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नवंबर अंत में हिन्दू महासभा के कथित नेता कमलेश तिवारी का पैगम्बर मोहम्मद पर एक बयान आता है। बयान एक दिन में ही सोशल मीडिया पर छाने लगता है। मीडिया भी इसे अपना समाचार बनाता है। इसके बाद मुल्ला-मौलवी इस बयान का विरोध करते हैं और पहली प्रतिक्रिया 2 दिसम्बर को सहारनपुर से शुरू होती है। जिसके बाद कुछ और भी स्थान पर इसके विरोध में प्रदर्शन होते हैं। मुसलमानों के लगातार बढ़ते विरोध के चलते उत्तर प्रदेश सरकार कमलेश तिवारी को रासुका के तहत जेल भेज देती है। लेकिन प्रदर्शन नहीं थमते। कुछ दिन बाद पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर इसी को लेकर विरोध प्रदर्शन होते हैं, उत्पात मचाया जाता है और भड़काऊ बातें की जाती हैं।
ठीक एक महीने के बाद यानी 3 जनवरी को पश्चिम बंगाल के मालदा में सुनियोजित तरीके से 2.5 लाख से ज्यादा मुसलमानों की भीड़ प्रदर्शन के नाम पर सड़कों पर उतरती है। कुछ समय तक भीड़ से नारे लगते हैं-पैगम्बर मोहम्मद का निरादर करने वाले को फांसी दो-फांसी दो। भीड़ धीरे-धीरे सड़कों पर उग्र होती जाती है। जैसे-जैसे भीड़ कालियाचक थाना क्षेत्र की ओर बढ़नी शुुरू हुई और राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंची ही थी कि कुछ मुसलमानों ने पास से गुजर रही बस पर हमला कर दिया। जिसको पाया उसको जमकर मारा और जब लोग बस से किसी तरह निकल भागे तो दंगाई भीड़ ने बस को आग लगा दी। इसी बीच सीमा सुरक्षा बल की गुजर रही गाड़ी को भी इसी भीड़ ने आग के हवाले कर दिया। भीड़ से लगातार मजहबी नारे लग रहे थे। लेकिन कुछ ही देर में पाकिस्तान के झंडे भी हवा में लहराने लगे। कालियाचक थाने तक पहुंचते-पहुंचते अचानक भीड़ से ईंट-पत्थर, गोलीबारी शुरू हो गई। दंगाई भीड़ के निशाने पर थे अल्पसंख्यक हिन्दू, सरकारी संपत्ति और हिन्दुओं के घर और दुकानें। उन्मादियों ने 12 कारें और 30 से ज्यादा मोटर साइकिलों को आग के हवाले कर दिया। लाखों की इस भीड़ के दुस्साहस का हाल यह था कि थाने में घुसकर पुलिसकर्मियों को जमकर पीटा और थाना फूंक दिया। पुलिसकर्मी किसी तरह अपनी जान बचाकर भागे। कालियाचक थाना क्षेत्र में लूटपाट और आगजनी से पूर्व मोजमपुर, इस्लामपुर, सुजापुर, और गयेशबाड़ी इलाके से धीरे-धीरे और भी मुस्लिम इसमें जुड़ते चले गए। उन्मादियों ने शंकर सरकार नाम के पुलिसकर्मी की वर्दी को जला दिया और उसके पास से सारे कागजात लूट लिए। फिर प्रदर्शनकारियों ने खंड विकास अधिकारी कार्यालय पर धावा बोला यहां भी जो मिला उसी को मारना शुरू कर दिया। भीड़ पिस्तौल और लोहे की छड़ें लहरा रही थी। इसके बाद यह भीड़ हिन्दुओं के घरों और दुकानों की ओर मुड़ गई,दर्जनों घरों को लूटकर जला दिया गया। उन्मादियों का यह खूनीखेल घंटों चलता रहा। पूरे मालदा में तनाव की स्थिति थी । हालात पर काबू पाने के लिए कई घंटे बाद पुलिस और त्वरित कार्रवाई बल पहुंचता लेकिन तब तक उन्मादी अपने मकसद में कामयाब हो चुके थे। क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गई।
