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'अपने वतन से मुहब्बत बेहद जरूरी है'

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Mar 28, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Mar 2016 12:33:24

पाकिस्तान के पंजाब विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर और लेखक डॉ. ताहिर-अल-कादिरी हाल ही में सूफी कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए नई दिल्ली आए थे। आर्गेनाइजर के प्रमोद कुमार को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि मुस्लिम राष्ट्रों सहित पूरी दुनिया को आतंकवाद को मिलकर समाप्त कर देना चाहिए। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश:

  दक्षिण एशिया क्षेत्र में कट्टरवाद के उभरने के पीछे प्रमुख पहलू क्या हैं?
कई पहलू हैं। एक है मजहबी पहलू जो उस मजहबी सोच से जुड़ा हुआ है जो कुछ शिक्षा, विचारों और नामों की उग्र और कट्टर व्याख्या से उपजती है। इसमें सामाजिक-आर्थिक पहलू भी हैं, जैसे, अज्ञानता, बेरोजगारी, कानून की गैर माौैजूदगी, मानवाधिकारों की कमी आदि। राजनीतिक-आर्थिक पहलू भी अपना असर दिखाते हैं। कुछ लोग हैं जो कुछ इलाकों या देशों को अस्थिर करने के लिए भारी पैसा खर्च करते हैं।  
  क्या पाकिस्तान के संदर्भ में भी ऐसा है?
कुछ युवा अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति को लेकर भ्रम में हैं। उनको लगता है कि उन्हें न्याय और उचित अधिकार नहीं मिल रहे हैं। चूंकि वे पढ़े-लिखे नहींं हैं इसलिए उनको आतंकवादी अपने काबू में ले लेते हैं, वे आसानी से राह भटक जाते हैं। वे राजनीतिक परिस्थिति की वजह से बने हालात और इस्लाम अथवा कुरान के निर्देशों में फर्क नहीं कर पाते। इस्लाम में  किसी किन्तु-परन्तु से परे, हर तरह के आतंकवाद पर पाबंदी है लेकिन इस्लाम को मानने वाले ज्यादातर नौजवान न तो कुरान पढ़ते हैं, न ही कोई और इस्लामी किताब।
आज सबसे बड़ा खतरा आईएसआईएस से है। पैगंबर साहब ने करीब 1500 वर्ष पहले इस तरह की शैतानी ताकतों के प्रति होशियार किया था। उन्होंने कहा था ''पूरब की दिशा से मुसीबत आएगी।'' उन्होंने यह मदीना में खड़े होकर कहा था और हम सब जानते हैं मदीना के पूरब में इराक है। पैगंबर ने कहा था कि उन शैतानी ताकतों को खत्म करना एक पवित्र काम होगा। पैगंबर ने आगाह किया था कि उनकी कोई जड़ भी न छोड़ी जाए नहीं तो वे फिर से बढ़ने लग जाएंगी। चाहे वह आईएसआईएस हो, अलकायदा, तालिबान या फिर कोई और, ये ताकतें अलग-अलग नामों से उभरती रहती हैं। उन्हें पूरी तरह खत्म  करना होगा।
लेकिन आतंकवाद को तो कश्मीर में अपना एक खास हित साधने के लिए राज्य नीति के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। क्या आप इसकी भर्त्सना करते हैं?
दुनिया के किसी भी हिस्से में आतंकवाद की कोई भी हरकत भर्त्सना-योग्य है। भारत को जो कहना या सुनना है, उसका उसे अधिकार है। इसी तरह पाकिस्तान का भी अपना नजरिया है। मैं न तो इस पाले के आरोपों का समर्थन करता हूं, न उस पाले के। मैं बातचीत का समर्थक हूं।
 उन भटके युवाओं के दिमाग से जहर निकालने के लिए क्या किया जाना चाहिए जो आईएसआईएस से जुड़ने के लिए बेताब हैं?
 मुस्लिम हों या गैर मुस्लिम, सेकुलर हों अथवा मजहबी, सभी देशों को मिलकर आईएसआईएस को जड़ सहित खत्म करने के लिए लड़ना चाहिए।
 सही राह पर लाने की प्रक्रिया में भारत से आप किस मदद की अपेक्षा रखते हैं?
 भारत एक बहुसांस्कृतिक समाज, बहु-आस्थावान और बहुपंथिक पंथनिरपेक्ष देश है। इसे और ज्यादा शांतिपूर्ण सहजीवन पर चलने की कोशिश करनी चाहिए, जिसमें सभी पंथों, समाजों के लिए आदर हो। दक्षिण एशिया क्षेत्र में पाकिस्तान और दूसरे किसी भी देश के लिए भी यही कदम जरूरी है।  
 इस प्रक्रिया में एक इस्लामी विद्वान के नाते आप अपनी क्या भूमिका देखते हैं?
मैं वही करता आ रहा हूं जो मैं कर सकता हूं। हमने बहुत से शिविर, गोष्ठियां, सम्मेलन और कार्यशालाएं की हैं। हम इस उद्देश्य को पाने में लगे सभी लोगों को 'शांतिदूत' या 'शांतिनेता' की उपाधि देते हैं। इस काम  में हजारों नौजवान लगे हुए हैं।
ल्ल    लेकिन कट्टरपंथी भी तो जिहाद के पक्ष में उसी हदीस और कुरान की आयतों को उद्धृत करते हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?
वे पवित्र ग्रंथों  को संदर्भ से बाहर उद्धृत करते हैं। कुरान की आयतों को भी गलत समझा गया है। लोग आयत का एक हिस्सा लेकर उसे संदर्भ से अलग उद्धृत करते हैं।
ल्ल    मुसलमान बहुत बड़ी तादाद में कट्टरपंथियों के प्रति नरम दिखते हैं?
क्योंकि मैं कट्टरपंथियों से मजहबी तौर पर, वैचारिक तौर पर, दर्शन और अकादमिक तौर पर लड़ रहा हूं, इसलिए मुझे वह पहला आदमी होना चाहिए जो इस वजह से खराब महसूस कर रहा हो कि लोग आगे नहीं आ रहे हैंै। लेकिन मैं निराश नहीं हूं। मैंने जो आप से कहा है वही पाकिस्तान, अमेरिका, मिस्र और अरब देशों में बोलता हूं।  
 कहा जाता है कि आप पाकिस्तानी सेना के हाथों के खिलौने हैं। आपका क्या कहना है?
मैं इस आरोप से इनकार करता हूं। मेरे संघर्ष और पाकिस्तानी सेना के बीच कोई समझौता नहीं है।  
 भारत में बहस चल रही है कि 'भारत माता की जय' बोला जाए या न बोला जाए। आपका क्या विचार है?
मेरे हिसाब से 'माता' के मायने हैं मां। हर कोई अपने वतन यानी मातृभूमि से मुहब्बत करता है। इसमें कोई नुक्सान नहीं है। हर एक के लिए अपने वतन से मुहब्बत करना बेहद जरूरी है। 

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