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अंक संदर्भ- 27 दिसंबर, 2015
आवरण कथा 'परिवर्तन का पहर' से स्पष्ट होता है कि भारत अपनी युवा शक्ति के बल पर उन्नत देशों की पंक्ति में पहुंच गया है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर की बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिस तरह से निवेश कर रही हैं वह साबित करता है कि अंधेरा दूर हो रहा है। आज विश्व के अधिकतर देशों का विश्वास फिर से भारत पर बढ़ रहा है। जापान के प्रधानमंत्री का भारत के साथ महत्वपूर्ण समझौते करना एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।
-कृष्ण वोहरा, जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म आज भारत विश्व पटल पर गौरवान्वित हो रहा है। विश्व के कई देश भारत के बढ़ते कदम पर साथी की भूमिका में हैं, जिससे विश्व मंच पर भारत की साख बढ़ रही है। यह सब कुछ देश के लिए शुभ है।
-हरिहर सिंह चौहान, जंबरी बाग नसिया, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं का असर यह हो रहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में खुले हृदय से निवेश कर रही हैं। अभी तक जिन कंपनियों को लगता था कि भारत बाजार के लिहाज से उनके लिए उत्तम नहीं है, वही कंपनियां आगे बढ़कर निवेश कर रही हैं। साथ ही प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं से भारत की छवि विश्व में निखर कर आ रही है और संबंधों को मजबूती मिल रही है। हां, ये अलग बात है कि इससे सेकुलर जमात के पेट में मरोड़ हो रही है और वह भारत के बढ़ते दबदबे को पचा नहीं पा रहे हैं।
-कुंवर बी.एस. बिद्रोही, लश्कर, ग्वालियर (म.प्र.)
कांग्रेस का कुचक्र
रपट 'कुनबे पर देशहित कुर्बान' से यही लगा कि कांग्रेस के लिए देशहित कोई मायने नहीं रखता। उसके लिए स्वयं के हित सर्वोपरि हैं। इसका उदाहरण भी देश को देखने को मिला। नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस ने पूरा शीतकालीन सत्र अदालती कार्यवाही को ही दोषी मानकर बाधित किया। कांग्रेस अपने हर गुनाह पर चिंतन करने की जगह प्रधानमंत्री मोदी को आरोपी बनाने में लगी रही। मैं 'इंदिरा गांधी की बहु हूं' का अहंकार दर्शाकर सोनिया गांधी ने जनता की भावनाओं का हरण करने की कोशिश की। राष्ट्र की नीतियों पर स्वस्थ बहस के साथ संसद के बहुमूल्य समय का सदुपयोग करना तो कांग्रेस ने छोड़ ही दिया है। राष्ट्रहित की परवाह न करते हुए सिर्फ अपने परिवार की रक्षा में उसने संसद के लगातार दो सत्रों को बाधित किया है। कांग्रेस राष्ट्र को किस दिशा में ले जाना चाहती है, समझा जा सकता है।
-हरिओम जोशी, चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म सदन के कीमती समय को नष्ट करके कांग्रेस एवं सेकुलर दल देश और जनता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनके लिए देश के मुद्दे और समस्याएं दलीय राजनीति से ऊपर हैं। क्या देश की जनता ने उन्हें इसी कार्य के लिए भेजा है? देश की जनता उनसे अपेक्षा करती है कि वह देश और देश की जनता की समस्याओं को सुलझाने और विकास के लिए कार्य करें।
-रतिराम,बीकानेर (राज.)
ङ्म नेशनल हेराल्ड मामला सामान्य तौर पर एक घोटाले और भ्रष्टाचार का मामला था, जिसे स्वयं न्यायालय ने भी आपराधिक षड्यंत्र करार दिया था। लेकिन कांग्रेस इसे मीडिया में ऐसे पेश कर रही थी, जैसे यह मोदी सरकार की रणनीति का हिस्सा हो, जबकि इस मामले से मोदी सरकार का कोई लेना-देना नहीं था। 2012 में इस मामले को सुब्रह्मण्यम स्वामी ने न्यायालय के समक्ष लाया था, फिर इस मामले से मोदी सरकार का क्या लेना-देना हुआ? असल में कांग्रेस ने इसे राजनीतिक रूप देकर एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की और वे सफल भी रहे। पहले तो उन्होंने इसे राजनीतिक रंग देकर संसद बाधित की, इससे सरकार के महत्वपूर्ण बिल पारित नहीं हो सके। दूसरा, देश की जनता को भावनात्मक रूप से अपनी ओर लाने की चाल रची। लेकिन जनता बुद्धिमान है और इनके सभी हथकंडों को भलीभांति जानती है।
-अरुण मित्र, रामनगर (नई दिल्ली)
नया षड्यंत्र
जिस प्रकार भारत को असहिष्णुता के बहाने बदनाम करने का प्रयास किया गया वह देशद्रोही तत्वों की एक नवीन युद्धनीति है। बिहार चुनाव तक असहिष्णुता का राग अलापने वालों की आवाज बुलन्द रही, लेकिन जैसे ही बिहार चुनाव समाप्त हुआ पुरस्कार वापसी बंद हो गई। क्या बिहार चुनाव के बाद सब कुछ सहिष्णु हो गया? देश में शान्ति आ गई?
