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केरल में कानून की पढ़ाई कर रही एक दलित छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या। घटना की बर्बरता ने दिलाई 2012 के दिल्ली के निर्भया कांड की चुभनभरी याद
टी. सतीशन, कोच्चि
कोच्चि से करीब 40 किमी़ दूर पेरम्बवूर की एक दलित लड़की नहर के किनारे अपनी झोंपड़ी में मृत पाई गई। उसके शरीर पर चोटों और काटे जाने के करीब 20 निशान थे। एलएलबी की यह छात्रा जीशा अपनी मां राजेश्वरी के साथ रहती थी जो घरों में बर्तन मांजकर गुजर-बसर करती हैं। उनका अपना मकान नहीं था, इसलिए वे पुरम्बोक्कु (खाली पड़ी सरकारी कब्जे वाली जमीन) पर बनी झोंपड़ी में रह रही थीं। जीशा के पिता ने वषार्ें पहले परिवार को छोड़ दिया था और अलग रहते हैं। जीशा की बड़ी बहन का भी पति से अलगाव हो चुका था और वह पिता के साथ रहती थी। मां और बेटी के अपने आसपास के लोगों के साथ तनावपूर्ण संबंध थे। बदहाली का यह आलम था कि उनके घर में न तो कोई दरवाजा था और न ही जैसे-तैसे बनाए शौचालय में। जाहिर है, उनका जीवन काफी असुरक्षित था।
हिन्दू एक्य वेदी के सह जिला संयोजक ए़ बी़ बीजू घटना के बाद जीशा के घर गए और अस्पताल में उसकी मां से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि कुछ लोगों ने जीशा और राजेश्वरी को नहर के पास की जमीन से बेदखल करने की कोशिश की थी। जिन लोगों ने यह सब किया, उनकी अगुआई ग्राम पंचायत में स्थानीय भाकपा पार्षद कर रहे थे। पार्षद ने वहीं के कुछ लोगों को साथ मिला रखा था। बताया जाता है कि जीशा के परिवार के पड़ोसियों से खराब रिश्तों की असली वजह यही थी। राजेश्वरी आम तौर पर दोपहर बाद करीब 3 बजे काम के लिए निकलती और रात 8 बजे तक वापस आती थीं। जीशा की हत्या इसी बीच यानी 3 से 5 बजे के बीच की गई।
28 अप्रैल की देर शाम जब राजेश्वरी काम से लौटीं तो जीशा को खून से लथपथ मृत पाया। वे जोर-जोर से रो कर लोगों को पुकारने लगीं। लेकिन कोई पड़ोसी मदद को नहीं आया। काफी देर के बाद एक व्यक्ति आया और उसने जीशा के शव को अस्पताल ले जाने में मदद की। पोस्टमार्टम से पता चला कि जीशा के निजी अंगों को किसी तेज धार हथियार से क्षत-विक्षत कर दिया गया था। उसके सिर के पीछे लोहे की छड़ के तेज वार से बना गहरा घाव था। उसकी गर्दन, ठोड़ी और छाती पर चाकू के घाव थे।
बताया जाता है कि घटना वाले दिन कुछ अनजान लोगों को उस इलाके में देखा गया था। खबर यह भी है कि पोस्टमार्टम के बाद जैसे ही जीशा के शव को घर लाया गया, उसके रिश्तेदारों को धमकी देते हुए तुरंत दाह संस्कार करने को कहा गया। ऐसे में आगे उसके शरीर संबंधित कोई परीक्षण संभव नहीं हो पाया। खबर है कि जीशा का पोस्टमार्टम एक स्नातकोत्तर मेडिकल छात्र ने किया था, जबकि आरोप है कि कुछ वरिष्ठ चिकित्सकों पर पोस्टमार्टम में शामिल होने का दावा करने के लिए दबाव डाला जा रहा है।
एक और गौर करने वाली बात सामने आई है। इस घटना के कुछ ही हफ्ते पहले राजेश्वरी को उसके घर के पास ही एक मजदूर ने मोटरसाइकिल से टक्कर मार दी थी। वे तब भी मदद के लिए चीख-पुकार करती रही पर कोई मदद को नहीं आया। मां की चीख सुनकर जीशा भागकर आई और उसे अस्पताल ले गई। वह अपने साथ उस मोटरसाइकिल की चाबी भी ले गई थी। इस पर जीशा और उस मजदूर के बीच कहासुनी भी हुई थी। कुछ लोगों को लगता है कि इस दुर्घटना और हत्या के बीच कहीं न कहीं कोई संबंध हो सकता है।
पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। उसी इलाके में रहने वाले कन्नूर के एक युवक को हिरासत में ले लिया गया है। जांच के दौरान एक पड़ोसी ने पुलिस को बताया कि हत्या के संभावित समय के आसपास उसने जीशा के घर से एक आदमी को बाहर निकलते देखा था।
हिन्दू ऐक्य वेदी नेता और आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार ई़ एस़ बीजू घटना वाले दिन ही जीशा के घर गए थे। लेकिन मुख्य धारा के दूसरे राजनीतिक दलों के साथ-साथ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आंखें 2 मई को ही खुल पाईं। केरल के लोगों को आश्चर्य है कि आखिर दलितों के स्वयंभू झंडाबरदार चार दिन तक कहां सोए रहे? लोग अपराधियों का पता लगाने में देरी के लिए पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक दल जागने में इतनी देरी के लिए भला क्या सफाई दे सकते हैं? ये वही राजनीतिक दल हैं जो उत्तर भारत, यहां तक कि कर्नाटक और आंध्र में भी कोई घटना होने पर हिंदू संगठनों और मोदी सरकार के खिलाफ हो-हल्ला करना शुरू कर देते हैं। पेरंबवूर में विधायक माकपा के हैं और राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ का शासन है। गृह मंत्री रमेश चेन्निथला अस्पताल जाकर राजेश्वरी का हाल-चाल लेना चाह रहे थे लेकिन लोगों के जबरदस्त विरोध के कारण उन्हें बिना मिले लौटना जाना पड़ा। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जीशा की मां से अस्पताल में भेंट कर उनसे घटना का ब्योरा लिया। मुश्किल से दो साल पहले पेरंबवूर में एक दलित युवक की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में किसी भी दोषी के खिलाफ न तो केस दर्ज हुआ और न ही सजा मिली। एक अन्य घटना में 3 मई को नर्सिंग की पढ़ाई कर रही एक दलित लड़की के साथ तिरुअनंतपुरम के पास वरक्कला में एक ऑटो ड्राइवर ने बलात्कार किया। वह सड़क किनारे रो रही थी तब लोगों की नजर उस पर पड़ी।
आज माकपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के खेल में लगी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वी.एच.अच्युतानंदन ने अस्पताल जाकर राजेश्वरी का हालचाल पूछा और खुलकर ओमन चांडी सरकार की आलोचना की। प्रदेश भाजपाध्यक्ष राजशेखरन ने कहा कि आज अच्युतानंदन भले कुछ भी बोलें, पर किलिरूर प्रकरण से संबद्ध आरोपी के अपराध पर वे आज तक क्यों चुप रहे?
