पहली बार कुंभ के अवसर पर ऐसा व्यापक विचार-महाकुंभ हुआ। न सिर्फ संत समाज बल्कि देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रों के शीर्षस्थ विचारकों ने इसे समृद्घ करते हुए सार्थकता प्रदान की। इस आयोजन की मूल भावना रही 'जीवन जीने का सही तरीका'। विषय विशेषज्ञों ने इसी के ईद-गिर्द अपने विचार प्रस्तुत किए।
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पहली बार कुंभ के अवसर पर ऐसा व्यापक विचार-महाकुंभ हुआ। न सिर्फ संत समाज बल्कि देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रों के शीर्षस्थ विचारकों ने इसे समृद्घ करते हुए सार्थकता प्रदान की। इस आयोजन की मूल भावना रही 'जीवन जीने का सही तरीका'। विषय विशेषज्ञों ने इसी के ईद-गिर्द अपने विचार प्रस्तुत किए।

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May 23, 2016, 12:00 am IST
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स्वच्छता से लेकर राष्ट्र रक्षा तक चिंतन

दिंनाक: 23 May 2016 14:57:06

महेश शर्मा
मध्य प्रदेश की कुंभ नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ के दौरान 12,13 और 14 मई को अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ के रूप में ऐसा ऐतिहासिक आयोजन हुआ जिसने कुंभ के दौरान होने वाले चिंतन की पुरातन परंपरा को पुनर्जीवित कर दिया। नगर से 8 किमी दूर इन्दौर रोड पर स्थित ग्राम निनौरा में हुए इस तीन दिवसीय आयोजन का शुभारंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने जूना अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि और गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ़ प्रणव पंड्या की उपस्थिति में किया जबकि समापन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना मौजूद थे।
इस आयोजन की मूल भावना थी 'जीवन जीने का सही तरीका'। सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत की प्रेरणा से मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने 15 अगस्त, 2014 को घोषणा की थी कि उज्जैन सिंहस्थ अपने आप में एक विचार कंुभ होगा जिसमें धार्मिक विश्वासों पर ऋषि-मुनियों के संवाद और संत प्रवचन होंगे। उसी परम्परा में उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ के संदर्भ में समाज से संबंधित समकालीन प्रासंगिक विषयों पर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठियों की वैचारिक शृंखला आयोजित की जाएगी। इस क्रम में राज्य शासन द्वारा पूर्व में चार संगोष्ठियां आयोजित की गयीं। इन चारों संगोष्ठियों की अनुशंसाओं के आधार पर यह निर्णय लिया गया कि दिनांक 12 से 14 मई, 2016 तक उज्जैन में एक महासंगोष्ठी की जाए जिसमें जनहित से जुड़े नए प्रासंगिक विषयों को सम्मिलित किया जाए। मंथन के बाद ऋषि संस्कृति आधारित कृषि परंपरा, कुटीर एवं ग्रामोद्योग परंपरा, नारी शक्ति, स्वच्छता-सरिता व जलवायु परिवर्तन जैसे विषय तय किए गए। इस महासंगोष्ठी को ही अंतरराष्ट्रीय विचार कुंभ का नाम दिया गया।
अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ के अंतर्गत पूर्व में आयोजित चार संगोष्ठियों में प्राप्त अनुशंसाओं पर अंतिम रूप से मंथन कर प्राप्त निष्कषार्ें के आधार पर 51 सूत्रीय वैश्विक संदेश जारी किया गया। विचार महाकुंभ के लिए बनाई गई आयोजन समिति के अध्यक्ष तथा राज्यसभा सांसद अनिल माधव दवे ने बताया,''यह तय किया गया कि सिंहस्थ का सार्वभौम संदेश विचार बनकर न रहे बल्कि इसका क्रियान्वयन भी हो। न सिर्फ देश के अंदर और विदेश में बल्कि संयुक्त राष्ट्र में भी यह संदेश पहुंचाया जाएगा।''
सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने इस पर जोर देेते हुए कहा, ''अध्यात्म और विज्ञान दोनों का सहारा लेकर चिंतन करना होगा। चिंतन के बाद आचरण करना होगा। चिंतन आचरण में आना चाहिए तभी उसका अर्थ है। जिस विचार को आचरण में नहीं उतारा जा सके, उसकी मान्यता नहीं होती।'' राज्य सरकार ने इन 51 सूत्रों में से अनेक पर तुरंत अमल करने की घोषणा की। दरअसल जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंदजी ने उद्घाटन सत्र में और परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने स्वच्छता-सरिता सत्र में अपने संबोधन में नदियों को सदानीरा बनाए जाने के लिए उनके किनारों पर वृक्षारोपण की जरूरत को रेखांकित किया था। अवधेशानंदजी ने कहा कि गंगा तो ग्लेशियर की नदी है लेकिन क्षिप्रा जैसी नदियां वृक्षों और तालाबों के सहारे जिंदा रहने वाली नदियां हैं। इन्हें बचाने के लिए इनके आसपास पेड़ लगाना आवश्यक है।
उद्घाटन के बाद तीन दिन तक चारों विषयों पर समानान्तर सत्र में गहन विचार किया गया जिसके लिए विदेश से भी 850 से ज्यादा विद्वान आए थे। जहां श्रीलंका के राष्ट्रपति समापन समारोह के साक्षी बने, वहीं श्रीलंका की संसद मंे नेता प्रतिपक्ष आऱ संथानंदन ने भी महत्वपूर्ण उपस्थिति
दर्ज कराई।
नेपाल सरकार में मंत्री महंत ठाकुर और पूर्व मंत्री तथा सांसद खिलराज रेग्मि, मलेशिया के उपमंत्री डॉ़ लोगा पाला मोहन के अलावा भूटान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री डी़ ए़ धुंग्येल ने भी विचार महाकुंभ में अपने विचार रखे। आयोजन के दूसरे दिन योगगुरु बाबा रामदेव और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी  के साथ-साथ पर्यावरणविद् वंदना शिवा और कुटीर उद्योग क्षेत्र में काम करने के लिए प्रसिद्ध श्रीमती जया जेटली ने अपने विचार रखे। अंतिम दिन आरंभ सत्र में लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने अध्यक्षता करते हुए सम्यक् जीवन पर प्रभावी उद्बोधन दिया। इसके बाद समापन सत्र में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और श्रीलंका के राष्ट्रपति का आगमन हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने नारी शक्ति और पर्यावरण की दिशा में केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए ग्लोबल वार्मिंग को भी वर्तमान समय की बड़ी समस्या बताया। उन्होंने भारतीय जीवन मूल्यों का महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि समय-समय पर विचार मंथन से परंपराओं में बदलाव आवश्यक है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि वेदों के प्रकाश में उपनिषदों का सृजन हुआ और उपनिषदों के प्रकाश में स्मृति-श्रुति बने तो स्मृति-श्रुति को सामने रखकर वर्तमान समय के अनुसार नवीन सृजन किया जाना चाहिए। सिंहस्थ की व्यवस्थाओं की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री  ने कहा कि यह तो प्रबंधन के विद्यार्थियों के लिए अध्ययन का विषय होना चाहिए।
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ़ रमन सिंह, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर तथा केन्द्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत भी उपस्थित थे।  

 

पुनर्जीवित हुई कुंभ में चिंतन परम्परा
कुंभ मनाए जाने की परंपरा अमृत की बूंदें पृथ्वी पर गिरने से जुड़ी है लेकिन अब रासायनिक खाद के रूप में पृथ्वी में विष प्रवाहित किया जा रहा है। इसलिए कृषि पर विचार कुंभ की आवश्यकता महसूस की गई जिससे कृषि को शाश्वत और कालातीत बनाया जा सके। मिट्टी की उर्वरता, संरचना, मिट्टी का संरक्षण और क्षरण इस विचार कुंभ के प्रमुख बिन्दु रहे। यह बात प्रमुख रूप से रेखांकित की गई कि रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग ने धरती को जहरीला बना दिया है। रासायनिक खाद ने मिट्टी की संरचना को बुरी तरह प्रभावित किया है, यह न केवल धरती को विषाक्त बनाती है बल्कि अनजाने-अनचाहे यह जहर हमारे खाद्य पदाथार्ें में प्रविष्ट हो गया है। इसलिए विकल्प के तौर पर अहिंसक कृषि, आध्यात्मिक अथवा प्राकृतिक कृषि पर विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे।

