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10 जनवरी, 2015
आवरण कथा '15 बातें 2015 की' से स्पष्ट होता है कि इस वर्ष में कई ऐसे बदलाव दिखे जो चलन की तरह स्थापित हुए। कई क्षेत्रों में नई पहल हुइंर् और अनूठे कार्यों की शुरुआत हुई। आज तक जनता जिस बात की अपेक्षा सरकार से करती थी उसे इस वर्ष के सरकारी कार्य में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। राजग सरकार ने जनहित के कार्यों में बढ़- चढ़कर कार्य किया।
—नितिन कुमार वर्मा, उन्नाव (उ.प्र.)
ङ्म नरेन्द्र मोदी की अथक मेहनत का परिणाम यह रहा कि न केवल देश में सरकार के प्रति लोगों की सोच बदली, बल्कि विश्व के संवेदनशील नजरिये ने भी भारत को अब अलग नजर से देखना शुरू किया है। पहले के वर्षों में शायद राजनीतिक माहौल ऐसा नहीं था। लेकिन अब इसमें काफी परिवर्तन आया है। हर वैश्विक मंच पर भारतीय विचारों का डंका बजने लगा है। जिस कोल खदान आवंटन में कांग्रेस और उनके सहयोगियों ने घोटाले कर देश को करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचाया था। उन्हीं खादानों के इस सरकार में हुए पारदर्शी आवंटन से देश को करोड़ों रुपये का लाभ हुआ है।
—हरिओम जोशी, चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म आजादी के बाद से देश को लूटने वाले नेता खामोश बैठने के बजाय मोदी के सुशासन पर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। जिस कांग्रेस ने देश और विदेश में भारत की छवि को धूमिल किया वहीं अब भारत की छवि को सुधरते देख बेचैन हैं। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां प्रगति न दिख रही हो। हरेक क्षेत्र में नए जोश और उत्साह के साथ लोग लगे हुए हैं। जो कांग्रेस के समय तक यही कहते नहीं थकते थे कि 'हमें देश से क्या मतलब' अब वे कहते सुने जा सकते हैं कि 'हमें देश से मतलब है।' मोदी सरकार ने आमजनता के लिए गैस सब्सिडी, जनधन सुरक्षा बीमा योजना, पेंशन योजना एवं अन्य जनहित योजनाओं द्वारा जनता को राहत दी है।
—राम प्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
ङ्म भारत के लिए 21 जून का समय बेहद खास था। इस दिन विश्व ने जब योग दिवस मनाया तो हर भारतीय का सीना गर्व से फूल गया। होता भी क्यूं न! भारत की सांस्कृतिक विरासत का परचम संपूर्ण विश्व में जो लहरा रहा था। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत के ही लोगों में इसके प्रति उत्साह दिखा जबकि अन्य देशों में भी लोग इसको लेकर काफी खुश थे। असल में यह सब बदलते हुए चलन का हिस्सा ही था।
—प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर, द्वारकापुरम्, दिलसुखनगर (आ.प्र.)
ङ्म भारत अगर स्वदेशी चीजों को अपनाए तो बहुत जल्द वह अन्य विकसित देशों के साथ खड़ा दिखाई देगा। हाल के दिनों में स्वदेशी के प्रति लोगों में परिवर्तन आया है। हालांकि अभी भी एक बड़ी संख्या ऐसी है जो विदेश की बनी वस्तुओं को स्वदेशी वस्तुओं के मुकाबले ज्यादा तरजीह देती है। इनमें से ही अधिक लोग यही कहते हैं कि भारत अन्य देशों के मुकाबले अभी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है। अब उन्हें कौन समझाए। जब वे विदेशी चीजों को वरीयता देंगे और स्वदेशी को दुत्कारेंगे तो कहां से देश आगे बढ़ेगा। अगर वे चाहते हैं कि देश विकसित देशों के साथ खड़ा दिखे तो उन्हें स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना होगा। जिस दिन वे ऐसा करने लगेंगे उस दिन वे भारत को विकसित देशों के साथ खड़ा पाएंगे।
—आनंद मोहन भटनागर, राजाजीपुरम्, लखनऊ (उ.प्र.)
