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नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली की हाल की भारत यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण थी। दोनों देशों के बीच रिश्तों में जो भ्रान्तियां पैदा हो गई थीं, उन्हंने काफी हद तक दूर किया गया है। कुछ महीने पहले इन्हीं ओली ने भारत की भर्त्सना की थी पर भारत की सोच सदैव मित्रता और प्रेम की रही है। यह सच है कि हमारे पड़ोसी देशों में राजनीतिक अशांति भारत के लिए भी अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती। यही कारण है कि सितंबर, 2015 में नेपाल के संविधान को लेकर भारत ने नाखुशी जाहिर की थी। लेकिन उसके उपरांत जो कुछ हुआ। वह नेपाल की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा था। उसके लिए भारत को दोषी मानना नेपाल को भारत से दूर करने का पैंतरा भर था।
भारत की सोच और मित्रता
भारत-नेपाल की मित्रता एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आयाम पर टिकी हुई है। भारत इस आयाम को न केवल सामरिक बल्कि भावनात्मक नजरिए से देखता है। यही कारण है कि नेहरू से लेकर मोदी तक की भारत की विदेश नीति नेपाल को हर तरह से संतुष्ट और सुरक्षित रखने की रही है। 6 नवंबर, 1950 को नेपाल की यात्रा के दौरान पं. नेहरू ने कहा था कि भारत की मंशा नेपाल में हस्तक्षेप की नहीं है। भारत हर तरह से नेपाल की संप्रभुता बनाए रखते हुए उसे एक मित्रवत पड़ोसी देश के रूप में देखता है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि नेपाल जाने का हर रास्ता भारत से होकर गुजरता है। यह विशेष स्थिति अन्य देशों को समझनी होगी। संभवत:नेपाल की इसी समझ में कमी आई और वह चीन एवं पश्चिमी देशों के जाल में फंसता गया। बस यहीं से मित्रता कम, भारत विरोध की कटुता शुरू होने लगी।
चीन-नेपाल संबंध और भारत विरोध
जब तक नेपाल के नेता चीन कार्ड का प्रयोग नहीं कर पाए थे, तब तक भारत को भी यह संशय था कि नेपाल चीन के जाल में फंसकर कब तक भारत विरोध की बात कर सकता है। जैसे ही नेपाल ने इस आखिरी दांव का प्रयोग किया, इसका परिणाम और कामयाबी दोनों ही बाते दुनिया के सामने आ गई। ज्वलंत उदाहरण पिछले वर्ष का ही है। नेपाल और चीन के बीच पेट्रोलियम को लेकर 28 अक्तूबर को संधि हुई। संधि नेपाल तेल कंपनी (एनओसी) और पेट्रो चाइना के बीच की गई। यह करार हुआ कि चीन समस्या का 10,000 मीट्रिक टन पेट्रोलियम देगा पर यह संधि ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई। नेपाल के व्यापार मंत्री गणेशमान पुन ने यह दलील दी कि इस समस्या का स्थायी हल तो भारत-नेपाल तेल संधि द्वारा ही हो पाएगा, क्योंकि चीन की तरफ से आने वाले टैंकरों को सुदूर उत्तर पूर्वी पहाडि़यों से गुजरना पड़ता है। दरअसल नेपाल-चीन करारनामे को संजीदगी से देखा जाए तो यह महज व्यापार नहीं है। यह एक ध्रुवीकरण था। ऐसा ध्रुवीकरण जहां से भारत की उपस्थिति को कमजोर किया जा सके ।
