जेेएनयू प्रकरण - खिलाड़ी गुस्से में जवान नाराज
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जेेएनयू प्रकरण – खिलाड़ी गुस्से में जवान नाराज

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Mar 14, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Mar 2016 14:59:21

अर्जुन पुरस्कार प्राप्त मुक्केबाज मनोज कुमार ने 5 मार्च को ट्वीट किया, ''देशद्रोह की बातें करने वालों की मैं घोर निंदा करता हूं।'' इससे पहले 17 फरवरी को भी उन्होंने ट्वीट किया,'' भारत वीर सपूतों का देश है, देश विरोधी नारे लगाने वाले इस देश के नहीं हो सकते। चीन में 23 मार्च से 3 अप्रैल के बीच होने वाली एशिया ओशिआनिया ओलंपिक गेम्स क्वालिफायर की तैयारी में पटियाला के नेताजी सुभाष नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स (एनएसएनआईएस) में अभ्यासरत मनोज कुमार ने बताया, ''जेल से छूटने के बाद कन्हैया को हीरो क्यों बनाया जा रहा है? आज सैनिक और खिलाड़ी देश का गौरव बढ़ाने में दिन-रात एक कर रहे हैं और जेएनयू मंे उस जैसे छात्र, जिन्हें हम लोग देश का भविष्य मानते हैं, देश को बांटने की राजनीति कर रहे हैं।''ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त ने 6 मार्च को ट्वीट किया,'' सरहद पर खून बहा दिया, वाह रे गजब हिन्दुस्तानियों…, एक शब्द गरीबी क्या बोला…, देशद्रोही को देशभक्त बना दिया!'' सोनीपत के बहालगढ़ कैंप में रियो ओलंपिक की तैयारियों में जुटे हुए योगेश्वर ने फोन पर कहा, ''क्या देश के साथ गद्दारी करने वालों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए? मीडिया ने जेल जाने से पहले और जेल से आने के बाद उसे (कन्हैया को) बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया, यदि उसे अनदेखा किया जाता तो यह मामला कब का शांत हो चुका होता।'' अर्जुन पुरस्कार प्राप्त पहलवान अनुज चौधरी ने 9 मार्च को ट्वीट किया, '' दिस इज सो शेमफुल, वाट इज हेप्पनिंग इन जेएनयू। पीपल हू आर सपोर्टिंग इज नॉट डूइंग एनी फेवर टू द कंट्री। बी इट एनी पार्टी।'' अनुज कहते हैं, ''जेएनयू में आतंकवादी अफजल को हीरो बनाना, उसकी फांसी पर सवाल उठाना यानी देश की न्यायपालिका पर सवाल उठाना है। मैं कन्हैया और उसके साथियों से पूछना चाहता हूं कि जेएनयू के छात्रों को आखिर किस तरह की आजादी चाहिए?  मैं देश के युवाओं से कहता हूं कि वे सही-गलत में फर्क समझें और राजनीतिक रोटी सेकने वालों से दूर रहें क्योंकि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।    -राहुल शर्मा/ अश्वनी मिश्र

इनका कहना है
रामचन्द्र कह गए सिया से
 ऐसा कलियुग आएगा।
देशभक्त सुनेंगे ताने-तुनके
देशद्रोही हीरो बन जाएगा।।
दोस्तो, सोच रहा था इस बारे में बात करूं या नहीं? फिर भी दिल ने कहा कि जब देश की बर्बादी के नारे लगाने वाले जोर-शोर से बोल सकते हैं, भाषण झाड़ सकते हैं तो फिर हम देश के लिए खेलने वाले खिलाड़ी चुप रह गए तो ये भी गलत होगा। दोस्तो, कल से देख रहा हूं कि एक शख्स जो कल तक देश की बर्बादी के नारे लगाने वालों के साथ खड़ा था या यूं कहें उनका नेता था, उसी शख्स को आज कुछ लोग हीरो बनाने पर तुले हैं। बहुत से नेता उसे बधाई दे रहे थे, मानो वह देशद्रोह नहीं देशप्रेम के आरोप में जेल गया हो। कल तक यही नेता कह रहे थे वह गरीब है। तो भइया,35 साल का लड़का अपने गरीब मां-बाप 0का सहारा बनने के बजाए ब्रांडेड कपड़े पहनकर फार्रच्युनर गाड़ी में जेल से निकलता है और फिर बड़े-बड़े भाषण देगा तो गरीबी दूूर हो जायेगी? ऐसे शख्स को हमारा मीडिया इस तरह पेश कर रहा है जैसे गरीबी को खत्म करने के लिए भगत सिंह ने जन्म ले लिया हो। नेता, पत्रकार बंधु और बुद्धिजीवी उसके भाषण की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं। लेकिन क्या किसी ने नोटिस किया कि कितनी खूबी से देशद्रोह के मुद्दे को, अफजल को शहीद बनाने को और उसकी बरसी पर कार्यक्रम आयोजित कर भारत की बर्बादी के नारों को नजरअंदाज कर दिया गया, दबा दिया गया। उसे हमारे देश के उस प्रधानमंत्री से भी बड़ी कवरेज देने की कोशिश हो रही है जो 16-16 घंटे काम कर रहा है, इस देश के लिए।
हमारे देश में कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी लोग असली मुद्दे से भटका देते हैं कि आप और हम जैसे साधारण लोग समझ ही नहीं पाते कि बात आखिर थी क्या? लेकिन मैं आप सबसे गुजारिश करता हूं कि इस बार ऐसा न होने दें और इस सवाल को उठाते रहें कि देशद्रोहियों का साथ देने वालों के साथ क्यों ये लोग, ये नेता खड़े हो जाते हैं। क्यों विदेशों की तरह पूरा देश, देश को तोड़ने की बात करने वालों के खिलाफ एक साथ नहीं खड़ा होता?
– मनोज कुमार, मुक्केबाज

