सिनेमाई कुंभ से सीना चौड़ा
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सिनेमाई कुंभ से सीना चौड़ा

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Mar 7, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Mar 2016 13:32:28

चित्र भारती की देखरेख में इंदौर में आयोजित फिल्म महोत्सव ने नए कलाकारों और निर्माताओं को नई ऊर्जा का अहसास कराया। भारतीयता और भारतीय संस्कृति से जुड़े विषयों पर फिल्म बनाने वालों को भी प्रोत्साहन मिला  

समाज को सही दिशा देना, नई पीढ़ी को भारत की माटी से जोड़े रखना और अपनी पहचान को बढ़ावा देना… इंदौर में आयोजित फिल्म महोत्सव का संदेश कुछ ऐसा ही था। चित्र भारती की देखरेख में 26 से 28 फरवरी तक आयोजित इस महोत्सव में सकारात्मक विचार देने वाले प्रतिभाशाली नौजवानों को मंच दिया गया। साथ ही दर्शकों को जागरूक करने का कार्य चित्र भारती के द्वारा किया गया। महोत्सव में उन सभी नए लोगों को भी मौका दिया गया, जो सामाजिक सरोकारों को लेकर लघुचित्र और वृत्तचित्रों का निर्माण करते हैं।
महोत्सव का उद्घाटन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा, ''मध्य प्रदेश में प्रतिभा और कलाकारों की कोई कमी नहीं है। वे आगे आएं और उद्देश्यपरक और सही दिशा देने वाली फिल्में बनाएं। सामाजिक सरोकारों और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित फिल्मों को सभी पसंद करते हैं।'' प्रसिद्ध फिल्म व टीवी अभिनेता मनोज जोशी ने कहा, ''फिल्मकार कला जगत के साधु हैं, उन्हें ऐसी फिल्में बनानी चाहिए जो राष्ट्र के निर्माण में योगदान दे सकें।'' इस फिल्मोत्सव को उन्होंने सिनेमाई कुंभ बताते हुए कहा कि यहां देशभर की कई भाषाओं की फिल्में दिखाई गईं, जो हमारी संस्कृति की विविधताओं को दर्शाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृति और परंपराएं किसी भी राष्ट्र की रीढ़ हैं, क्योंकि वही राष्ट्र का निर्माण करती हैं। फिल्में समाज की संवेदनाओं को प्रकट करती हैं और ये किसी भी घटना को दर्शकों के सामने लाती हैं। फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने कहा, ''हमारी फिल्मों से 'आम आदमी' गायब हो गया है। फिल्मकार देश की ज्वलंत समस्याओं पर फिल्में नहीं बना रहे हैं। देश की कोई भी पांच नई फिल्म देखें , उनमें  'असल भारत' नहीं दिखाई देगा। यह किसी भी राष्ट्र की संस्कृति के लिए नुकसानदेह है।'' प्रख्यात फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर ने कहा, ''इंदौर में पहली बार भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए 'चित्र भारती' ने एक नए फिल्म महोत्सव की शुरुआत की है। इसमें छोटे बजट की फिल्मों को भी एक अच्छा मंच मिला है। यह इनके प्रोत्साहन के लिए संजीवनी का काम करेगा।'' फिल्म निर्माता और निर्देशक राहुल रवेल ने कहा, ''फिल्म उद्योग में आपका काम ही ऐसा होना चाहिए जिससे आपको पहचान मिले।'' अभिनेता मुकेश तिवारी ने कहा, ''भविष्य वाकई छोटी फिल्मों का है, क्योंकि ये बाजार से बंधी हुई नहीं  हैं।''
उद्घाटन सत्र में संस्कृत फिल्म 'प्रिय मानसम्' के निर्माता विनोद भास्कर, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति आशुतोष मिश्र और इंदौर की महापौर मालिनी गौड़ सहित अनेक गणमान्यजन मौजूद थे।  महोत्सव की सबसे खास बात रही कि इसमें मध्य प्रदेश के युवा निर्देशकों के लिए 50 लाख रुपए के विकास कोष की घोषणा की गई। इसके जरिए 10 से ज्यादा चयनित निर्देशकों को प्रशिक्षण के साथ पटकथा लेखन की कला को विकसित करने के लिए मदद दी जाएगी।
 महोत्सव में एक दिन भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी पधारे। उन्होंने कहा, ''फिल्मों से ही समाज में बदलाव आ सकता है, लेकिन दुर्भाग्यवश अच्छी फिल्में अच्छी कमाई नहीं कर पा रही हैं, जबकि खराब फिल्में करोड़ों रु. कमा रही हैं। ऐसे दौर मंे हमें आज सबसे पहले दर्शकों को जागरूक करना होगा। ''  
महोत्सव में तीनों दिन बड़ी संख्या में आम दर्शक भी आए। दर्शकों ने संस्कृति-पोषक और भारतीयता से जुड़ीं फिल्मों की काफी सराहना की।  फिल्म 'प्रिय मानसम्' को भी लोगों ने खूब पसंद किया। संस्कृत भाषा की यह फिल्म नवम्बर, 2015 में केरल के फिल्म उत्सव में भी प्रदर्शित की गई थी, लेकिन वहां कुछ लोगों ने हिन्दुत्व को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए इसका विरोध किया था। इसलिए आयोजकों ने उसे महोत्सव से बाहर कर दिया था। महोत्सव में पुणे स्थित फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) से भी कई आर्ट फिल्में आई थीं। इनमें से कई फिल्मों को पुरस्कृत किया गया।
 मुक्त संवाद में हुई बातचीत में सकारात्मक चर्चा हुई जिसमें दर्शकों के सुझावों को फिल्म निर्देशकों ने सुना। महोत्सव का मुख्य आयोजक था भैयाजी दाणी सेवा न्यास, जबकि सह आयोजक थे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर  और मध्यप्रदेश जनअभियान, भोपाल।
फिल्मोत्सव के तीसरे व अंतिम दिन वृत्तचित्र, लघु और एनिमेशन फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। महोत्सव में तीन वर्गों में कुल 207 फिल्में प्रदर्शित की गईं। इन्हें निर्णायक मंडल द्वारा देखा गया और कइयों को पुरस्कृत किया गया। महोत्सव में वृत्तचित्र श्रेणी में मुंबई के महेश मिश्रा को पहला स्थान मिला और उन्हें पुरस्कृत किया गया। विशेष श्रेणी का पुरस्कार इंदौर के दौलत राठौर को दिया गया। लघु फिल्म श्रेणी में केरल के महेश कुमार विजेता रहे।
पुरस्कार वितरण फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर और राहुल रवेल ने किया। यह महोत्सव  नए कलाकारों और कम लागत की फिल्में बनाने वालों में एक नई आशा जगा गया।  

