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बहुत कठिन काम है जातिवाद मिटाना

by
Mar 21, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 21 Mar 2016 11:59:44

 

अ.भा. प्रतिनिधि सभा ने सभी सामाजिक व धार्मिक संगठनों से अपील की कि समरसता की अनुभूति को मजबूत करने के हरसंभव प्रयास किए जाएं

टी.वी. नारायण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में समरसता पर स्वीकार किए प्रस्ताव का मैं ह्रदय से स्वागत करता हूं। एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर यह बात मुझे बहुत संतोष देती है कि संघ ने सभी से समरसता को अपनाने, इसका प्रचार करने और अपने दैनिक जीवन में यह भाव उतारने की बात कही है। अनुसूचित जाति से होने के बावजूद मुझे समाज में शिक्षाविद् और विद्वान के तौर पर मान्यता मिली, हाल में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। लेकिन हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता। कइयों को आज भी जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
जातिवाद को समाप्त करने की जरूरत है और निश्चित ही यह बहुत कठिन काम है। पूर्व में स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस और ज्योतिराव फुले जैसे समाज सुधारकों ने इस बुराई को समाप्त करने के जोरदार प्रयास किए और इस मुद्दे को समाज के सामने ले आए। सामाजिक, धार्मिक सुधार कई राजनीतिक क्रांतियों का आधार रहे हैं। दुर्भाग्य से वर्तमान समय में जाति आधारित प्रदर्शन और आरक्षण राजनीति से प्रेरित हैं। हमें यह बात समझनी होगी कि जाति व्यवस्था की वजह से खड़ी हुई रुकावटें हमें सामूहिक गतिविधियों से रोकती हैं। जाति व्यवस्था वास्तव में हिन्दुओं को एक ऐसा समाज होने से रोकती है जिसका जीवन एकीकृत है और जिसकी अपनी एक चेतना है।
तथ्य यह है कि उपनिवेशवादी अंग्रेज 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाते हुए महात्मा गांधी और आंबेडकर के बीच दरार पैदा करने में सफल रहे। मैं बचपन से ही आर्य समाज और उस 'जात-पात तोड़क मंडल' से जुड़ा रहा जिसकी स्थापना 1922 में लाहौर में हुई थी और जो आर्य समाज से ही निकला जातिवाद विरोधी उग्र गुट था। सदस्यों के तौर पर हम एक ऐसे कार्यक्रम के लिए संकल्पित थे जिन्होंने जात-पात विरोधी प्रचार का बीड़ा उठाया था, साथ ही हम सब बिना किसी भेदभाव मिलकर भोजन करने और अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देते थे। बाबासाहेब आंबेडकर ने भी जाति उन्मूलन के लिए ऐसे ही तरीके सुझाए थे।
मेरे पिता गांव में मोची थे और उच्च शिक्षा में मेरी प्रगति ने ही मुझे शिक्षक बना दिया। इस दौरान मैंने वेद और उपनिषद् पढ़े जिसने मुझे गहरी समझ और अंतर्दृष्टि दी। मैं आपको विश्वास दिला सकता हू कि 'वेद' में 'भेद' की कोई जगह नहीं है।
लोगों के राजनीतिक विस्तार के लिए सबसे पहले उनके मन और आत्मा का मुक्त होना जरूरी है। मुझे दुख है कि मौजूदा समय में भारत में न तो कोई देशव्यापी दलित आंदोलन है और न ही बाबासाहेब जैसा विश्वसनीय नेता। इससे भी दुर्भाग्यजनक यह है कि आंबेडकर के कथित अनुयायी और आंबेडकरवादी भी मुद्दा गरमाए रखने की राजनीति से प्रेरित हैं, अपने स्वार्थ के लिए चाहते हैं कि जातिवाद चलता रहे।
जाति से कोई आर्थिक सक्षमता नहीं बढ़ी, उलटे इसने हिंदू समाज को छिन्न-भिन्न करते हुए हुए समाज का मनोबल ही घटाया है।
मैं हमेशा आशावान रहता हूं। हमें यह बात माननी चाहिए कि अब और तब के जमाने में बहुत फर्क है और सामाजिक आर्थिक परिवर्तन अच्छे के लिए ही हो रहे हैं। कम से कम देश के शहरी क्षेत्रों में पहले की तरह घोर छूआछूत अब नहीं है। लेकिन ग्रामीण भारत में यह आज भी मौजूद है। जगजीवन राम ने इसका तोड़ एकीकृत बस्तियों के तौर पर सुझाया था। आरक्षण के मुद्दे पर मेरा मानना है कि जब तक सामाजिक भेदभाव मौजूद है आरक्षण व्यवस्था रहनी चाहिए, जब तक कि वंचित लोग खुद यह न कह दें कि वे सामाजिक तौर पर सुरक्षित और अपने बूते आगे बढ़ने में सक्षम हैं।
 डॉ. आंबेडकर का मुख्य उद्देश्य और उपदेश समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में 'सामाजिक तौर पर बहिष्कृत' मानवता की सक्रिय भागीदारी प्राप्त करना था। साथ ही यह भी है कि आरक्षण न तो हर परेशानी का इलाज है और न ही स्थायी व्यवस्था।
छद्म दलित बुद्धिजीवी समाज को बांटने के लिए दलित भावनाओं का सहारा ले रहे हैं। यह बात ठीक है कि बुद्धि अपने आप में कोई गुण नहीं है। यह केवल साधन है। सच्चे बुद्धिजीवी व्यापक हित की बात सोचते हैं। बुद्धिजीवी वर्ग यानी ऐसे लोग जिनकी आत्मा में छल नहीं है, जो लोगों की मदद करने को, मानवता को परेशानियों से मुक्त करने को तैयार रहते हैं। मैं अब भी उन सुखद पलों को याद कर आनंदित होता हूं जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुझे विजयादशमी के दिन नागपुर आमंत्रित  किया था।
संघ ने अपने एकात्मता मंत्र में बाबासाहब आंबेडकर और ज्योतिराव फुले का नाम ऋषियों के साथ रखा है यह दिल को छूने वाली बात है। हिन्दू समाज को नैतिक उत्थान की जरूरत है और इस काम में देरी खतरनाक है।
मेरा गंभीरता से यह मानना है कि संघ और इसी विचार के आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन व गायत्री परिवार जैसे संगठन अपने अभियान में सफल होंगे।
(लेखक प्रख्यात दलित चिंतक हैं, उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से अलंकृत किया है)

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