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आवरण कथा 'खतरनाक खेल' से स्पष्ट होता है कि मालदा हिंसा एक सोची-समझी साजिश थी। असल में कमलेश तिवारी तो महज एक बहाना था। असली मकसद तो बंगाल और मालदा के आस-पास के क्षेत्रों में खौफ पैदा करना था। कलियाचक में उन्मादियों ने सिर्फ हिन्दुओं को ही निशाना नहीं बनाया, उनके निशाने पर पुलिस भी थी। राज्य में खुलेआम यह हिंसा होती रही लेकिन ममता सरकार इस पर बिल्कुल मौन साधे रही।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
ङ्म आखिर वोट बैंक के लिए सरकारें कैसे मुंह बंद कर लेती हैं, मालदा हिंसा को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। मालदा में लाखों उन्मादियों की भीड़ ने कमलेश तिवारी के बहाने जो हिंसा की उस पर असहिष्णुता का राग अलापने वालों ने अपना मुंह सिल लिया। असल में जिस तरह से बंगाल में मुसलमान आबादी बढ़ रही है, वह चिंताजनक है। साथ ही नशा, जाली नोट और अवैध घुसपैठ को राज्य सरकार पू्ररी तरह से रोकने में असफल रही है। सरकार नहीं चेती तो ऐसे उपद्रव और हो सकते हैं।
—हरिओम जोशी, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म मालदा और उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों में राजनीतिक और साम्प्रदायिक तनाव जानबूझकर उभारा जा रहा है। इसके पीछे विधानसभा चुनाव है। ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम तुष्टीकरण को बढ़ा दे रही हैं। वह जानती हैं कि इन उन्मादियों को शह देने से उनका यह वोट बैंक और मजबूत होगा।
—शान्ति कुमार साहू, बुलन्दशहर (उ.प्र.)
ङ्म सलमान रश्दी की 'सटैनिक वर्सेज' पर भारत सरकार ने सबसे पहले प्रतिबंध लगाया था, फिर भी देशव्यापी प्रदर्शन हुए और हिन्दुओं की संपत्तियां जलायी गईं। कमलेश तिवारी द्वारा पैगम्बर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और रासुका लगाकर उत्तर प्रदेश सरकार ने जेल में भी डाल दिया था। पर इतने के बाद भी मध्य प्रदेश के टोंक, बिहार के पूर्णिया में और बंगाल के मालदा में मुसलमानों जिस प्रकार उत्पात मचाकर हिन्दुओं को निशाना बनाया, वह बताता है कि कानून में उनको कोई विश्वास नहीं है। सेकुलर नेताओं ने इन घटनाओं को सामान्य घटना बताकर इतिश्री कर ली। आखिर ये लोग कितना गिरेंगे?
—रमेश कुमार मिश्र, अंबेडकरनगर (उ.प्र.)
ङ्म केन्द्र में जब से नरेन्द्र मोदी सरकार बनी है तब से कांग्रेस और उनके सहयोगी दल छोटी-छोटी बात को बढ़ाकर रस्सी का सांप बनाने पर तुले हुए हैं। वह ऐसे मौके की तलाश में रहते हैं जिसके कारण देश में अशान्ति उत्पन्न हो और उन्हें राजनीतिक रोटियां सेंकने का अवसर मिले। मीडिया उन्हें इस काम में बड़ा सहयोग करता है। सेकुलर नेताओं ने तो यह तय कर लिया है कि कोई भी घटना घटे उसके लिए नरेन्द्र मोदी को ही दोषी ठहराना शुरू कर दो और तब तक झूठ बोलते रहो जब तक यह लोगों को सच न लगने लगे। हर बार इन लोगों द्वारा ऐसा ही किया जाता है और कुछ हद तक वे सफल भी रहते हैं।
—जमालपुरकर गंगाधर, हैदराबाद (तेलंगाना)
ङ्म आतंकवाद और साम्प्रदायिक घटनाओं के पैरोकार देश की व्यवस्था को खोखला करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। दिन-प्रतिदिन इसके भयावह दृश्य हमें देखने को मिलते ही रहते हंै। लगातार हो रही साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं ने देश की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
—रामप्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
कांग्रेस की करतूत
रपट 'समय का सत्यानाश' (24 जनवरी, 2016) कांग्रेस की ओछी हरकत को दिखाता है। संसद का कीमती समय नष्ट करके राष्ट्र के विकास को रोके रखना ही कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की साजिश है। ये दल नहीं चाहते हैं कि भाजपा की सरकार में कोई विकास हो। वे तो यह चाहते हैं कि सहयोगी दलों को एकजुट करके संसद को बाधित करें। मीडिया में गलत संदेश दें। जनता को बरगलाएं। इस बार इन दलों ने यही तरकीब अपनाई और सफल रहे। लेकिन उनकी यह नीति अधिक दिनों तक नहीं चलने वाली। देश की जनता सब समझ चुकी है। कांग्रेस और उसके सहयोगी ये समझते हैं कि आने वाले राज्यों के विधानसभा चुनाव में हम केन्द्र की खामियों को बताएंगे। तो उन्हें पता होना चाहिए कि देश की जनता सब जानती है।
—डॉ. टी.एस.पाल, चंदौसी, संभल (उ.प्र.)
