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प्रमोद कुमार
ऐसे समय जब देश के कई इलाके भयंकर सूखे की चपेट में हैं, तब कर्नाटक के हासन जिले के अनुगनालू गांव ने जल संकट से निपटने का स्थायी तरीका सुझाया है। यहां के निवासियों ने गांव की बंजर और पथरीली जमीन पर घना जंगल उगाकर दिखा दिया है। इसके बाद इस इलाके में भूजल का स्तर वर्ष 2000 के 100 फीट के मुकाबले अब 6 फीट पर आ गया है।
दरअसल, इस चमत्कार का श्रेय गांव निवासी दो भाइयों, डॉ़ मलाली गौडा और कृष्णामूर्ति को जाता है जिन्होंने प्रकृति के संरक्षण को मुहिम का रूप देने के लिए सभी गांववासियों को एकजुट किया। इस सफलता का नतीजा है कि प्रत्येक नववर्ष के दौरान अब गांव में श्रमदान और पौधारोपण का उत्सव मनाया जाता है। यही कारण है कि गांव के जैवविविधता और शोध पार्क को देखने के लिए विख्यात वनस्पतिशास्त्री और डॉक्टर लगातार आने लगे हैं। इस चमत्कार की नींव 2001 में 26 जनवरी को भुज में आए भूकंप के बाद रखी गई थी। उस आपदा में कई जानें गई थीं। उस दौरान अनुगनालू गांव के युवा मलाली गौडा के बारे में खबर आई थी कि वे भी भूकंप में मारे गए थे। स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त कर रहे मलाली गौडा अनुगनालु के पहले व्यक्ति थे। खबर से दुखी गांववालों ने गौडा की श्राद्ध क्रिया भी संपन्न कर दी थी, लेकिन कुछ दिनों बाद खबर मिली कि मलाली जिंदा थे। गांव लौटने पर मलाली ने गांववालों से कहा, ''बेशक यह मेरे लिए दूसरा जन्म है। जेनेटिक वैज्ञानिक के नाते मैं जानता हूं कि भूकंप या सूनामी प्रकृति के प्रकोप होते हैं, इसलिए प्रकृति की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए।'' गांववालों पर उनकी अपील का असर हुआ और वे उनके शब्दों को साकार करने के लिए आगे आए। परंतु पथरीली जमीन पर पौधे रोपना और उनकी देखभाल का काम कठोर मेहनत मांगता था और वहां आसपास कोई जलस्रोत भी नहीं था। इसके बावजूद, गांववालों ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने प्लॉट के ऊ परी इलाके में वर्षाजल संरक्षण के लिए छोटे टैंक खोदे। यह तरकीब बेहद कारगर रही। नतीजा, आज वहां करीब 700 तरह के विभिन्न पेड़ों वाला घना जंगल है, जिसमें चंदन के पेड़ भी हैं। वहां कई तरह की प्राकृतिक धरोहर भी हैं। कई ऐसी तरह के पक्षी भी वहां दिखते हैं जिन्हें पहले कभी आसपास के गांवों में नहीं देखा गया। इस जंगल की देखभाल अब बायोडाइवर्सिटी रिसर्च एंड कंजर्वेशन ट्रस्ट (बीसीआरटी) के अंतर्गत की जाती है। स्थानीय गांव वाले इस ट्रस्ट के सदस्य हैं। इस ट्रस्ट ने निकटवर्ती गांवों को 80,000 मुफ्त पौधे मुहैया कराने के अलावा 100 स्कूलों में भी पौधारोपण किया है।
गांववालों ने एक मेडिसनल पार्क भी विकसित किया है जहां मंगरबेली, मधुनाशनी, रुद्राक्ष, इंसुलिन आदि जैसे 125 औषधीय गुणों वाले दुर्लभ पौधे लगाए गए हैं। प्रकृति संरक्षण से जुड़ी जागरूकता कुछ इतनी गहराई तक पहुंची है कि अब गांववाले अपने जन्मदिन, विवाह आयोजन और अन्य शुभ अवसरों को गांव में पौधा लगाकर मनाते हैं और उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी उठाते हैं। अब तक ऐसे 300 पौधे रोपे जा चुके हैं। इस कार्य के प्रति स्नेह के कारण ही वन के चारों ओर सुरक्षा बाड़ भी नहीं लगाई गई है। मवेशियों और अन्य जानवरों से पौधों की देखभाल गांववाले खुद ही करते हैं। इस अनोखी पहल को राज्य और देश के पर्यावरण प्रेमियों की ओर से ही नहीं बल्कि आसपास के गांववालों की ओर से भी सराहा गया है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ़ एपीजे अब्दुल कलाम ने 2006 में बीसीआरटी को कर्नाटक राज्य की ओर से 'डॉ़ एपीजे अब्दुल कलाम परिसर प्रशस्ति' (पर्यावरण पुरस्कार) से भी सम्मानित किया था। भूजल के वर्ष 2000 में 100 फीट से आज 6 फीट तक आने से ही गांववालों ने पौधारोपण की शुरुआत अभियान के तौर पर की थी। यही कारण है कि आज गांव के मुख्यमार्ग से हासन-बेलूर मुख्य मार्ग तक तीन किलोमीटर लंबे क्षेत्र में दोनों ओर पौधे रोपे जा चुके हैं।
एक नजर काम पर
स्थान: हासन शहर से 14 किमी दूर बेलूर मार्ग पर स्थित कर्नाटक के हासन जिले का अनुगनालू गांव
काम: पथरीली बंजर जमीन पर व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण की मदद से भूजल में अभूतपूर्व वृद्घि।
वर्ष 2000 में 100 फीट से अधिक गहराई पर पहुंच गया जल स्तर आज केवल 6 फीट तक रह गया है।
विशेषता: डॉ़ एपीजे अब्दुल कलाम ने 2006 में बेहतरीन पहल के लिए गांववालों को सम्मानित किया था।
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