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विद्रोह के भय से सरकार अकालियों के समक्ष झुकी
षड्यंत्र पर पर्दा डालने के लिए महापंजाबियों पर अत्याचार ?
अमृतसर। जिस रहस्य को अब तक पंजाब तथा केंद्रीय सरकार दबाने का प्रयास कर रही थी, वह अब प्रकट हो चुका है कि सरकार ने अकालियों के सामने घुटने टेक कर उनकी अनेक अनुचित मांगों को स्वीकार किया है। इस रहस्य का उद्घाटन करने वाला कोई गैरसरकारी आदमी न होकर पंजाब सरकार के उपमंत्री श्री रामकृष्ण हैं। 'वह जो सर पर चढ़ कर बोले।'
श्री रामकृष्ण ने अभी हाल में अमृतसर में कहा कि ''सेना में सिखों का भारी तत्व नियम न है। यदि अकालियों की बात न मानी जाती तो विद्रोह का संकट उत्पन्न हो जाता है।''
कुसमय रहस्य प्रकट हो जाने के कारण सरकार इस तथ्य को प्रतिवादों से दबाने का प्रयास कर रही है। किन्तु इस सत्य की सत्यता इसी बात से प्रकट होती है कि लगभग सभी पत्रों को यह समाचार प्रकाशित हुआ। क्या किसी पत्रकार की मंत्री जी से कोई दुश्मनी थी।
पंजाब के भूतपूर्व शिक्षा मंत्री श्री लाला जगतनारायण ने अपने पत्र में 'कामरेड रामकृष्ण जी से' नामक लेख में भी इस तथ्य को स्वीकार किया है। उन्होंने भाषण का हवाला देते हुए लिखा है। ''एक कांग्रेसी कार्यकर्ता ने, जिसने यह भाषण स्वयं सुना था, मुझे सुनाया तो पहले मैंने उसे ठीक स्वीकार नहीं किया परन्तु जब उस कांग्रेसी भाई ने पूरी तसल्ली से कहा कि मैंने स्वयं सुना है तो मुझे दु:ख हुआ।''
उपर्युक्त कथन सुनने के पश्चात संशय के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। हां सरकार की नीयत के संबंध में आशंका अवश्य होने लगती है। एक ओर राष्ट्रहित विरोधी गठबंधन और दूसरी ओर उसे छिपाए रखने का प्रयास। कामरेड रामकृष्ण के भाषण को सुनकर महापंजाब समिति के 'महापंजाब आन्दोलन' के संबंध में किसी को भ्रम नहीं रह सकता। जनता को यही विश्वास होता जाएगा कि समिति के प्रयासों के कारण सरकार-अकाली दुरभिसंधि के बीच जो बाधा उपस्थित हो रही है, उसी को हटाने के लिए सरकार तथा कांग्रेस पाश्विक शक्ति का प्रयोग महापंजाब समर्थकों के विरुद्ध कर रही है, लोगों के सिर फोड़ रही है, निरपराधों पर लाठी प्रहार एवं अश्रुगैस का प्रयोग कर रही है। अमृतसर, लुधियाना, पठानकोट, जालंधर आदि के कारण इसी खीस के परिचायक हैं। महापंजाब समिति के महामंत्री श्री कृष्णलाल की गिरफ्तारी (यद्यपि अब मुक्त किए जा चुके है) भी इसी का प्रतीक है। किन्तु आम जनता का विश्वास है कि प्रबल जनमत के आगे सरकार-अकाली गठबंधन सफल नहीं हो सकेगा।
महालेखा-निरीक्षक की रिपोर्ट के बोलते आंकड़ें
भारत सरकार के हिसाब-किताब में भारी गड़बड़ी
विदेश स्थित दूतावासों में गोलमाल
लाखों रुपया व्यक्तिगत कार्यों में खर्च किया गयाएक-एक अभ्यागत के सम्मान में तीन-तीन बार स्वागत समारोह
नई दिल्ली। ''सरकारी हिसाब-किताब में रूपए-पैसे से संबंधित अनेक अनियमितताएं हैं। इन अनियमिततताओं में अनेक प्रकार के नुकसान, ऊलजलूल खर्च, इमारतों का अनावश्यक पट्टा, सरकारी कोप का बिना किफायत के इस्तेमाल, हानि-लाभ का बिना विचार किए हुए खरीद, सरकारी रुपए का व्यक्तिगत कार्यों में प्रयोग तथा विनिमय संबंधी सुविधाओं का दुरुपयोग आदि सम्मिलित हैं।'' ये शब्द भारत के महालेखा-निरीक्षक ने भारत सरकार को विभिन्न मंत्रालयों के यंत्रों को पुनर्गठित करने की सलाह देते हुए कहे हैं।
महालेखा-निरीक्षक ने सलाह दी है कि समय-समय पर आगन्तुकों का सरकारी स्तर पर जो अभिनंदन किया जाता है, उसके नियमों में सुधार किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि कभी यहां तक हुआ है कि दो बार, इतना ही नहीं दो तीन बार तक एक ही व्यक्ति का अभिनंदन किया गया है, जिसके कारण सरकार को नुकसान उठाना पड़ा है।
उदाहरण प्रस्तुत करते हुए महालेखा निरीक्षक ने कहा है कि एक महिला नेत्री को सरकार स्तर पर पार्टी दी गई, जिसमें सरकारी पैसा दिया गया, जिसमें सरकारी पैसा ही खर्च हुआ। इस प्रकार दो बार पार्टियां दिए जाने में 2000 रुपया व्यय हुआ। ध्यान देने की बात यह है कि पार्टी देने से पूर्व अर्थ विभाग को बताया गया था 600 रुपए देने से अधिक खर्च नहीं होगा।
इसी प्रकार विदेशी छात्रों के एक दल का स्वागत एक बार उपसचिव द्वारा, एक बार संयुक्त सचिव द्वारा किया गया। रिपोर्ट में एक संयुक्त सचिव द्वारा अपने विदेश गमन के पूर्व सायंकाल विदाई के उपलक्ष्य में दी गई पार्टी के औचित्य के संबंध में भी प्रश्न उठाया गया है, जिसमें सरकारी उदारता-कोष का 1,625 रुपया खर्च किया गया।
राजनीति प्रधान अर्थव्यवस्था एवं द्रव्य-आस्तिकता
दीनदयाल जी भारत अन्य देशों में किए जा रहे आर्थिक नियोजन की दो अन्य त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाने वाले प्रवर्तकों में से एक थे। उन्होंने कहा है कि हमारी योजनाएं पांच वर्षों में होने वाले चुनाव के साथ जोड़ दी गई हैं, प्रत्येक पंचवर्षीय योजना सत्तारूढ़ दल के लिए लगभग उसके चुनाव-घोषणा पत्र का काम करती है। राजनीतिप्रधान अर्थव्यवस्था में चुनाव घोषणापत्र बिना किसी लागत के सबके लिए सब प्रकार के आश्वासन देने वाला होता है। बिना लागत के लाभ और बिना कर्तव्यों के अधिकार, राजनीतिप्रधान अर्थव्यवस्था की दो पहचानें होती हैं। इसीलिए, ऐसी अर्थव्यवस्था शायद ही कभी तर्कसंगत एवं व्यावहारिक हो पाती है। पं. दीनदयाल जी कहा करते थे-''दूरगामी नियोजन-प्रक्रिया में हमारे योजनाकारों को सुस्पष्ट अराजनीतिक आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक एवं विशुद्ध तकनीकी भूमिका लेनी चाहिए।''
—पं. दीनदयाल उपाध्याय (पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन खण्ड-4, पृष्ठ संख्या-105)
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