कुटीर और ग्रामोद्योग की परंपरा
अंतरराष्ट्रीय विचार कुंभ में भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर और ग्रामोद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका को महसूस करते हुए इनको प्रोत्साहन दिए जाने के उपायों पर मंथन किया गया। यह बात प्रमुख रूप से रेखांकित की गई कि चीन निर्मित अनेक उत्पाद भारतीय बाजार में इस कदर  प्रविष्ट कराए जा रहे हैं जिन्हें भारतीय कुटीर उद्योग तैयार करें तो हमारी अर्थव्यवस्था का स्वरूप ही बदल जाए। यहां तक कि भारतीय परंपरा के रक्षाबंधन जैसे त्योहार पर राखी, गणेशजी की मूर्ति आदि भी चीन निर्मित आ रही हैं। देश के कुटीर उद्यमियों को डिजाइन, तकनीक और मार्केटिंग प्रबंधन में दक्ष किए जाने का सुझाव दिया गया जिससे उनकी पहुंच राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक हो सके।

नारी शक्ति पर विचार कुंभ
वर्तमान समय की ज्वलंत समस्या गिरते लिंगानुपात तथा कन्या भ्रूणहत्या को केन्द्र में रखकर नारी शक्ति पर विचार किया गया। इस बात पर मंथन किया गया कि ऐसे संक्रमण काल में जब स्त्री-पुरुष अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है, किस तरह नारी शक्ति की गरिमा पुनर्स्थापित की जाए। यह बात भी प्रमुखता से सामने आई कि असंतुलित लिंगानुपात केवल भारत की समस्या नहीं है बल्कि चीन, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मालदीव, भूटान, कतर जैसे 70 देशों में इसकी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। विचार मंथन में न केवल स्त्री सशक्तिकरण पर बल्कि स्त्री के आध्यात्मिक, भौतिक विकास पर भी रोशनी डाली गई और इसके दार्शनिक पक्ष को भी रेखांकित किया गया।
स्वच्छता-सरिता पर विचार कुंभ
कुंभ में लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में एक डुबकी लगाने ही आते हैं लेकिन जब नदियां ही नहीं रहेंगी तो फिर कुंभ कैसे होगा। नदियों के लगातार सिकुड़ने का प्रश्न भी इस तीन दिवसीय आयोजन मेें प्रमुखता से छाया रहा। नदी जल प्रदूषण के सवाल पर विशेषज्ञ वक्ताओं ने इस बात को प्रमुखता से उठाया कि यह एक वैश्विक संकट है। इसके साथ ही स्वच्छता के विभिन्न आयामों पर भी चर्चा हुई और यह बात रेखांकित की गई कि स्वच्छता सिर्फ 'वेस्ट डिस्पोजल' ही नहीं है। विद्वानों ने अपने अध्ययन द्वारा यह बात उजागर की कि देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में गंगा तट पर बसे प्रांतों के नागरिकों को कैंसर होने की ज्यादा आशंका है। यह तथ्य भी सामने आया कि चीन की सात नदियों में प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक है कि वह त्वचा संबंधी रोगों का कारण बन रहा है।

