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उत्तर प्रदेश में गायों की बढ़ती तस्करी से विभिन्न स्थानों पर तनाव पनप रहा है. आगरा में गायों की सेवा-रक्षा में जुटे विहिप के एक कार्यकर्ता की हत्या से पता चलता है कि समस्या कितनी गंभीर है
''गायों की तस्करी करने वालों ने मेरे बेटे को मार डाला। वह गायों की देखभाल और उनकी रक्षा के लिए दौड़ पड़ता था. उसके इसी गौ-प्रेम के कारण गायों की तस्करी करने वाले लोग उसके दुश्मन बन गए थे, अंतत: उन्होंने उसे मार ही डाला।'' ये शब्द 45 वर्षीय अरुण माहोर के बुजुर्ग पिता रमेश चन्द्र के हैं। 25 फरवरी को आगरा के मुस्लिम-बहुल इलाके मंटोला में सुबह लगभग 10 बजकर 45 मिनट पर गोली मारकर अरुण की हत्या कर दी गई। अरुण विश्व हिन्दू परिषद् के महानगर उपाध्यक्ष थे और गोरक्षा अभियान से जुड़े हुए थे। उनके परिजन बताते हैं कि अरूण बचपन से ही गायों की सेवा में रूचि लेते थे। सड़क पर कोई गाय घायल मिलती तो वह उसके इलाज की व्यवस्था करने में जुट जाते थे। अरूण 15 वर्ष पहले विहिप से जुड़े, और गोरक्षा अभियान के लिए उन्होंने स्वयं को समर्पित कर दिया। गायों की तस्करी किए जाने का समाचार मिलते ही वे तुरंत मदद के लिए घर से निकल पड़ते।
अरूण के पड़ोसी बताते हैं कि वे सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता थे. गोरक्षा हो या किसी हिन्दू परिवार को कट्टरवादी तत्वों की अराजकता झेलनी पड़ रहंी हो या लड़कियों से छेड़छाड़, खबर मिलते ही वे मदद के लिए पहुंचते और पुलिस अधिकारियों की मदद से पीडि़तों की हरसंभव सहायता करते।
अरूण की हत्या के बाद जिन पांच आरोपियों को नामजद किया गया वे सभी समुदाय विशेष से संबंधित हैं। आसपास के लोग बताते हैं कि घटना के दो दिन पहले गली में आवारागर्दी करते हुए एक आरोपी शाहरुख को अरुण ने टोका था। इलाके के लोगों की मानें तो स्थानीय वाल्मीकि और माहोर परिवार शाहरुख आरोपी के उनके घरों की लड़कियों पर फब्तियां कसने से काफी परेशान थे। आरोप है कि वह मोहल्ले में देशी पिस्तौल लहराकर लोगों को डराता था। लोग बताते हैं कि अरुण ने 23 फरवरी को आरोपी को समझाया था कि वह ऐसी हरकत करना बंद करे. लेकिन इस पर ''वह लड़ाई पर आमादा हो गया।'' क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि शाहरुख ने 24 फरवरी को मोहल्ले में घूमकर ऐलान किया था कि ''कल बस्ती से एक आदमी कम हो जाएगा।'' क्षेत्र में कोई अप्रिय घटना न घटे इसे ध्यान में रखते हुए अरूण की गली के लोगों ने एक मौखिक शिकायत कोतवाली में की जिस पर दो पुलिस वाले वहां पहुंचे और तय हुआ कि इस बात की लिखित शिकायत थाने पर की जाये। लेकिन जब तक शिकायत की जाती तब तक अरुण को मार डाला गया। हालांकि हत्या के बाद उपजे विरोध को देखते हुए पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। सभी आरोपी गायों की तस्करी के 'फायदेमंद धंधे' से से जुड़े बताये जाते हैं। क्षेत्रीय लोग पास की नाई की मंडी में चोरी-छिपे गौमांस का कारोबार होने की बातें करते हैं।
अरुण 15 वर्ष पहले विहिप से जुड़े थे। हालांकि उनका पूरा परिवार कांग्रेस पृष्ठभूमि से है। उनके पिता रमेश चन्द्र शहर कांग्रेस कमेटी में पदाधिकारी हैं और दादा गणेशी लाल माहोर लम्बे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे। परिवार वालों की असहमति के बावजूद अरुण विहिप के तमाम आंदोलनों में खुलकर भाग लेते थे। विशेषकर गोरक्षा के उनके साहसिक प्रयासों से आगरा भर के लोग परिचित हैं और गायों की सेवा और उनकी रक्षा करने के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं। मुस्लिम-बहुल मंटोला से हिन्दुओं का पलायन रोकने में भी अरुण ने प्रमुख भूमिका निभाई। लगभग तीन साल पहले इस इलाके में स्थित अपनी फर्नीचर की दुकान जला दिए जाने के बावजूद उन्होंने इस जगह को नहीं छोड़। गायों की तस्करी और गोमांस का कारोबार करने वालों का लगातार विरोध करने