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''जांच होगी तो गुनहगार नहीं बचेंगे''

by
Feb 8, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Feb 2016 12:00:26

 

हैदराबाद विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग में शोध छात्र और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की विश्वविद्यालय ईकाई के अध्यक्ष एन. सुशील कुमार पर 3 अगस्त, 2015 को करीब 40 लोगों के जानलेवा हमले के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोहित वेमुला सहित पांच छात्रों को छात्रावास से निकालने का निर्णय लिया था। सुशील कुमार हाल ही में दिल्ली में थे। आर्गेनाइजर के वरिष्ठ संवाददाता प्रमोद कुमार ने उनसे मिलकर उन अनछुए तथ्यों को समझने का प्रयास किया, जिनसे अभी तक कुछ लोग अनजान हैं। सुशील कहते हैं,''यदि निष्पक्ष जांच होती है तो असली गुनहगार बहुत जल्दी सामने आ जाएंगे।'' प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश :

 रोहित वेमुला की आत्महत्या से पहले वास्तव में क्या हुआ था?
जिन तत्वों के साथ रोहित जुड़ा था उन्होंने 30 जुलाई, 2015 को हैदराबाद के शॉपिंग कॉम्पलेक्स में याकूब मेनन को श्रद्धांजलि देने के लिए नमाज-ए-जनाजा का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने आतंकी मेमन की फांसी का विरोध करते हुए उसके कुकृत्यों की प्रशंसा की। इसके पहले वे अफजल गुरु के लिए भी ऐसा ही कर चुके हैं। इसके बाद 2 अगस्त को मैंने एक फेसबुक पोस्ट देखा जिसमें नमाज-ए-जनाजा के साथ घोर आपत्तिजनक पंक्तियां लिखी हुई थीं- ''अगर एक याकूब मर गया तो हर घर से एक याकूब निकलेगा; हे याकूब तुम्हारे खून से इंकलाब निकलेगा।'' यह पोस्ट देखकर ही मेरे जैसे अनेक विचलित हो गए थे। इसके बाद हम लोगों ने तय किया कि 4 अगस्त को प्रशासनिक भवन के बाहर इसके खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। हमने एक पोस्टर भी जारी किया, जिसमें आतंकी मेमन की प्रशंसा करने वालों को 'गुंडा' कहा गया था। इसके बाद 3 अगस्त की रात को करीब 12.30 बजे 30-40 लोगांे ने छात्रावास स्थित मेरे कमरे पर धावा बोल दिया और फेसबुक पोस्ट के संबंध में मुझसे सवाल दागने लगे। मैं उनसे बार-बार शान्त रहने की गुजारिश कर रहा था लेकिन वे मेरी एक भी सुनने को तैयार नहीं थे। इसके बाद वे मुझे छात्रावास के बाहर जबरदस्ती ले गये और निर्दयतापूर्वक पीटना शुरू कर दिया। वे चाहते थे कि मैं उन्हें गुंडा कहने पर माफी मांगू। अंतत: अपनी जान बचाने के लिए मुझे उनकी बात माननी पड़ी। मैं जैसे ही उनके चंगुल से छूटा मैंने तत्काल स्थानीय सुरक्षा अधिकारी तथा पुलिस को फोन किया। इसी बीच कुछ सुरक्षाकर्मी वहां आ गये और उन्होंने मुझे अपनी वैन में बैठा लिया। लेकिन उन्होंने मुझे उस गाड़ी से भी बाहर खींच लिया और पीटा। इसके बाद उन्होंने मुझसे माफीनामा लिखाया और उसे तत्काल फेसबुक पर पोस्ट करने को कहा। इसके लिए वे मुझे सुरक्षा कक्ष में ले गए और वहीं से माफीनाामा फेसबुक पर पोस्ट कर दिया। इसके बाद मुझे जैसे ही मौका मिला मैंने अपने फेसबुक एकाउंट को निष्क्रिय कर दिया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि उसे देखकर हमारे कार्यकर्ता हतोत्साहित हों। इस पूरी घटना के बाद मैंने अपने भाई को फोन किया और जब विश्वविद्यालय के अस्पताल में इलाज का मौका नहीं मिला तो मुझे वे तत्काल बाहर के अस्पताल में ले गए जहां रात में ही मेरी शल्य चिकित्सा हुई।
 विश्वविद्यालय प्रशासन  से आपने हमले के संबंध में शिकायत नहीं की?
जब मैं अस्पताल में भर्ती था तो हमारी विश्वविद्यालय इकाई के महासचिव कृष्ण चैतन्य ने 4 अगस्त को विश्वविद्यालय के प्रोक्टोरियल बोर्ड को इस संबंध में शिकायत दी। चूंकि मारपीट के वक्त वह वहां मौजूद नहीं थे, इसलिए वह बोर्ड के सामने पर्याप्त सबूत प्रस्तुत नहीं कर सके। इसलिए बोर्ड ने दोनों पक्षों को चेतावनी जारी करते हुए मामले को रफा-दफा कर दिया। इसके बाद यूनिवर्सिटी टीचर्स एशोसियेशन ने भी एक पोस्टर जारी कर  दावा किया कि सुशील पर हमला हुआ ही नहीं।