सिंहस्थ का सार्वभौम संदेश

विचार महाकुंभ में मंथन के बाद अमृत स्वरूप निकले 51 सूत्र सार रूप में इस प्रकार हैं-
मनुष्य का अस्तित्व मात्र भौतिक नहीं है। उसके चैतन्य और संवेदना के आयाम अनन्त हैं।
संपूर्ण मानव जाति एक परिवार है। अत: सहयोग और अंतर्निर्भरता के विभिन्न रूपों को अधिकतम प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। विकास का लक्ष्य सभी के सुख, स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करना है। जीवन में मूल्य के साथ जीवन के मूल्य का उतना ही सम्मान करना जरूरी है। मूल्यान्वेषण सिर्फ निजी विकास के लिए नहीं, बल्कि समाज को एक व्यवस्था देने, संबंधों को संतुलित करने और जीवंत प्रतिमानों का निर्माण करने के लिए जरूरी है।
शुचिता, पारदर्शिता और जवाबदेही सार्वजनिक जीवन की कसौटी होने चाहिए। पृथ्वी पर पर्यावरणीय संकट का समाधान सिर्फ प्रकृति के साथ आत्मीयता से ही प्राप्त होगा।  विश्व में व्याप्त भीषण जल संकट से जीवन संकट में है। जल संवर्द्घन की तकनीकों और प्रणालियों को प्रोत्साहित करने और पृथ्वी की जल-संभरता को क्षति पहुंचाने वाली प्रक्रियाओं को रोकने के कदम तत्काल उठाए जाएं। प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण शोषण ने अनेक प्राकृतिक आपदाओं को जन्म दिया है। इसका संज्ञान लेते हुए ऐसी जीवन शैली एवं अर्थ व्यवस्थाओं को विकसित करें, जिससे प्रकृति का पोषण हो। पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए अत्यधिक उपभोक्तावाद पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।
शिक्षा में मूल्यों के शिक्षण, व्यवहार एवं विकास का नियमित पाठ्यक्रम शामिल किया जाए, ताकि कम उम्र से ही बच्चों में उनका प्रस्फुटन हो सके। इस पाठ्यक्रम को अन्य विषयों की तरह समान महत्व दिया जाए। यह पाठ्यक्रम ऐसे आरंभिक 'प्लेटफॉर्म' की तरह हो जिसके आसपास शिक्षा का संपूर्ण पाठ्यक्रम विकसित किया जा सके। अध्यात्म की विषयवस्तु को पाठ्यक्रमों में सरल स्वरूप में सम्मिलित करना चाहिए।
स्वच्छता को प्रशासित गतिविधि की जगह सामाजिक मूल्य के रूप में पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए। स्वच्छता की किसी भी रणनीति में विभिन्न विश्वास प्रणालियों में मौजूद आंतरिक पवित्रता और बाह्य शुद्घता के प्रासंगिक सिद्घांतों का लाभ लिया जाना चाहिए।
स्त्री को विज्ञापन की वस्तु की तरह प्रस्तुत करना कानूनन निषिद्ध किया जाए। समान कार्य के लिए समान वेतन का
सिद्घांत स्त्री रोजगार के सिलसिले में अपनाया जाए। इसके लिए नियोक्ता की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उनसे विमर्श का एक अभियान शुरू किया जाए।
नारी द्वारा  किया जाने वाला गृहकार्य घर के बाहर किए जाने वाले व्यावसायिक कार्य के तुल्य है। उसके गृहकार्य को सकल घरेलू उत्पाद में शामिल करने की प्रविधियां विकसित की जाए।
सभी परामर्शदात्री, नियामक, निगरानी तथा अन्य निकायों में स्त्रियों को समान रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाए।
20 वीं शताब्दी से विकसित की जा रही कृषि प्रौद्योगिकी से प्राथमिक क्षेत्र में अत्यधिक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन होना चिंताजनक है। इस समस्या का समाधान आवश्यक है। भू-जल स्तर का गिरना, मिट्टी का क्षरण और उसकी सहज उर्वरा शक्ति का नाश, रासायनिक प्रदूषण होना कृषि में अमृत-दृष्टि के अभाव का प्रतीक है। कृषि के प्रति ऐसी दृष्टि विकसित करने की आवश्यकता है जो उसकी पुर्रुत्पादकता को पोषित कर सके।
किसानों की बीज स्वायत्तता उनका मौलिक और अनुलंघनीय अधिकार है। इस अधिकार की सुरक्षा जैव-विविधता की भी रक्षा है  देशज गो-वंश के संरक्षण को उसके पर्यावरण पर होने वाले सकारात्मक प्रभाव की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।  
संवहनीय कृषि के लिए आधुनिक नीतियों के पुनरीक्षण की आवश्यकता है। कृषि की सुस्थिरता के लिए व्यापक वृक्षायुर्वेद, अग्निहोत्र कृषि, वैदिक कृषि, सहज कृषि, प्राकृतिक कृषि और जैविक कृषि जैसे विकल्पों की संभावनाओं पर प्राथमिकता से शोध किया जाना चाहिए।  कुटीर उद्योगों को आर्थिक एवं सामाजिक प्रजातंत्र के महत्वपूर्ण अंश की तरह देखा जाना चाहिए।
ऐसी औद्योगिकता को प्रोत्साहित किया जाए जिसमें कुटीर उद्योगों के वैविध्य का सम्मान हो और वे किसी असमान प्रतिस्पर्द्घा में खड़े न हों।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठनों से उनके संरक्षण तथा संवर्द्धन की सचेत कोशिशों का आग्रह किया जाना चाहिए। कुटीर उद्योगों के छोटे उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए ई-तकनीक पर आधारित मार्केटिंग नेटवर्क विकसित किए जाएं ताकि उनके उत्पाद विश्वभर के उपभोक्ताओं को उपलब्ध  हो सकें।

