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असम में मतदान से ठीक पहले गुवाहाटी विवि. के पूर्व प्रोफेसर हिरेन गोहेन के नेतृत्व वाले बुद्धिजीवियों के समूह द्वारा भाजपा को वोट न देने की अपील से एक बार फिर सेकुलर बौद्धिकों की कलई खुल गई है
अनुभवी राजनेता अक्सर चुनाव के समय खबर बनने और बनाने के लिए मशक्कत करते दिखाई देते हैं, लेकिन हाल ही में असमिया बुद्धिजीवियों का एक ऐसा समूह सामने आया जिसने चुनाव से ठीक पहले एक अलग ही राग अलाप समाचार बनने की कोशिश की। इस समूह में लगभग 40 बुद्धिजीवी शामिल थे। इसमें अलग-अलग क्षेत्रों (शिक्षाविद, पत्रकार, लेखक, सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता आदि) ने असम की जनता से अपील की कि वे किसी एक विशेष राजनीतिक दल को अपना वोट न दें, हालांकि वैकल्पिक मीडिया में इसका विपरीत असर दिखा। जानेमाने लेखक और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हिरेन गोहेन के नेतृत्व में 2 अप्रैल, 2016 को गुवाहाटी में इस समूह ने एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया। इसमें उन्होंने भाजपा को एक फासीवादी और साम्प्रदायिक पार्टी बताकर लोगों को भगवा पार्टी के खिलाफ 4 से 11 अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव में वोट न देने की अपील की, जिसकी मतगणना आगामी 19 मई को होनी है।
भाजपा विरोधी अभियान चलाने वालों में प्रतिष्ठिति कवि नलिनीधर भट्टाचार्य, नील मोनी फूकन, स्तंभकार निरुपमा बरगोहेन, पूर्व कॉलेज प्रधानाचार्य उदयादित्य भराली, दिनेश वैश्य,सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता सीतानाथ लाहकर, संजय बोरबोरा आदि ने 'जनता का सबसे पहला और बड़ा दुश्मन' बताकर भाजपा को रोकने के लिए दिसपुर में सभी से आग्रह किया। गुवाहाटी से प्रसारित होने वाले स्थानीय समाचार चैनलों में जब यह खबर प्रसारित हुई तो उसके बाद सोशल मीडिया में इन बुद्धिजीवियों के अभियान पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रियाएं दी। भाजपा के तेजतर्रार नेता हिंमता बिश्व सरमा ने इस समूह के खिलाफ तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि वामपंथी बुद्धिजीवियों ने (जबकि यह वास्तव में बुद्धिजीवी नहीं हैं) राष्ट्रवादी पार्टी के खिलाफ मतदाताआंे को भ्रमित करने के काफी प्रयास किये हैं, लेकिन असम के मतदाता उनके बहकावे में कभी नहीं आने वाले। उन्होंने दावा किया कि दो वर्ष पहले भी इसी तरह इन कथित बुद्धिजीवियों ने केन्द्र की राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ ऐसा ही अभियान चलाया था। इस मामले पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र नाथ चक्रवर्ती ने कहा कि बुद्धिजीवियों की यह अपील पूरी तरह से प्रायोजित और 'पेड' है। वहीं सरस्वती सम्मान प्राप्त असमिया लेखक लक्ष्मीनंदन बोरा और पूर्व नौकरशाह रोहिणी बरुआ ने इस पर तीखा प्रहार किया उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवियों का एक वर्ग अनावश्यक रूप से राज्य के मतदाताओं को अपना फरमान देने की कोशिश कर रहा है। इसी बीच असम की स्वदेशी आदिवासी साहित्य सभा ने में गोहेन और उनके समूह के खिलाफ लोगों को जागरूक करती हुई अपील जारी की। इसमें कहा गया था कि चुनाव की पूर्वसंध्या पर गोहेन द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन एक प्रहसन के सिवाय कुछ नहीं है। लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपने विवेक से मतदान करने की बात है, फिर भी ये लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट न देने की अपील कर रहे हैं। गुवाहाटी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति निर्मल कुमार चौधरी एवं असम के पूर्व पुलिस प्रमुख निशिनाथ चक्रवर्ती ने इस अपील की तीखी आलोचना की। चक्रवर्ती और चौधरी ने एक बयान जारी किया जिसमें कई और लोगों के हस्ताक्षर हैं। इसमें कहा गया है,''एक विशेष दल को वोट देने की अपील करना लोकतंत्र के लिए खतरा है। किसी को भी इस तरीके का फतवा जारी करने का अधिकार नहीं है।'' उन्होंने असम के मतदाताओं से आग्रह किया कि वह बिना किसी से डरे अपना जनादेश दें। ऐसी ही एक अपील गैर-राजनीतिक संगठन लोका जागरण मंच ने भी की जिसमें सभी से वोट डालने का आग्रह किया गया था। विभिन्न संगठनों की अपीलों का नतीजा यह हुआ कि दोनों चरणों में 83 फीसद से अधिक मतदान दर्ज किया गया। —न.जे.ठाकुरिया
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