आपने इस संबंध में स्वयं शिकायत क्यों नहीं की?
मैंने बाद में शिकायत दर्ज करायी और बोर्ड ने मुझे बुलाकर उस पर 26 अगस्त को सुनवाई की। सारे तथ्यों की पड़ताल तथा प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर बोर्ड ने पांच छात्रों को दोषी मानकर उन्हें विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया। उनमें रोहित वेमुला भी एक था। लेकिन तत्कालीन कुलपति प्रो. आर.पी.शर्मा ने वह निलंबन कुछ समय के लिए टाल दिया और इस संबंध में जांच के लिए सुधाकर रेड्डी समिति गठित कर दी। लेकिन समिति ने मामले की जांच करने से मना कर दिया। इसके बाद नए आए कुलपति प्रो.अप्पाराव पोडिले ने इस मामले की जांच को कार्यकारी परिषद की उप समिति को सौंप दिया। उसने भी सभी को दोषी माना। इसके बावजूद कुलपति ने सजा में ढील देते हुए उन्हें केवल छात्रावास से ही निलंबित करने का आदेश दिया।

 क्या विश्वविद्यालय ने छात्रों को पहली बार निलंबित किया?
नहीं। पांच वर्ष पहले विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को निकाला गया था। इसके अलावा और भी कई मामलों में विवि ऐसे कदम उठा चुका है। जब मैं अस्पताल में भर्ती था तो 4 अगस्त को मेरी मां कुलपति से मिलने गईं थीं। लेकिन उनकी बात सुनने की बजाए कुलपति कक्ष में ही उनके साथ अभद्रता की गई। यह पूरा मामला वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया। कोई रास्ता न मिलते देख उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया। इस बीच एमआइएम के लोगों ने विवि परिसर में रैली निकालकर लोगों को डराने की कोशिश की। हम उन घटनाओं से  चिंतित थे इसलिए हमने केन्द्र सरकार के दखल की मांग की। उन लोगों ने याकूब के लिए तो नमाजे-ए-जनाजा आयोजित किया लेकिन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के लिए नहीं। 

 

घटना के तत्काल बाद आपने ये सब बातें क्यों नहीं बताई?
रोहित की आत्महत्या ने मुझे बुरी तरह आहत कर दिया था। राहुल गांधी से लेकर केजरीवाल तक और यहां तक कि छुटभैये नेताओं ने भी मुझे अपराधी कहना शुरू कर दिया था। हालांकि वैचारिक मतभेद के अलावा हमारी कोई भी व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी। मैंने रोहित के सुसाइड नोट को समझने के लिए उसे कई बार पढ़ा। मुझे इस संबंध में शंका है। जो लोग अब उसके सुसाइड नोट को आधार बनाकर मामले को नया तूल दे रहे हैं वे उस वक्त कहां थे जब वेमुला को छात्रावास से निलंबित किया गया था? निलंबित किए जाने के बाद जब वह अवसाद की स्थिति में था तब आत्महत्या को लेकर सैकड़ों व्याख्यान देने वाले व्याख्याताओं ने भी उसे अवसाद से उभारने की कोशिश क्यों नहीं की? इसीलिए मैं चाहता हूं कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए। यदि आप पिछले दो साल से चल रहे इस पूरे मामले को देखेंगे तो आप को उन लोगों की मानसिकता स्पष्ट हो जायेगी जो इस मामले को हर दिन हवा देते रहे हैं। जब मैं अस्पताल में भर्ती था तो मदीगा समुदाय से संबंध रखने वाले एक व्यक्ति पर हमला किया गया था। इससे पहले उन्होंने भौतिकी विभाग से पीएचडी कर रहे एक शोधार्थी को बुरी तरह पीटा। उसकी बस इतनी गलती थी उसने उनसे उस समय बात करने से मना कर दिया था जब वे नशे की हालत मे थे।
ज्यादातर लोग इसे आत्महत्या मानने को तैयार नहीं हैं?
यही सवाल है जो मुझे भी खल रहा है। वेमुला इतना हिम्मतवाला था कि वह सैकड़ों लोगों के सामने भी अपनी बात दृढ़तापूर्वक रखता सकता था। वह आत्महत्या कर नहीं सकता था। इसकी गहराई से जांच होगी तो असली गुनहगार सामने आ जाएंगे।