 

स्वच्छता से लेकर राष्ट्र रक्षा तक चिंतन
महाकुंभ के इतिहास में पहली बार विभिन्न धर्म प्रमुख 'सद्भावना के माध्यम से भारत माता के लिए 'स्वच्छता क्रांति' लाने का आह्वान करने एकजुट हुए। जूना अखाड़ा के शिविर में आयोजित कार्यक्रम में धर्म प्रमुखों ने देश के नागरिकों से अपील की कि एक साथ उठ खड़े हों ताकि भारत स्वच्छता का वैश्विक उदाहरण बन सके।
स्वामी चिदानंद सरस्वती व स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि पानी सभी के जीवन की बुनियादी आवश्यकता है इसलिए जल का संरक्षण करना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
ऑल इंडिया इमाम आर्गनाइजेशन के अध्यक्ष इमाम उमेर इलियासी, तौहिदुल मुसलमीन ट्रस्ट के संस्थापक शिया प्रमुख मौलाना डॉ. कल्बे सादिक, यूनिसेफ भारत की 'वाश' प्रभाग की प्रमुख सुश्री सू कोट्स ने कहा कि धर्म गुरु हमारे समाज में सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता और सफाई को बढ़ावा देने में प्रेरक हो सकते हैं।
कार्यक्रम में आचार्य लोकेश मुनि, जीवा की महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती, यूनिसेफ, भारत की संचार प्रमुख सुश्री केरोलीन डेन डल्क, स्वामी हरिचेतानंद जी, ज्ञानी गुरुचरण सिंह,  वेन भिक्खु संघसेना, ब्रह्मकुमारी डॉ. बिन्नी सरीन, एवं बिशप सेबस्टिन बडाकल की उपस्थिति              महत्वपूर्ण रही।
रक्षा कुंभ में भारतीय गणराज्य को सशक्त, समृद्घ, हिंसामुक्त, विषमतामुक्त, दंगामुक्त, छुआछूतमुक्त, प्रदूषण मुक्त बनाने के संकल्प उभरे। देश-विदेश के कई गणमान्य व्यक्तियों ने राष्ट्र की सुरक्षा, सम्प्रभुता और एकता के कई सूत्र प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने देश की सुरक्षा से जुड़े विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल, शेखर दत्त ने भारतीय सेनाओं की मजबूती की चर्चा की। रा.स्व.संघ के वरिष्ठ चिन्तक व विचारक इन्द्रेश कुमार ने कहा कि भारत तेजी से विकसित हो रहा है तथा वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आपस में सद्भाव न रखना भी समाज के प्रति हिंसा है। स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने कहा कि भारत की सशक्तता, अखण्डता और संप्रभुता के लिए राष्ट्र को आध्यात्मिक समृद्घि से भरपूर बनाना बहुत जरूरी है।
राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के अध्यक्ष पूर्व एयरमार्शल आऱ सी़ बाजपेई, तिब्बत की पूर्व गृहमंत्री गैरी डालमा,ओमान के प्रतिनिधि शेख सलीम, जम्मू एवं कश्मीर के काबीना मन्त्री दलजीत सिंह, वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक, प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्ष महामण्डलेश्वर नैसर्गिका, राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच की सचिव रेशमा सिंह, राम महेश मिश्र, गोलोक बिहारी राय, प्रवेश खन्ना, अनिल कौशिक आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 

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