कोई इनके रहनुमाओं का मजहब मुझको बतलायेगा
अपनी मां से जंग करके ये कैसी सत्ता पाओगे।
जिस देश के तुम गुण गाते हो, वहां बस काफिर कहलाओगे
हम तो अफजल मारेंगे, तुम अफजल फिर से पैदा कर लेना।।
तुम जैसे नपुंसकों पर भारी पड़ेगी ये भारत सेना
तुम ललकारो और हम न आएं ऐसे बुरे हालात नहीं।
भारत को बर्बाद करो इतनी भी तुम्हारी औकात नहीं
कलम पकड़ने वाले हाथों को बंदूक उठाना न पड़ जाए।।
अफजल के लिए लड़ने वाले कहीं हमारे हाथों न मर जाएं
भगत सिंह और आजाद की इस देश में कमी नहीं।
बस इंकलाब होना चाहिए
इस देश को बर्बाद करने वाली हर आवाज दबनी चाहिए।।
ये देश तुम्हारा है, ये देश हमारा है, हम सब इसका सम्मान करें
जिस मिट्टी पे हैं जन्म लिया उसपे हम अभिमान करें।
जय हिंद।।  -योगेश्वर दत्त, पहलवान

सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के एक डिप्टी कमांडेंट ने अपने फेसबुक पेज पर जेएनयू में आतंकियों के समर्थन में नारे लगाए जाने के खिलाफ अपने ही अंदाज में नाराजगी जताई।  उन्होंने हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर मंडल में नक्सलियों से हुई मुठभेड़ का जिक्र किया और घायल कमांडो योगेंदर की बहादुरी का सिलसिलेवार ब्योरा दिया।
''आज 3/3/2016 को बस्तर के घने जंगलों में माओवादियों से भीषण मुठभेड़ में दो कोबरा कमांडो शहीद हो गए। 14 अन्य घायल हैं। एक कमांडेट, एक असिस्टेंट कमांडेंट अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके उलट, भारत विरोधी नारे लगाने का एक आरोपी (कन्हैया कुमार) जमानत पर छूटा है। छूटते ही वह भाषण दे रहा है। उसके भाषण पर मीडिया मंत्रमुग्ध है, बुद्धिजीवियों ने उसे अपनी श्रेणी का मान लिया है लेकिन इस सबमें सैनिकों के लिए कोई जगह नहीं है।''
''हमें इस बात का कोई गुरेज नहीं है। आप अफजलों, इशरतों, मकबूलों का जश्न मनाना जारी रखें। हम ईश्वर से उनकी मुलाकात कराने के अपने कठिन दायित्वों को निभाते रहेंगे। हमें पता है कि आपका संघर्ष के ऐसे क्षेत्रों में आना ही नहीं होगा। अगर आप आए भी तो हमारे चौकस जवान इन नरभक्षियों से आपकी रक्षा करने के लिए आपको घेरे रहेंगे। लेकिन अगर  किसी दिन खून के प्यासे इन आतंक के भेडि़यों ने आपके दरवाजे पर दस्तक दी या फिर भरे बाजार में आपके मासूम बच्चे या प्रियजनों को निशाना बनाया तो आप इतना याद रखें कि योगेंदर जैसे कुछ बहादुर आपके शांतिपूर्ण और सुरक्षित अस्तित्व के लिए मुस्कुराते हुए अपनी जान दे देंगे। फिर चाहे आप लाख असंवेदनशील और बेखबर होने का रवैया रखें।'' 

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