 अरुण कुमार सिंह-साथ में संदीप निरखीवाले, इंदौर में

 

''मानव को मोक्ष की ओर ले जाती है कला''
''चलचित्र भी कलाकृति है। हमारी कल्पना है कला वैश्विक है, फिर भी अपने देश का कला के प्रति एक अलग दृष्टिकोण है और वह है 'सा कला या विमुक्तये।' यानी कला मानव मात्र को मोक्ष देने वाली है। भारतीय परंपरा में मानव का अंतिम बिंदु या लक्ष्य है मोक्ष। मोक्ष अर्थात् पूर्णता। इसमें सहायक है कला। भारतीय फिल्मों का भी लक्ष्य ऐसा हो इसलिए चित्र भारती का विचार किया गया।''
ये विचार हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सहप्रचार प्रमुख श्री जे. नंदकुमार के। ये बातें उन्होंने इंदौर में फिल्म महोत्सव के दौरान दैनिक 'स्वदेश' के प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए कहीं। उन्होंने बताया कि भारतीय परम्परा का लक्ष्य है व्यक्ति को वर्तमान स्थिति से अधिक सकारात्मक, धनात्मक और क्रियात्मक बनाना। इतिहास इसका साक्षी रहा है। किसी भी देश की कला इसके जीवन मूल्यों की छाप होती है। भारतीय जीवन मूल्य सर्वश्रेष्ठ हैं, इसलिए हमारे यहां भी कला श्रेष्ठ रही है। कलाकृति का विषय और विद्या कोई भी हो उसका प्रभाव समाज पर पड़ता है। यह एकांकी मार्ग नहीं है। कला के विकास में समाज का भी योगदान रहता है। समाज व कला क्षेत्र के लोगों को भी सजग रहना होगा। कला सत्य है, शिव है और सुंदर है। कला सच्चे लोगों को प्रभावित करने का माध्यम है। चलचित्र भी यही करता है। फिल्म निर्माताओं, लेखकों, कलाकारों का दायित्व है कि वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुईं फिल्में बनाएं, न कि हैदर जैसी फिल्में। ऐसी फिल्में भारत की गलत छवि प्रस्तुत करती हैं। बाहुबली या अन्य प्रेरक फिल्मों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।

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