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पुण्यस्मरण – कुशल शिल्पी और उदार हृदय

by
Mar 21, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 21 Mar 2016 12:03:15

 

सबके प्रेरणास्रोत माननीय सूर्यकृष्ण  जी के अकस्मात निधन का समाचार प्राप्त हुआ। यह समाचार स्तब्ध करने वाला था। दो दिन पहले ही मेरी उनसे बातचीत हुई थी। कभी लगा नहीं था कि वे अचानक इस तरह चले जाएंगे। उन्होंने देहदान का संकल्प किया था, उसी के अनुरूप सफदरजंग अस्पताल को उनका देहदान किया गया।
सूर्यकृष्ण जी बहुत वरिष्ठ प्रचारक थे। उनसे जब भी बातचीत होती थी तो उन्हें भारत विभाजन के प्रसंग से लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन तथा संघ से जुड़े हुए विभिन्न न्यायिक कार्रवाई संबंधित विषयों की पूरी जानकारी रहती थी। उनका स्मृतिकोश बहुत समृद्ध था। सामान्यत: वे डायरी, पेन तक अपने पास नही रखते थे लेकिन कोई भी विषय, घटना एवं प्रसंग उन्हें हमेशा स्मरण रहता था। उन्होंने लंबे समय तक संघ प्रचारक के रूप में उत्तर प्रदेश, विश्व हिंदू परिषद् और भारतीय जनता पार्टी में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह किया। जब मेरा उनसे संपर्क हुआ तब वे अधिवक्ता परिषद् एवं झंडेवालान मन्दिर न्यास के प्रमुख न्यासी के रूप में कार्य देख रहे थे।
सूर्यकृष्ण जी के मार्गदर्शन में मुझे लंबे समय तक अधिवक्ता परिषद् में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। संगठन में कार्य करने को लेकर उनका बहुत ही स्पष्ट मत रहता था कि किसी भी कार्य  योजना को तैयार करते समय सभी संबंधित लोगों से चर्चा की जाए परंतु एक बार निर्णय होने के उपरांत उसे पूरी क्षमता के साथ लागू किया जाए। अधिवक्ता परिषद् में व्यावसायिक व्यवस्थाओं के कारण कई बार वकीलों को लगता था कि कार्यक्रम में परिवर्तन किया जाए। परंतु  सूर्यकृष्ण जी के दृढ़ निर्णयों के कारण धीरे-धीरे परिषद् के बारे में यह धारणा बनी कि उसके कार्यक्रम तय होने के बाद परिवर्तित नहीं होते। विधिक क्षेत्र में कार्य करते समय अक्सर यह ध्यान में आता था कि न्यायिक तर्कशास्त्र में प्रभावी होने के कारण वे हर विषय पर चर्चा करने को तैयार रहते थे। वे सभी की बात सुना करते थेे लेकिन अपने मत को स्पष्टता से रखते हुए उस पर दृढ़ रहते थे। धीरे-धीरे सूर्यकृष्ण जी के निर्देशन में अधिवक्ता परिषद् की साख और इसके काम का दायरा बढ़ने लगा। काफी सारी जनहित याचिकाओं को निबटाने के लिये बार काउंसिल के प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं ने परिषद् से जुड़कर कार्य किया।
सूर्यकृष्ण जी का आग्रह रहता था कि नए और अच्छे लोगों को संगठन के विचार से जोड़ने के लिए तर्क से ज्यादा व्यवहार, संपर्क एवं स्वयं की सकारात्मकता और विषय ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए संगठन के कार्य में निर्णयों को प्रतिबद्धता से लागू करना, नियमितता, समय पालन एवं संगठन के हिसाब में पारदर्शिता, संगठन के कामकाज के बारे में उनका यह दृढ़ पैमाना था।
वे संगठन को लेकर भले ही कठोर थे, पर कार्यकर्ताओं से संपर्क को लेकर उतने ही आत्मीय भी थे। अधिवक्ता परिषद्  के कार्यों से प्रवास करते हुए वे सभी कार्यकर्ताओं एवं परिवारों के साथ बहुत ही आत्मीय हो जाते थे। जब कभी किसी कार्यकर्ता को फोन करते थे तो पहले परिवार का हालचाल पूछते थे। उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि पिछली बार किस कार्यकर्ता ने बच्चे की कौन-सी परीक्षा एवं कक्षा बताई थी, उन्हें ध्यान रहता था।
प्रवास क्रम में वे बहुत सादगी एवं अनुशासन रखते थे। वे मधुमेह से पीडि़त थे लेकिन नियम और पथ्य के। पक्के कभी असावधानी नहीं बरतते थे। इसलिए उनके साथ कार्य करने वाले कार्यकर्ता को स्वयं ही इसका भान रहता कि संगठन में कार्य करने के लिए सादगी, अनुशासन एवं स्पष्टता सबसे बड़ा मूल्य होते हैं।
अधिवक्ता परिषद् के कार्य करते हुए, वे इस बात में बहुत स्पष्ट थे कि परिषद् में जहां एक  ओर न्यायिक क्षेत्र में अच्छा संपर्क स्थापित करना है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न न्यायिक विषयों को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के अनुसार प्रतिपादित करना है। उनका आग्रह रहता था कि इन दोनों विषयों में समन्वय बैठाने के लिए परिषद् कार्यकर्ता को स्वयं परिश्रम करना चाहिए। वे इसके लिए बड़ी-छोटी बैठक और चर्चाओं पर ज्यादा बल देते थे। एक बार जब कार्यकर्ताओं में विषय की स्पष्टता  हो जाती थी, उसके बाद ही वे बड़ा कार्यक्रम करने की सलाह देते थे। इस प्रकार  सूर्यकृष्ण जी अक्सर कानूनी क्षेत्र में कार्य करने वाले नए वकीलों के लिए प्रेरणा का कार्य करते थे। उनका जीवन हम सबके लिए अनुपम प्रेरणा है। परन्तु उस सादा-स्पष्ट दृढ़ नेतृत्व की कमी कार्यकर्त्ताओं को खलती रहेगी।  – भूपेन्द्र यादव
(लेखक राज्यसभा सांसद हैं और अ.भा. अधिवक्ता परिषद् में सक्रिय रहे हैं)

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