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आखिर इनके पैरोकार कौन?

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Mar 21, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 21 Mar 2016 10:52:07

अंक संदर्भ- 28 फरवरी, 2016 आवरण कथा 'चुनौती विषबेल काटने की' से स्पष्ट होता है कि एक तरफ आतंकवाद से लड़ते हुए देश के सिपाही शहीद हो रहे हैं तो दूसरी ओर हमारे विश्वविद्यालयों में जयचंद जैसे गद्दार हिन्दुस्थान को बर्बाद करने की तैयारी कर रहे हैं। जेएनयू की घटना स्पष्ट संकेत देती है कि आतंकवादी केवल सीमा पार से नहीं आ रहे हैं बल्कि उनकी पैठ हमारे अपने ही घरों में है। वे यहीं का खाते हैं और देश को गाली देते हैं। बड़ी शर्म की बात है कि यहां के सेकुलर नेता वोट के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जिन छात्रों ने देश के खिलाफ नारेबाजी की, देश को बर्बाद करने की कसमें खाईं, हमारे नेता उनको ही बचाने में लगे हुए थे। इस देश का द़ुर्भाग्य है कि यहां सदा से ही मीर जाफर और जयचंद जैसे लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिए देश को बेचते आए हैं। देश की जनता को ऐसे सेकुलर और देशविरोधी नेताओं को पहचानना होगा।
   —देवेन्द्र कुमार मिश्रा, भरत नगर, छिंदवाड़ा (म.प्र.)
ङ्म    देश के प्रतिष्ठित विवि. में जो घटित हुआ वह बड़ी ही शर्मनाक घटना थी। इस घटना पर विश्वास ही नहीं होता कि हमारे अपने ही विश्वविद्यालय के कुछ छात्र भारतमाता के टुकड़े-टुकड़े करने और देश को बर्बादी करने की बातें करेंगे। आखिर वे कौन लोग हैं, जो भारतीय संप्रभुता, स्वाभिमान के प्रतीक संसद भवन पर आतंकी हमले की साजिश रचने वाले अफजल की फांसी को शहीदी दिवस मान रहे हैं? इनका क्या मकसद है? जिन छात्रों ने इस प्रकार की कुचेष्टा की वे देशभक्त तो बिल्कुल भी नहीं हो सकते। वे किस आजादी की बात कर रहे हैं? क्या भारत से भी अधिक आजादी उन्हें कहीं और मिल सकती है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने वाले झंडाबरदारों को सबक सिखाने की आवश्यकता है, क्योंकि इनको प्रेम की भाषा समझ में नहीं आती।
—बीरेन्द्र सिंह कंपू, ग्वालियर (म.प्र.)
ङ्म    जेएनयू में जिन छात्रों ने देश विरोधी नारेबाजी की, वह उनकी घृणित मानसिकता को तो उजागर करता ही है साथ ही इससे यह भी उजागर होता है कि वे किन दलों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। 9 फरवरी को जो घटना विवि. परिसर में घटित हुई, उससे यह तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि यह देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। सवाल है कि क्या ऐसा विश्वविद्यालय होता है, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में छात्र अपने ही देश के टुकड़े करने की बातें करें? जिस आतंकी को सर्वोच्च न्यायालय फांसी दे चुका है, उसके फैसले पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना कितना सही है? शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को, जो देश का खाते हैं और देश से गद़्दारी करते हैं।  
    —रेखा सोलंकी, नागदा, उज्जैन (म.प्र.)
ङ्म  आचार्य चाणक्य कहते थे कि जब गद्दारों की टोली में हाहाकार होने लगे, तब समझ लीजिए उस देश का राजा चरित्रवान है और देश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आज आचार्य चाणक्य की कही बात बिलकुल सही साबित हो रही है। देश के सेकुलर नेता आज इस बात से परेशान हैं कि यदि मोदी सरकार केन्द्र की सत्ता में ज्यादा दिन तक टिक गई तो, जो उनकी दुकानें हैं, उन पर ताला लग जाएगा। इन दुकानों में ताला न लगे इसके लिए देश में किसी न किसी प्रकार से अशांति फैलाये रखो। सरकार को काम न करने दो। किसानों को बरगलाओ। विश्वविद्यालयों के छात्रों को भड़काओ। आम जनता को गलत जानकारी देकर उसे दिग्भ्रमित करो। आज कांग्रेस और उनके वाम सहयोगी इसी काम में पूरी तल्लीनता के साथ लगे हुए हैं।
    —आनंद मोहन भटनागर, राजाजीपुरम, लखनऊ (उ.प्र.)
ङ्म  अभी तक सिर्फ यही कहा जाता था कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय वामपंथियों का गढ़ है, लेकिन अब तो यह भी सिद्ध हो गया है कि परिसर में देश विरोधी तत्वों का भी जमावड़ा है। 9 फरवरी को देश ने देखा कि किस तरीके से देश के खिलाफ भड़काऊ नारे लगे। ऐसे माहौल को देखकर प्रत्येक देशवासी विचलित हो गया। केंद्र सरकार को देश के प्रतिष्ठित विवि. और इसकी गरिमा को हर हाल में बचाना होगा और जो भी लोग देश विरोधी कार्यों में संलिप्त हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
    —अरुण मित्र, रामनगर (दिल्ली)
ङ्म  असल में इस बार जेएनयू में जिन छात्रों ने देश को बर्बाद करने की कसमें खाईं, उनकी पीड़ा का कारण केन्द्र में बैठी नरेन्द्र मोदी सरकार है। वामपंथी कभी भी नहीं चाहते थे कि नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें। उनके सत्ता में आने के बाद से वामपंथियों की करतूतें सामने आ रही हैं। इसलिए उनकी छात्र इकाई इस सबको सहन नहीं कर पा रही है और देश में हिंसा भड़काने के लिए जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थान का सहारा लिया जा रहा है। एक तरफ देश के जवान देश की रक्षा में अपना सब कुछ बलिदान कर रहे हैं तो दूसरी ओर भारत विरोधी लोग आतंकियों की हिमायत में लगे हुए हैं। देश की जनता को ऐसे गद़्दारों को पहचानकर कड़ा सबक सिखाना होगा, तभी भारत की अखंडता मजबूत रह सकेगी।
    —हरीशचन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.) 

