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जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे आशंकाओं और चिंताओं के बोझ से दबे हुए थे। उन्होंने भारत आने का निमंत्रण तो सैद्धांतिक रूप से तभी स्वीकार कर लिया था, जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान आकर अपने सहज मैत्रीपूर्ण व्यवहार से उस देश में सबका मन मोह लिया था। वैसे तो दोनों देशों की मैत्री का इतिहास पुराना है, पर कुछ वर्ष पहले उनके संबंधों में थोड़ी खटास आ गयी थी। यह तब हुआ था, जब जापान ने सुजुकी कारपोरेशन के माध्यम से भारतीय इंजीनियरों को कार बनाने की तकनीक सिखाई थी। तभी पहली बार भारत आये हुए जापानी इंजीनियरों ने पचास साल पुराने मॉडल वाली कारों को यहां बेधड़क चलते देखा था। इस अद्भुत तकनीक का नाम उन्हें ‘जुगाड़’ बताया गया था। इसी जुगाड़ विद्या को वे जापान ले जाना चाहते थे। पर भारत ने अपेक्षित दरियादिली नहीं दिखाई। साफ जवाब दे दिया कि जिस जुगाड़ की बदौलत केंद्र और कई राज्यों में सरकारें चल पा रही थीं, उन्हें जापान को वह कैसे दे सकता था? पर वर्षों की प्रतीक्षा के बाद नए प्रधानमंत्री ने जापान को विश्वास दिलाया था कि अब भारत में जुगाड़ से सरकार चलाने के दिन चले गए। केंद्र में स्पष्ट बहुमत से सरकार बन चुकी है। अब कम से कम अगले पंद्रह वर्ष तक सरकार चलाने के लिए किसी जुगाड़ की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। अत: भारत ‘जुगाड़ तकनीक’ अब सहर्ष जापान को देने के लिए तैयार है।
पर केवल इस वादे से जापान पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पाया था। जापानी राजदूत ने भारत की बढ़ती आकांक्षाओं का हवाला देते हुए बताया था कि इस बार भारत केवल छोटी कार बनाना सीख कर संतुष्ट नहीं होगा। नए भारतीय प्रधानमंत्री की कामनाओं की पोटली में परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण उपयोग की तकनीक से लेकर बुलेट ट्रेन जैसी तमाम आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान की उपलब्धियां हैं। शिंजो को भारत में जापानी राजदूत के जरिये यहां की हर गतिविधि पता थी। भारत की संसद में लगातार चल रहे हंगामे को देखकर वे बहुत चिंतित थे। अपने राजदूत से उन्होंने दो टूक सवाल कर डाला ‘जो देश अपनी संसद नहीं चला पा रहा है वह बुलेट ट्रेन कैसे चला पायेगा? जब पूछो यही पता चलता है कि उनकी लोकसभा में चालीस लोग साढ़े चार सौ लोगों की आवाज को दबा रहे हैं। जरूर हमारे यहां के सूमो पहलवानों से उन्होंने ऐसी अद्भुत ताकत पैदा करने के नुस्खे लिए होंगे। तभी वे अपनी सीटें छोड़कर हर थोड़ी देर पर ओलम्पिक धावकों की तरह दौड़कर आते थे और लोकसभा अध्यक्ष के सामने उस जगह इकठ्ठा हो जाते, जिसे अंग्रेजी में ‘वेल आॅफ द हाउस’ अर्थात ‘संसद कक्ष का कुआं’ कहते हैं।
राजदूत ने बड़ी कठिनाई से शिंजो आबे को समझाया। असल में जिन लोगों की बात वे कर रहे हैं, उन्हें दलगत राजनीति के कीचड़ में लोटने की ऐसी आदत पड़ गयी है कि छूटती नहीं। अब संसद भवन में कीचड़ कहां से आये? अत: वे कक्ष के कुएं में कूद पड़ते हैं। रहा सवाल सूमो पहलवानों से प्रशिक्षण लेने का तो इस विषय में भी माननीय प्रधानमंत्री का अनुमान सही नहीं है। असल में इन लोगों ने जापानी मल्लयुद्ध का प्रशिक्षण नहीं लिया है। बल्कि जापानी ढंग से हाराकिरी अर्थात आत्महत्या करने का प्रशिक्षण लिया है। भारत के नागरिकों ने जिस आशा और विश्वास के साथ इतने भारी बहुमत से जिस दल और जिस व्यक्ति को अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के हेतु चुना है, उनके मार्ग में इन मुट्ठी भर हताश-निराश लोगों को रोड़े अटकाते हुए वे कब तक चुपचाप देखेंगे? देश की जनता ही क्षुब्ध होकर इनके हाराकिरी के प्रयत्न
सफल करेगी।
फिर इधर जो विशेष उफान आप देख रहे हैं वह तो बहुत जल्दी ठंडा पड़ने वाला है। देश की न्यायपालिका ने इस दल की नेता और उपनेता को दो हजार करोड़ रुपयों की संपत्ति को मुफ्त में हथियाते देखकर बहुत स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उनके दिन अब पूरे होने वाले हैं। पहले तो वे इसको सरकारी प्रतिशोध बताकर हंगामा करते रहे, लेकिन जब स्पष्ट हो गया कि देश की जनता इसे एक काल्पनिक आरोप मानती है तो उन्होंने तय कर लिया कि ‘अब तो बात फैल गयी जानत सब कोई।’ इसीलिये अब और भी बढ़-चढ़कर सफेद झूठ बोले जा रहे हैं।
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कहती हैं कि उन्हें इस मंदिर में नहीं घुसने दिया गया और उनके दल के एक मुख्यमंत्री को उस मंदिर में जाने से रोका गया। पर मीडिया अनेकों साक्ष्य सामने ला रहा है कि आरोप सरासर झूठे हैं। अब पकड़े जाने पर उनकी हर तरफ थू-थू हो रही है। अत: आप चिंता न करिए। संसद भी जल्दी ही चलेगी, बल्कि भागेगी। एक बार संसद चल निकली तो बुलेट ट्रेन भी चलेगी और परमाणु ऊर्जा के केंद्र भी। आपकी सारी आशंकाओं और चिंताओं को सायोनारा कहने के दिन अब दूर नहीं हैं। अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
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