|
हाल ही में दिल्ली महिला आयोग ने विभिन्न विश्वविद्यालयों समेत 23 शिक्षण संस्थानों में यौन उत्पीड़न की रपट जारी की है। इन संस्थानों में एक तरफ जेएनयू से 51 यौन उत्पीड़न के मामलों की बात सामने आई है तो दूसरी तरफ दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा आंकड़े देरी देने पर तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। इस संबंध में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालिवाल से पाञ्चजन्य संवाददाता राहुल शर्मा ने बातचीत की, इस वार्ता के प्रमुख अंश :
दिल्ली महिला आयोग द्वारा 23 शिक्षण संस्थानों में यौन उत्पीड़न के आंकड़ों को लेकर हाल ही में एक रपट जारी की गई है, इस रपट का आधार क्या है?
दिल्ली महिला आयोग द्वारा पहली बार इस तरह की कोई जानकारी शिक्षण संस्थानों से ‘सेक्सुअल हरेसमेंट एट वर्कप्लेस एक्ट 2013’ के तहत मांगी गई थी। इसमें मार्च 2013 से लेकर सितम्बर, 2015 तक के आंकड़े शामिल हैं। आयोग का मानना था कि संस्थानों में किसी न किसी रूप में यौन उत्पीड़न होने की आशंका बनी रहती है।। इसलिए विशेषकर शिक्षण संस्थाओं, जहां बच्चों का भविष्य तय होता है उनकी स्थिति जानना बहुत आवश्यक था।
इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर यह जानकारी शिक्षण संस्थानों से मांगी गई। वहीं कुछ संस्थानों का कहना था कि उनके यहां यौन उत्पीड़न का कोई मामला ही नहीं आया है। ऐसे संस्थानों की भी बारीकी से जांच की जा रही है कि क्या वास्तव में उनकी बात सही है या फिर सच्चाई कुछ और है।
जेएनयू में यौन उत्पीड़न के सबसे अधिक 51 मामले सामने आए हैं। आपकी क्या राय है?
जेएनयू में ‘जीएसकैश’ नामक आंतरिक जांच समिति है और इस समिति में छात्रों का प्रतिनिधित्व भी रहता है जिनका चुनाव किया जाता है। जेएनयू द्वारा पारदर्शिता बरतते हुए 51 मामलों की जानकारी आयोग को दी गई क्योंकि कुछ संस्थानों ने जानकारी देरी से दी तो कुछ संस्थानों में जांच समिति तक नहीं है। यदि समिति है भी तो वह सुचारु रूप से काम नहीं कर रही है।
लेकिन आयोग में केवल 51 मामले होने और उन्हें अपने स्तर पर ही निपटाने की बात से संतुष्ट नहीं होगा। जल्द ही क्रमानुसार जेएनयू और दूसरे संस्थानों में यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली छात्राओं, महिलाओं और कर्मचारियों से जानकारी ली जाएगी। यदि वे संतुष्ट पाए गए तो ठीक है, वरना अधिनियम के तहत आरोपियों पर कार्रवाई की जाएगी। साथ ही संबंधित मामलों की फाइल का भी अध्ययन किया जाएगा।
शिक्षण संस्थानों में यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों पर आपका क्या मत है?
मेरा मानना है कि दिल्ली के विभिन्न कॉलेजों से रपट आएगी तो यौन उत्पीड़न के काफी मामले सामने आ सकते हैं। शिक्षण संस्थानों में यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों का कारण 2013 के उस अधिनियम को मजबूती से लागू न करना है। साथ ही इस अधिनियम का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उसमें काफी खामियां हैं जिनमें सुधार की गुंजाइश है।
कानून के लचीलेपन की वजह से ही यौन उत्पीड़न के मामले कम नहीं हो रहे हैं। उसमें सुधार होने के बाद निश्चित ही ऐसा करने वाले इस काम से बचेंगे। अधिनियम सही रूप से कार्यान्वित होने पर इसका पूरा लाभ मिल पाएगा। हैरानी की बात यह है कि अभी तक इस अधिनियम के तहत स्थानीय शिकायत समिति का गठन तक नहीं किया गया।
ल्ल यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए महिला आयोग क्या कदम उठाएगा?
महिला आयोग अपने स्तर पर कार्य शुरू कर चुका है। एक तरफ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को इससे अवगत करवाया जा रहा है, वहीं राज्य और केन्द्र सरकार को अपने सुझाव देकर कानून में परिवर्तन कर उसे ठोस तरीके से लागू करने पर कार्य जारी है।
सबसे पहले संबंधित शिक्षण संस्थानों में आयोग के सदस्य छात्राओं, शिक्षकों और पीड़ित महिला कर्मचारियों से मिलकर वास्तविकता की जानकारी लेंगे। आयोग चाहता है कि सीधे संवाद कर यौन उत्पीड़न पीड़िता से जानकारी प्राप्त करे और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, उसके लिए ठोस नीति तैयार की जा सके।
क्या इस विषय पर महिला आयोग से छात्राआ या कर्मचारियों ने सीधे संपर्क साधा है?
महिला आयोग द्वारा तो 25 नवम्बर को रपट जारी की गई, जबकि अनेक विश्वविद्यालय, कॉलेज और शिक्षण संस्थानों की छात्राएं और कर्मचारी इससे पहले से स्वयं हमारे कार्यालय में आकर संपर्क कर रहे हैं। इनमें से कुछ छात्राएं ऐसी हैं, जो कि कॉलेज में दी गई शिकायत की प्रति हमें देकर जाती हैं तो कुछ सलाह-मशविरा कर चली जाती हैं। इस रपट के जारी होने के बाद यहां आकर अपनी आपबीती बताने वाली छात्राओं की संख्या में वृद्धि भी हुई है।
टिप्पणियाँ