के कारण अरुण लम्बे समय से बजरंग दल के कई युवा साथियों के साथ इन तत्वों की आंखों की किरकिरी बने हुए थे। मुख्यत: अरूण जैसे लोगों और बजरंग दल के कई युवा कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ही आगरा के विभिन्न थानों में गोकशी के लगभग 250 मामले दर्ज हो सके थे। भाजपा सांसद चौधरी बाबूलाल के अनुसार थाना मंटोला में 39, शाहगंज में 37, लोहामंडी में 36, जगदीशपुरी में 38, सदर में 13, ताजगंज में 24, सिकंदरा में 11, हरिपर्वत में 8 और नाई की मंडी में गायों का कत्ल करने के 38 केस दर्ज हैं। लेकिन वे कहते हैं कि पुलिस के दिलचस्पी नहीं दिखाने से शहर में गायों की हत्या के प्रकरण बढ़ रहे हैं और इसके कारण तनाव भी। जानकार बताते हैं कि करीब पांच वर्ष पहले तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी के एक नेता की फैक्टरी से गाय-भैंसों की चर्बी बरामद हुई थी। लेकिन मामला दब गया। इसी साल जनवरी में नाई की मंडी इलाके से 300 क्िंवटल गोमांस पकड़ा गया, लेकिन आरोप है कि राजनैतिक दबाव के चलते उसे रफा-दफा कर दिया गया।
''सेलेक्टिव सेकुलरिज्म कब तक?''
विहिप ने 28 फरवरी को श्रद्धांजलि सभा आयोजित की थी। प्रशासन ने इसे रोकने की भरसक कोशिश की। विभिन्न कारणों के चलते श्रद्धांजलि सभा के स्थान को दो बार बदलना पड़ा। यहां तक कि पुलिस ने टेंट वालों पर दबाव डाला कि वे सभा के लिए आयोजकों को सामान न दें। अंतत: जयपुर हाउस के रामलीला मैदान में लोगों ने अरुण माहोर को श्रद्धा-सुमन अर्पित किये।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने अरुण के घर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की और परिवार को सांत्वना दी। श्रद्धांजलि सभा में विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन ने कहा कि स्वयं को सेक्यूलर कहने वालों की अंतरात्मा क्या इसलिए नहीं जागती कि अरूण विहिप के महानगर उपाध्यक्ष थे? लेकिन जब अन्य समुदाय के किसी व्यक्ति की दुर्भाग्यजनक हत्या होती है तो वे आकाश सिर पर उठा लेते हैं. विहिप नेताओं ने आरोप लगाया कि सपा सरकार ऐसे तत्वों के आगे नतमस्तक है। वक्ताओं ने सवाल किया कि सेलेक्टिव सेकुलरिज्म कब तक चलेगा? इस मौके पर केंद्र सरकार में राज्यमंत्री राम शंकर कठेरिया तथा सांसद चौधरी बाबूलाल उपस्थित थे।
अरुण परिवार में अकेले कमाने वाले सदस्य थे। बूढ़े माता-पिता, पत्नी रजनी, दो नाबालिग बेटे तथा एक छोटा भाई प्रमोद की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार ने आगरा के लोगों के जबरदस्त विरोध के बाद अरूण के परिवार को 15 लाख रु. की सहायता घोषित की है लेकिन अरूण का परिवार इससे संतुष्ट नहीं। विहिप के प्रांतीय संगठन मंत्री राघवेन्द्र कहते हैं, '' सितम्बर, 2015 में दादरी काण्ड में मारे गए अखलाक के परिवार को सरकार ने 45 लाख नकद, 4 फ्लैट और दो आश्रितों को सरकारी नौकरी की घोषणा की थी। अखलाक के परिजनों के फ्लैट न लेने पर 9 लाख प्रति फ्लैट के अनुसार 4 फ्लैट के 36 लाख रु. उन्हें दिए गए । ये सब तब जबकि अखलाक का एक बेटा भारतीय वायुसेना में नौकरी करता है। अरुण दलित परिवार से थे। परिवार में एकमात्र कमाने वाले का सहारा छिन जाने के बावजूद उनके परिवार को राज्य सरकार ने मात्र 15 लाख रू. का मुआवजा घोषित कर अन्याय किया है। आखिर सपा सराकर का यह भेदभाव क्या दिखाता है?''
वहीं अरुण के पिता रमेश चन्द्र पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं,''आगरा पुलिस की कार्यप्रणाली संदिग्ध है। एक नामजद अभियुक्त दिलशान का नाम ही पुलिस ने जांच से निकाल दिया है। '' विहिप के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष प्रवीण भाई तोगडि़या ने मांग की है ऐसे मामले में अदालती फैसला तेजी से होना चाहिए। वे इस मामले को 'फास्ट-ट्रैक कोर्ट' को सौंपने की मांग करते हैं।
अजय मित्तल
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