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उईगर नेतृत्व को मिटाने की 'वार्ता'

by
May 2, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2016 14:52:35

''बर्बर जातियों की भूमियों पर कब्जा करने में कुछ गलत नहीं है। असभ्यों को समाप्त करना भी अमानवीय नहीं है। असभ्यों को धोखा देना भी बेईमानी नहीं होती…'' –वांग फू झी, 17वीं शताब्दी के मशहूर चीनी दार्शनिक

चीन के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक शब्दकोश में 'असभ्य' शब्द को उस प्रत्येक जाति के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो हान मूल की नहीं है। इससे इस तथ्य का पता चलता है कि सदियों से हान जाति अपने कंधों पर किस तरह के 'सवार्च्च' वर्ण या 'मिडिल किंगडम' का बोझ लिए जी रही है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि क्यों क्विन राजवंश और उनके उत्तराधिकारी हान, उत्तरी क्वी, सूई और मिंग राजवंशों को अंदरूनी एशिया के घुमंतू 'असभ्य' आक्रांताओं से बचने के लिए वहां की 'महान' दीवार बनवानी पड़ी थी। इन आक्रांताओं में तिब्बती, मंगोल और कई अन्य थे, जिनका नाम बिना लिए ही इसे समझा जा सकता है। इससे यह भी पता चलता है क्यों चीनी दुनिया की उन चुनिंदा जातियों में से हैं, जो अपनी 'चालाकी' और धोखा देने की कला पर गर्व महसूस करती हैं।

जब माओ-त्से तुंग अपनी सफल वाम क्रांति के अंतिम चरण में थे, उस समय उनकी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) को 'पूर्वी तुर्किस्तान रिपब्लिक' की उईगर जाति की ओर से कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। उईगर, उग्र और आत्मसम्मानी मुस्लिम जाति है, जो लंबे समय से खनिज संपदा से भरपूर इस जमीन पर रह रही है। इस जमीन पर विभिन्न चीनी सेनापतियों का भी राज रहा। जब माओ के वामपंथी चीन के सभी क्षेत्रों को एक-एक कर अपने कब्जे में ले रहे थे, उस दौरान 1933 में उईगर जाति कुछ समय के लिए राष्ट्रवादी कोमिंताग के शासन के शिकंजे से निकलने में कामयाब रही थी। बाद में 1944 से उन्होंने फिर से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। इससे पता चलता है कि क्यों उइगर जाति फिर से हान राज्य के अधीन नहीं जाना चाहती।

ऐसे समय में माओ ने अपनी मीठी वामपंथी बोली का फायदा उठाया और 'मैत्रीपूर्ण संवाद' के जरिये उइगर जाति के सभी लंबित मुद्दों को सुलझाने का प्रस्ताव रखा था। उईगर नेता यही चाहते थे। अगस्त, 1949 में उईगर जाति के नेताओं को न्योता भेजने के अलावा, माओ ने पड़ोसी सोवियत रूस से उईगर नेताओं को बुलाने के लिए हवाई जहाज भी भेजा था। दुर्भाग्य से उईगर नेताओं का बड़ा दलमाओ के इस जाल में फंस गया था। इससे पहले कि वह जहाज बीजिंग में उतरता, 26 अगस्त को उड़ान के दौरान ही उसमें धमाका हुआ और पूर्वी तुर्किस्तानी नेताओं की लगभग एक समूची पीढ़ी उस हादसे में खत्म हो गई थी।

इस 'जीत' के बाद, माओ ने बचे हुए नेताओं के साथियों को पहचानने में देर नहीं की। माओ की पीपल्स रिपब्लिक के साथ निष्ठा जताते हुए, बचे हुए नेताओं में से एक सैफुद्दीन अजीजी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का हाथ थाम लिया। इसके बाद उईगर और कजाक जातियों के विरोध का दमन करना कठिन नहीं रहा था। पी.एल.ए. के जनरल वांग झेन जल्दी ही दूसरे 'रिपब्लिक ऑफ ईस्ट तुर्किस्तान' पर काबिज हो गए थे। 'रिपब्लिक' को चीन के 'सिंजियांग उइगर ऑटोनोमस रीजन' (एक्सयूएआर) का नाम दिया गया। कम्युनिस्ट पार्टी से जा मिले सैफुद्दीन अजीजी को 'कजाक ऑटोनोमस प्रिफेक्चर' के पहले कम्युनिस्ट पार्टी के गवर्नर के तौर पर नियुक्त किया गया।

1951 में इतिहास ने खुद को दोहराया जब पड़ोसी तिब्बत पर चीन ने कब्जा कर लिया था। इसके बाद चीन से जा मिले तिब्बती नेता गापो गावांग जिग्मे ने चीन और तिब्बत के बीच '17 सूत्री समझौते' पर हस्ताक्षर किए थे। चीन से तिब्बत की आजादी 1913 से 1951 तक की ही रही।

 

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