ङ्म  भारत की छवि देश-विदेश में निखर रही है। चारों ओर प्रशंसा और आदर बढ़ रहा है। लेकिन भारत में बैठे कुछ सेकुलरों को यह बात अच्छी नहीं लग रही है। इसलिए आए दिन वे किसी न किसी बात को लेकर अशांति पैदा कर देते हैं। जेएनयू की घटना के पहले भाग को भुलाकर सेकुलर नेता दूसरे भाग पर ज्यादा चर्चा करते हैं। कन्हैया की गिरफ्तारी, उसकी पिटाई को असहिष्णुता बताते हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते कि आखिर कन्हैया को उसके किस कृत्य के चलते मार पड़ी? आज कांग्रेस और वामपंथियों  का एक ही उद्देश्य रह गया है कि कैसे भी करके नरेन्द्र मोदी सरकार को अस्थिर करो। इसके लिए वे हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। जेएनयू में इस गठजोड़ के स्पष्ट दर्शन देश की जनता कर चुकी है।
    —जमालपुर गंगाधर, जियागुडा, हैदराबाद (आं. प्र.)

ङ्म  केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद से असहिष्णुता का वातावरण बताकर देशविरोधी बातें की जा रही हैं और लोगों को दिग्भ्रमित किया जा रहा है, जबकि यह पूरी तरह से निरर्थक है। यह कुछ लोगों की साजिश का एक हिस्सा है, जो चाहते ही नहीं हैं कि देश विकास के पथ पर आगे बढ़े। हालांकि इनके लाख जतन करने पर भी इनके मंसूबे पूरे नहीं होते और इनकी पोल-पट्टी खुल जाती है।
    —डॉ. सुशील गुप्ता, सहारनपुर (उ.प्र.)
ङ्म  आज देश में अधिकार की बात हो रही है। कुछ लोग अपने अधिकार के लिए हिंसा कर रहे हैं, लेकिन अधिकार के नाम पर जो लोग हिंसा कर रहे हैं या हिंसा करने पर उतारू हैं, उनको शायद नहीं मालूम कि अधिकार का मूल स्रोत कर्तव्य है। प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्रों से अपेक्षा होती है कि वह अपने शोध के माध्यम से देश के विकास में सहायक बनें, लेकिन 9 फरवरी को यहां उलटा दिखा। विकास की बात तो कोसों दूर है, वह भारत का ही विनाश करने पर तुले हैं। इस सबका एक ही अर्थ निकल रहा है कि परिसर में असामाजिक तत्वों की गहरी पैठ है। इन छात्रों को जो शिक्षा मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है। सरकार को इस बात का पता लगाना चाहिए कि आखिर      इनके मन में इस प्रकार की भावना कौन भर रहा है?
    —वीरेश मिश्रा, हारम पारा गीदम, दंतेवाड़ा(छ.ग.)
ङ्म  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर राहुल गांधी राष्ट्र विरोधी लोगों का साथ देकर उनका हौसला बढ़ाते हैं। राहुल को ही नहीं, कांग्रेस को बताना होगा कि वे  देश तोड़ने वालों के साथ हैं या उनके विरोध में हैं।
—मुकेश सुमन, बिजनौर(उ.प्र.)
