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चीन ने अपने रक्षा बजट में भारत की तुलना में तिगुनी बढ़ोत्तरी करके खतरे का संकेत दिया है
डॉ. सतीश कुमार
वर्ष 2010 के बाद यह पहला मौका है जब चीन के रक्षा बजट (2016) ने दहाई का आंकड़ा नहीं छुआ। इस बार रक्षा बजट कुल बजट का 7.6 से 8 प्रतिशत रहने वाला है। ऐसा चीनी अर्थव्यवस्था में दशकभर से जारी सुस्ती और 6.9 प्रतिशत की विकास दर के कारण हुआ है।
इस अनुमानित वृद्धि की घोषणा करते हुए नेशनल पीपल्स कांग्रेस की प्रवक्ता फू यिंग ने संवाददाताओं से कहा कि चीन को अपना रक्षा बजट तैयार करते हुए देश की रक्षा जरूरतों, आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिति पर ध्यान देने की जरूरत है। पिछले वर्ष चीन का रक्षा बजट 144 बिलियन डॉलर था जिसमें इस बार 7-8 प्रतिशत की वृद्धि है। इस वर्ष प्रस्तावित रक्षा खर्च 154-155 बिलियन डॉलर है जो अमरीका के रक्षा बजट का लगभग एक तिहाई है।
चीन की विकास दर के गिरने और खर्च पर सवाल उठाए जाने के बावजूद पिछले वर्ष रक्षा बजट में 10.1 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। पिछले वर्ष पीपल्स लिबरेशन आर्मी के आधिकारिक बजट में 10 प्रतिशत या कहिए 136 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई थी। 2014 के दौरान इसमें 12.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 2005 से 2014 के चीन का सैन्य बजट प्रतिवर्ष औसतन 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ता रहा था। दरअसल चीन का आधिकारिक रक्षा बजट कह देने भर से पूरी तस्वीर साफ नहीं होती। रक्षा क्षेत्र के कई ऐसे पहलू हैं जो इस बजट में शामिल नहीं हैं। चीन के प्रधानमंत्री ने इस बजट को क्षेत्र में शांति स्थापित करने के समझदारी भरे कदम के तौर पर प्रस्तुत किया लेकिन वास्तव में ऐसा दिखता नहीं है। पेंटागन के अलावा कई वैश्विक सैन्य और हथियार प्रतिष्ठानों का अनुमान है कि किसी भी स्थिति में वास्तविक सैन्य खर्च, बताई गई राशि से 40 से 50 प्रतिशत अधिक बैठेंगे क्योंकि आधिकारिक बजट में हथियारों के आयात, अनुसंधान व विकास और अन्य बढ़ने वाले खर्च शामिल नहीं है।
चीन के तर्क
1997 में चीन का कुल सैन्य खर्च केवल 10 बिलियन डॉलर था जो ताइवान के बराबर और जापान व दक्षिण कोरिया से काफी कम था। लेकिन 2000 के बाद से यह निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। चीन का बढ़ता भारी भरकम रक्षा बजट एक अलग ही कहानी बयां करता है। इस वर्ष भी कई चीनी रक्षा विशेषज्ञ अपेक्षा कर रहे थे कि कुल रक्षा बजट में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी और वही पुराना तर्क दोहराया जाएगा।
चीन कई मोचार्ें पर आलोचना झेल रहा है। दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी एशिया सागर में कई विवादास्पद क्षेत्र है। इस क्षेत्र में आने वाले ज्यादातर देशों ने अपने रक्षा बजट में इस वर्ष वृद्धि की है। जापान, वियतनाम और कई एशियाई देश अपने-अपने रक्षा बजट बढ़ा रहे हैं। रूस ने भी यही किया है। अमेरिका का रक्षा बजट चीन से कई गुना ज्यादा है।
पिछले कुछ वर्षों से चीन कई देशों को हथियारों की आपूर्ति करने वाले देश के रूप में स्थापित हुआ है। शीत युद्ध के दौर में महाशक्तियों के लिए विश्व के समस्याग्रस्त देशों को हथियारों की आपूर्ति कमाई का एक जरिया था हैं चीन ने यही राह अपनाई और पांव फैलाते हुए सहारा-अफ्रीका से लेकर दक्षिण एशिया तक जा पहुंचा। इन सबके लिए भी रक्षा क्षेत्र में अतिरिक्त निवेश की जरूरत है।
अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व की एक घोषित आर्थिक शक्ति बनने के बावजूद चीन सैन्य शक्ति के मामले में अमेरिका से काफी पीछे है। हथियारों की गुणवत्ता और सैन्य क्षमता के विकास के मामले में अमेरिका से बराबरी के लिए चीन को अतिरिक्त राशि की जरूरत पड़ेगी। यह लंबे समय तक लगातार चलने वाली एक प्रक्रिया है। यही कारण है कि चीन ने लगातार अपना रक्षा बजट दहाई अंक में बनाए रखा।
दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर सीमा में लगातार आक्रामक दावेदारी करने वाले चीन के लिए यहां एक बड़ी, विशेष सैन्य टुकड़ी को रखना उसकी प्राथमिकता है।
