'जब मेरी मौत को मौत आ गई'
May 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

'जब मेरी मौत को मौत आ गई'

by
May 23, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 23 May 2016 16:02:06

 

पाञ्चजन्य ने सन् 1968 में क्रांतिकारियों पर केन्द्रित चार विशेषांकों की शंृखला प्रकाशित की थी। दिवंगत श्री वचनेश त्रिपाठी के संपादन में निकले इन अंकों में देशभर के क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाएं थीं। पाञ्चजन्य पाठकों के लिए इन क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाओं को नियमित रूप से प्रकाशित करेगा ताकि लोग इनके बारे में जान सकें। प्रस्तुत है 29 अप्रैल ,1968 के अंक में प्रकाशित गदर पार्टी के प्रहारक विभाग के मंत्री रहे डा. खानखोजे का आलेख:-
ल्ल डा. खानखोजे
प्रथम महायुद्ध के समय, 1916 में उत्तरी बलूचिस्तान की सीमा पर प्रथम अस्थायी भारतीय सरकार स्थापित करने के पश्चात हमने दक्षिण में अपना युद्ध जारी रखा। वहां हमें जनरल डायर और ब्रिगेडियर जनरल सर पर्सी साइक्स की सेना का मुकाबला
करना पड़ा।
ईरानी बलूचिस्तान में बामपुर एक रियासत है। हमने उसके अमीर (शासक) बहरामखान से सहायता मांगी। अमीर शक्तिसंपन्न था और हम उसकी मदद चाहते थे। साइक्स भारतीय सीमा की ओर से दक्षिणी पर्शियन साइफलज को संगठित कर रहा था। ईरान के उस भाग पर अंग्रेजों ने जबरदस्ती अधिकार कर रखा था। वहां के लोग इनको अपने यहां से निकालना चाहते थे। साइक्स इनसे लड़ाई कर रहा था।
जब साइक्स ईरानियों का विरोध कर रहा था तब उसने 'पर्शिया के इतिहास' में यह लिखा- 'जैसा कि मैंने 'टाईम्स' में दर्शाया है, मेरी सेना भारत को जाने वाले मार्ग की रक्षा कर रही थी। यदि हम मामले को दूसरी ओर से देखें तो पता चलेगा कि हमारी हार हो जाने पर भारत और ईरान में  परिणाम बहुत गंभीर होता। पंजाब उस समय द्रोह की भावना से उबल रहा था और जून 1918 में कुत-अल-अमारा की पुनरावृत्ति हो जाती। इससे मतांधता का विस्फोट होता जिसका हमें 1916 में डर था।'
अमीर बहरामखान हमारे साथ मिल गया। भारतीयों के साथ मिलकर उसने युद्ध भी किया। परंतु कुछ समय के पश्चात उसने उद्घोषित किया कि मुझे अधिक धन तथा अस्त्र-शस्त्र चाहिए। इस कारण वह बहुत देर तक लड़ न सका। अंग्रेजों ने उसे यह सब कुछ दे दिया। वह उनके साथ मिल गया और द्रोह करके हमारे विरुद्ध लड़ने लगा। सरे-दगर के निकट हमारी हार हुई। हमारे जासूसों तथा मुखबिरों ने हमें बताया कि बहराम हमको अंग्रेजों के हवाले करने वाला है। रात को हम भाग निकले और बाम जा पहुंचे जहां हमारे बाकी दस्ते अवस्थित थे। पर वहां, बाम में, हमको ज्ञात हुआ कि ईरानी जन-तंत्रवादी पराजित हो गए हैं। अब हमें बाम से नेहराज की ओर मार्च करना पड़ा। हमारे दस्तों में से जो बचे थे वे हमारे साथ थे।
गोली लगी