ङ्म बड़ी हैरानी की बात है कि राजनीतिक दलों के लिए स्वयं के हित राष्ट्र के हित से भी बढ़कर हो गए हैं। वे अपने स्वार्थों के आगे देश के विकास को रोक रहे हैं। अनावश्यक मुद्दों पर देश का ध्यान भटकाकर संसद को बाधित कर रहे हैं। उन्हें खीज है कि वे लोकसभा चुनाव हारे हैं इसलिए भाजपा को काम नहीं करने दे रहे हैं। यह सब बताने के लिए काफी है कि विकास के दुश्मन कौन हंै।
—भेरूलाल भोई, चित्तौड़गढ़ (राज.)
हैदराबाद ही क्यों?
हैदराबाद में एक छात्र की आत्महत्या पर बवाल खड़ा करने वालों को मालदा क्यों नहीं दिखाई देता? मालदा में क्या मानवता पर कुठाराघात नहीं हुआ? राहुल गांधी और केजरीवाल ने मालदा पर न ही कुछ बोला और न ही उन्हें अब तक यहां जाने का समय मिला। कांग्रेस के युवराज इतने बुद्धिमान हैं कि अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत वहां पहुंचे और अनशन करके केन्द्र सरकार के दो मंत्रियों का इस्तीफा मांगा। राहुल गांधी जैसे नेता जो असहिष्णुता को हवा देने और कांग्रेस के खिसकते जनाधार को साधने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें यह पता होना चाहिए कि मामला राज्य सरकार का है, तो फिर केन्द्र सरकार इसे लेकर क्यों जिम्मेदार है?
—प्रदीप सिंह राठौर, पनकी, कानपुर (उ.प्र.)
आनन्ददायी रिपोर्ट
'संगम सज्जन शक्ति का' विषय पढ़कर बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ। यह रपट उन सेकुलरों को समझने के लिए जरूरी है जो संघ को पूर्वाग्रह की नजरों से देखते हैं। आज जो भी लोग संघ का किसी न किसी कारण से विरोध करते हैं वे पहले संघ को समझें। इसके लिए उन्हें शाखा में जाना होगा, संघ को पढ़ना होगा और जब वे यह कर चुके होंगे तब उन्हें संघ की वास्तविक स्थिति पता चल चुकी होगी। संघ शाखाओं में व्यक्ति निर्माण किया जाता है। यहां व्यक्ति में संस्कार, राष्ट्र प्रेम कूट-कूटकर भरा जाता है। इसलिए संघ को पूर्वाग्रह से देखना बंद करें और संघ को समझने का प्रयास करें।
—अशोक वर्मा, देहरादून(उत्तराखंड)
ङ्म कहीं भी कोई आपदा आती है तो वहां पर संघ के स्वयंसेवक देवदूत बनकर पहुंच जाते हैं। कितनी भी भीषण स्थिति क्यों न हो, वे सेवा करने से पीछे नहीं हटते। इस दौरान इनका सिर्फ एक ही ध्येय होता है मानवता की सेवा करना। इसमें वह किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करते। संकट में जो भी फंसा होता है उसे उबारने का काम करते हैं। चेन्नै में आई बाढ़ के समय इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला। प्राणों की चिंता किए बिना बाढ़ में फंसे लोगों को वे बचा रहे थे, लेकिन दु:ख तब होता है कि जब मीडिया को कभी यह दिखाई नहीं देता।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार(नई दिल्ली)