चीन के नए अभियान, जिनमें संयुक्त राष्ट्र संघ शांति सेना में भूमिका भी शामिल है, से चीन की सैन्य ताकत और बढ़ेगी। नये कानून में आतंकवादी विरोधी अभियानों पर मुहर के बाद यह दायरा विदेशी जमीनों तक बढ़ सकता है। इस सब कारणों से ही चीन के एशिया प्रशांत महासागरीय पड़ोसी देश भी अपने सैन्य खचार्ें में बढ़ोतरी कर रहे हैं। जापान ने 2016 के अपने रक्षा बजट में पहले ही रिकार्ड उच्च वृद्धि की घोषणा कर दी है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी के लिए चीन का रक्षा बजट अन्य बड़े देशों जैसे- फ्रांस, जापान और ब्रिटेन से लगभग तिगुना है और एशिया में तेजी से बढ़ते उसके करीबी देश, भारत के मुकाबले यह चार गुना ज्यादा है।
बीजिंग पर जनता का यह दबाव भी है कि वह दक्षिण एशिया सागर में अमेरिका की अप्रत्यक्ष चेतावनी का मुकाबला कर सकता हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने समुद्री क्षेत्र में 'आवाजाही की स्वतंत्रता' के नाम पर उन द्वीपों तक अभियान शुरू कर दिये हैं जहां चीन विवादास्पद निर्माण कार्य कर रहा था और हथियारों जमा रहा है।
भारत पर प्रभाव
भारत के साथ लगभग 4,057 किलोमीटर सीमा के विवाद के चलते वास्तविक नियंत्रण रेखा पूरी तरह परिभाषित नहीं है। वास्तविक नियंत्रण रेखा तीन क्षेत्रों में बंटी है—पश्चिमी क्षेत्र में लद्दाख, मध्य क्षेत्र की सीमा उत्तराखंड और पूर्वी क्षेत्र में सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश हैं। अक्साई चीन मुख्य विवादित क्षेत्र है जिस पर चीन ने अवैध कब्जा किया हुआ है। ऐसा ही दूसरा क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश जो भारत का अभिन्न अंग है। लेकिन चीन दावा भारत करता है कि यह तिब्बत का हिस्सा है। पिछले कई दशकों से चीन का रक्षा बजट लगातार बढ़ता रहा है जो अब भारत के रक्षा बजट से करीब चार गुना अधिक हुआ है। चीन, पाकिस्तान और अन्य दक्षिण एशियाई देशों को हथियार निर्यात कर रहा है। तिब्बत के पठार में इसके द्वारा स्थापित न्यूक्लियर मिसाइल से सारी दुनिया परिचित है। हिमालयी क्षेत्रों में चीन द्वारा बनाई सड़कें उसकी सेना को भारतीय सुरक्षा क्षेत्रों तक पहुंच देती हैं। इस तरह चीन का रक्षा बजट भारत के हितों से जुड़ा है। वर्तमान राजकोषीय वर्ष में भारत ने रक्षा क्षेत्र के लिए बजट में 2.2 खरब (35 अरब डॉलर) निर्धारित किया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली का जोर इस बात पर था विदेशी सैन्य उत्पादों पर निर्भरता कम की जाए और भारतीय रक्षा उद्योग को और सशक्त किया जाए।
मोदी सरकार ने अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में सैन्य शक्ति के आधुनिकीकरण को रखा है। लेकिन साथ ही संयुक्त रक्षा उत्पादन के ठेकों में विदेशी हिस्सेदारी को 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दिया गया है।
सुरक्षा तैयारियों के हिलाज से भारत के सामने अपनी वित्तीय सीमाएं हैं। कुल आवंटित रक्षा बजट का तीन चौथाई हिस्सा तो विश्व की तीसरी बड़ी सैन्य शक्ति के रखरखाव पर ही खर्च होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि इस वर्ष केवल कुछ नये हथियारों की ही खरीद हो सकेगी। चीन हथियारों के आयात को अपने सैन्य खर्चों में नहीं जोड़ता। चीन का अपना मजबूत स्वदेशी रक्षा उद्योग है जो भारत के पास नहीं है। कई साल पहले से चीन ने भारत की सीमाओं पर बड़ा सैन्य ढांचा खड़ा किया हुआ है, जबकि भारत केवल इसके मुकाबले की योजनाएं तैयार करता रहा है। जिस योजना को अब भी सरकार की सहमति की आवश्यकता है उसके दो पहलू हैं— चीन की सीमा पर तैनाती के लिए एक विशेष पर्वतीय दस्ते का गठन। मौजूदा दर से हिसाब लगाएं तो इसकी लागत लगभग 11.5 अरब डॉलर बैठेगी। इसी प्रकार तीन ब्रिगेड का गठन जिसकी लागत करीब 3.3 अरब डॉलर बैठेगी। भारत सरकार इन प्रस्तावों का अनुमोदन कर देती लेकिन योजना के रास्ते में बजट का रोड़ा है।
चीन का रक्षा बजट किसी भी तरह पारदर्शी नहीं कहा जा सकता। अपने रक्षा बजट में पारदर्शिता रखे। चीन के प्रकाशित रक्षा बजट में बड़ी मात्रा में खर्चों को दिखाया ही नहीं गया। इसमें सेनाओं का रणनीतिक खर्च, सेना से जुड़े अनुसंधान और विकास तथा चीन के अर्धसैनिक बलों खर्च भी इसमें शामिल नहीं हैं। भारत की सुरक्षा के लिहाज से चीन का रक्षा बजट कभी भी अनुकूल नहीं हो सकता। चीन हमारी सीमाओं के लिए हमेशा से एक प्रच्छन्न संकट बना रहा है और 'सुपरपावर' टैग ने भारत की समस्याओं को और बढ़ा दिया है।
(लेखक झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, रांची में प्रोफेसर हैं)
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