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हरियाणा में जाटों द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर जगह-जगह आगजनी और हिंसा की घटनाएं नियंत्रित नहीं हो पा रही थीं। इसी बीच पांपोर में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में कैप्टन पवन कुमार शहीद हो गए, जो कि मूल रूप से जींद के ही रहने वाले थे। उनकी शहादत की खबर मिलते ही पूरे जिले में फैली हिंसा थमने लगी और लोग गमगीन हो गए। जिन सड़कों पर कुछ दिन पहले तक लोग निकलने में डर महसूस कर रहे थे, वहां शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा।
हरियाणा के जाट आंदोलन से प्रभावित होने वाले प्रमुख जिलों में जींद भी शामिल है। 17 फरवरी की शाम से जिले में जारी हिंसा हर दिन भयावह रूप लेती जा रही थी। उपद्रवियों के कारण बसों के परिचालन से लेकर रेल मार्ग तक बाधित हो गया। बाजार में बेकसूर लोगों की दुकानें और होटलों को आग के हवाले कर दिया गया। जींद के पिल्लूखेड़ा और बूढ़ाखेड़ा सबसे अधिक प्रभावित रहे, यहां रेलवे स्टेशन और पुलिस स्टेशन में आग लगा दी गई। पुलिसकर्मियों को किसी तरह वहां से भागकर अपनी जान बचानी पड़ी। इसी बीच 21 फरवरी की शाम सात बजे जींद निवासी राजबीर सिंह को उनके मोबाइल फोन पर सेना की ओर से सूचना मिली कि पांपोर में आतंकवादियों के विरुद्ध चलाए गए अभियान में उनका बेटा कैप्टन पवन कुमार वीरगति को प्राप्त हो गए हैं। वह सेना की स्पेशल फोर्स की 10 पैरा रेजीमेंट में तैनात थे। पवन के देश पर कुर्बान होने की खबर घर से गांव, जींद और आसपास के जिलों में आग की तरह फैल गई। इससे कुछ देर पहले तक आरक्षण की मांग को लेकर सरकारी और निजी संपत्ति को निशाना बना रही भीड़ का दुस्साहस एकाएक थम गया। 22 फरवरी को पवन के पार्थिव शरीर को जींद लाया गया और वहां सेना के अधिकारियों से लेकर दूसरे जिलों से आए हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए टूट पड़े। जींद में उमड़ा जनसैलाब यहीं नहीं थमा, यहां से 18 किलोमीटर दूर पवन के पैतृक गांव बधाना तक जींद के अलावा कैथल, हिसार, रोहतक और करनाल से पहंुचकर लोगों ने अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया। सेना के अधिकारियों ने पूरे सम्मान के साथ शहीद को श्रद्धांजलि दी। जींद के उपायुक्त विनय सिंह बताते हैं, ''कैप्टन पवन कुमार के शहीद होने की सूचना मिलने पर जींद में जारी हिंसा काफी हद तक कम हो गई। 22 फरवरी को उन्हें सम्मान देने के लिए सभी बिरादरी के लोगों ने अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया और शव यात्रा लेकर जाने के दौरान किसी भी तरह की बाधा नहीं पहंुचाई।'' पवन के पिता राजबीर सिंह बूढ़ाखेड़ा, जबकि माता कमलेश देवी खोखरी गांव में सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। इकलौते बेटे के देश की रक्षा के लिए बलिदान देने पर पवन के पिता राजबीर सिंह ने 'पाञ्चजन्य' संवाददाता से फोन पर बातचीत में कहा, ''उसने मुझे आखिरी बार 19 फरवरी की शाम फोन किया था और अपनी मनपसंद गोहाना और जींद की मशहूर 2-2 किलो जलेबी खरीदकर श्रीनगर भेजने की बात कही थी। उसने कहा था कि मार्च के पहले सप्ताह में उसका एक दोस्त अपनी छुट्टी खत्म कर ड्यूटी पर लौटेगा, वह घर से यह सामान अपने साथ ले जाएगा।''
पवन के चचेरे भाई संदीप बताते हैं कि, पवन घर के सभी बच्चों में छोटा और सभी का चहेता था। उसे स्कूल में पढ़ाई के समय से ही जोखिम उठाने का शौक था। एनडीए में चयन होने के बाद भी उसने हर प्रतियोगिता-खेलों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और पुरस्कार पाए। संदीप बताते हैं,''पवन साइकिल से सालासर बालाजी के दर्शन करने जाता था। बीती जनवरी में भी वह बालाजी के दर्शन करने गया था।'' पवन की मां कैलाश देवी कहती हैं, ''15 जनवरी, 1993 को सेना दिवस के दिन ही उनके बेटे का जन्म हुआ था। उससे जब कभी शादी करने की बात करते तो वह मना कर देता और कहता कि उसे बहुत कुछ करना बाकी है।'' पवन की शहादत पर न केवल हरियाणा बल्कि पूरे राष्ट्र को गर्व है। जिस हरियाणा में जाट समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर हिंसा पर उतारू था, उसी हरियाणा के एक जाट परिवार में जन्मा पवन जात-पात से ऊपर उठकर सभी को राष्ट्रहित सर्वोपरि होने का संदेश दे गया।
डॉ. गणेश दत्त वत्स
पवन बचपन से ही काफी साहसी था। उसने सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने का सपना पूरा किया।
– राजबीर सिंह, शहद कैप्टन के पिता
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