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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में ओडिशा के बरगढ़ में एक किसान रैली में कहा था कि उन्हें खत्म करने और बदनाम करने के लिए हर रोज षड्यंत्र रचे जा रहे थे। मोदी ने वास्तव में जो कहा था, वह यह था कि ''जिस दिन से हमने (एनजीओ को मिल रहे विदेशी धन का) विवरण लेना शुरू कर दिया है, ये लोग मेरे खिलाफ एकजुट हो गए हैं और 'मोदी को मारो, मोदी को मारो' कह रहे हैं। अब वे हर दिन मुझे खत्म करने और बदनाम करने के लिए षड्यंत्र रच रहे हैं।''
प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों कहा? उन्होंने किसी आतंकी संगठन का नाम नहीं लिया था, बल्कि गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) का उल्लेख किया था जिनमें से कई सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं और जो सभी सरकार के अधिकार क्षेत्र में और कानून के शासन के तहत कार्य करते हैं। संगठनों का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि विदेशों से वित्त पोषित एनजीओ को जवाबदेह होना चाहिए और कानून के दायरे में काम करना चाहिए।
हालांकि केंद्र में मोदी सरकार विभिन्न प्रमुख और छोटे-मोटे गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, लेकिन बजट सत्र की शुरुआत से पहले इस मामले को ग्रामीण जनता के सामने उठाने के अपने राजनीतिक कारण और प्रभाव हैं। गैर सरकारी संगठनों के विदेशी धन पर नजर रखने वाले सरकारी विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ''यह सत्य है। भारत में बहुत से एनजीओ हैं, जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा हैं।''
विभिन्न संगठनों और उनसे जुड़े लोगों के निहित स्वाथोंर् के रिश्तों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा ''उदाहरण के लिए तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ सिटीजन फॉर पीस एंड जस्टिस (सीपीजे) और फोर्ड फाउंडेशन को देखें। यह उन शक्तियों के बीच सांठगांठ का एक स्पष्ट उदाहरण है जो देश की समृद्घि और स्थिरता नहीं देखना चाहते।'' यह अपवित्र गठजोड़ कैसे चल रहा है, इसकी एक व्याख्या इस प्रकार है। आर्थिक सहायता देने वाले और निधि प्राप्त करने वाले के बीच हस्ताक्षरित अनुबंध राजद्रोह का स्पष्ट मामला दर्शाता है। अनुबंध सीपीजे (तीस्ता सीतलवाड जावेद के एनजीओ) से कहता है कि ''वह मुस्लिम जनता को एकजुट करे और उन्हें गुजरात की तत्कालीन सरकार के खिलाफ लामबंद करे।'' इतना ही नहीं, यह आगे कहता है कि ''तत्कालीन राज्य सरकार के खिलाफ प्रचार करने के लिए मीडिया को जुटाए, प्रचार की वकालत करे और इसमें मीडिया का उपयोग करे।'' सूत्र के अनुसार सीपीजे के खिलाफ सीबीआई ने इसी अनुबंध को आधार बनाते हुए मामला दर्ज किया है।
जानना जरूरी है कि सीपीजे ने अमेरिका में मोदी को काली सूची में डलवाने में तब प्रमुख भूमिका निभाई थी जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। सूत्रों का दावा है कि ''तत्कालीन अमेरिकी सरकार को मोदी की यात्रा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए जिन भी कागजातों की आवश्यकता थी, उन सभी की आपूर्ति तीस्ता के एनजीओ द्वारा की गई थी। वास्तव में सीपीजे कांग्रेस के मस्तिष्क की उपज थी।''
फोर्ड फाउंडेशन और ग्रीन पीस
अनुदान देने वाले संगठन फोर्ड फाउंडेशन (एफएफ) को शुरुआत में 1952 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आमंत्रित किया था। सूत्रों का कहना है कि ''भारत को ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद उन्होंने एफएफ को आमंत्रित किया था ताकि सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी के भारत पर पकड़ बनाने के प्रयासों को विफल किया जा सके। एफएफ संयुक्त राज्य अमेरिका का सहायक संगठन है। फाउंडेशन को शुरू में पांच साल के लिए आमंत्रित किया गया था। उसे देश में रहने के लिए पांच साल का एक और विस्तार मिला। हालांकि, विस्तार अवधि की समाप्ति के बाद उसने देश छोड़ने की परवाह नहीं की।''
भारत छोड़ने के बजाए वह यहां बना रहा और बिना किसी वैध अनुमति के काम करता रहा। इस संगठन की संदिग्ध गतिविधियों को स्पष्ट करते हुए सूत्र कहते हैं, '' इसने पिछले साल 2015 में दिसंबर के महीने में जाकर हमारे देश में पंजीकरण करवाया, वह भी वित्त मंत्रालय में फेमा के तहत, जब गृह मंत्रालय ने उसकी कानून विरोधी गतिविधियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करना शुरू कर दिया था।''