 बामपुर से बहुत दूर बाफ्त में हम पर ब्रिटिश दस्तों ने आक्रमण कर दिया और कई दिन तक लड़ाई होती रही। मेरे घोड़े को गोली लगी। स्वयं मेरी बायीं टांग में गोली लगी और मुझे भाड़े के टट्टू ईरानी दस्तों ने गिरफ्तार
कर लिया।
क्रांतिकारी सेना में से जो आदमी बचे, वे मेरे साथ थे। हमारे हाथों-पांवों को लोहे की जंजीरों से जकड़ दिया गया। हमें कैदी बनाकर ब्रिटिश हेडक्वार्टर बंदर अब्बास की ओर ले जाया गया। इस पदयात्रा में कई दिन लगने वाले थे। मैं सदा भागने की बात सोचता रहता। परंतु समझ में न आ रहा था कि कैसे क्या करूंं। वास्तव में ऐसा सोचना मूर्खता थी क्योंकि मेरी जंजीरें बहुत भारी थीं और मेरे रक्षक बहुत चौकस थे। जब मेरी जख्मी टांग कुछ कम पीड़ा करने लगी तब मैंने बहाना बनाया कि मुझे बहुत सख्त पेचिश हो रही है। तीन दिन तक मैं झाडि़यों में जाकर मल-त्याग करता रहा। वहां से वापसी पर मुझे फिर जंजीरें पहना दी जातीं। इस झूठी बीमारी ने मुझे कुछ आराम दिया। अब एक बार मैं झाडि़यों में गया। रास्ते में ख्याल आया कि अब भागने का समय आ गया है। मैं लौटा नहीं, जंजीरें मेरी प्रतीक्षा करती रहीं। जब मैं खिसक गया तब मेरे पीछे गोलियां चलाई गईं। परंतु तब तक मैं एक ऊंचे पर्वत पर चढ़ रहा था। रात अंधेरी थी। वे मुझे पकड़ न सके। कुछ देर के पश्चात सैनिकों ने थककर अंधेरे में गोलियां चलाना बंद कर दिया। ईरान के जिस भाग में मैं लड़ रहा था वहां उन दिनों कई जंगली चलवासी कबीले थे जो सदा एक दूसरे पर आक्रमण करते रहते। शांति-काल में भी वहां रहना खतरनाक था। यदि आदमी एक विशेष कबीले के साथ हो जाता तो उस कबीले के शत्रु उस पर अविश्वास करते। उनके साथ रहने में जीवन का कुछ
अर्थ न था।
पहाड़ों-गुफाओं में
सूर्योदय होने पर मैंने अपने आपको उन बड़ी-बड़ी चट्टानों के पीछे पाया, जिन्होंने मेरे लिए गुफा बना रखी थी। परंतु जख्मी टांग और खाली पेट ने मुझे अत्यधिक कष्ट में डाल दिया। इन पथरीली पहाडि़यों ने मुझे खाने के लिए कुछ भी तो न दिया। कुछ घास मुझे अवश्य मिली और इसी से मैंने भूख मिटाई। अब मुझे सचमुच ही पेचिश लग गई। लेकिन क्योंकि शत्रु के खोजी दल के भय से मैं इन चट्टानों के नीचे और अधिक न रह सकता था इसलिए मैंने भूख-प्यास को मिटाने की खातिर वहां से चलने का निश्चय किया। मेरी टांग सूजी हुई थी। पीड़ा बहुत तंग कर रही थी। मैं चल भी तो न सकता था। फिर देश के उस भाग में कोई रास्ता न जानता था। पहाडि़यां बंजर थीं, धूप बहुत तेज थी और साथी एक भी न था। मैंने हाथों के बल रेंगना प्रारंभ किया। कुछ समय के पश्चात पहाड़ी के किनारे पर पहुंचा। यह स्थान ढलवां था। चट्टानें ही चट्टानें थीं। परंतु नीचे नरम रेत प्रतीत
होती थी।
पहाड़ी से छलांग लगा दी
