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वाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 1974-75 से नेशनल डिफेंस एकेडमी के अधिकारियों को स्नातक डिग्री देता आया है लेकिन जिस तरीके से 9 फरवरी को इस परिसर में देश के टुकड़े करने, बर्बाद करने की कसमें खाइंर् हैं यह काफी है कि नेशनल डिफेंस एकेडमी को जेएनयू के साथ रिश्ता तोड़ देना चाहिए। पहली बात तो यह कि हमारे अफसरों को उस किस्म की डिग्री देनी चाहिए जो उनके प्रोफेशनल करियर में काम आए। दूसरे यह डिग्री उस प्रतिष्ठित संस्थान से मिले जिसमें फौजी अफसर गर्व करें।
मैंने कई बार लिखा कि क्यों जेएनयू ये डिग्री देता है? सरकारी अफसरों को ये डिग्री पुणे विश्वविद्यालय क्यों नहीं दे सकता जो खड़कवासला के नजदीकी है। दूसरा पुणे विश्वविद्यालय में बहुत अच्छा रक्षा विभाग है। चूंकि आप सैनिक अफसरों को ये डिग्री दिला रहे हैं तो यह डिग्री उस विषय में होनी चाहिए जिसमें वे अगले 25-30 साल जीवन बिताएंगे।
पहले जो अफसर बनते थे वे स्नातक नहीं होते थे। वर्ष 1975 में सरकार और वामंपथी लोगों एनडीए के कैडेट को जल्दी से डिग्री जेएनयू से डिग्री दिलाने की राह बनाई। कई लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि जेएनयू किसी भी स्नातक डिग्री देने के लिए मशहूर नहीं है। वह तो पीएच.डी और मास्टर डिग्री देने के लिए मशहूर है। फिर इस अज्ञात सी स्नातक डिग्री के लिए जेएनयू तक की दौड़ क्यों? दरअसल जेएनयू को एनडीए अधिकारियों को डिग्री उपलब्ध कराने का माध्यम बनाकर सरकार ने इसे राजस्व उपलब्ध कराने की एक अतिरिक्त राह बना रखी है। एनडीए स्नातक कार्यक्रम के पर्यवेक्षण के लिए पैसे देता है और इससे विश्वविद्यालय का आर्थिक फायदा होता है। सवाल है डिग्री से फायदा होना किसका चाहिए? छात्र का या किसी खास शिक्षण संस्थान का?
यह सिर्फ लाभ और उपयोगिता का मामला भी नहीं है। दरअसल यह गठजोड़ अपने आप में विरोधाभासी है। एनडीए में जहां शराफत और तहजीब सिखाई जाती है वहीं दूसरी तरफ जेएनयू में देशद्रोहियों को हीरो बनाया जाता है। जेएनयू का माहौल सेना और इसके समपिर्त लोगों के स्वभाव से बिलकुल अलग है। इनके बीच कोई तालमेल ही नहीं है। ऐसे में इनके बीच कैसे आपस का रिश्ता बन सकता है।
इसी से खिन्न होकर एनडीए के अफसरों ने कहा है कि हम जेएनयू की डिग्री वापस करना चाहते हैं। आज अफजल गुरू और मकबूल बट के हक में पोस्टर, नारे और प्रदर्शन देखकर उन्हें शर्म आती है कि उनके पास वहां से मिली डिग्री है जहां भारत को तोड़ने और बर्बाद करने की बातें की जाती हैं। ज्यादातर लोगों को तो ये भी पता नहीं होगा कि मकबूल बट्ट कौन है? मकबूल बट्ट वह आतंकी था जिसने किसी भारतीय विमान को पहली बार हाईजैक किया था और घाटी में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाया था। किसी शैक्षिक संस्थान के भीतर गद्दारों के पक्ष में ऐसा माहौल और प्रदर्शन देश के लिए दुखद तो हैं ही, यह घटना सैनिकों के लिए बहुत ही दु:खद है। जिस सप्ताह सियाचिन में हमारे जवान शहीद हुए । वह कैसी स्थिति से निकाले गए। सामान्य व्यक्ति तो वहां सांस नहीं ले सकता। ठीक उसी सप्ताह देश की राजधानी में भारत की बबार्दी की बातें की जाती हैं। अफजल गुरु और मकबूल बट्ट की जयजयकार होती है।
अगर जेएनयू के लोग इतने ही संविधान को मानते हैं तो इनको सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने ये फैसला दिया था कि अफजल संसद हमले का दोषी था।
मारूफ रजा
(लेखक आतंकवाद और पाकिस्तान से
जुड़े विषयों पर लिखते हैं)
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