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अपनी बात-दर्द, देश के अपमान का…

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Apr 11, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Apr 2016 11:18:34

बात दिल्ली से दूर….सरहद के पास के उस इलाके की है जहां 90 के बाद पिछले दो साल से अमन नाम की चीज अपने मायने पर खरी उतरने की कोशिश करती दिखने लगी है। श्रीनगर। जहां 'नारा-ए-तकबीर'…, 'हम क्या चाहते-आजादी', 'पाकिस्तान जिंदाबाद' वगैरह-वगैरह के नारों ने घाटी गुंजा रखी थी और तब की केन्द्र सरकार के रणनीतिकार नार्थ ब्लॉक के वातानुकूलित कमरों से टेलीविजन स्क्रीन पर वहां की दीवारों पर लिखे 'गो बैक इंडिया' के नारे देख-पढ़कर सैनिकों को 'नरमाई' से पेश आने की ताकीदें करते रहे थे।….लेकिन माहौल अब वैसा नहीं रहा, जैसा तब था। अंतर आ रहा है, आहिस्ता…आहिस्ता।
शायद इसीलिए एनआईटी, श्रीनगर में 31 मार्च को वेस्टइंडीज के हाथों भारत के टी-20 क्रिकेट मैच हार जाने के बाद जो कुछ घटा, वह दर्दनाक तो था, लेकिन अनदेखा रह जाएगा, ऐसी उम्मीद नहीं। तब हॉस्टलों में रह रहे कश्मीर के स्थानीय छात्रों ने भारतीय टीम की हार पर न केवल जश्न मनाया बल्कि वहां रहकर पढ़ रहे शेष भारत के विभिन्न छात्रों को बुरा-भला भी कहा, उनसे हाथापाई की, धमकियां दीं। बताते हैं, वहां परीक्षाओं की तारीखों को लेकर छात्रों की प्रशासन के साथ बहस भी छिड़ी हुई थी, छात्र आंदोलन की बात कर रहे थे और परिसर के बाहर मीडिया से रू-ब-रू होकर अपनी बात सब तक पहंुचाना चाहते थे। इसमें स्थानीय छात्रों का उनसे दुश्मनों का-सा सलूक और वहां उनसे 'हिन्दुस्थानी होने के नाते' घाटी निवासी कर्मचारियों और शिक्षकों की बदसलूकी का मुद्दा भी शामिल था। लेकिन राज्य पुलिस उन्हें बाहर न जाने देने पर अड़ी थी। लाठीचार्ज हुआ। कई छात्र घायल हुए। कुछ को काफी चोटें आईं। माहौल तनावमय होना ही था। झड़प के कई दृश्य तो भीतर तक झकझोर गए।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय फौरन हरकत में आया। दो सदस्यीय टीम छात्रों से बात करने और स्थिति का जायजा लेने रवाना की गई। वहां टीम और छात्राओं के बीच हुई बातचीत में हैरान करने वाले तथ्य सामने आए। छात्राओं का यह कहना चिंताजनक है कि वहां के शिक्षक उनसे घाटी से बाहर का होने पर दुर्व्यवहार करते हैं, उनको परीक्षा में असफल करने की धमकियां आम बात हैं, हर चीज में भेदभाव किया जाता है। घाटी के छात्र उनसे हिकारत भरा बर्ताव करते हैं। उनको धमकाते हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह बताई गई कि स्थानीय छात्र ही नहीं, कई शिक्षक भी खुलेआम जब तब 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाते हैं। केन्द्रीय उच्च शिक्षा संस्थान में अगर ऐसा होता है तो इसमें दखल दिया जाना चाहिए।
यूं तो स्थिति बिगड़ने की खबर लगते ही केन्द्र ने प्रदेश सरकार से बात की थी, गृह मंत्रालय ने सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया और जरूरी आदेश दिए थे। उधर प्रदेश की महबूबा सरकार के मंत्री ने छात्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने की बात की थी। राज्य के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने तमाम मसलों पर बातचीत कर उनको सुलझाने का आश्वासन दिया, साथ ही दोषी पाए जाने वाले पुलिसकर्मियों पर उचित कार्रवाई का भरोसा भी दिया।
ध्यान दें, कुछ दिन पहले जेएनयू में घटी घटनाओं पर। वहां कम्युनिस्ट सोच पर पला-पुसा छात्रों का एक जत्था सरेआम 'हिन्दुस्थान मुर्दाबाद' के नारे गुंजा रहा था, देशद्रोहियों के कसीदे काढ़ रहा था, देश की अस्मिता को ललकार रहा था। उसके साथ वहां के शिक्षकों का एक दल भी उन्हीं की पैरवी में आ जुटा था। कन्हैया, अनिर्बन और उमर खालिद देश की राजधानी में स्थित जेएनयू के बीचोंबीच खड़े होकर हमारे लोकतंत्र को चुनौती दे रहे थे। वे, वहां श्रीनगर के एनआईटी में देश के लिए अपशब्द बोलने वाले छात्रों से किसी तरह अलग नहीं हैं। फर्क है तो बस इतना कि कन्हैया को दिल्ली में देशद्रोही अफजल का हिमायती मीडिया और येचुरी, कारत, राजा, केजरीवाल, राहुल…. सरीखे सेकुलर नेताओं से हौसला मिलता है, तो घाटी वालों के लिए वहां गिलानी, मीरवायज जैसे लोग मौजूद हैं। श्रीनगर की घटना के बाद गिलानी का किया ट्वीट देखें, मामले के तार कहां से जुड़े हो सकते हैं, उसका कुछ अंदाजा तो लग ही सकता है।
ऐसी घटनाएं जेएनयू में हों या एनआईटी, श्रीनगर में, देशवासियों को आहत तो करती ही हैं। अपने चुकाए टैक्स के पैसे से स्कॉलरशिप लेकर 'पढ़' रहे ऐसे 'छात्रों' के मुंह से देश के लिए इस तरह के शब्दों को सुनकर लोगों को क्षोभ होना स्वाभाविक है। एनआईटी, श्रीनगर में पढ़ रहे घाटी से बाहर के छात्र वहां के माहौल से इतने भयभीत हो चले हैं कि उन्होंने संस्थान को ही वहां से स्थानांतरित करने की मांग कर डाली। यह संकेत है, इस बात का कि किस तरह वहां साल-दर-साल स्थितियां बिगड़ने दी जाती रही हैं। राज्य में नए प्रशासन तंत्र और अनुकूल होते माहौल में उम्मीद है कि अतीत के किस्से अब नहीं दोहराए जाएंगे।  

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