सटीक बात
चौथा स्तम्भ कॉलम में 'मौन साधे रहा मीडिया' में मीडिया और मीडियाकर्मियोंर् के दोमुंहेपन का बारीक और सटीक विश्लेषण किया गया है। दरअसल, देश के अंदर सेकुलर मीडिया भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने और नरेन्द्र मोदी के देश का प्रधानमंत्री होने को पचा नहीं पा रहा है। कारण साफ है। मीडिया के नाम पर राजनीति को गंदा करने और दलाली करने वाले एक बड़े तबके की 'दुकान' बंद हो गई है। ऐसे में तथाकथित पत्रकार और मीडिया हाउस छटपटाहट महसूस कर रहे हैं। पूर्वाग्रह के चक्कर में वह खबरों को तोड़-मरोड़कर दिखाना, विश्लेषण में एकपक्षीय राय रखना, सच को झूठ और झूठ को सच साबित करना और पंथनिरपेक्षता के नाम पर देश की एकता और अखंडता को प्रभावित करने वाली खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहे हैं। लेकिन देश की जनता सेकुलर मीडिया के फैलाये गए भ्रम में नहीं आने वाली है।
—नवीन कुमार, नोएडा (उ.प्र.)
कन्वर्जन के हथकंडे
देश में मुस्लिम और ईसाई मिशनरी लगातार कन्वर्जन में लगे हैं। म.प्र., उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर एवं ओडीशा सहित अन्य राज्य इनके निशाने पर हैं। यह नए-नए तरीके अपना कर वनवासी, कमजोर व अशिक्षित लोगों को अपने जाल में फंसाकर उनका कन्वर्जन कर देते हैं। जम्मू-कश्मीर में आज-कल चोरी छिपे एक खेल खूब खेला जा रहा है। हिन्दू मजदूर पैसा कमाने के लिए मुसलमानों के यहां काम करते हैं। कुछ दिन काम करने के बाद वहां के मालिक जो मुसलमान हैं, वे हिन्दू मजदूरों के सामने शर्त रखते हैं कि अगर नौकरी करना है तो मुसलमान बन जाओ। कुछ हिन्दू मजदूर नौकरी छूटने के डर से इसे स्वीकार भी कर रहे हैं।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
बेचैन कांग्रेस की चाल
आवरण कथा 'समय का सत्यानाश' कांग्रेस की क्षुद्र मानसिकता का परिचय कराता है। कांग्रेस लोकसभा में हुई हार को अभी तक नहीं भूल पाई है। उसे नई सरकार का कोई भी कार्य नहीं सुहाता है। कांग्रेस चाहती है देश और देश की जनता का विकास न हो, वह जैसे हैं वैसे ही कमजोर और असहाय बने रहें। इसके लिए संसद न चलने दो। कुछ अच्छा काम हो रहा है तो उसे रोक दो। सच को झूठ और झूठ को सच बताओ। कांग्रेस समझती होगी कि उनके ऐसे कामों को कोई देख नहीं रहा है। अरे जनता सब देख रही है और जानती है।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
गिरता शिक्षा का स्तर
आज दिन प्रतिदिन पढ़ाई का स्तर गिरता जा रहा है। प्राथमिक स्कूल के कक्षा चार के कई बच्चों को ठीक ढंग से संपूर्ण अच्छरों का ज्ञान तक नहीं होता है। इससे समझा जा सकता कि आने वाला हमारा भविष्य कैसा है। असल में इन बच्चों की भी गलती नहीं है। जिन सरकारी स्कूलों में वे पढ़ते हैं उन स्कूल के अध्यापकों को पढ़ाई के अलावा सभी काम करने होते हैं। उनके पास बहुत कम ही बार समय होता है जब वे ठीक ढंग से बच्चों को पढ़ा सकें। नहीं तो सारा समय वे खाने से लेकर रजिस्टर और वजीफा से लेकर ड्रेस वितरण में ही लगे रहते हैं। इस सभी के कारण स्थिति बड़ी दयनीय है। अगर बच्चों का भविष्य सुधारना है तो सरकारों को इस ओर ध्यान देना होगा। शिक्षा तंत्र में जो खामियां हैं उनको सुधारना होगा। तब ही जाकर प्राथमिक स्कूलों की हालत में सुधार आने वाला है।
—श्रीराम वर्मा, त्रिनगर (दिल्ली)
उन्माद की राह
'उन्माद और आतंक की राह' रपट सटीक विश्लेषण करती है। देश के कई हिस्सों में वर्तमान में कई कट्टरपंथी गुट सक्रिय हैं। उनके बहकावे में आकर कई मुसलमान लड़कों ने सीरिया और इराक जाने के प्रयास किए। ऐसी खबरें चिन्ता जनक हैं। असल में कुछ उन्मादी गुट नहीं चाहते कि भारत में शान्ति रहे। इसलिए वे इन लड़कों को बहकाने में लगे हुए हैं। मुस्लिम समाज को ऐसे लोगों से सचेत रहना होगा क्योंकि ऐसे लोग देश के दुश्मन हैं।
—रूपसिंह सूर्यवंशी, निम्बाखेड़ा (राज.)