मैं बहुत तंग था, निर्बल और दु:खी था। ऐसा अकेला था कि मानो परमात्मा ने भी साथ छोड़ दिया हो। मैंने निश्चय किया कि अपने जीवन तथा कष्टों का अंत करने के लिए यह स्थान आदर्श है। ऐसे बियाबान में अकेले ही मरने से तो अंग्रेज की गोली बेहतर होती। पेचिश इतनी दु:खद थी कि टांग के घाव के दर्द को मैं भूल ही गया। रात बढ़ती चली आ रही थी। इसके साथ ही सख्त सर्दी भी। तनहाई और क्लेश की भावनाओं ने फिर घेर लिया। ऐसी अवस्था थी मेरे मन की जब मैंने उस ऊंची पहाड़ी से छलांग लगा दी।
लेकिन मैं मरा नहीं, मेरी मौत को मौत आ गई। उस पहाड़ी के नीचे कई घंटे तक बेहोश पड़ा रहा। अपने कष्टों का अंत करने के स्थान में मैंने उन्हें और बढ़ा लिया।
जब मेरी आंख खुली तब मैंने अपने ईद-गिर्द देखना शुरू किया। दिन बहुत देर से निकला हुआ था। मुझे एक पगडंडी सी दिखलाई दी। प्रयत्न करके मैं उस ओर रेंग कर गया। हृदय में त्रास तथा भय के साथ मेरी निर्बल आंखों ने देखा कि दो आदमी बंदूकें लिए खड़े हैं। अपने शस्त्रों को कंधों पर डाल कर वे मेरी ओर आने लगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि एक खोजी दल ने अंत में मुझे पा ही लिया। इस बात को चिंता न करते हुए कि मेरे साथ क्या होने वाला है मैंने उनको बुलाया। वे शत्रु थे, परंतु मानव तो थे। मुझे तो एकांत और बीमारी ने खा ही लिया था। परंतु उन्होंने मुझ पर विश्वास न किया और अविश्चास के कारण मेरी ओर धीरे-धीरे आने लगे। स्थानीय रिवाज के अनुसार उन्होंने समझा कि उनको धोखा देने के लिए मुझे चारा बनाया गया है। मुझे रास्ते में इसलिए डाल दिया गया है कि वे दोनों जब मेरे निकट आयेंगे तब उन पर हल्ला बोल दिया जाएगा और वे समाप्त कर दिये जायेंगे। इसी कारण वे बहुत सावधान थे। वे अपनी लंबी बंदूकों के घोड़ों पर उंगलियां रखे हुए थे कि ज्यों ही कोई खतरा नजर आएगा वे गोलियां चला देंगे। मुझे उन्होंने फारसी भाषा में बताया कि वे मेरे जाल में नहीं फंसने वाले और यदि मैं अपने स्थान से हिला तो वे मेरा अंत कर देंगे। मैंने उन्हें बताया कि वे भूल कर रहे हैं। मैंने उन्हें अपना घाव दिखलाया और कहा- 'मैं गोली से डरता नहीं हूं, बल्कि अच्छा रहेगा जो तुम मुझे गोली मार दोगे।' सचमुच ही मैं अपने कष्टों का अंत करना चाहता था।
टांग से गोली निकाली गई
जब उन्हें पता लगा कि मैं अंग्रेजों के साथ लड़ता रहा हूं और मैंने उन्हें सच-सच सब कुछ बता दिया है तब उन्होंने मित्रता का प्रदर्शन किया और अपने शिविर में ले गये जो वहां से काफी दूर था। वहां हम रात को पहुंचे। मेरी टांग से गोली निकाली गई जो कई दिन से धंसी पड़ी थी। कबीले के लोगों ने कुछ बूटियां देकर मेरी पेचिश दूर कर दी। मेरा उन्होंने बहुत ध्यान रखा। मेरा स्वास्थ्य अच्छा हो गया। मैं उनका मित्र बन गया। यह मित्रता यहां तक बढ़ी कि उन्होंने कहा कि मैं उनकी एक सुंदर बेटी से विवाह करूं। वे मुझे इस बात पर राजी न कर सके। मैंने उनसे प्रार्थना कि वे मुझे जाने दें जो मेरे भाग्य में लिखा है उसे होने दें। मेरा भाग्य भी तैयार ही था। अपने देश की स्वतंत्रता की खोज में मुझे कितने ही जोखिमों और विपत्तियों का सामना करना था।