इस पूरी घटना के बाद सवाल उठने स्वाभाविक हैं। जिस बयान और कमलेश तिवारी को लेकर मुसलमान विरोध कर रहे हैं उत्तर प्रदेश सरकार पहले ही उनको रासुका के तहत जेल भेज चुकी है तो फिर इसके इसके विरोध में महीने बाद मुसलमानों द्वारा हिंसा क्यों? क्या सहिष्णु समाज में मुस्लिम कट्टरपंथ को लेकर दोहरे मापदंड हैं? मालदा की घटना असहनशीलता का जीता जागता उदाहरण है। लेकिन इस पूरे मामले पर चहुंओर चुप्पी दिखाई दे रही है। ऐसा सन्नाटा पसरा है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। कुछ एक समाचार पत्रों और समाचार चैनलों को छोड़कर किसी ने भी वास्तविकता से अपने पाठकों और दर्शकों को रूबरू नहीं कराया। या फिर जानबूझकर सेकुलर मीडिया ने इस मामले को दबाया। दूसरी ओर 8 जनवरी को ममता बनर्जी ने कहा है कि राज्य में कहीं भी साम्प्रदायिक तनाव नहीं है। जो समाचार मिल रहे हैं उसकी मानें तो इस पूरे घटनाक्रम की खबर राज्य की गुप्तचर एजेंसियों को थी,लेकिन हैरानी की बात है कि इसके बाद भी कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए। खानापूर्ति के लिए मात्र 10-12 पुलिसकर्मी ही इस प्रदर्शन की निगरानी के लिए तैनात किए गए थे। इसका फायदा उन्मादियों ने उठाया और जमकर हिंसा की। इस घटना के बाद न केवल पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं बल्कि पूरे तंत्र पर सवालिया निशान लगा है।
गौरतलब है कि मई-2016 से पहले पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। अर्पिता चट्टोपाध्याय कोलकाता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं और मालदा की घटना पर कहती हैं,'ममता सरकार की ओर से मुसलमानों को पूरी छूट है और इसी छूट का वे पूरा फायदा उठा रहे हैं। ममता सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण के किसी भी अवसर को छोड़ना नहीं चाहती है। इसीलिए कार्रवाई करने के बजाय उन्मादी मंसूबों को बढ़ावा देने का काम कर रही है।'
घटना के चश्मदीद रंजन साहा एवं विनोद मंडल हिंसा के उस भयानक मंजर को साझा करते हुए कहते हैं,'उन्मादी भीड़ दर्जनों हिन्दू परिवारों के घर में घुसकर लूटपाट कर रही थी और जब इसका कोई विरोध करता था तो इनके सामने जो भी आता था, उसके साथ वे मारपीट कर रहे थे। संयोगवश घटनास्थल पर पुलिस उपाधीक्षक के आने से हिन्दू परिवार के सदस्यों को दंगाइयों के चंगुल से मुक्त कराया जा सका। इसके बाद इलाके में पुलिस बल तैनात कर दिया गया।' कालियाचक थाना क्षेत्र में गत 5 जनवरी को उस समय दोबारा स्थिति तनावपूर्ण हो गई जब पुलिस ने 3 जनवरी को उपद्रव में लिप्त 10 लोगों को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया। पुलिस ने राज्य और केन्द्र के दबाव के बाद इन दंगाइयों पर संगीन धाराओं में अभियोग पंजीकृत किए। इसमें मालदा जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष शेफाली खातून भी शामिल थीं। इन सभी को पुलिस हिरासत से छुड़ाने और पुलिस पर दबाव डालने के लिए सैकड़ों मुसलमानों की भीड़ ने एक बार फिर थाने का घेराव किया और पुलिस के खिलाफ छापेमारी को लेकर जमकर नारेबाजी की। मुसलमानों की भीड़ ने विरोध दर्ज कराते हुए पुलिस पर गोलीबारी की, बम फेंके और पत्थरबाजी की। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़कर थाने पर जुटी भीड़ को तितर-बितर किया। इस पूरे मामले में मतीउर रहमान, अब्दुल शेख, जीनत, गफ्फार, बेनामिल, फारुख, रहमान, मोमीन, असादुल हक और रशीदुल हक को गिरफ्तार किया है। इलाके में शांति बनाए रखने के लिए सेना की चार टुकडि़यों को तैनात किया गया है।
घटना के बाद से मालदा जिले में तनाव की स्थिति है। सड़कें सूनी पड़ी हैं। अधिकतर दुकानदारों ने डर के कारण दुकानें बंद कर रखी हैं। मालदा के हालात देखते हुए सीमा सुरक्षा बल ने सीमावर्ती इलाकों में निगरानी कड़ी कर दी और बाहर से आने-जाने वाले प्रत्येक संदिग्ध पर नजर रखी जा रही है। इस पूरे मामले पर मालदा के पुलिस उपाधीक्षक दिलीप हाजरा कहते हैं,' रैली में करीब 2.5 लाख लोग जुटे थे। इन्हांेने जीप, मोटरसाइकिल समेत अन्य 25 वाहनों को आग के हवाले कर दिया। इन लोगों ने कई पुलिसकर्मियांे को भी पीटा है। दंगाग्रस्त क्षेत्रों का निरीक्षण जारी है। पुलिस ने सरकारी काम में बाधा डालने, जान से मारने के प्रयास और संपत्ति को नुकसान पहंुचाने संबंधी मामला दर्ज किया है। इसके लिए इलाके में दुकानों व लोगों के घरों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज लेकर दंगाइयों की पहचान की जा रही है। जल्द ही उपद्रवियों को गिरफ्तार किया जायेगा।'
मालदा में जो कुछ भी हुआ, वह सामान्य घटना नहीं है। लाखों की भीड़ का जुटना, स्थानीय खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक तक न होना, घंटों सड़कों पर आगजनी और लूटपाट करना और मौजूदा सरकार का इस पूरे मामले पर नरम रुख इसे एक सोची-समझी साजिश कहा जा सकता है। खुफिया एजेंसी तो इस घटना के पीछे किसी आतंकवादी संगठन का हाथ होने से भी इनकार नहीं करती हैं। जिस तादाद में भीड़ एकत्र हुई थी उससे एक संदेह उपजता है कि संभवत: दंगाइयों को आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई गई थी। कोलकाता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता राजर्षि हलधर इस पूरे घटनाक्रम पर कहते हैं,'बंगाल में विधानसभा चुनाव नजदीक है। ममता बनर्जी सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है। चूंकि इस बार मुसलमानों ने बड़ी संख्या में उत्पात मचाया है तो यह मामला थोड़ा मीडिया में आया। जबकि यहां ऐसा कोई भी दिन नहीं होता है,जब मुसलमानों द्वारा राज्य में कहीं न कहीं इस प्रकार के उत्पात न मचाये जाते हों।' भाजपा प्रतिनिधि दल ने जिला अध्यक्ष सुब्रत कुंडू के नेतृत्व में घटनास्थल का निरीक्षण किया। वैसे भी भारत-बंगलादेश सीमा के कुछ इलाके देश विरोधी गतिविधियों के लिए चर्चित हैं। यहां से जाली नोटों की तस्करी, बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ एवं हथियारों की तस्करी होती रहती है। कई बार संयुक्त कार्रवाई के दौरान जाली नोटों की तस्करी करने वालों का पर्दाफाश हो चुका है।ल्ल प्रस्तुति : राहुल शर्मा/अश्वनी मिश्र
गृह मंत्रालय ने किया तलब
केन्द्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार से मालदा में 3 जनवरी को हुई हिंंसा के मामले की रपट मांगी है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक गृहमंत्री ने राज्य सरकार को जल्द से जल्द इस हिंसा की रपट भेजने को कहा है। गौरतलब है कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह आगामी 18 जनवरी को मालदा जाकर हिंसाग्रस्त इलाकों का जायजा लेंगे।
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