रपट/श्री हरि सत्संग समिति – कथाकारों की अनंत कथा

Published by
Archive Manager

दिंनाक: 15 Feb 2016 12:41:05

बाहर गुनगुनी धूप के कारण हल्की गर्मी थी, तो अन्दर हारमोनियम और तबले की संगत से निकल रही धुन का लोग आनन्द ले रहे थे। पूरा सभागार देशभक्ति और देवभक्ति के नारों से गंूज रहा था। जगह थी वृन्दावन के केशवधाम स्थित श्रीकृष्ण कथा प्रशिक्षण केन्द्र। नारे लगाने वाले युवकों का जोश और जज्बा ऐसा कि जो भी उनके बारे में सुनता या पढ़ता है वह उनकी और अधिक जानकारी लेने के लोभ से अपने को रोक नहीं पाता। श्री हरि सत्संग समिति प्रशिक्षण केंद्र में इन दिनों 32 युवक श्रीकृष्ण कथा का छह महीने का प्रशिक्षण ले रहे हैं। अभी इनके प्रशिक्षण के दो ही महीने हुए हैं, लेकिन इनके ज्ञान, व्यवहार और वाक्पटुता से हर कोई हैरान है। सिक्किम का सुरेश घिमिरे, जिसकी आयु 16 वर्ष है, सबसे कम उम्र का प्रशिक्षणार्थी है। क्या घर की याद नहीं आती? इस पर वह कहता है,''मेरा परिवार कर्मकांडी है। मेरे माता-पिता चाहते हैं कि मैं इसी तरह की पढ़ाई करूं, ताकि घर चलता रहे और समाज का भी काम हो। आज समाज में धर्म को लेकर अनेक गलत धारणाएं हैं। यदि मैं उन गलत धारणाओं को कुछ भी कम कर पाया तो श्री हरि सत्संग समिति के प्रति आभारी रहूंगा।''
प्रशिक्षण लेने वाले  युवकों में नेपाल के आठ, सिक्किम के दो, पश्चिम बंगाल के चार, महाराष्ट्र के छह और उड़ीसा के 12 हैं।  केन्द्र प्रमुख रामसुखदास पांडे बताते हैं, ''ये युवक सुदूर गांवों के हैं और वृन्दावन आने से पहले अच्छी तरह हिन्दी भी नहीं बोलते थे, लेकिन अब अच्छी हिन्दी बोलते हैं। तपस्वी जैसा जीवन जी कर कथाकार बनते हैं और यही वनवासी और पिछड़े इलाकों में धार्मिक क्रांति ला रहे हैं।'' ये युवक सत्संग समिति की देखरेख में हरि कथा योजना के तहत कथा करने का प्रशिक्षण ले रहे हैं। केन्द्र के प्राचार्य ब्रह्मचारी सोमनाथ आचार्य कहते हैं, ''ये कथा करने बहुत ही साधारण परिवारों से हैं, लेकिन इनका काम असाधारण है।''
ओडिशा में बलांगीर जिले के धर्मेन्द्र ने 12वीं तक पढ़ाई की है और अभी केन्द्र में प्रशिक्षक हैं। छह वर्ष पहले इन्होंने खुद यहां कथाकार का प्रशिक्षण लिया था। वे कहते हैं, ''यहां युवकों को केवल कथाकार का ही प्रशिक्षण नहीं दिया जाता, बल्कि उन्हें एक सभ्य नागरिक बनने के सारे गुण बताए जाते हैं। इससे सुदूर गांवों में एक नई सोच पैदा हो रही है और यह सोच भारतीय संस्कृति और जीवन-मूल्यों को आगे बढ़ाती है।'' नेपाल में धनकुटा जिले के निवासी भोगेन्द्र गुगाय भी यहां प्रशिक्षक हैं। उन्होंने भी कुछ वर्ष पहले इसी केन्द्र में कथाकार का प्रशिक्षण लिया था। वे बताते हैं,''गांवों में कथा, कीर्तन और सत्संग करने से लोगों में अपने धर्म और संस्कृति के प्रति रुचि बढ़ रही है।''  
छह महीने के प्रशिक्षण से पहले इन्हें उनके क्षेत्र में ही एक महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यवतमाल (महाराष्ट्र) से आए प्रशिक्षणार्थी संजय पिंगले कहते हैं, ''दो वर्ष पहले हमारे गांव में श्री हरि सत्संग समिति के कार्यकर्ता आए थे। उनकी प्रेरणा से समाज के लिए कार्य करना शुरू किया। जब से समाज का कार्य कर रहे हैं तब से हमारे घर में झगड़े बन्द हो गए हैं। यहां से प्रशिक्षण लेने के बाद उसी अच्छाई को और बढ़ाने का काम करना है।''
कार्तिक पाल नवद्वीप केन्द्र के पहले प्रशिणार्थी हैं और इन दिनों यहां प्रशिक्षण दे रहे हैं। वे कहते हैं, ''यदि मैं समिति के साथ नहीं जुड़ता तो आज पुश्तैनी काम (मिट्टी के बर्तन) ही करता या तो रिक्शा चलाता। कथाकार का प्रशिक्षण लेने के बाद मुझे जीवन की दिशा मिल गई और वह दिशा है भारत मां की सेवा करना।'' एकल संस्थान के केन्द्रीय संयुक्त संगठन मंत्री अमरेन्द्र विष्णुपुरी कहते हैं, ''प्रशिक्षण इन चार सूत्रों पर टिका है-शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक। जो छह महीने का प्रशिक्षण पूरा कर लेते हैं, उन्हें व्यास कथावाचक कहा जाता है।'' प्रशिक्षण के बाद इनसे कम से कम चार वर्ष तक समिति के साथ काम करने का संकल्प पत्र भरवाया जाता है। तब अपने-अपने क्षेत्र में जाते हैं और वहां के संच (30 गांवों के समूह को संच कहा जाता है) सत्संग प्रमुख के साथ मिलकर काम करते हैं। ये कथाकार सामाजिक दोषों को दूर करने में उत्प्रेरक बन गए हैं।    ल्ल

क्या है श्री हरि सत्संग समिति  
1995 में बनी यह समिति एकल अभियान का एक हिस्सा है। इसके सूत्रधार हैं वरिष्ठ संघ प्रचारक श्री श्याम गुप्त। एकल अभियान के तहत पूरे देश में लगभग 50,000 गांवों में प्राथमिक शिक्षा, आरोग्य शिक्षा, विकास शिक्षा, जागरण शिक्षा और संस्कार शिक्षा दी जाती है। संस्कार शिक्षा का दायित्व इस समिति के पास है। इसके अन्तर्गत 46,000 गांवों में संस्कार केन्द्र चल रहे हैं। इन केन्द्रों के जरिए गांवों को समरस, संस्कारित, संगठित और सुरक्षित बनाया जा रहा है। समिति का पूरा खर्च दान से चलता है। धन संग्रह का दायित्व नगर संगठनों के पास है। विभिन्न नगरों में ऐसे कार्यकर्ताओं की संख्या लगभग 5,000 है। ग्राम संगठनों के साथ लाखों कार्यकर्ता जुड़े हैं। समिति का मुख्यालय मुम्बई में है। मुम्बई, सिलीगुड़ी और नवद्वीप में समिति के अपने भवन हैं।    -अरुण कुमार सिंह, वृंदावन से लौटकर

Share
Leave a Comment
Published by
Archive Manager