-प्रतिमान शुक्ल, इलाहाबाद (उ.प्र.)
ङ्म तथाकथित और पाखंड में माहिर असहिष्णु टोली पेरिस हमले पर चुप्पी ओढ़े रही और इनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। भारत को असहिष्णुता की कतार में खड़े करने वाले विश्व पटल पर बढ़ती हिंसा को लेकर चुप है, क्यों? असहिष्णुता का राग अलापने वाले कभी भी कश्मीर, असम, बंगाल में हिन्दुओं की यातनाओं पर नहीं बोलते ? आखिर हिन्दू का नाम आते ही इन्हें सांप क्यों सूंघ जाता है? क्या हिन्दुओं पर जो जुल्म होते हैं वह जुल्म नहीं हैं? इन सभी सवालों के जवाब देश इन 'असहिष्णु' लोगों से मांगता है।
-मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
भेदभाव रहित हो समाज
भारत में विदेशों से अरबों रुपये प्रतिवर्ष कन्वर्जन के लिए आता है। चर्च वनवासी क्षेत्रों में हिन्दुआंे को फुसलाकर, लालच देकर, डरा-धमकाकर ईसाई बना रहा है। प्रत्येक वर्ष लाखों हिन्दू ईसाई बन जाते हैं। यह देश के लिए अच्छा नहीं है। इसके लिए कहीं न कहीं हम ही उत्तरदायी हैं। हमारे समाज में इतने भेदभाव हैं, जो अपने लोगों को अपने से दूर करने के लिए काफी हैं। जाति प्रथा इसमें एक अहम कारण है। ईसाई मिशनरियां अपने षड्यंत्र में काययाब न हों, इसके लिए हम सभी को समाज में फैली कुरीतियों और भेदभावों को सबसे पहले मिटाना होगा। अगर यह हो जाता है तो काफी हद तक कन्वर्जन पर लगाम लगेगी।
-रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
व्यक्ति नहीं राष्ट्र है सर्वोपरि
भारतीय राजनीति में महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया और पं. दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन में गांव-गरीब, किसान को आधार मानने की एकरूपता तो थी, लेकिन इसके कल्याण की नींव के रूप में राष्ट्रवाद की संकल्पना अलग-अलग थी। इसलिए गांधी और लोहिया के राजनीतिक विचार वाहकों ने खानदानीराज की आधार शिला पर गांव, गरीब, किसान के सपनों की इमारत खड़ी करने की कोशिश की और राष्ट्रवाद को तुष्टीकरणवाद में परिवर्तित करके इन सपनों को संवारने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया। लेकिन दीनदयाल जी के विचारों में राष्ट्र सर्वोपरि था। एक भाषण में उन्होंने कहा था कि हमने किसी सम्प्रदाय या वर्ग की सेवा का नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र की सेवा का व्रत लिया है। सभी देशवासी हमारे बांधव हैं। जब तक हम इन बंधुओं को भारत माता के सच्चे सपूत होने का गौरव प्रदान नहीं करा देंगे, हम चुप नहीं बैठेंगे। हम भारत माता को सही अर्थों में सुजला-सुफला बनाकर रहेंगे। वह दशप्रहरणधारिणी बनकर असुरों का संहार करेगी, लक्ष्मी बनकर जन-जन को समृद्धि देगी और सरस्वती बनकर अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलायेगी। संपूर्ण भारत में जब तक हम एकरसता, कर्मठता, समानता, संपन्नता, सुख और समृद्धि का पुण्य प्रवाह नहीं ला देते, तब तक हमारा भगीरथ तप पूरा नहीं होगा।
निचिश्त रूप से इस आत्मविश्वास से समझा जा सकता है कि यह मंत्र केवल सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं बल्कि समाज परिवर्तन का शंखनाद है। इसी जीवन दर्शन की वाहक है वर्तमान की नरेन्द्र मोदी सरकार। जिसका लक्ष्य मंत्र 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' तथा 'सबका साथ-सबका विकास' के ध्येय वाक्य में दिखाई देता है। इन सबके कारण ही आज विश्व के कई देशों में भारत की जय-जयकार हो रही है और परिवर्तन भी दिखाई दे रहा है।
-साकेन्द्र प्रताप
निकट-दूरभाष केन्द्र, शिवाजी नगर, महमूदाबाद, सीतापुर (उ.प्र.)
अब पछताए होत क्या…
झूठ बोलना बन गया, एकमात्र बस कर्म
उनसे जाकर पूछिए, राजनीति का मर्म।
राजनीति का मर्म, भाड़ में जाए जनता
लेेकिन उनके ऊपर कोई फर्क न पड़ता।
कह 'प्रशांत' दिल्ली की जनता है पछताती
लेकिन जाएं किधर, राह भी नजर न आती॥
-प्रशांत
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