 

मैं नेहरीज जाना चाहता था। उन्होंने मुझे रास्ता दिखाया और यात्रा के लिए खाने-पीने की चीजें दे दीं। अभी मैं इस नगर में नहीं पहुंचा था कि रास्ते में एक गांव आया। वहां मैं मण्डी में भीड़ के लोगों के साथ चलने-फिरने लगा। परंतु मुझे उनकी सांप्रदायिक रीतियों का कुछ ज्ञान न था और वे अपने से भिन्न मत वाले का स्वागत नहीं करते। मैंने उन जैसे कपड़े न पहन रखे थे। इसलिए मुझ पर वे अविश्वास करने लगे। कुछ ही देर में मेरे ईद-गिर्द बहुत से लोग एकत्र हो गये।
'दरवेश हूं'
मुझसे कोई ऐसी गलती हो गई जिससे उनको पता चल गया कि मैं उनमें से एक नहीं हूं। उन्होंने मुझसे मेरे धर्म के बारे में पूछा। मैंने उन्हें बताया कि कि 'मैं दरवेश हूं और हज के लिए जा रहा हूं।' दरवेश भिक्षुक संत होता है और एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ की यात्रा करता रहता है। मुझसे नौ इमामों के नामों के विषय में पूछा गया। मैं संतोषजनक उत्तर न दे सका। इस अज्ञानता के कारण मुझे बुरी तरह से पीटा गया। उन्होंने मेरे प्राण न लिये क्योंकि मैंने उन्हें बताया कि 'मैं नव-मुस्लिम हूं और मुझे अभी बहुत-सी बातें सीखनी हैं।'
जब मेरे कपड़ों से ईरान का नक्शा गिरा
जब मैं इनको विश्वास दिला रहा था कि मैं दरवेश हूं तब अचानक मेरे फटे हुए कपड़ों में से एक ऐसी वस्तु गिर गई जिसने मुझे नई मुसीबत में फंसा दिया। यह था ईरान का मानचित्र। इसे गिरते मैंने ही नहीं, दूसरों ने भी देखा था। सबका ध्यान इसकी ओर आकर्षित हो गया। उनके अंदर अविश्वास, जिज्ञासा और क्रोध उत्पन्न हो गये। मुझसे वे तरह-तरह के प्रश्न करने लगे कि मैंने रोमन लिपि में छपा हुआ नक्शा क्यों रखा हुआ है। मैंने फट से दो-तीन झूठ बोल दिए जिससे उनको संतोष हो गया। लेकिन बड़ा प्रश्न यह था- 'दरवेश के पास नक्शा किसलिए?' मैंने उत्तर दिया- इसकी सहायता से मैं बगदाद के निकट करबला जल्दी पहुंच सकता हूं। करबला में मैं अपनी यात्रा समाप्त कर दूंगा। उत्तर सीधा-सादा था। इस कारण उनको संतोष हो गया और वे शांत हो गये, अन्य कोई प्रश्न उन्होंने न किया।    ल्ल
 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Operation sindoor

अविचल संकल्प, निर्णायक प्रतिकार : भारतीय सेना ने जारी किया Video, डीजीएमओ बैठक से पहले बड़ा संदेश

पद्मश्री वैज्ञानिक अय्यप्पन का कावेरी नदी में तैरता मिला शव, 7 मई से थे लापता

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: इस्लाम त्यागकर अपनाया सनातन धर्म, घर वापसी कर नाम रखा “सिंदूर”

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

‘आपरेशन सिंदूर’: दुस्साहस को किया चित

पंजाब में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस : गजाला और यमीन मोहम्मद ने दुश्मनों को दी सेना की खुफिया जानकारी

India Pakistan Ceasefire News Live: ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादियों का सफाया करना था, DGMO राजीव घई

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Operation sindoor

अविचल संकल्प, निर्णायक प्रतिकार : भारतीय सेना ने जारी किया Video, डीजीएमओ बैठक से पहले बड़ा संदेश

पद्मश्री वैज्ञानिक अय्यप्पन का कावेरी नदी में तैरता मिला शव, 7 मई से थे लापता

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: इस्लाम त्यागकर अपनाया सनातन धर्म, घर वापसी कर नाम रखा “सिंदूर”

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

‘आपरेशन सिंदूर’: दुस्साहस को किया चित

पंजाब में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस : गजाला और यमीन मोहम्मद ने दुश्मनों को दी सेना की खुफिया जानकारी

India Pakistan Ceasefire News Live: ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादियों का सफाया करना था, DGMO राजीव घई

Congress MP Shashi Tharoor

वादा करना उससे मुकर जाना उनकी फितरत में है, पाकिस्तान के सीजफायर तोड़ने पर बोले शशि थरूर

तुर्की के सोंगर ड्रोन, चीन की PL-15 मिसाइल : पाकिस्तान ने भारत पर किए इन विदेशी हथियारों से हमले, देखें पूरी रिपोर्ट

मुस्लिम समुदाय की आतंक के खिलाफ आवाज, पाकिस्तान को जवाब देने का वक्त आ गया

प्रतीकात्मक चित्र

मलेरकोटला से पकड़े गए 2 जासूस, पाकिस्तान के लिए कर रहे थे काम

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies