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नये विमर्शों के बहाने परंपरा को तिलांजलि

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Jan 18, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Jan 2016 12:47:31

नई दिल्ली। प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर 10 जनवरी 2016 को प्रवक्ता डॉट काम व राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सौजन्य से 'साहित्य में भारतीयता की अवधारणा' विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सूर्यास्त्र द्वारा प्रकाशित शाहजाद फिरदौस के शोध उपन्यास 'व्यास' के हिंदी संस्करण का लोकार्पण किया गया।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए 'व्यास' उपन्यास के लेखक शाहजाद फिरदौस ने कहा कि वे उस क्षेत्र से आते हैं जो एक मिश्रित क्षेत्र है और जहां उन्होंने जन्म लिया वहां हिन्दू मुस्लिम में मतभेद आम बात है, पर उन्होंने हमेशा जमीन से छह फुट ऊपर देखने की कोशिश की, जहां से सिर्फ पेड़, बादल, आकाश, आदि दिखते हैं। वे हमेशा कुछ अलग करना चाहते थे, उन्हें खुशी है वे ऐसा कर सके, आज उनकी कृति इस किताब की शक्ल में सबके सामने है। उन्होंने कहा कि मन साफ है और पूरी कोशिश है कि भारतीयता के उस क्षण को पिरोया जाय जो उस काल के समय महसूस किया गया होगा। फिरदौस के अनुसार कई वषार्ें तक जंगलों में अध्ययन करने के बाद यह संभव हो पाया, उम्मीद है कि लोग 'व्यास' को पसंद करेंगे। उल्लेखनीय है कि फिरदौस ने इससे पहले बुद्ध पर भी शोध कार्य किया, जो 'तथागत' नाम से टेली-फिल्म के रूप में दूरदर्शन पर दिखाया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केन्द्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के कुलपति श्री कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि भारतीयता अंदर से निकलती है और हमें एहसास कराती है कि हम खुद को कितना भी बदल लेंं, लेकिन जब भारत में कुछ होता है तो जो ह्रदय से भारतीय हैं उनका मन बेचैन हो उठता है, यही भारतीयता है।
मुख्य वक्ता के रूप में विराजमान वरिष्ठ साहित्यकार व दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ. सुंदरलाल कथूरिया ने कहा कि पहले भारतीय दर्शन में लोगों की आकांक्षा धर्म, अर्थ काम और मोक्ष में होती थी, आज समाज अर्थ और काम के पीछे भाग रहा है।
विशिष्ट वक्ता के तौर पर उपस्थित हुए दूरदर्शन में अतिरिक्त महानिदेशक रंजन मुखर्जी ने कहा कि रामायण एवं महाभारत आदि महाकाव्यों की कथाओं व चरित्रों को सार्वजनिक स्थलों में प्रतीक रूप में प्रदर्शित व प्रचारित करने की जरूरत है।
सुप्रसिद्घ आलोचक अनंत विजय ने कहा कि शुरू से ही हिन्दी साहित्य को दोयम दर्जे का माना गया है। नेहरू द्वारा लिखित 'भारत एक खोेज' में भारत के बारे में तमाम गलत तथ्यों को रखा गया और उसे प्रचारित किया गया। रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित 'संस्कृति के चार अध्याय' को लेकर भी दुष्प्रचार किया गया।

 

अदालत ने दी पथसंचलन की अनुमति
चेन्नै। छह वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने गत 9 जनवरी को इरोड और कन्याकुमारी में भव्य पथसंचलन किया। छह वर्ष पहले पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देते हुए पथसंचलन की अनुमति नहीं दी थी। पुलिस ने स्वयंसेवकों के गणवेश को अर्द्धसैनिक बलों की वर्दी से मिलता-जुलता बताया था। इस संबंध में उच्च न्यायालय में मामला चल रहा था। न्यायमूर्ति श्री एम. एम सुदंरम ने पुलिस के दावे को खारिज करते हुए स्वयंसेवकों को पथसंचलन की अनुमति दे दी। पथसंचलन के दौरान प्रयोग होने वाले वाद्य यंत्र के बारे में न्यायालय ने कहा 'जिससे आम आदमी को परेशानी न हो व कानून एवं व्यवस्था पर फर्क न पड़े उसे जारी रखने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।    – प्र्रतिनिधि

'संघमार्ग गीता विशेषांक' का लोकार्पण
झज्जर। श्रीमद्भगवद्गीता धर्मग्रन्थ के 5151 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 'संघमार्ग गीता विशेषांक' का लोकार्पण कार्यक्रम बहादुरगढ़ स्थित सेक्टर-6 में सम्पन्न हुआ।  कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री सुरेन्द्र दहिया ने की।
कार्यक्रम में रोहतक विभाग के संघचालक डॉ. निर्मल थे। मुख्य वक्ता रूप में बाबा प्रसादगिरि मंदिर से स्वामी महंत परमानंद महाराज उपस्थित हुए ।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मंच पर उपस्थित अतिथियों द्वारा भारतमाता के चित्र के सामने दीप प्रज्ज्वलित कर व देशभक्ति गीत के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन जिला प्रचार प्रमुख श्री अवधेश ने किया।
मुख्य वक्ता महंत परमानंद ने बताया कि आज से 5151 वर्ष पूर्व जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन मोह के बन्धन में फंसे तब भगवान कृष्ण द्वारा उन्हें गीता का ज्ञान सुनाया गया और मोह के बन्धन को तोड़ा गया। फिर अर्जुन गाण्डीव उठाते हैं। आज कलयुग में भी महाभारत के लक्षण हैं। जैसे मातृशक्ति का अपमान करना व उसकी गलत छवि का प्रचार करना।
उन्होंने कहा कि हमें गीता पढ़नी चाहिए। हम तभी इन कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं। कार्यक्रम में जिलाकार्यवाह श्री संजीव गिरिधर, नगर संघचालक श्री वेद राणा व डॉ़ सुशील राणा और अन्य गणमान्य नागरिक थे।
कार्यक्रम वन्देमातरम् के साथ संपन्न हुआ।     -प्र्रतिनिधि

श्रीति-संदीप राशिनकर नाथद्वारा में सम्मानित
इंदौर- हिन्दी पुरोधा श्री भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति समारोह के गरिमापूर्ण आयोजन में श्रीति एवं संदीप राशिनकर को उनके साहित्यिक अवदान एवं हाल ही में प्रकाशित उनकी संयुक्त कृति 'कुछ मेरी कुछ तुम्हारी' के लिए काव्य कौस्तुभ सम्मान से सम्मानित किया गया। साहित्य मंडल, नाथद्वारा के सभागार में आयोजित इस साहित्यिक समागम में भरतपुर के डॉ. कृष्णचंद्र गोस्वामी, सर्वश्री जगदीश, अफजल, सदाशिव श्रोत्रिय की उपस्थिति में श्रीति व संदीप को सम्मान पत्र, स्मृति चिन्ह एवं शॉल श्रीफल से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर देशभर के कई साहित्यकार व सृजनकर्मी सभागार में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन श्री श्याम देवपुरा ने किया।  – प्र्रतिनिधि

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