आत्महत्या को लेकर अब विद्यार्थी परिषद कार्यालयों पर हमले हो रहे हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?
यह उनकी घटिया मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है। वे एक राजनीतिक एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं। वे असहिष्णुता का राग अलापते हैं तो क्या परिषद् के कार्यकर्ताओं पर हमला असहिष्णुता नहीं है? यदि वे इतने ही सहिष्णु हैं तो उन्हें जांच को स्वीकार करना चाहिए। सुसाइड नोट के पेन से काटे हुए शब्द भी इस मामले में सवाल खड़ा कर रहे हैं।

सुसाइड नोट में लिखे शब्दों को किसने काटा?
इस मामले की जांच होनी चाहिए।
शुरू में वेमुला मोदी का प्रशंसक था। फिर वह वामपंथियों के साथ क्यांे चला गया?

 

यह कम्युनिस्टों और धुर वामपंथियों की समाज को दलित और गैर दलित में बांटने की गहरी साजिश है। आज हर कोई इसका इस्तेमाल करना चाहता है।  जब कोई याकूब मेनन को एक आदर्श की तरह प्रस्तुत करेगा तो हम सिर्फ मूकदर्शक बनकर बैठे नहीं रह सकते। कांग्रेस अपने खिसकते आधार को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है। केरल के स्टूडेंट इस्लामिक आर्गनाइजेशन तथा एमआइएम की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। वे शान्ति भंग करने के लिए ऐसे प्रयास दूसरे स्थानों पर भी दोहरा सकते हैं। अनुसूचित जाति के बंधुओं को इसके पीछे की असली मंशा को समझना चाहिए।

—सुनील आंबेकर, संगठन मंत्री, अभाविप

हम इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं। पूरे मामले को लेकर हम 3 से 10 फरवरी  तक राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चला रहे हैं ताकि इस षड्यंत्र का पर्दाफाश हो और वास्तविकता सामने आये।
  

 —जी.लक्ष्मण, सह संगठन मंत्री, अभाविप

हां, वह मोदी प्रशंसक था। बाद में वह एसएफआई और एएसए की तरफ आकर्षित हो गया और उसने फांसी की सजा का विरोध करना शुरू कर दिया। कुछ समय से वह  (असदुद्दीन) ओवैसी की प्रशंसा  कर रहा था। उसके विचारों में आए इन बदलावों को कोई भी समझ सकता है। इससे यह
भी पता चलता है कि प्राध्यापक  छात्रों का कितना ब्रेनवाश करते हैं।
क्या संकाय भी इसमें संलिप्त है?
हां, विश्वविद्यालय में अधिक लोग वामपंथी सोच वाले हैं। वहां एक भी ऐसा प्राध्यापक नहीं है जो हमारा समर्थन करता हो।

यह भी जांच का विषय है। कुछ लोग कहते हैं उसके पास मोबाइल नहीं था जबकि उसकी मां ने कहा कि उन्होंने रोहित के दोस्त को यह कहते हुए फोन किया कि रोहित का फोन नहीं मिल रहा है। एक पीएच.डी शोधार्थी, जिसे हर महीने 30,000 रुपये मिलते हैं वह फोन नहीं रखेगा?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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