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बाल-चौपाल
देहरादून। कला किसी की बपौती नहीं होती। जिस पर मां सरस्वती की कृपा हो जाए वही अच्छा कलाकार, गीतकार संगीतकार तथा विभिन्न कलाओं का महारथी बन सकता है। ऐसे ही कलाकारों में सेंट जूड्स स्कूल देहरादून के नौवीं कक्षा के छात्र ईशान चतुर्वेदी का भी नाम शामिल हो गया है। ईशान देसी ही नहीं विदेशी कला में भी पारंगत है, जिसे ऑरीगैमी नाम दिया गया है। चीन की यह कला कागजों के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है। कागज बिना काटे केवल मोड़ के आधार पर कलाकृति बनाई है। ईशान की कृतियां अच्छे-अच्छे कलाकारों को प्रभावित कर रही हैं। जहां लोग छेनी, हथौड़ी, कूची, चाक, तूलिका, कैंची से अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, वहीं ईशान चतुर्वेदी कागज को मोड़कर ऐसी कृतियां बना देता है, जो लोगों को आकर्षित करती हैं। यह कलाकृतियां 'न भूतो न भविष्यति' के मुहावरे को साकार करती हैं। लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि एक कलाकार कागज को मोड़कर बिना काटे या फाडे़ केवल मोड़ के आधार पर उन्हें कला का रूप दे देता है। इसमें हवाई जहाज, कबूतर, शुतुरमुर्ग,ऊंट के अलावा तरह-तरह के फूल शामिल हैं। ईशान का कहना है कि ऑरीकॉमी पद्घति के माध्यम से यह कार्य किया जाता है। बाद में कॉमी को गैमी के रूप में पुकारा जाने लगा। ऑरी का अर्थ है फोल्डिंग, कॅामी का अर्थ जापानी भाषा में कागज़ से लिया गया है। आगे चलकर यह नाम ऑरीगैमी नाम से भी पुकारा जाने लगा। यह पेपर फोल्डिंग की कला है, जो जापान की संस्कृति से जुडी़ हुई रही है। इस कला में किसी भी कागज़ को पहले चौकोर रूप में लाया जाता है, फिर बिना काटे तरह-तरह से फोल्ड करके किसी भी आकृति में परिवर्तित कर सुन्दर मूर्त रूप दे दिया जाता है। विभिन्न तरह की आकृतियां अलग-अलग तरीकेे से फोल्ड करके बनायी जाती हैं। आज कला भारत में नये रूप में कला प्रेमियों को आकर्षित कर रही है। ईशान चतुर्वेदी अपनी प्रतिभा से इस पेपर फोल्डिंग कला को प्रदर्शित कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। ईशान का कहना है यह ऑरीगैमी कला कल्पना को सुन्दर और आकर्षक रूप देने में पूर्ण सक्षम है। वह बताते हैं कि यह कला वैज्ञानिक दृष्टि से भी भरपूर उपयोगी सिद्घ हुई है, जैसे कार के एयर बैग फोल्ड करने, सैटलाइट के पैनल को फोल्ड करने, टेलीस्कोप के लैन्स फोल्डिंग में और पैराशूट फोल्ड करने में। आज भारत में इस कला की ओर बच्चे एवं बडे़ सभी रुचि ले रहे हैं। चीन में हान डाइनेस्टी के समय लगभग 2,000 वर्ष पूर्व जब से कागज का जन्म हुआ तभी से इस कला का भी विकास हुआ। आज यह कला अपने चरम पर है। ईशान का कहना है कि भारत में इस कला का उतना अधिक विकास नहीं हो पाया है जितना होना चाहिए था। उनका यह मानना है कि कला किसी की जागीर नहीं होती। कलाकार कला को अपनी सृजन क्षमता और प्रतिभा के अनुसार विकसित कर सकता है। अपनी कल्पना को कागजों के माध्यम से मूर्त रूप देना उनकी आदत में शामिल है। ईशान के पिता एस़ के. चतुर्वेदी एवं माता आरती चतुर्वेदी इस काम में उनको प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनको प्रोत्साहन देने वाले ज्ञानेन्द्र कुमार, जो वन अनुसंधान संस्थान के शीर्ष अधिकारी रहे हैं, पूरी तरह प्रयासरत हैं कि ईशान की इस कला को आगे बढ़ाया जाए। ज्ञानेन्द्र कुमार उत्तराखंड के प्रमुख कलाकारों में शामिल हैं। उनकी गिनती कला के राष्ट्रीय मर्मज्ञों में होती है। ईशान ने कबूतर, मुर्गा तथा फूल जैसी कठिन कृतियां बनाकर लोगों को दिखायीं जो इस बात का प्रमाण हैं कि कला केवल पठन-पाठन से प्राप्त नहीं की जाती बल्कि इसके पीछे सतत् साधना और अभ्यास बहुत जरूरी है। ऑरीगैमी कला जो चीन में पैदा हुई है उसको भारत में आधार देने वाले नन्हें कलाकार ईशान पढ़ाई के साथ-साथ नित निरंतर नई कलाकृतियां बनाने को आदत में शामिल करते जा रहा हैं। राम प्रताप मिश्र
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