मामले के घटनाक्रम के जानकार एक अन्य सूत्र का कहना है कि ''संदिग्ध वैधता वाले एक संगठन को, जिसकी नापाक गतिविधियों का लंबा इतिहास है, पंजीकरण कैसे मिला? यह जांच का विषय है।''
पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से अलग-अलग बहुराष्ट्रीय एनजीओ में काम कर रहे आर. के़ सिंह कहते हैं, ''एफएफ को कांग्रेस पार्टी के समर्थक के रूप में देखा जाता है।'' इस पार्टी ने हमेशा फाउंडेशन पर कृपा दृष्टि बनाए रखी है। इसे लोधी एस्टेट में एक बहुत मौके का भूखंड मुफ्त के भाव आवंटित कर दिया गया। लोधी एस्टेट को लुटियन दिल्ली का एक बेशकीमती स्थान माना जाता है। फिलहाल इसने उपयुक्त प्राधिकारी से कोई अनुमति लिए बिना एक अन्य एनजीओ अमेरिकन एड को अपना आधा परिसर आगे किराए पर दे दिया है। सरकारी संस्था के सूत्र के अनुसार, ''यह कानून के विरुद्घ है। कोई संगठन सरकार की ओर से कौडि़यों के दाम मिली भूमि या इमारत किसी और को किराए पर नहीं दे सकता।'' संयोग से यह तथ्य भी आर. के़ सिंह की बात ही सिद्ध करता है।
ग्रीन पीस (जीपी) एक और ऐसा गैर-सरकारी संगठन है जिसे इसकी कानून विरोधी गतिविधियों में जांच एजेंसी ने रंगे हाथों पकड़ा है। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक अन्य अधिकारी ने कहा कि ''सरकार जीपी के खिलाफ पांच मामलों में जीत चुकी है। आरोप है कि इस एनजीओ ने देश में अ-सार्वजनिक गतिविधियों के लिए लगभग 100 करोड़ रु. का गुप्त कोष बनाया है। इनमें से 10 से 12 करोड़ रु. का पता लगा लिया गया है। 10 बैंक खातों पर रोक लगा दी गई है। लेकिन यह अपनी दैनिक गतिविधियां चलाने के लिए दो खातों को फिर से खोलने के लिए अदालत से आदेश प्राप्त करने में सफल रहा है।''
अन्य आंदोलनों के अलावा जीपी ने पर्यावरण को बचाने के नाम पर कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र और महान कोल क्षेत्र के खिलाफ आंदोलन का पुरजोर समर्थन किया था। सरकार इन आंदोलनों को विकास विरोधी गतिविधियां मानती है। यह अंतरराष्ट्रीय संगठन फोर्ड के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, नीदरलैंड और अस्ट्रेलिया से धन प्राप्त कर रहा है।
इन गैर सरकारी संगठनों के अलावा 10,117 अन्य संगठन हैं, जो गृह मंत्रालय की विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत स्थापित संस्था द्वारा प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं। मंत्रालय के एक अन्य सूत्र ने कहा, ''विदेशी दानदाताओं से प्राप्त धन के खर्च के विवरण जमा करने के लिए बार-बार अनुरोध के बावजूद उन्होंने आवश्यक विवरण जमा नहीं किए। इसलिए हमने उनको भारत से बाहर करने के लिए उन पर प्रतिबंध लगा दिया है।''
गैर सरकारी संगठनों के छिपे उद्देश्य
ऐसे पुख्ता आरोप हैं कि इन गैर सरकारी संगठनों में से कई को कन्वर्जन गतिविधियों में लिप्त पाया गया है, जो पिछड़े हिंदुओं को ईसाई या मुस्लिम बनाने में लगे हुए हैं। इन गैर सरकारी संगठनों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। एक वे, जिन्हें ईसाई देशों से धन मिलता है, दूसरे वे, जिन्हें मुस्लिम देशों से धन मिलता है और तीसरे वे, जो जाति और समुदाय की दिशा में काम करते हैं, और जिन्हें समाज के तथाकथित वामपंथी झुकाव वाले बौद्घिक वर्ग का समर्थन मिलता है। अतिवादी विचारधारा के मार्ग का अनुसरण करते हुए इन लोगों में से कई भारत के संवैधानिक ढांचे में विश्वास नहीं करते।
आर. के़ सिंह कहते हैं, ''कुछ बड़े गैर सरकारी संगठन भाजपा विरोधी सरकारों के साथ मिलकर काम करना पसंद करते हैं।'' बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन बिहार सरकार के साथ काम करता है। राज्य सरकार उन्हें अपनी सीमाओं के भीतर काम करने के लिए स्थान उपलब्ध कराती है। राज्य सरकार से संकेत मिले बिना वे आगे नहीं बढ़ सकते। लंबे समय तक भाजपा विरोधी सरकारों के साथ काम करने के बाद उनकी परियोजनाएं ऐसा रूप ले लेती हैं, जो भाजपा विरोधी लगती हैं।'' वास्तव में उनका अपना अनुभव है कि कुछ विदेशी गैर सरकारी संगठन सत्तारूढ़ सरकारों को अस्थिर करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ भारत आते हैं। उन्हें उनके देश की सरकार से भारत में धन भेजने की अनुमति केवल इस लक्ष्य के लिए मिलती है।
