सप्ताह का साक्षात्कार - 'देश- विरोधी बातें सुनकर कोई चुप कैसे रह सकता है?'
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सप्ताह का साक्षात्कार – 'देश- विरोधी बातें सुनकर कोई चुप कैसे रह सकता है?'

by
Mar 28, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Mar 2016 16:49:46

 

प्रसिद्ध अभिनेता अनुपम खेर इन दिनों देश से जुड़े मुद्दों पर अपनी बेबाक राय के लिए चर्चा में हैं। पिछले वर्ष कथित असहिष्णुता के शोर ने जब जोर पकड़ा था तब उसके खिलाफ कमान संभालते हुए उन्होंने असहिष्णुता की माला जपने वाले सेकुलर बुद्धिजीवियों और उनके समर्थक वोट बैंक के लालची नेताओं को खरी-खरी सुनाई थी। इसके बाद उन्होंने एक वीडियो के जरिए विस्थापित कश्मीरी पंडितों का दर्द दुनिया के सामने रखा। पिछले दिनों कोलकाता में आनंद बाजार पत्रिका के एक कार्यक्रम में उन्होंने जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वालों के पक्ष में बोलने वालों की बोलती अपने तर्कोंे से बंद कर दी थी। कुछ लोग उन पर आरोप लगाते हैं कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ इसलिए करते हैं कि उनकी सांसद पत्नी किरण ख्ेार को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल जाए, लेकिन वे इन आरोपों को सिरे से नकारते हैं। उनका कहना है कि मेरी देशहित की बातों में यदि लोगों को 'मोदी-भक्ति' दिख रही हो तो उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उनका अभियान चलता रहेगा। यहां प्रस्तुत हैं पाञ्चजन्य के अरुण कुमार सिंह द्वारा सामयिक मुद्दों पर उनसे की गई बातचीत के मुख्य अंश-   
फिल्मी सितारे यूं तो चर्चा में रहते ही हैं, लेकिन आप तो आजकल कुछ ज्यादा ही चर्चा में हैं। क्या कहना चाहेंगे?
इसमें गलत क्या है? देश के लिए कुछ करना या बोलना चर्चा में आ जाता है तो आए, उसमें क्या गलत है? कुछ लोग देश के बारे में कुछ भी उलटा-सीधा बोलें और हम चुप रहें, यह नहीं हो सकता। जो भी देश से प्यार करता है वह देश-विरोधी बातों को सुनकर चुप कैसे रह सकता है?
हाल ही में आप जेएनयू गए। वहां अभी जो माहौल है, उसको देखते हुए कुछ लोगों का कहना है कि आपको वहां जाने की क्या जरूरत थी?
जेएनयू में मैं अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए गया था, जो काफी समय से बन रही थी। वहां मैंने हजारों छात्रों को संबोधित किया और उन लोगों ने बड़े ध्यान से मेरी बात भी सुनी। इसका मतलब है कि मैंने वहां जो कहा, उसे छात्रों ने स्वीकारा। फिर कोई कुछ भी कहे, उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। जेएनयू का मामला बहुत गंभीर है। वहां लोग देश तोड़ने की बात कर रहे हैं जिसका कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं। यह नहीं चलेगा।
कोलकाता में 'टेलीग्राफ' के कार्यक्रम में आपने किसी को भी नहीं बख्शा। क्या आप भाषण की तैयारी पहले से करके गए थे?
नहीं, ऐसे कार्यक्रमों के लिए पहले से भाषण की तैयारी हो भी नहीं सकती और मेरी यह आदत भी नहीं है। मैं कभी लिखित भाषण नहीं देता। वहां न्यायाधीश अशोक गांगुली, कांगेे्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला वगैरह ने जो बातें कही थीं, उनसे मैं सहमत नहीं था। इसलिए मैंने उनकी बातों को तर्क के साथ काटने की कोशिश की। वहां मौजूद लोगों ने भी मेरा हौसला बढ़ाया। मेरे भाषण की जिस तरह चर्चा चली उससे लगता है कि देश के ज्यादातर लोग मेरे विचारों से सहमत हैं। न्यायाधीश गांगुली और सुरजेवाला जी के विचारों को लोेगों ने नकार दिया। कोई भी देशभक्त ऐसे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करेगा, जो देश  को तोड़ने वालों के पक्ष में बोलेगा या उनके साथ खड़ा होगा। 'टेलीग्राफ' के कार्यक्रम से भी यही साबित होता है।