प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि यह यात्रा एक प्रधानमंत्री के रूप में उन विवादों, गलतफहमियों और अफवाहों को दूर करने का प्रयास है। अपनी छह दिन की यात्रा में ओली ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण आर्थिक मामलों पर समझौते हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल के उन जिलों को, जो पिछले वर्ष भूकंप में पूरी तरह से तबाह हो गए थे, राहत देने के लिए 25 करोड़ अमेरिकी डॉलर मदद की घोषणा की। यह रकम नेपाल को शीघ्र ही भेज दी जाएगी। जल और ऊर्जा परियोजनाओं के क्षेत्र में भी दोनों देशों के मध्य महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। भारत के सहयोग से नेपाल की आर्थव्यवस्था जो कि खस्ताहाल है, वहीं बंगलादेश के साथ नेपाल को जोड़ने की कोशिश को संभलने में मदद मिलेगी। काकरबित्ता-बंगलाबंाध कॉरिडोर द्वारा की जाएगी। इसे विशाखापत्तनम जलमार्ग से जोड़ा जाएगा। समझौते का एक महत्वपूर्ण अंश है तराई क्षेत्र में 518 किमी. सड़क बनाना। जहां से भारतीय राज्यों से नेपाली सीमाएं मिलती हैं।
भविष्य की राह
वर्ष 2008 से 2015 की अवधि में नेपाल के नेताओं के बीच प्रधानमंत्री की कुर्सी को लेकर 'म्यूजिकल चेयर' का खेल चलता रहा। नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और माओवादी पार्टी एक के बाद दूसरे की कुर्सी छीनती रहीं। राजनीतिक उठापटक उनकी अपनी पसंद और विवशता थी लेकिन बदनामी उन्होंने भारत के ऊपर डाल दी। यह भूमि 2015 में संविधान निर्माण के बाद बनी। 20 सितंबर, 2015 को नेपाल में नया संविधान लागू हुआ। दरअसल पिछले 7 दशकों में यह नेपाल का सातवां संविधान था। नेपाल की राजनीति में पहाड़ी क्षेत्रों का शुरू से वर्चस्व रहा है। तराई नेपाल के दक्षिण में पहाड़ों के नीचे की 20-30 किमी. चौड़ी और 1,751 किमी. लंबी पट्टी है जो नेपाल के कुल क्षेत्रफल का 17 प्रतिशत है लेकिन उसकी 51 प्रतिशत जनसंख्या यहां बसती है। उपजाऊ भूमि और भारत के नागरिक होने के कारण तराई नेपाल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। पहाड़ी समुदाय तराई में बसे लोगों की राजनीतिक शक्ति को अपने लिए चुनौती मानता है। यही कारण है कि वर्तमान संविधान को लेकर मधेशी दुखी हैं।
देखना यह है कि ओली की भारत यात्रा के उपरांत परिस्थितियों में कोई बुनियादी परिवर्तन होता है या नहीं? क्योंकि उनके ऊपर तोहमत मढ़ने का भी खतरा है। नेपाल की संसद ने उनके पैरों को बेडि़यों से बांधकर भारत जाने की अनुमति दी है। क्या ओली इस बंधन को तोड़ पाएंगे? मधेशी समुदाय को समुचित न्याय दिला पाएंगे? क्या सत्ता और नागरिकता को लेकर पनपा विवाद सुलझेगा? ये तमाम प्रश्न भारत-नेपाल संबंध से जुड़े हुए हैं। अगर इनका हल हो सका तो मधेशी आंदोलन को रोका जा सकता है, नहीं तो पुन: उग्र आंदोलन खड़ा हो सकता है। डॉ. सतीश कुमार
लेखक झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, रांची में प्रोफेसर हैं
भारत और नेपाल करीबी दोस्त बने रहेंगे। कुछ महीनों पहले दोनों देशों के बीच जो गलतफहमी आ गई थी, उसे दूर कर दिया गया है।
— खड्ग प्रसाद शर्मा ओली, प्रधानमंत्री, नेपाल
अहम समझौते
भारत और नेपाल के बीच के 'ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर' और कई राजमार्ग बनाए जाएंगे
नेपाल भारत के खिलाफ अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा
नेपाल में भूकंप के बाद पुनर्निर्माण के लिए भारत 25 करोड़ अमेरिकी डालर की मदद देगा
नेपाल के तराई क्षेत्रों में सड़क एवं बुनियादी सुविधाओं के लिए समझौता
साहित्य एवं कला क्षेत्र में समझौते
काकरबित्ता- बंगलाबांध कॉरिडोर के माध्यम से नेपाल-बंगलादेश के बीच पारगमन
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