फिर भी यह कहना अनुचित होगा कि यहां काम कर रहा हर गैर सरकारी संगठन देश विरोधी है। कुछ गैर सरकारी संगठनों के समाज के लिए अच्छा काम करने की भी रिपोर्टें हैं। मसलन, एक ब्रिटिश एजेंसी- डीआईएफडी- बिहार, मध्य प्रदेश और ओडिशा में 2007 से स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रही है। अपना पहला चरण पूरा करने के बाद इसने अपने स्वास्थ्य कार्यक्रम के दूसरे चरण की भी शुरुआत की, जो मार्च में खत्म हो रहा है। इस परियोजना के लिए कुल खर्च लगभग 14 करोड़ 50 लाख पाउंड था। 80 प्रतिशत आवंटन संबंधित राज्य सरकारों के माध्यम से खर्च किया गया था, वहीं खर्च का केवल 20 प्रतिशत तीन गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से परियोजना के तकनीकी पहलू पर खर्च
किया गया। मंत्रालय के सूत्र ने बताया, ''इसके अलावा दूसरे कई गैर सरकारी संगठन भी अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश एफसीआरए द्वारा नियमों का पालन न करने की वजह से उन्हें अपने कार्यालय बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।'' एक प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठन के साथ काम कर रहे बिहार के हेमंत कुमार कहते हैं, ''लेकिन फोर्ड फाउंडेशन के वित्त पोषण करने के पैटर्न का मामला पूरी तरह अलग है। फाउंडेशन पहले भारत से लोगों का चयन करता है और फिर उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका या किसी अन्य विदेशी ठिकाने पर भेज देता है। आरोप हैं कि इन उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने के बजाए उनका 'ब्रेनवाश' किया जाता है। और जब ये लोग वापस अपने देश में लौटते हैं और काम शुरू करते हैं तो उनका दृष्टिकोण राष्ट्र विरोधी हो जाता है।''
यहां समाज और उसके लोगों के प्रति दो राष्ट्रीय पार्टियों के दृष्टिकोण में अंतर पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होगा। हेमंत कुमार कहते हैं, ''भाजपा और उसके संबंधित संगठन हमेशा देखते हैं कि लाभ समाज के वंचित वगोंर् तक पहुंचना चाहिए। दूसरी ओर कांग्रेस कभी नहीं चाहती कि वास्तविक लाभ समाज के निचले और जरूरतमंद वर्ग तक पहुंचे। वह अपने द्वारा शुरू की गई योजनाओं के प्रदर्शन में विश्वास रखती है, न कि जरूरतमंदों तक योजना के लाभ पहुंचाने में।'' दिलचस्प बात यह है कि जब से भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने दोषी गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करना शुरू किया है, तब से केंद्र में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस कदम का विरोध कर रही है। 8 मार्च, महिला दिवस के मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने भाषण में कहा, ''निश्चित ही अधिकतम शासन का मतलब नागरिक समाज, गैर सरकारी संगठन और आंदोलन समूहों की आजादी है, लेकिन आज ऐसा शायद ही सुनाई पड़ता है।'' अपने अध्यक्ष के इस बयान से पहले भी कांग्रेस के कई नेताओं ने राजग सरकार के कदम पर अपना गुस्सा और दर्द जताया था। वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली कहते हैं, ''जो गैर सरकारी संगठन सरकारी नीतियों की आलोचना कर रहे थे, वे निशाने पर हैं।'' उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा सरकार 'बहुत प्रतिशोधी' है और इसकी हरकतें गैर सरकारी संगठनों की गतिविधियां रोकने जैसी हैं। एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने हाल में कहा, ''भाजपा देश के युवाओं, छात्रों, शिक्षकों, पत्रकारों, विपक्ष और हर उस संगठन की आवाज दबा रही है, जो सरकार से असंतोष, असहमति या इसकी जड़ता का सवाल उठाता है। ऐसे व्यक्तियों या संगठनों को 'राष्ट्र विरोधी' या 'नक्सली' कहकर निशाना बनाया जा रहा है।'' लेकिन वरिष्ठ भाजपा सांसद और लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक अर्जुन मेघवाल सरकार की कार्रवाई का समर्थन करते हैं, ''कुछ गैर सरकारी संगठनों की अवैध और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को बेनकाब करने के लिए आगे की जांच की जानी चाहिए।''लगता है, एनजीओ की स्वच्छंदता के दिन अब लद गए हैं।
– अरुण श्रीवास्तव
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