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एक बार संत तिरुवल्लुवर एक नगर में गए। जैसे ही लोगों को पता लगा कि तिरुवल्लुवर वहां आए हैं लोगों की भीड़ जुटने लगी। हर कोई उनसे अपनी समस्याओं का समाधान चाहता था। एक दिन एक बड़ा सेठ उनके पास आया और कहा, गुुरुवर मैंने पाई-पाई जोड़कर अपने इकलौते पुत्र के लिए अथाह संपत्ति जोड़ी। मगर वह मेरे गाढ़े पसीने की कमाई को बड़ी बेदर्दी के साथ व्यसनों में लुटा रहा है ? ऐसे तो वह सारी संपत्ति लुटा देगा और सड़क पर आ जाएगा। तिरुवल्लुवर मुस्करा कर बोले, सेठ जी तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए कितनी संपत्ति छोड़ी थी। सेठ ने कहा, वे बहुत गरीब थे, कुछ भी नहीं छोड़ा था। संत बोले जबकि इतना धन छोड़ने के बावजूद तुम यह समझ गए कि तुम्हारा बेटा गरीबी में दिन काटेगा। सेठ बोला, आप सच कर रहे है प्रभु, परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि गलती कहां हुई। तिरुवल्लुवर बोले, तुम यह समझकर धन कमाने में लगे रहे कि अपनी संतान के लिए दौलत का अंबार लगा देना ही एक पिता का कर्तव्य है। इस चक्कर में तुमने अपने बेटे की पढ़ाई व अन्य संस्कारों के विकास पर ध्यान नहीं दिया। पिता का पुत्र के प्रति प्रथम कर्तव्य यही है कि वह उसे पहली पंक्ति में बैठने योग्य बना दे। बाकी तो सब कुछ वह अपनी योग्यता के बलबूते हासिल कर लेगा। सेठ की सारी बातें समझ मेंे आ गई थीं, उसने बेटे को सुधारने का प्रण किया और वहां से चल दिया।
(श्री सुखबीर सिंह दलाल की पुस्तक 'महापुरुषों के 101 प्रेरक प्रसंग' से साभार )
अभिव्यक्ति – देश की शान
सीमा पर जवान, देते रोज अपनी जान
कभी घायल होकर, फिर उठ खड़े होते
कभी चोटिल होते, कभी चोटिल करते
सहन-सहन कर, फिर गंवा देते जान
तेरी खुशी के लिए, मेरे चैन के के लिए
घायल होते जवान, चोटिल होते जवान
फिर क्यों कहते देश है असुरक्षित
क्यों कहते हैं देश है असहलशील
अपने फायदे के लिए, अपनों को महान कहने के लिए
देश का करेंगे कितना अपमान
बलिदानों का किया कितना अपमान
उन्होंने जाने लौटाए कितने सम्मान
— कनिष्का सिंह
कक्षा : 6
ज्ञानस्थली एकेडमी, इटावा (उ.प्र.)
एकाग्रता
सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर सी.वी. रमन जब छोटे थे, तो किसी कार्य को बड़े उत्साह के साथ शुरू करते थे, लेकिन शीघ्र ही उनका धैर्य उनका साथ छोड़ने लगता और वह ऊबकर उस काम को अधूरा छोड़ देते थे। उनकी इस आदत से उनके पिता बड़े दुखी थे। एक दिन उन्होंने रमन को बुलाया तथा एक लैंस को अखबार पर घुमाते हुए दिखाया। रमन थोड़ी देर देखते रहे, फिर झुंझलाकर पिता से बोले, क्या देखूं ? यहां देखने को कुछ है ही नहीं।
उनके पिता मुस्कराए और बोले, अच्छा अब एक बार ध्यान से देखो। उन्होंने लैंस को अखबार पर एक जगह केंन्द्रित कर दिया। थोड़ी ही देर बाद सूरज की तीखी किरणों के कारण अखबार से धुंआ उठने लगा और उस जगह एक छेद हो गया। रमन के पिता ने कहा कि तुमने एकाग्रता का चमत्कार देखा, जब तक लैंस से छनकर आ रही रोशनी को एक जगह केंद्रित नहीं किया गया कुछ नहीं हुआ, लेकिन जब किरणों के माध्यम से सूर्य की शक्ति एक जगह इकट्ठी हो गई तो किरणों ने कागज में छेद कर दिया। यह बात रमन की समझ में आ गई। इसके बाद उन्होंने एकाग्र होकर कार्य करना शुरू किया और महान वैज्ञानिक बनें।
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