राज्य में 2014 में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के 13,880 मामले दर्ज किए गए, उससे पहले वर्ष के 13,788 की तुलना में ज्यादा। तिरुअनंतपुरम ग्रामीण क्षेत्र में बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले देखे गए हैं और मल्लपुरम पतियों एवं संबंधियों द्वारा महिलाओं के प्रति जघन्य अपराधों में शीर्ष पर रहा। तिरुअनंतपुरम ग्रामीण क्षेत्र में 2014 में बलात्कार के 120 मामले हुई जबकि 101 मामलों के साथ मल्लपुरम दूसरे स्थान पर था। मल्लपुरम में 590 मामले पतियों और संबंधियों के जघन्य अत्याचारों के थे। इस श्रेणी में 454 मामलों के साथ त्रिशूर गा्रमीण क्षेत्र दूसरे स्थान पर था। तिरुअनंतपुरम ग्रामीण क्षेत्र छेड़खानी के 580 और दहेज हत्या के 5 मामलों के साथ पहले स्थान पर था। 2014 में पालक्कड में दहेज हत्या के 5 मामले थे। इसी जिले में अपहरण के सर्वाधिक 18 मामले सामने आए। मल्लपुरम छेड़खानी के 346 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। एर्णाकुलम गा्रमीण क्षेत्र में 2014 में छेड़खानी के सबसे अधिक 38 मामले सामने आए।
2014 में मल्लपुरम में रिकार्ड 1,457 मामले सामने आए जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। 12,96,640 मामलों के साथ तिरुअनंतपुरम ग्रामीण क्षेत्र दूसरे स्थान पर रहा। 2013 में तिरुअनंतपुरम बलात्कार, दहेज हत्या और छेड़खानी के मामलों में क्रमश: 129,6,640 मामलों के साथ पहले क्रम पर रहा। मल्लपुरम बलात्कार के 99 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर रहा।
राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य रेखा शर्मा राजेश्वरी से मिलने गईं और उन्होंने सूचनाएं एकत्रित कीं। केन्द्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चन्द गहलोत ने भी 5 मई को वहां पहुंचकर केरल सरकार से रिपोर्ट मांगी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपराधियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करते हुए विरोध रैली निकाली। डीवाईएफआई और एसएफआई ने भी विरोध प्रदर्शन किया।
लोग केरल में बिगड़ती कानून-व्यवस्था, खासतौर पर दलितों पर हो रहे हमलों के लिए सत्तारूढ़ यूडीएफ के साथ-साथ माकपा के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन एलडीएफ को भी दोषी मानते हैं। लोगों को एहसास हो गया है कि दोनों ही गठबंधन दलित मुद्दों पर दोहरा मापदंड अपना रहे हैं। जब भी दलितों के बारे में किसी भी राज्य से कोई बुरी खबर आती है, वे तुरंत संघ परिवार और मोदी शासन को दोषी ठहरा देते हैं। पर जब घटना केरल में होती है तो चुप्पी साध लेते हैं। कुछ ही महीने पहले की बात है, कोच्चि से 6 किलोमीटर दूर त्रिपुनितुआ के आरएलवी आर्ट्स कॉलेज में एक दलित छात्रा ने एसएफआई के छात्रों और माकपा नेतृत्व वाले छात्र संघों से जुड़े शिक्षकों द्वारा दी जा रही मानसिक यातना के कारण आत्महत्या का प्रयास किया।
आरोपियों को चार दिन के बाद गिरफ्तार किया गया, वह भी भाजपा और हिन्दू ऐक्य वेदी के जबरदस्त विरोध अभियान के बाद। पिछले तीन साल से आरएलवी के दलित छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिल रही है। दूसरे शब्दों में, दलितों से जुड़े मुद्दे कम्युनिस्टों और कांग्रेस, दोनों के लिए महज वोट बटोरने का साधन रहे हैं। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि दलितों की यह दयनीय स्थिति विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान पर असर डालेगी।
हैरान करते आंकड़े
वर्ष बलात्कार
2008 568
2009 568
2010 634
2011 1132
2012 1019
2013 1221
2014 1347
2015 1263
केरल पुलिस की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2011 से 2015 के बीच बलात्कार के मामलों में 11.5 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई है।
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