 जब भी केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला होता है, आप उनके पक्ष में खड़े दिखते हैं। लोग कहते हैं कि आप 'मोदी-भक्त' हैं। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
मैं इस देश का नागरिक हूं। एक जागरूक नागरिक होने के नाते मुझे  देशहित में जो अच्छा लगता है वही करता हूं, उस पर बोलता हूं। मुझे अपनी बात रखने से कोई रोक नहीं सकता। यदि मेरी देशहित की बातों में लोगों को 'मोदी-भक्ति' दिख रही हो तो यह भक्ति निरन्तर चलती रहेगी। चाहे कोई कुछ  भी बोले।
पिछले दिनों आपने कश्मीरी पंडितों पर एक वीडियो बनाया था। उस वीडियो ने वह कमाल कर दिखाया, जो बड़ी लागत से बनी और बड़े-बड़े सितारों से सजी फिल्में भी नहीं कर पाती? उस बारे में कैसा महसूस करते?
उस वीडियो के जरिए मैंने कश्मीरी पंडितों की आवाज को दुनिया भर में पहुंचाने की कोशिश की है। जितना अंदाजा था उससे भी कई गुना ज्यादा वह वीडियो वायरल हुआ। इससे पता चलता है कि देश का आम नागरिक कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्याय के विरुद्ध है। दरअसल, लोगों को पता ही नहीं है कि कश्मीरी पंडित किन हालात में रह रहे हैं। ढाई दशक  से भी ज्यादा
समय से वे विस्थापित जीवन जी रहे हैं। जिन तत्वों और लोगों के कारण कश्मीरी पंडित विस्थापित हुए, अब उनके चेहरों से नकाब उतरनी चाहिए।
आप कभी नेताओं पर कटाक्ष करते हैं, तो कभी फिल्म जगत के चलन से अलग खड़े दिखते हैं। वजह क्या है?
जो देशहित का काम हो, उसे करना और देशहित में बोलना यदि किसी को किसी पर कटाक्ष लगता है या फिर चलन से बाहर की बात लगती हो तो मैं इस पर कुछ भी नहीं बोल सकता। कोई बात कटाक्ष है या चलन से हटकर है, इसको तय करने का अधिकार जनता को है।
आप महेश भट्ट की फिल्म 'सारांश' के नायक थे। आज इस फिल्म के निर्माता और नायक सोच के दो अलग सिरों पर दिखते हैं। क्या कारण है?
देखिए, मुझे फिल्मों में काम देने वाले महेश भट्ट साहब ही हैं। मैं उनका बड़ा सम्मान करता हूं। वे मेरे गुरु हैं। सामान्य शिष्टाचार है कि किसी शिष्य को अपने गुरु के विरुद्ध नहीं बोलना चाहिए। मैं एक अनुशासित शिष्य हूं, इसलिए उनके विरुद्ध कुछ नहीं बोलूंगा। लेकिन यह भी सच है कि उनकी सोच और मेरी सोच में बहुत फर्क है। यह हर कोई जानता और महसूस करता है। इसके बावजूद उनके विरुद्ध मेरा कुछ बोलना शोभा नहीं देगा।
बॉलीवुड में आप जैसे कई कलाकार और निर्माता हैं, जो देशहित की बातों  पर तुरन्त सक्रिय हो जाते हैं। फिर भी लग रहा है आप लोगों की बातों को सेकुलरों की मान्यता नहीं मिल रही है। इसकी वजह क्या है?
सेकुलर और गैर-सेकुलर की बात छेड़ कर कुछ लोग उन लोगों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं, जिनकी बातों पर देश के अधिकांश लोग गौर ही नहीं करते। मुझे इस बात की फिक्र नहीं है कि मेरी बातों को कौन किस रूप में लेता है। मंशा ठीक होनी चाहिए। इसके बाद तो सब कुछ अपने आप ही ठीक हो जाता है। मैं उम्मीद करता हूं कि मेरी बातों को इसी पैमाने पर कसा जाएगा।   
क्या बॉलीवुड में कोई ऐसी पालेबंदी है जिसे दर्शक या इस देश की जनता नहीं जानती?
(बॉलीवुड में) ऐसी किसी पालेबंदी की जानकारी मुझे नहीं है।
पाकिस्तान से आपकी क्या नाराजगी है? पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित कराची साहित्य महोत्सव के लिए आपको वीसा तो दे रहे थे, फिर भी आप वहां नहीं गए।
इससे पहले क्या हुआ था, वह सबको पता है। मेरे साथ जो लोग जा रहे थे, उन्हें वीसा दे दिया गया और सिर्फ मेरा वीसा रोका गया। इसके पीछे की वजहों को देखते हुए मैंने वहां जाना ठीक नहीं समझा।    

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