ङ्म रपट 'दर्द बांटा, मुस्कान लौटाई' सेवाभावी स्वयंसेवकों के कार्य को दर्शाती है। इसे पढ़कर प्रेरणा मिलती है। वास्तव में चेन्नै बाढ़ में जिस तरह से भयानक स्थिति थी उसमें स्वंयसेवकों ने जो नि:स्वार्थ सेवा की वह प्रशंसनीय है।
—श्याम कुमार, पंचकुला(हरियाणा)
सच सेवा का
भारत में मिशनरी सिर्फ और सिर्फ कन्वर्जन के एजेंडे को लेकर काम कर रहे हैं। उनके मन में कोई सेवा की भावना नहीं है। भारत के लोग इनके छद्म स्वरूप को क्यों नहीं समझते? गजब का फरेब, झांसा, बरगलाना, चमत्कारों की झूठी कहानियां बुनना, ईसाइयत को शक्तिशाली दिखाना और हिन्दुत्व को कमजोर दिखाना, यही उनकी मानसिकता है। टेरेसा की संतई पर सवाल उठना चाहिए और उनके कामों की छानबीन होनी चाहिए क्योंकि उनके छल-प्रपंचों से अभी भी बहुत से लोग अनभिज्ञ हैं।
—मिश्रीलाल कच्छवाहा, जोधपुर (राज.)
पुरस्कृत पत्र – विकास की आस में मुसलमान
कई प्रदेशों में राज्य के विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। राजनीतिक दल मुसलमानों को लुभाने और उन्हें अपने पाले में करने लिए ढेर सारे वादे कर रहे हैं। चुनाव होता है और हर बार राजनीतिक दल इसी तरीके से मुसलमानों को लुभाने के लिए ढेर सारे वादे करते हैं। लेकिन इसके बाद भी आज मुस्लिम समाज शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ा है। आखिर मुसलमानों की इस हालत के लिए दोषी कौन है? कारण साफ है कि राजनीतिक दलों ने आज तक मुसलमानों को वोट बैंक समझकर ही प्रयोग किया और मुसलमान हर बार उनके झांसे में बड़ी ही आसानी से फंसते रहे। दूसरी ओर मुसलमानों का दु:ख-दर्द दूर करने का दम भरने वाले उनके अपने भी कहीं न कहीं उन्हें ठगने का मौका ढूंढते रहते हैं। क्या ये लोग केवल सरकार पर दोष मढ़कर अपनी जिम्मेदारियों से नजरें नहीं चुरा रहे हैं? एक चौंकाने वाला आंकड़ा वक्फ की संपत्तियों की वार्षिक आय को लेकर सामने है। हम में से अधिकांश लोग यह नहीं जानते होंगे कि विश्व में सबसे अधिक वक्फ की संपत्ति कहीं है तो वह भारत में है। सच्चर कमेटी ने यह आकलन किया था कि यदि वक्फ की संपत्तियों को समुचित रूप से विकसित किया जाये तो इससे लगभग 12,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की आय हो सकती है। लेकिन कांग्रेस सरकार ने इस रपट की पूरी तरह से अनदेखी कर दी। मुस्लिम समाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ बड़ी ही आशा भरी नजरों से देख रहा है। उन्होंने अल्पसंख्यकों के विकास के लिये कई योजनाओं की घोषणा भी की है। सरकार अगर वक्फ की संपत्तियों को कब्जामुक्त कर समुचित रूप से विकसित कर दे तो 12,000 करोड़ रुपये की आमदनी से मुसलमानों की स्थिति में परिवर्तन आ जाएगा। —शहनवाज हुसैन
एनई-2, जतिन्द्रा अपार्टमेंट, शुक्ला कॉलोनी हीनू,रांची(झारखंड)
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