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जब मैंने इस विश्वविद्यालय में दाखिला लिया तब मेरा राजनीति से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन मेरे भीतर एक आग थी। मेरा सहानुभूति हमेशा समाज में दबे-कुचले लोगों के साथ थी। अपने इन्हीं विचारों के चलते मैं एसएफआई 'स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया' के करीब आया। मैं पूरी लगन व श्रद्धा से कार्य करने लगा और एसएफआई के बैनर तले चुनाव लड़कर छात्रसंघ का महासचिव बना, लेकिन आज जब मैंने ''संगठन की गहराई में जाकर देखा तो पता चला कि स्वतंत्रता से विचार रखने की बात कहने वाले इस संगठन में स्वतंत्र विचार रखने की बात बेमानी है, यहां सिर्फ तानाशाही है।'' ये शब्द हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे छात्रसंघ के महासचिव पद से इस्तीफा देने वाले राजू साहू के हैं। वामपंथी संगठन एसएफआई से नाता तोड़ने वाले साहू रोहित वेमुला की मौत के बाद विश्वविद्यालय में हुए आंदोलन के अगुआ रहे हैं।
11 मई को उन्होंने हैदराबाद में प्रेस कांफ्रेंस कर इस्तीफे की घोषणा की और कहा, ''अब मुझे समझ में आ गया है कि एसएफआई राजनीतिक सिद्धांतों पर नहीं बल्कि अवसरवादिता पर आधारित है।'' उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद कैंपस में संगठन द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन के लिए कांग्रेस फंड मुहैया करा रही है। इसमें अन्य राजनीतिक दलों के लोग भी शामिल हैं। '' साहू ने कहा, ''रोहित वेमुला की मृत्यु के बाद और पहले के घटनाक्रम को मैंने नजदीक से देखा है और मुझे यह बताते हुए बहुत ही शर्म महसूस हो रही है कि विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकगण भी अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए इस आंदोलन में शामिल थे।'' उन्होंने आरोप लगाया '' यह आंदोलन कांग्रेस वामपंथ और अवसरवादी लोगों द्वारा आर्थिक रूप से किए जा रहे सहयोग से संचालित था। आंदोलन के तीन महीनों के दौरान प्रतिदिन लगभग 5 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से टेंट, बिजली और खाना परोसा गया जिसकी फंडिग कांग्रेस द्वारा की गई।''
एसएफआई पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, ''अपने झूठे प्रचार के चलते स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया अपना असली उद्देश्य भूल गई है। यहां सामान्य कार्यकर्ताओं की बिल्कुल नहीं सुनी जाती है। जब मैंने आवाज उठाने की कोशिश की तो उसे भी दबा दिया गया। एसएफआई का केंद्रीय नेतृत्व तानाशाह की तरह कार्य करता है। मैंने कई बार इस संगठन में स्वयं को बहुत अकेला पाया और बहुत से निर्णयों को लेकर मेरा संगठन से विरोधाभास भी रहा। छात्रसंघ के सदस्य स्वतंत्र न होकर कांग्रेस एवं सीपीआई के राजनीतिज्ञों के दिशा निर्देशों का पालन करने के लिए मजबूर हैं।'' उन्होंने कहा, ''मेरी समझ के अनुसार रोहित वेमुला एक संवेदनशील इंसान था। कुछ वर्ष पहले वह स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया का सक्रिय कार्यकर्ता था, संभवत: उसने भी स्वयं को अलग-थलग और विरोधाभास जैसी परिस्थितियों में पाया और वह इस अवसरवादी राजनीति को नजरअंदाज नहीं कर पाया था। इसलिए अपने अंतिम पत्र में उसने लिखा था कि इंसान की उपयोगिता उसकी तात्कालिक पहचान तक सिमट कर रह गई है। '' साहू का कहना है कि एसएफआई के अप्रासंगिक आंदोलनों की वजह से छात्रों को अच्छे अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। एसएफआई की आंतरिक राजनीति में क्षेत्रीयता और धर्म बड़ी भूमिका निभाते हैं। साहू ने कहा, ''मैं यह देखकर आश्चर्यचकित हूं कि एक ओर एसएफआई दावा करती है कि वह याकूब मेमन जैसे आतंकवादी का समर्थन नहीं करती है, वहीं दूसरी ओर वह अपनी अवसरवादी राजनीति के लिए उन लोगों का समर्थन करती है जो याकूब मेमन की फांसी के विरोध में नमाज-ए-जनाजा आयोजित करते हैं। एसएफआई अपनी सुविधा एवं वोटबैंक को ध्यान में रखकर किसी भी कार्यक्रम का समर्थन या विरोध करती है।'' -प्रतिनिधि
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