरठ (उ.प्र.)

ङ्म    भाजपा को विकासवाद और प्रखर राष्ट्रवाद की बदौलत असम में जीत मिली है। कांग्रेस के राज में बंगलादेशी घुसपैठियों को वोट के लालच में पाला-पोसा गया और असम के लोगों के अधिकारों पर डाका डालने में कोई कोताही नहीं बरती गई। असमिया संस्कृति को मटियामेट करने का भरपूर प्रयास किया गया। जनता ने इसे गंभीरता से लिया और भाजपा को सत्ता में लाकर कांग्रेस और अन्य दलों को संदेश दिया कि राष्ट्रवाद से अब किसी भी तरह का कोई समझौता  नहीं होगा।
—प्रदीप सिंह राठौर, कानुपर(उ.प्र.)

हिंसा के पैरोकार
रपट 'कन्नूर के कातिल' (8 मई, 2016)' वामपंथियों की करनी का उदाहरण है। वामपंथ लोकतांत्रिक मूल्यों से परे एकाधिपत्य, तानाशाही, और हिंसा-प्रतिहिंसा में विश्वास रखता है। पश्चिम बंगाल और केरल में इनकी कारगुजारियां और हिंसात्मक वृत्ति चरम पर है। ये शोषित, पीडि़त एवं दलित संघर्ष के नाम पर राष्ट्र की अस्मिता एवं स्वतंत्रता क विरुद्ध आए दिन कुछ न कुछ करके अशान्ति फैलाने का काम करते ही रहते हैं। हाल ही में देश में हुई कुछ देशविरोधी घटनाएं, नक्सलवादियों से रिश्ते इनकी पोल-पट्टी खोलने के लिए          काफी हैं।
—डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप, मधेपुरा(बिहार)

ङ्म    जिस कांग्रेस ने मोदी सरकार पर असहिष्णुता को लेकर सियासी हमले किये, उसे कन्नूर में स्वयंसेवकों पर होती हिंसा क्यों दिखाई नहीं देती? वे लोग कहां गए जो अखलाक के मरने के बाद आंसू बहाते फिर रहे थे। वैसे तो हर छोटी-मोटी बात पर कांग्रेस और सभी सेकुलर नेता बोलने में देर नहीं लगाते पर इस मसले पर उनके मुंह क्यों सिले हैं? आज यह किसी से छिपा नहीं रह गया है कि केरल में भाजपा और रा.स्व.संघ के कार्यकर्ताओं को कम्युनिस्टों से खतरा है। आए दिन होती हिंसा की घटनाए आक्रोश के साथ मन को द्रवित करती हैं।
—कमलेश कुमार ओझा, पुष्पविहार(नई दिल्ली)

ङ्म    केरल के कन्नूर में जिन स्वयंसेवकों ने राष्ट्र सेवा में प्राण न्योछावर किये, उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा। ऐसे स्वयंसेवकों के त्याग और तपस्या के बलबूते ही संघ देश के हर हिस्से में राष्ट्र सेवा का काम सफलतापूर्वक कर पा रहा है।  संघ के स्थापना के इतने वर्षों बाद भी केरल जैसे राज्यों में विधर्मी शक्तियां इतना प्रभाव रखती हैं, यह चिन्ता का विषय है। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के हत्यारों का चेहरा देखकर अब कोई दल क्यों नहीं बोलता। हालत इतनी खराब होने के बाद भी संघ के स्वयंसेवक संघ कार्य में अनवरत लगे हुए हैं।
—प्रेम सिंह, मेल से

जनाधार खोती कांग्रेस
लाख टके की बात है कि जब कक्षा में कोई तेजतर्रार बच्चा मॉनिटर बन जाता है तो सारे नालायक बच्चे एक हो जाते हैं। आज ऐसा ही कुछ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हो रहा है। अंक संदर्भ 'नया दौर' (29 मई, 2016)'  से एक बात  जाहिर होती है कि जनता ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांगे्रस को नकारा है। विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से पार्टी के कार्यकर्ता राहुल गांधी के खिलाफ खुलेआम जब यह कह रहे हैं कि  उनकी उपयोगिता अब खत्म हो चुकी है तो ये बात सोनिया गांधी को मान लेनी चाहिए और इस पर विचार करना चाहिए। कार्यकर्ता तो यहां तक कह जाते हैं कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कांग्रेस किसे प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करती है, बस वे राहुल गांधी न हों। जिन राज्यों में चुनाव थे, वहां राहुल गांधी स्टार प्रचारक की भूमिका में थे। लेकिन जनता के ऊपर कोई भी जादू नहीं चला। आज कांग्रेस मरणासन्न स्थिति में है। जिस पार्टी ने देश पर छह दशक तक राज किया हो। लौह सरदार पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर जैसे विशिष्ट नेता दिये हों, उसे अपनी छवि ठीक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए बाहरी एजेंसी का सहारा लेना पड़ रहा है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि कांग्रेंस की जड़ में जातिवाद, तुष्टीकरण और परिवारवाद का विष घुल चुका है। जिसने भी इसे तोड़ने या आगे का प्रयास किया उसके पर कुतर दिये गए। अब अकेले राहुल गांधी बचे हैं। ऐसा नहीं है कि जनता ने कांग्रेस के इस युवराज को पहली बार नकारा हो। पिछले दो वर्ष से चुनाव में जनता कांग्रेस के इस युवराज को नकार कर अपना संदेश देती रही है। पर सोनिया गांधी को जनता का यह संदेश समझ में नहीं आ रहा।
—आनंद मोहन भटनागर,12-5,राजाजीपुरम,लखनऊ (उ.प्र.)

दुनिया में बजता डंका
मान रही दुनिया सकल, मोदी के सिद्घांत
किसके मन में पाप है, और कौन आक्रांत ?
और कौन आक्रांत, बराबर से मत तोलो
हमलावर के मुंह पर खरा-खरा तुम बोलो।
कह 'प्रशांत' है बात हमारी सच या झूठी
इतिहासों की हिचक, आज जा करके टूटी॥  

—प्रशांत

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