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गूगल उपनिवेशवाद के विरुद्ध उठे कदम

by
May 16, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 May 2016 16:14:00

आज नए इंटरनेट-तालिबान सूचना उपनिवेशवाद को बढ़ावा दे कोहिनूर हीरे की तरह भारतीय   नेट-संपदा को बाहर ले जाने में जुटे हुए हैं। यह किसी तरह भारत के हित में नहीं है

तरुण विजय

भारत सरकार ने पहली बार गूगल जैसी महाकाय इंटरनेट कम्पनियों के कानून-तोड़क अहंकार को समाप्त करने के लिए भू-स्थानिक विवरण विधेयक का प्रारूप बनाकर जनता के सुझावों और टप्पिणियों हेतु प्रसारित किया है। भारत के नक्शे गलत दिखाने, सुरक्षा संस्थानों का इस प्रकार अंकन करने, जिससे शत्रु को सहायता मिले तथा भारतीय संविधानिक ढांचे में निहित विधि-निषेधों का उल्लंघन करने पर सौ  करोड़ रु.तक जुर्माना और व्यापार को प्रतिबंधिंत करने का दंड दिया जा सकेगा।
मैं पिछले तीन वर्षों से संसद में उस विषय को उठाते हुए गूगल के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करता रहा हूं। गूगल द्वारा न केवल कश्मीर और अरुणाचल के नक्शे गलत दिखाए गए बल्कि जम्मू-कश्मीर तथा अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में भारतीय बम भण्डार,युद्धक विमानों के  अड्डे, परमाणु केन्द्र आदि के नामोल्लेख के साथ गूगल-अर्थ पर अंकन किया गया। सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले इस प्रकार के भू-स्थानिक विवरण (जियो-स्पेशिल डाटा) का सार्वजनिक वैब-अंकन अमरीका, चीन यूरोप सहित अनेक देशों में प्रतिबंधित है और वहां गूगल सर झुकाकर उन नियमों का पालन करता है पर पुराने औपनिवेशिक दास की तरह समझते हुए उसे हमारी सुरक्षा संवेदनाओं का सम्मान करने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई।
गूगल ने 2013 में विराट नक्शा भेजो आयोजन (मैपाथन) कर  भारत के गांव स्तर तक के करोड़ों स्थानों का भू-स्थानिक विवरण नर्दिोष-मना नागरिकों से मंगवा लिया और उसे अमरीका में 'पार्क'    कर दिया। जब मैंने संसद में गूगल की इस खतरनाक भारतीय-डाटा -डकैती, भारतीय विवरण विदेश में रखने का मामला उठाया तो तत्कालीन रक्षामंत्री श्री ए. के. एन्टनी ने इसे बहुत गम्भीर बताया और तुरंत कार्यवाही का आश्वासन दिया। गूगल के विरुद्ध सी.बी.आई. जांच बिठाई गयी और यू.पी.ए. सरकार ने देहरादून स्थित भारतीय सर्वेक्षण विभाग (सर्वे ऑफ इंडिया) को गूगल के विरुद्ध दल्लिी के रामकृष्णपुरम थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने की अनुमति दी। फलत: गूगल का मैपाथन रोक दिया गया।
करोड़ों भारतीय गूगल और जीमेल का प्रयोग करते हैं। यदि आपको यह अहसास हो कि आपकी तमाम ईमेल, संवाद, चत्रि, वीडियो, पत्र-व्यवहार, वत्तिीय यानी वीसा और मास्टर कार्ड के जरिए खर्च का आर्थिक-प्रोफाइल     विदेशियों के पास जा रहा है तो कैसा लगेगा? अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने सार्वजनिक तौर पर माना था कि भारत सहित अनेक देशों के नागरिकों का नेट-डाटा उन्होंने हासिल किया क्योंकि यह अमरीकी नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी था। लंदन के डेली मेल ने 8 जून, 2013 को खबर छापी कि अमरीकी खुफिया एजेंसियों को गूगल, फेसबुक, एप्पल, याहू,      यू-ट्यूब, स्काइप आदि इंटरनेट एजेंसियों ने नेट-विवरण यानी डाटा उपलब्ध कराया।
जैसे विदेशी आक्रमणकारी भारत से कोहिनूर और हीरे-जवाहरात ले गए, वैसे ही नए इंटरनेट-तालिबान सूचना का उपनिवेशवाद बढ़ाते हुए भारतीय विवरण-संपदा (डाटा-वैल्थ) विदेश ले जा रहे हैं। वर्तमान में सूचना ही सबसे बड़ी राष्ट्रीय संपदा और हमारा डाटा-कोहिनूर है। सूचना एवं इंटरनेट के क्षेत्र में सक्रिय लोग जानते हैं कि भारतीय जनता का यह विवरण विदेशियों के हाथों में आने से उनके पास भारतीय नेताओं, अफसरों, नीति-नर्मिाताओं, यहां तक कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के संपर्क से वत्तिीय-संसार और आंतरिक  संवाद पहुंच जाते हैं, जिनके वश्लिेषण से विदेशी खुफिया एजेंसियां अनेक प्रकार के अभियान हाथ में लेती हैं जो भारत के विकास को रोक कर यहां अराजकता और अशांति फैलाने के उद्देश्य से कार्यान्वित होते हैंप।
अब नए कानून से इन सब पर अंकुश लग सकेगा। दुर्भाग्य से भारत में वामपंथी झुकाव वाले भारतीय सुरक्षा के लिए आवश्यक इस विधेयक के प्रारूप का विरोध कर इसे नेट-देशभक्ति और नेट-इस्तेमाल करने वालों पर अंकुश के प्रस्ताव का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन सवाल पूछना होगा कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा और भारतीय नागरिकों का रक्षा के उपाय करना नेट-स्वतंत्रता से छोटा और घटिया है। वास्तव में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गूगल माइक्रोसाफ्ट जैसी कम्पनियों द्वारा खुलेआम भारतीय कानूनों की धज्जियां उड़ाने के अहंकारपूर्ण कार्य पर अंकुश लगाने का प्रावधान किया है। जैसे कोहिनूर अंग्रेजों ने चुराया, वैसे ही बड़ी पश्चिम केंद्रित इन्टरनेट कम्पनियां सूचना-कोहिनूर चुरा रही हैं।
इन कंपनियों द्वारा भारत के गलत नक्शे प्रसारित करने का मुद्दा जब मैंने संसद में उठाया तो सब पार्टियों ने इसका समर्थन किया था। अब भू-स्थानिक विधेयक से भारतीय नक्शे गलत छापने वालों पर करोड़ों रुपये का दण्ड लगेगा। बड़ी इंटरनेट-उपनिवेशवादी कम्पनियों का सूचना-राजमार्ग अब गरीब जनता के लिए सही भारत-सम्मत जानकारी ही दे सकेगा। सरकार को चाहिए कि वह इस समस्या के सम्मानजनक समाधान हेतु 'भुवन' वैब पोर्टल को गूगल अर्थ की तरह मजबूत बनाए। विधेयक को सफल बनाने के लिए हमें गूगल से भी बेहतर वैब-सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। भुवन को गूगल अर्थ से ज्यादा ताकतवर बनाना और सर्वेक्षण विभाग को भारतीय हितों व संवेदनाओं के अनुसार काम करने और उसका बजट बढ़ाते हुए गूगल से ज्यादा ताकतवर बनाने के लिए नर्णिय लेना अब समय की जरूरत है।                 (लेखक राज्यसभा सांसद हैं)
 

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