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मुबई की एक सामान्य सुबह। गेटवे ऑफ इंडिया के करीब अरब सागर के बोझिल नमकीन झोंकों को ओढ़े 'ताज' शांत था। पंचसितारा होटल की कॉफी शॉप सात साल पहले उठे धुंए के उस गुबार, गोलियों की उस तड़तड़ाहट और खून सनी उन चीखों को झटककर सामान्य हो चुकी थी जिन्होंने तब पूरे देश और दुनिया को थर्रा दिया था। लेकिन वे झटके शायद अब कुछ और लोगों के लिए सिहरन पैदा कर रहे थे।
आतंकवाद को कानूनी ढंग से कब्र का रास्ता दिखाने के पर्याय बन चुके लोक अभियोजक? अमेरिका की जेल से गवाही दे रहे डेविड हेडली से सरकारी वकील उज्ज्वल निकम के सवाल मामले पर निगाह रखने वाली कई पेशानियों पर बल डाल रहे थे। निकम अमेरिका की एक जेल में कैद पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी आतंकी दाउद सैयद गिलानी उर्फ डेविड हेडली को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सात फरवरी से कुरेद रहे थे। उसी दिन पाकिस्तानी आतंकी नेटवर्क के सूत्रधारों पर नजर रखने वाले दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार के मोबाइल पर ट्विटर संदेश घनघनाया।
हाफिज सईद, जेयूडी के ट्विटर खाते से निकला यह संदेश 26/11 के हमले पर लिखी एक किताब को लेकर था। शरारत या षड्यंत्र! इसका उद्देश्य कुछ भी हो सकता था।
ट्वीट था-''26/11-आरएसएस की साजिश किताब पढ़ रहा हूं जो यह साबित करती है कि मुंबई हमले से जमात उद दावा और आईएसआई का कुछ लेना-देना नहीं है।''
मुंबई हमले को पृष्ठभूमि बनाते हुए अजीज बर्नी द्वारा 2010 में लिखी गई किसी किताब को लेकर इतने सुनियोजित तरीके से किया गया ट्वीट काफी कुछ कह गया।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व सरकारी वकील पवन शर्मा कहते हैं, ''खुद या खुद से जुड़े मुद्दे पर लोगों का ध्यान भटकाने की यह आम आपराधिक चाल है।'' लेकिन, 2008 से 2016 तक के सामाजिक-राजनीतिक अनुभवों ने भारतीय जनता को सच-झूठ का बारीक अंतर पकड़ने की कला सिखा दी है।
ट्वीट से माहौल बनाने का वार खाली गया। अगले दिन जब हेडली ने इशरत जहां के लश्करे तोएबा की महिला सदस्य होने वाला बयान-बम दागा तो कई लोग बौखला गए। वैसे, यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तानी आतंकियों के साथ पुलिस मुठभेड़ में मारी गई इशरत तक को सेकुलर राजनीति ने पूरी बेशर्मी से हमदर्द मुहैया कराए थे।
गुजरात दंगों के पीछे की कहानी को उघाड़ती तथ्यपरक पुस्तक 'गुजरात रॉयट्स: द ट्रू स्टोरी' के लेखक मन्मथ देशपांडे कहते हैं, ''इशरत आतंकी थी, यह बात पहली बार हेडली के मुंह से हमारे सामने नहीं आई है, 2004 में चर्चित इशरत एनकाउंटर के एक माह बाद खुद लश्करे तोएबा के अधिकृत बयान में उसे आतंकी संगठन का सदस्य माना गया था।''
लेकिन संदिग्ध-विवादास्पद किताबों, ट्विटर चालबाजियों या इशरत के लिए इंसाफ जैसे प्रदर्शनों के जरिए देशद्रोहियों से ध्यान हटाने और राष्ट्र को मजबूत करने वाली शक्तियों को लांछित करने की ऐसी चाल कौन चल सकता है?
यह जानना दिलचस्प है कि इशरत, पाकिस्तान और इस्लामी आतंकी संगठनों के हेडली द्वारा राज खोले जाने के दिन जहां इशरत को 'बेटी' बताने वाले राजनेता पत्रकारों से छिपते घूम रहे थे वहीं खुलासे से काफी पहले अपनी घोर आपत्तिजनक और आधारहीन पुस्तक के लिए अजीज बर्नी माफी मांगकर किनारे हो लिए थे। पहले साजिश और फिर पल्ला झाड़ना, सेकुलर-वामपंथी टोलियों की खूबी है या सिर्फ संयोग?
फिल्म, मनोरंजन और अपराध के रिश्तों पर काम कर रही स्वाति गौड़ कहती हैं, ''शायद यह संयोग ही है कि जिस डेविड हेडली के बयान आज सेकुलर राजनीति को मुंह छिपाने को मजबूर कर रहे हैं उस हेडली से प्रख्यात फिल्मकार महेश भट्ट के पुत्र राहुल भट्ट् की मित्रता रही है।'' वैसे, बात यहां तक है कि हेडली ने 26/11 हमले से पहले राहुल को ईमेल पर सलाह भी दी थी कि वे दक्षिण मुंबई की तरफ न जाएं।
मुंबई के फिल्म और साहित्य गलियारों में लगातार सक्रिय एस. त्यागी एक और संयोग की ओर इशारा करते हैं। झूठ पर टिकी जिस किताब के लिए लेखक को माफी मांगनी पड़ी उसके लिए खास राजनीतिक दल और विचारधारा के लोगों ने जोर लगाया था। ''तथ्यों से दूर राजनीतिक-राष्ट्रविरोधी साजिश की बू मारती इस किताब के लोकार्पण कार्यक्रम में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और खुद महेश भट्ट शामिल हुए थे।''
बहरहाल, 2008 से 2016 तक भारत भारी बदलावों का साथी रहा है। देश के सामाजिक तंत्र को निशाना बनाती, लोगों को बांटती और गहरे दंश देती सेकुलर राजनीति के छल समय के इस सफर में खुले हैं। हेडली जब खुला खतरनाक आतंकी था तब वह मुंबई में कुछ लोगों का प्यारा था। अपने आतंकी साथियों के साथ देश के शीर्ष नेताओं की हत्या का षड्यंत्र रचती इशरत कुछ लोगों की भोली सी बिटिया थी।
भोले और भाले का फर्क समझते लोग हेडली के हर बयान को पूर्व की घटनाओं, बयानों से जोड़कर पढ़-देख रहे हैं। खुलासों से सहमी सेकुलर टोलियां सत्ता से तो ठेली ही गईं, जेएनयू जैसे अपने आखिरी गढ़ों में भी घिर चुकी हैं। हेडली की गवाही के बीच, ताज से कुछ दूरी पर लियोपॉल्ड कैफे में युवा मुस्कुराहटों के बीच कॉफी की भाप भविष्य की खुशबुएं लिए तैर रही है।
-विशेष संवाददाता
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