कौन है जिम्मेदार?
नेताजी की फाइलों, से निकलेंगे राज
सबकी अपनी सोच है, अपने हैं अंदाज।
अपने हैं अंदाज, मृत्यु की असल कहानी
शायद अब वो हो जाए जानी-पहचानी।
कह 'प्रशांत' अन्याय हुआ जो उन पर भारी
पता लगेगा, थी ये किसकी जिम्मेदारी॥
—प्रशांत
नैतिकता से दूर होती शिक्षा
भारत को विश्व गुरु कहा जाता है। भारत ने ही विश्व को शून्य के आविष्कार से लेकर संास्कृतिक व आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान की। प्राचीनकाल में तक्षशिला व नालंदा जैसे विश्वविद्यालय यहां स्थित थे और जिनकी ख्याति विश्व भर में फैली थी। प्राचीनकाल में शिक्षा के साथ-साथ नैतिक व मानवीय मूल्य सवार्ेपरि माने जाते थे। किताबी ज्ञान के अतिरिक्त छात्रांे को नैतिक शिक्षा, व्यावहारिक शिक्षा व शारीरिक शिक्षा के ज्ञान से छात्र के जीवन में सवांर्गीण विकास होता है। सन् 1938 में लॉर्ड मैकाले ने ब्रिटिश संसद में कहा था- विश्व में नैतिक व संास्कृतिक रूप से यदि कोई राष्ट्र सशक्त है, तो वह भारत है। भारत पर यदि राज्य करना है, तो भारत की संस्कृति व नैतिकता पर गहरी चोट करनी होगी। अंग्रेजों ने इस पर करारा प्रहार किया और वे इसमें सफल रहे। भारत स्वतंत्रता के पश्चात् अपनी मूलभूत संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य शिक्षा की ओर उन्मुख हो गया। आधुनिक काल में शिक्षा के स्तर का अधिकतम विकास हुआ, सुविधायें अधिक हुइंर्, लेकिन शिक्षा में धीरे-धीरे नैतिक शिक्षा, व्यावहारिक शिक्षा व शारीरिक शिक्षा का पतन होता गया। वर्तमान में सारी शिक्षा प्रणाली विफल हो रही है। गुरु-शिष्य के संबंधो का महत्व घट रहा है। भौतिकवादी युग में शिक्षा का मोल-तोल बढ़ा है।
शिक्षा एक व्यापार हो गई है। इसका फल हुआ कि कि इसमें जो समाज सेवा का भाव छिपा था वह धूमिल हो गया। शिक्षा में निजी क्षेत्र के दखल के बाद शिक्षा धीरे-धीरे गरीबोें से दूर होती जा रही है। आज शिक्षा क्षेत्र में व्यापक सुधार करने की आवश्यकता है। वर्तमान शिक्षा में नैतिक संस्कार,धर्मचिंतन, देश भक्ति से ओतप्रोत शिक्षण सामग्री पाठक्रम में सम्मिलित करनी होगी। स्वामी विवेकानन्द,रविन्द्रनाथ टैगोर, भगत सिंह जैसे महान देशभक्तों के कार्यो के बारे में ज्यादा से ज्यादा बातें बतानी होंगी। इससे छात्रों का नैतिक रूप से सर्वांगीण विकास होगा। तब ही छात्र समाज व देश की सेवा में संलग्न होगा।
—भंवर सिंह नरवरिया
38/40, मुख्य अटेर रोड भिण्ड (म़.प्ऱ)
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