ङ्म     वामपंथी इस विश्वविद्यालय को गलत दिशा में लेकर जा रहे हैं। छात्र इकाई के जरिये वे अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। जेएनयू में जो हुआ वह सामान्य घटना नहीं थी। यह एक साजिश का हिस्सा था, जो समय रहते उजागर हो गया। देश ने देखा कि कैसे देश के विरोध में नारे लगे, फिर भी कांग्रेस और वामपंथियों ने इनका साथ दिया। आखिर अपनी राजनीति चमकाने के लिए ये सेकुलर नेता किस हद तक गिरेंगे?
    —हरिहर सिंह चौहान, इंदौर (म.प्र.)

 

अपने ही घर के जयचंद
आचार्य चाणक्य ने कहा था कि यदि व्यक्ति राष्ट्रभाव से शून्य है, राष्ट्रभक्ति से हीन है, राष्ट्र के प्रति सजग नहीं है तो यह शिक्षक की असफलता है। देश के सभी क्षेत्रों के लोग किसी न किसी विश्वविद्यालय की उपज हैं। आज भारत विभिन्न चुनौतियों से घिरा हुआ देश है। राष्ट्र विरोधी शक्तियां सीमापार से आतंक फैलाने की कोशिश कर रही हैं तो वहीं आस्तीन में छिपे सांप घर में ही डसने को तैयार हैं। कुछ दिनों पहले जेएनयू में जो घटनाक्रम घटित हुआ वह 'पूत के पांव पालने में दर्शाने' के लिए पर्याप्त है। पूरा देश जिस दिन सियाचिन के वीर सपूत हनुमंतप्पा के स्वस्थ होने की कामना कर रहा था, उसी दिन भारत की जनता की खून-पसीने की कमाई से अर्जित टैक्स के बलबूते संचालित होने वाले जेएनयू में कुछ राष्ट्रघाती तत्व आतंकी अफजल का शहादत दिवस मना रहे थे। 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह' जैसे अनेक चुभने वाले नारों से दिल्ली के हृदय पर हंुकार भर रहे थे। आखिर इनकी नजर में अफजल का कातिल कौन है? फैसला सुनाने वाला सर्वोच्च न्यायालय या फिर तत्कालीन मनमोहन सरकार, जिनके कार्यकाल में अफजल को फांसी पर लटकाया गया। कुछ सेकुलर दल इस मसले को अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता से जोड़ते हैं। लगता है वे भूल जाते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली के रामलीला मैदान में आधी रात को बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर पुलिस ने लाठियां भांजी थीं। वे बताएंगे कि बाबा रामदेव का कसूर क्या था? असल में इन सेकुलर दलों का यह दोमुंहा चेहरा है। अपने लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ और होती है। और दूसरों के लिए कुछ और। भारत में इन दलों का यह दृष्टिकोण देश के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है।
    —साकेन्द्र प्रताप, निकट-दूरभाष केन्द्र, शिवाजी नगर, महमूदाबाद, सीतापुर (उ.प्र.)
अनूठा संगम
कुंभ कलाओं का हुआ, यमुना जी के छोर
कलासाधकों ने किया, सबको मस्त विभोर।
सबको मस्त विभोर, नृत्य गायन औ वादन
हुआ प्रफुल्लित मन मयूर बिहंसा मनभावन।
कह 'प्रशांत' थे उत्सव पर जो छींटे काले
वर्षा रानी ने आकर वे सब धो डालेे॥
      —प्रशांत

 

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