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सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्री कलराज मिश्र का मुख्य जोर नवोन्मेष और कौशल दक्षता पर है। ऑर्गनाइजर के वरिष्ठ संवाददाता प्रमोद कुमार ने इस मंत्रालय की प्रगति और दृष्टि पर उनसे विस्तृत बातचीत की। यहां वार्ता के प्रमुख अंश दिए जा रहे हैं:
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय की वे कौन-सी प्रमुख योजनाएं हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त की हैं?
हमने अगस्त, 2015 में इंडिया एस्पिरेशन फंड (आईएएफ) और सॉफ्ट लोन फंड फॉर माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज (एसएमआईएलई) की शुरुआत छोटे उद्योगों को आसान ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की थी। आसान ऋण शर्तों पर कम अंश के अंतर्गत उपलब्ध कराया जा रहा है। स्टॉर्टअप इंडिया और स्टैण्डअप इंडिया के माध्यम से बैंकों द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध करवा कर उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के साथ रोजगार सृजन किया जा रहा है। इसी प्रकार माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (एमयूडीआरए) बैंक की स्थापना अप्रैल, 2015 में की गई थी, जो इन उद्योगों को तीन स्तर पर ऋण उपलब्ध करवाता है। रुपए 50,000 तक (शिशु), रुपए पांच लाख तक (किशोर) और रुपए 10 लाख तक (तरुण) के लिए। इसी प्रकार डिजिटल इम्पलॉयमेंट एक्सचेंज एक मंच है जहां उद्योग और रोजगार चाहने वाले अपनी आकांक्षा की पूर्ति करते हैं। मेक इन इंडिया अभियान के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय (एमएसएमई) ने एक वृहद् योजना बनाई है। उत्पाद और नवोन्मेष की प्रक्रिया, विविधता और बड़े बाजार का प्रयास हमारा लक्ष्य रहेगा, जो इस क्षेत्र के विकास में तो सहायता करेगा ही, साथ ही एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में इसे उभारने में भी सहायक होगा।
नवोन्मेष को बढ़ाने के लिए आप विशेष क्या कर रहे हैं?
हमारा मंत्रालय विशेष रूप से वैश्विक विकास के लक्ष्य को लेकर नवोन्मेष की ओर बढ़ रहा है। हमने इसके लिए एक विशेष निधि की योजना बनाई है-इंडिया इन्क्लूसिव इनोवेशन फंड। इसे जमीनी स्तर पर नवोन्मेष को बढ़ावा देकर आर्थिक वापसी की तरह सामाजिक वापसी के सिद्धांत पर चलाया गया है। यह निधि विकासशील नवोन्मेष उद्यमों के लिए प्राथमिक समाधान प्रस्तुत करेगी। विशेषकर उन नागरिकों के लिए जो भारत के आधे से कम आर्थिक वृत्त के अंतर्गत आते हैं। जिनके पास मूलभूत सेवाओं की पहंुच तक जाने के लिए सीमित भौतिक और सांस्थानिक साधन हैं। इसके लिए प्रस्तावित निधि 500 करोड़ रुपए तक और अधिकतम 5,000 करोड़ रुपए तक तय की गई है। हमने ऐसे कदम भी उठाए हैं जिनसे लगभग 200 करोड़ रुपए की निधि को तकनीकी केन्द्रों के नेटवर्क, नवोन्मेष, उद्यमिता और कृषि उद्योग के लिए समाहित किया जा सके। राष्ट्रीय स्तर पर 'डिस्ट्रक्टि लेवल इन्क्युबेशन एंड एक्सीलिरेटर प्रोग्राम' के अंतर्गत नये सुझाव और उद्यमिता के प्रोत्साहन के लिए अच्छा वातावरण बनाया गया है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग संगठन महसूस करता है कि सरकार को इसे क्रियान्वित करने के लिए और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। इस पर आप क्या कहेंगे?
यह स्थिति पहले थी, अब ऐसा नहीं है। हमने पिछले एक वर्ष में न केवल 80 कुटीर उद्योगों को स्वावलंबी बनाया है, बल्कि उनको अनुदान भी दिया गया है। अब कोई भी व्यक्ति वेबसाइट पर एक पृष्ठ पर प्रपत्र भरकर उद्योग का पंजीकरण करा सकता है और बिना दस्तावेज उपलब्ध कराए या छोटी से छोटी राशि उपलब्ध कराकर मिनट भर के अंदर पंजीकरण करा सकता है।
ऐसा आरोप लगता है कि बैंक इसमें पर्याप्त सहयोग नहीं देते?
नहीं, यह गलत है। ऐसा उस स्थिति में होता है, जहां लोग सक्रिय नहीं हैं। ऋण बिना किसी तीसरे पक्ष की गारंटी के उपलब्ध करवाया जाता है। यह प्रमाणित हो रहा है कि यह विशेष रूप से असंगठित सेवा क्षेत्र में लगे लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है। कुछ क्षेत्रों में बैंक इस आशंका से जरूर भयभीत रहते हैं कि उनका पैसा वापस आएगा या नहीं। इसको सही तरीके से देखने की जरूरत है।
बढ़ते प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को इन उद्योगों के विकास के लिए घातक माना जा रहा है। यह कहां तक सही है?
मैं ऐसा नहीं समझता और फिर उसी तथ्य की ओर जोर देना चाहता हूं कि हमारा मंत्रालय वैश्विक मंच पर आगे बढ़ रहा है। मुझे विश्वास है कि एफडीआई इस क्षेत्र में रीढ़ की तरह काम करेगा और आवश्यक तकनीकी साधनों को उपलब्ध कराने में सहायक होगा। यह भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्र के लिए एक उपलब्धि वाला सिद्ध होगा।
आपका मंत्रालय सूचना तकनीक और कौशल दक्षता के प्रयोग के विषय में क्या विशेष कर रहा है?
हम इस पर बहुत गंभीर हैं। हमने एनएसआईसी के माध्यम से कई विशेष केन्द्र खोले हैं। लगभग 10 केन्द्र शुरू हो चुके हैं और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत 100 और केन्द्र खोलने की योजना है। हम कौशल दक्षता को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक पर्याप्त ऋण प्रवाह की देखरेख हेतु एक विशेषज्ञ दल गठित करने का सुझाव दे चुका है। आप इस विषय में क्या सोचते हैं?
इसे संबंधित विभाग द्वारा पहले से ही लगातार और समय-समय पर आने वाली रिपोर्ट के आधार पर देखा जाता रहा है और इसके बाद मंत्रालय के पास आता है। आवश्कता यह एक ऐसे तंत्र को विकसित करने और प्रभावी विधि बनाने की है जो वाणिज्यिक बैंकों में होने वाले जुर्माने और अंशदान को सही ढंग से तय करे।
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